गुरुवार, 28 मई 2015

देवी-देवताओं का राजा इन्द्र भी गधा बनता है

👉देवी-देवताओं का राजा इन्द्र भी गधा बनता है

एक समय मार्कण्डे ऋषि निरंकार ईश्वर मान कर ब्रह्म (काल) की कई वर्षों से साधना कर रहे थे। 
इन्द्र (जो स्वर्ग का राजा है) को चिंता बनी कि कहीं यह साधकअधिक तप करके इन्द्र की पदवी प्राप्त न करले।
चूंकि इन्द्र की पदवी (पोस्ट) अधिक यज्ञ करके या अधिक तप करके प्राप्त की जाती है। उसका (इन्द्र का) शासन काल बहत्तर चैकड़ी (चतुर्युगी) युग का होता है।
उसके शासन काल के दौरान यदि कोई साधक इन्द्र की पदवी पाने योग्य साधना कर लेता है
तो उस वर्तमान इन्द्र (स्वर्ग के राजा) को बीच में ही पद से हटा कर नए साधक को इन्द्र पद दे दिया जाता है। इसलिए इन्द्र को यह चिंता बनी रहती है कि कोई तप या यज्ञ करके मेरे राज्य को न छीन ले। इसलिए वह उस साधक का तप या यज्ञ बीच में खण्ड करवादेता है।इसी उद्देश्य से इन्द्र ने मार्कण्डे ऋषि के पास
एक उर्वसी स्वर्ग से भेजी। उर्वसी ने अपनी सिद्धि शक्ति से सुहावना मौसम बनाया तथा खूब नाची-गाई। अंत में निवस्त्र हो गई। तब मार्कण्डे ऋषि ने कहा कि
हे बहन! हे बेटी! हे माई! आप यहाँ किस लिए आई? इस पर उर्वसी ने कहा कि हे मार्कण्डे गुसांई!
आप जीत गए मैं हार गई। आप एक बार इन्द्र लोक में चलो नहीं तो मेरा मजाक करेंगे
और मुझे सजा दी जाएगी।
मार्कण्डे बोले मैं जहाँ की साधना (महास्वर्ग-ब्रह्म लोक की साधना) कररहाहूँ वहाँ पर जो नाचने वाली तथा गाने वाली हैं उनके पैर धोने वाली तेरे जैसी सात-सात बान्दियाँहैं। फिर तेरे को क्या देखूं।
तेरे से अगली कोई अधिक सुन्दर हो उसे भेज दे।
इस पर उर्वसी ने कहा कि इन्द्र की पटरानी मैं ही हूँ अर्थात् मेरे से सुन्दर कोई नहीं है।
इस पर मार्कण्डे गोंसाई बोले कि जब इन्द्र मरेगा तब क्या करेगी?
उर्वसी बोली मैं चौदह इन्द्र वरूंगी अर्थात् मैं तो एक बनी रहूँगी मेरे सामने (14) चैदह इन्द्र अपनी-अपनी इन्द्र पदवी भोग कर मर जाएंगे। मेरी आयु स्वर्ग की पटरानी के रूप में है।
(72 गुणा 14 = 1008 चतुर्युग तक अर्थात्
एक ब्रह्मा के दिन(एक कल्प) की आयु एक इन्द्र की पटरानी शची की है। मार्कण्डेऋषि बोले चैदह इन्द्र भी मरेंगे तब क्या करेगी?
उर्वसी बोली जितने इन्द्र मैं भोगुंगी वे गधे बनेंगे तथा मैडं गधी बनूंगी।
गरीब दास जी कहते है -
एती उम्र, बुलंद मरेगा अंत रे।
सतगुरु लगे न कान,
न भेटैं संत रे।।
फिर इन्द्र आया तथा कहने लगा कि हे बन्द निवाज!
आप जीत गए हम हार गए। चलो इन्द्र की गद्दी प्राप्त करो। इस पर मार्कण्डे ऋषि बोले- रे-रे इन्द्र क्या कहरहा है?
इन्द्र का राज मेरे किस काम का। मैं तो ब्रह्म लोक की साधना कर रहा हूँ।
वहाँ पर तेरे जैसे इन्द्र अलिलों (नील संख्या) में हैं उन्होंने मेरे चरणछुए। तू भी अनन्य मन से (नीचे की साधना - ब्रह्मा, विष्णु, शिव तथा देवी-देवताओं का त्याग करने को अनन्य मन कहते हैं) ब्रह्म की साधना कर ले। ब्रह्म लोक में साधक कल्पों तक मुक्त हो जाता है।
इस पर इन्द्र नेकहा ऋषि जी, फिर कभी देखेंगे। अब तो मौज मारने दो।
यहाँ विशेष विचारने की बात है कि इन्द्र जी को मालूम है कि इस क्षणिक स्वर्ग के राज का सुख भोग कर गधा बनुंगा। फिर भी मन व इन्द्रियों के वश हुआ विकारों के आनन्द को नहीं त्यागना चाहता।
इसी प्रकार जो शराब पीता है उसे उत्तम मान कर त्यागना नहीं चाहता।
इसी प्रकार ब्रह्मा, विष्णु, शिव भी अपनी पदवी को भोग कर मर जाएंगेऔर फिर चैरासी लाख योनियों को प्राप्त होगें।
नई श्रेष्ठ (परम) आत्मा काल निरंजन के घर प्रकृति (अष्टंगी) के उदरसे जन्म लेती है तथा उन्हें फिर तीन लोक का राज्य दे देता है- ब्रह्मा को शरीर बनाना, विष्णु को स्थिति और शिव को संहार (प्रलय)।
चूंकि काल (ब्रह्म) शापवश प्रतिदिन एक लाख (मनुष्य-देव-ऋषि)शरीर धारी प्राणी खाता है। उसके लिए इसके तीनों पुत्र व्यवस्था बनाए रखते हैं।
आदरणीय
गरीबदास साहेब जी कह रहे हैं कि हे नादान मन! असंख्यों जन्म हो गए इस काल लोक में कष्ट उठाते। अब जीवित मर ले।
जीवित मरना है - न पृथ्वी के राज की चाह, न स्वर्ग के राज की, न ब्रह्मा विष्णु-शिव बनने की चाह, न शराब-तम्बाखू-सुल्फा, न अफीम, न माँस प्रयोग की इच्छा तथा तीन लोक व ब्रह्म लोक की साधना को त्याग कर
उस पूर्ण परमात्मा (पूर्णब्रह्म सतपुरुष) की साधना अनन्य (अव्याभिचारिणी)भक्ति करके सतलोक (सच्चखण्ड) चला जा। फिर तेरा जन्म-मरण सदा के लिए समाप्त हो जाएगा। जिसका प्रत्यक्ष प्रमाण पवित्रा गीता जीके अध्याय 13 में तथा रह-रह कर प्रत्येक अध्याय में दिया है।
फिर कहा है कि कोई पूर्ण संत (सतगुरु) मिले तो सही ज्ञान (जो गीता जी के अध्याय13 पूरे में है) बता कर उत्तम साधना सतनाम तथा सारनाम दे कर पार करे।
जहाँ (सतलोक में) चार मुक्ति जो ब्रह्म साधना की अंतिम उपलब्धि है वहाँ (सतलोक के) केे स्थाई सुख के सामने तुच्छ है तथा माया (सर्व सुविधा देने वाली)
वहाँ आम भक्त (हंस) की सेवक है। अर्थात् हर सुविधा तथा सुख चरणों में पड़ा रहता है। इन्द्र का स्वर्ग राज, सतलोक की तुलना में कौवे की बीट (टटी) के समान है।
अविनाशी (परम अक्षर ब्रह्म) की प्राप्ति हो जाएगी। उस को प्राप्त करके पूर्ण मुक्त (परम गति को प्राप्त) हो जाएगा।

सभी 12 कबीर पन्थो के लिए सन्देश


सभी 12 कबीर पन्थो के लिए सन्देश -

सत साहेब जी ....
आप सभी अच्छी तरह से जानते है की 13वां पंथ स्वयं सत्पुरुष सद्गुरु सत कबीर जी स्वयं आकर चलाएंगे ... इस समय 13पंथ चल रहा है ... इसका मतलब की परमेश्वर सत कबीर जी की भविष्वाणी सिद्ध हो चुकी है ...यानी परमेश्वर सतगुरु सत कवीर जी रूप बदल कर आ चुके है ...हमने तो पहचान लिया है .और शरण मालिक की आ गये है ... आप जी भी बिना देर किये सद्गुरु परमेश्वर की शरण ग्रहण करो ... उनका विरोध कर और स्वयं को ही 13वां पंथ घोषित कर पापी मत बनो ....वैसे परमेश्वर सद्गुरु कबीर साहेब जी ने ये भी कहा था की सभी पंथों को मिटा के एक ही पंथ चलाएंगे ... आप स्वयं आसानी से आ जायेंगे .. तो महापुण्य बनेंगे ...नही तो इतिहास गवाह है की जो नही माने है उनका हश्र कितना बुरा हुआ है ... सभी सच्चे ज्ञान के रस्ते चलते हुए अभिमान त्यागकर 13वे कबीर पंथ में परमेश्वर सद्गुरु रामपाल जी के शरण में आजाओ ... इस समय 13वे पंथ में परमेश्वर सद्गुरु कबीर जी का नाद रूप संत रामपाल जी ही है .... ज्ञान के आधार पर सत्य पहचानो ...आपना कल्याण करो .. ये समय मृत्यु लोक से मुक्ति का है,,,, जिसके हाथ से ये समय निकल गया उसे ये समय अगले कल्प में ही मिलेगा जब तक अरबो खरबों जन्म कष्ट भोगना पड़ेगा... आगे आपकी मर्जी है ... ....[[[ परमेश्वर सभी का ज्ञान योग खोले ]]]

सौजन्य से

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बुधवार, 20 मई 2015

अहंकार तज परमेश्वर को पहचान लो .... शिक्षा लो इस कथा से

सत साहेब जी 
कभी कभी इन्सान अपने अंहकार के वशीभूत होकर अपना बुरा और दूसरों का भला करा लेता है 
समय होता है उसके पास अगर गुरु के चरण पकड ले और क्षमा मांग ले अपने गुनाहों कि तो उसका भी भला हो सकता है और भाग जाए तो फिर अपनी हानी
सिखों के गुरु गुरु हरि क्रिष्ण राय जी महाराज जब आनंदपूर से दिल्ली के लिए चले तो उस समय सभी यात्राएं पैदल होती थी सो गुरुजी जब अंबाला के पास पहुंचे तो शाम हो चुकि थी सो भक्तों ने कहा महाराज आज यहीं विश्राम करते हैं और सुबह उठकर चलेंगे यहाँ से सो गुरुजी ने कहा कि कोई बात नहीँ यहाँ तो रुकना ही पडेगा क्यूंकि एक भक्त जो है वो बहुत दिनों से आस लगाए बैठे हैं और हमारा इंतजार कर रहे हैं तो भक्तों ने पुछा महाराज यहाँ तो कोई दिखता नही कहाँ हैं वो भगत आपका तो गुरुजी ने कहा भगतो बैठ जाओ और आगे आगे देखो होता है क्या ।
तो उस गांव मे एक पंडित जी रहते थे उन्होंने गीता का एक एक श्लोक ऐसे रट रखा था जैसे तोता बोलता है तो उसे बडा घमंड है अपने ज्ञान पर तो जब उसे पता चला कि यहाँ सिखों के गुरु आए हैं तो वो आ गया गुरुजी की परिक्षा लेने।
बोले महाराज आप हैं कौन जो इतनी उंचाई पर बैठे हो गीता का ज्ञान है आपको गुरुजी ने कहा रे भोले प्राणी पहले अपने बारे मे तो बता तु कौन है तो पंडीत बोला रे पाखंडी तुझे मालुम ना है मै फलाना पंडीत हूँ दूनीया जाणे सैं मनै तू गुरु बण्या बैठा है मनै कोनी जाणता तू बावला है के तू तो गुरुजी ने कहा भाई कोई बात नहीँ इब समझ लिया तनै इब समस्या ते बता दे के समस्या सैं भाई तू बिना कारण घणा नाराज होण लाग रहेया सैं इब पंडीत कहण लागेया भाई तनै गीता का ज्ञान सैं मै ज्ञान चर्चा करने आया हूँ ।
तो गुरुजी ने कहा तू किसका उपासक है किसकि पुजा करता है तो पंडित बोला मै क्रिष्ण का पुजारी हूँ वही मेरे सब कुछ है तो गुरुजी ने कहा पंडित जी ऐसा है मै तो इन झमेलों मे नहीं पडता तू ही कोई बंदा पकड ला अपने गांव से उससे ही तेरी चर्चा करवा देंगे अगर मैं ज्ञान चर्चा करुंगा तो तु कहेगा गुरु पुत्र है सारा ज्ञान घोट रखा है और जो मेरे भगत भाई साथ हैं ये आपसे ज्ञान चर्चा करेंगे नहीं थके हूए हैं तो तू ऐसा कर अपने गांव से कोई पकड ला
अब पंडीत ने सोचा अछा समय है गुरु को हराने का गुरु को हरा दुंगा तो मेरे नाम का और डंका बजेगा मुझे और ख्याती मीलेगी सिख लोग भी खुब इजत करेंगे सो चल पकड ला ऐसा बंदा जीसे कुछ आता नहीं जीसने कभी स्कुल न देखा हो
वो अभी गांव के बाहर ही पहुंचा था तो सामने से एक गंगू तेली नाम का आदमी सामने आ गया उसे देखते ही पंडीत ने दो फुट उंची छलांग लगाई पंडीत की खुशी का ठिकाना नहीं था बोले आज तो जीत ही जीत है गंगू गूंगा है मुह से कुछ बोलता नहीँ आज देखता हूँ गुरु को ये गुरु होता क्या है वेवकूफ बना रखा है इसने लोगों को आज नहीं छोडूंगा आज तो जीत पकी सो ले चला पंडित गंगू तेली को गुरु के पास
गुरु के पास जब पंडीत पहुंचा तो कहने लगा महाराज ये बंदा लाया हूँ इससे करवाओ मेरी ज्ञान चर्चा मै श्लोक बोलूंगा और ये उनको समझाएगा की इसका भेद क्या है ।
गुरुजी तो जाणे जाण थे सो पंडित से बोले भाई आप बैठो अभी इसे स्नान करने दो फिर करेंगे चर्चा आराम से पंडित के मन मे तो दो दो लडू फुट रहेथे कि कब हो ज्ञान चर्चा औऱ जीतकर घर जाएं
अब गुरुजी ने उस गुंगे को स्नान करवाया और दोनो को अपने सामने बिठा लीया एक छडी लेकर गुरुजी ने गुंगे के सीर पर मारी और पंडित से कहा कि अब पुछो जो पुछना है बस पंडित जी हो गए शुरु एक श्लोक सुनाया और उसका उतर देने को कहा जैसे ही पंडीत ने श्लोक खत्म किया गंगू तेली फटाफट करने लगा आंसर पंडित ये देखकर पागल हो गया की ये तो जन्मजात गूंगा था ये बोला कैसे उसे सारे श्लोक ही भुल गए तो गंगू ने कहा पंडित जी अगला श्लोक बोलो पर पंडित चूप कुछ ना सुझा परेशानहो गया माथा पिटने लगा और गंगू श्लोक पर श्लोक सुनाए जा रहा था एक से एक अब पंडित ने देखा ये तो मामला ही उल्ट हो गया इससे पहले की और बेइजती हो तू खिसक जा बची हुई इजत बचा ले बाबा वर्ना लोग जूते मारेंगे और ये सोचकर भाग खडा हुआ और गंगू तेली गुरुजी के चरणों मे गीर पडा महाराज कहाँ थे आप आज तक आंखे भी पथरा गई महाराज आपने क्रिपा करी दाता सब कुछ याद आ गई गंगू तेली को पिछले जन्मो की । गंगू तेली रो रोकर गुरु के चरणो को धो रहे थे औऱ पंडीत भाग खडा हुआ सो गुरुजी ने संगत से कहा भगत जनो ये मेरा भक्त था इसके लीए रुकना पडा यहाँ पर तो ऐसे होते हैं महापुरुष अगर पंडित माफी मांग लेता चरणो मे गीर जाता तो उसका भी कल्याणहो जाता पर मान बडाई के चकर मे भाग गया तो पुण्य आत्माओं ऐसे महापुरुष जहाँ मील जाएं उनके चरण धोकर पि लो सारे ब्रम्हांड के रास्ते खुल जाएंगे आपके लीए ।
सत साहेब जी
जय हो गुरुदेव जी की

शनिवार, 16 मई 2015

skills

विज्ञान के अधिकतर अविष्कार अल्प शिक्षित व्यक्तियों ने किये ।

संसार का अधिकतर धन अल्प शिक्षित व्यक्तियों के पास है।


संसार के अधिकतर शिक्षित व्यक्ति अल्प शिक्षित व्यक्तियों के यहाँ 


नौकरी करते है।

संसार के अधिकतर शासक अल्प शिक्षित है।


आजादी के दीवाने भी अधिक शिक्षित नही थे।


परमात्मा जिन जिन को मिले उनकी संसारिक शिक्षा भी अधिक नहीं थी।


फिर अधिक पढ़े लिखे लोग किस बात का अभिमान करते है

बुधवार, 13 मई 2015


,धर्मराज एम्पायर ,
कर्मो के इस आयोजन में ,
विकेट कीपर यमराज है।
प्राण हमारे विकेट है ,
जीवन एक क्रिकेट है।
आओ कुछ नया कीर्तिमान बना ले,
अब तक हारते रहने का रिकार्ड तोड़ दे।
सांसो का सिमित ओवर है
साधना, सुमिरन के रन बना ले।
संयम (सेवा)की सावधानी से चलना है।,
दुर्घटना(संशय )के रन आउट से बचना ,
गुरु घर से अलग होने का हिट विकेट कभी न देना,
वैसे कुछ खिलाडी
जल्दी पवेलियन लौट जाते है,
पर पारी ऐसे खेलते है
की कीर्तिमान रच जाते है।
🏃🏃🏃🏃🏃

सोमवार, 11 मई 2015

life as a match , play like this

written by - Chandrashekhar Dass

,धर्मराज एम्पायर ,
कर्मो के इस आयोजन में ,
विकेट कीपर यमराज है।
प्राण हमारे विकेट है ,
जीवन एक क्रिकेट है।
आओ कुछ नया कीर्तिमान बना ले,
अब तक हारते रहने का रिकार्ड तोड़ दे।
सांसो का सिमित ओवर है
साधना, सुमिरन के रन बना ले।
संयम (सेवा)की सावधानी से चलना है।,
दुर्घटना(संशय )के रन आउट से बचना ,
गुरु घर से अलग होने का हिट विकेट कभी न देना,
वैसे कुछ खिलाडी
जल्दी पवेलियन लौट जाते है,
पर पारी ऐसे खेलते है
की कीर्तिमान रच जाते है।
🏃🏃🏃🏃🏃