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सारा संसार लगा है प्रभु की आज्ञाओं को तोड़ मनमाने आचरण में तथा सनातन भक्ति मार्ग क्या है
परमेश्वर ने मनुष्यो को प्रकृति का उपयोग करने के लिए गाइड दी जिसका नाम *वेद* हैं जिसमे पूरी पृथ्वी सौर मंडल , यंत्रो यानो वाहनों और स्वास्थ्य विज्ञानं आदि के साथ साथ आध्यात्मिक विज्ञानं भी की सम्पूर्ण जानकारी थी ।
कालान्तर में वेद लुप्त होने पर ब्रह्म द्वारा ऋषि वेदव्यास जी के अंदर प्रवेश कर पुनः 4 भागो में प्रकट किये गए ।। और महाभारत में कृष्ण के अंदर प्रवेश कर ब्रह्म उर्फ़ महाकाल द्वारा वेदों का सार *गीता*जी में प्रकट किये गए ।।
मनुष्यो द्वारा सनातन परमेश्वर और सनातन लोक की प्राप्ति के लिए वेदों का गहन अध्ययन किया गया व हिमालया पर हजारो लाखो वर्ष तप किया गया । तप से वो मनुष्य ऋषि हो गए और अनेको सिद्धियां आ गयी किन्तु सनातन परमेश्वर और सनातन लोक नही मिला और अपने अपने अनुभवो के उपनिषद बना लिए । कुछ ऋषियो ने योग द्वारा शरीर से निकल कर ब्रह्म लोक से निचे तक के लोक और ब्रह्माण्ड खूब घुमे परंतु सनातन लोक नही मिला । गायत्री परिवार शांतिकुंज के संस्थापक श्री राम आचार्य कहते है की मैं कई जन्मों से ऋषि हूँ सहस्रार चक्र से आगे 2 और चक्र है वो हम अनेको ऋषि कई जन्मों से नही खोल पाये हैं।शायद उनमे सनातन लोक की कोई जानकारी या मार्ग मिले । जब परमेश्वर की इच्छा होगी तब ही उसकी जानकारी और सनातन लोक की जानकारी संसार को मिलेगी और मैं आपको पुरे निश्चय से कहना चाहता हूँ की परमेश्वर की कृपा से यदि कोई संत आता है तो वो सनातन लोक और सनातन परमेश्वर की पूरी जानकारी देगा और वो अपने शिष्यो को प्रथम गुप्त गायत्री मन्त्र देगा शरीर के सारे चक्रों को खुलवायेगा और सहस्रार चक्र से ऊपर के चक्रों को खुलवाने वाले अन्य मन्त्र भी देगा । मेरे शिष्यो आप मुझको छोड़कर उसको सदगुरु ग्रहण करना ।। )) इससे सिद्ध है की आचार्य भी मनमाने आचरण में लगे रहे सनातन परमेश्वर को पाने में हर जन्म में पूरी तरह असफल रहे चाहे उनमे कितनी भी सिध्दियां थी ।।
गीता जी में प्रभु की आज्ञा है की भक्तिमार्ग में संतुलित भोजन करो संतुलित जागो और सोओ
बिलकुल भूखा न रहो अर्थात ब्रत न करो किन्तु संसार अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए प्रभू के इस आदेश को तोड़कर खूब ब्रत रखते हैं । फिर मनुष्य कहता फिरता है की खूब पूजा पाठ की किन्तु कोई फ़ायदा नही हुआ ।।
गीता जी में प्रभु कहते है की त्रिगुण देवो रजगुण ब्रह्मा सतगुण विष्णु तमोगुण शिव की भक्ति में लगा मनुष्यो में मुर्ख नीच दुष्ट राक्षसी स्वभाव को धारण किये ये मनुष्य मुझ ब्रह्म को भी नही भजता । अर्थात तीनो देवो की भक्ति को रिजेक्ट करता है ।
।। मृत्युलोक में हम दो प्रभु अर्थात पुरुष अर्थात स्वामी हैं किन्तु पुरषोत्तम परमेश्वर तो कोई अन्य है और वो सनातन लोक में रहता है । मैं भी उसी आदिपुरुष परमेश्वर की शरण में हूँ ।।
हे अर्जुन यदि तू मेरी भक्ति करना चाहता है तो प्रणव मन्त्र का जाप कर और युद्ध भी कर
यदि परम शांति अर्थात सनातन लोक चाहता है तो परम अक्षर ब्रह्म की भक्ति कर और उसकी भक्ति का मन्त्र प्रणव तत् सत है । हे अर्जुन प्रणव मन्त्र को तू जनता है किन्तु तत् और सत् मन्त्र को जानने के लिए तू तत्त्व दर्शी संत के पास और उनकी चरण सेवा कर वो तुझको गुप्त ज्ञान और गुप्त मंत्रो का उपदेश करेंगे ।
मित्रो अर्जुन को तो तत्त्वदर्शी संत नही मिला किन्तु सनातन परमेश्वर ने हम सभी तुच्छ जीव जो मृत्युलोक में फंसे हैं को बचाने के लिए तत्त्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी को भेजा है कृपया वेदबित सारे ज्ञान उपदेश को समझे व सनातन परमेश्वर व सनातन लोक की प्राप्ति की एकमात्र सनातन भक्ति प्राप्त कीजिये ।।
4सौ वर्ष पहले सनातन परमेश्वर कवीराग्नि गरीबदास जी को मिले और उनको गुरुपद प्रदान किया भक्ति दान दी जो क्रमशः संत शीतल दास् जी
संत ध्यानदास जी
संत रामदास जी
संत ब्रह्मानंद जी
संत जुगतानंद जी
संत गंगेश्वरानंद जी
संत चिदानंद जी
संत रामदेवानन्द जी से
चलती हुयी संत रामपाल जी तक पहुंची है आओ और अपना कल्याण कराओ
परम सन्त रामपाल जी द्वारा दिया जाने वाले गुप्त गायत्री मन्त्र में सपत्नीक ब्रह्मा जी विष्णु जी और शिव जी गणेशजी तथा देवी दुर्गा का गुप्त नाम मन्त्र शामिल है ।। इसके जाप से इन देवताओ का ऋण कर्ज उतरा जाता है और इनको साधा जाता है ये पांच देव हमारे मेरुदंड में पांच चक्रों में स्थित है मूल चक्र में गणेश जी स्वाद चक्र में ब्रह्मा जी नाभि चक्र में विष्णु जी हृदय चक्र में शिव जी और कण्ठ चक्र में दुर्गा जी । और इस मंत्र में परमेश्वर के सदगुरु रूप का मन्त्र और सतपुरुष रूप का भी मन्त्र है ये हमारी भक्ति है और पाप नाशक मन्त्र है।
दूसरी बार में परम सदगुरु तत्त्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज प्रणव तत् सत में से प्रणव तत् को डिकोड करके स्वास् उस्वास् में जपने का अजपा जाप देते है इसके प्रभाव से ब्रह्मलोक का द्वार सहस्रार चक्र व् इसके ऊपर का चक्र अक्षर ब्रह्म का लोक द्वार खुल जाता है
इन दोनों में सफल होने पर आदि सत् मन्त्र सार नाम देते है जिससे अक्षर ब्रह्म के लोक चक्र से ऊपर परम अक्षर ब्रह्म का लोक सनातन लोक का द्वार खुलता है और स्थाई निवास प्राप्त होता है।।और जीब जन्म मृत्यु से सदैव के लिए मुक्त हो जाता है नूरी शरीर मिलता है जिसका प्रकाश16 सूर्यो जितना है । वहां यहाँ से अनंत गुना अच्छा अजर अमर स्वतः प्रकाशित संसार है ।। देर न करे निः शुल्क नाम दीक्षा प्राप्त कर जीवन के हर एक क्षण का सदुपयोग करे
बहुत ज्यादा विस्तार से जानने के लिए और गहराई से समझने के लिए परम सदगुरु संत रामपाल जी के मुख कमल से सुने अमृत बचन साधना टीवी पर रोज शाम 7:40 से 8:40 तक और इश्वर टीवी पर 8:30pmसे 9:30pm तक
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कालान्तर में वेद लुप्त होने पर ब्रह्म द्वारा ऋषि वेदव्यास जी के अंदर प्रवेश कर पुनः 4 भागो में प्रकट किये गए ।। और महाभारत में कृष्ण के अंदर प्रवेश कर ब्रह्म उर्फ़ महाकाल द्वारा वेदों का सार *गीता*जी में प्रकट किये गए ।।
मनुष्यो द्वारा सनातन परमेश्वर और सनातन लोक की प्राप्ति के लिए वेदों का गहन अध्ययन किया गया व हिमालया पर हजारो लाखो वर्ष तप किया गया । तप से वो मनुष्य ऋषि हो गए और अनेको सिद्धियां आ गयी किन्तु सनातन परमेश्वर और सनातन लोक नही मिला और अपने अपने अनुभवो के उपनिषद बना लिए । कुछ ऋषियो ने योग द्वारा शरीर से निकल कर ब्रह्म लोक से निचे तक के लोक और ब्रह्माण्ड खूब घुमे परंतु सनातन लोक नही मिला । गायत्री परिवार शांतिकुंज के संस्थापक श्री राम आचार्य कहते है की मैं कई जन्मों से ऋषि हूँ सहस्रार चक्र से आगे 2 और चक्र है वो हम अनेको ऋषि कई जन्मों से नही खोल पाये हैं।शायद उनमे सनातन लोक की कोई जानकारी या मार्ग मिले । जब परमेश्वर की इच्छा होगी तब ही उसकी जानकारी और सनातन लोक की जानकारी संसार को मिलेगी और मैं आपको पुरे निश्चय से कहना चाहता हूँ की परमेश्वर की कृपा से यदि कोई संत आता है तो वो सनातन लोक और सनातन परमेश्वर की पूरी जानकारी देगा और वो अपने शिष्यो को प्रथम गुप्त गायत्री मन्त्र देगा शरीर के सारे चक्रों को खुलवायेगा और सहस्रार चक्र से ऊपर के चक्रों को खुलवाने वाले अन्य मन्त्र भी देगा । मेरे शिष्यो आप मुझको छोड़कर उसको सदगुरु ग्रहण करना ।। )) इससे सिद्ध है की आचार्य भी मनमाने आचरण में लगे रहे सनातन परमेश्वर को पाने में हर जन्म में पूरी तरह असफल रहे चाहे उनमे कितनी भी सिध्दियां थी ।।
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