मंगलवार, 26 अप्रैल 2016

नैतिक भ्रष्ट पुर्बज


धर्मशास्र या कामशास्र..??

धर्मग्रंथों में जिन पात्रों को आदर्श
बताया गया है उन में
कामुकता की पराकाष्ठा देखी जा
सकती है।
जहां भी सुंदर स्त्री दिखाई दी,
उसे प्राप्त करने और भोगने के तानेबाने बुने
जाने लगे। ब्रह्मा के
संबंध मे शिवपुराण में उल्लेख आता है कि
पार्वती के
विवाह में ब्रह्मा पुरोहित बने थे उन्होंने
पार्वती का पांव
देखा और इस कदर कामातुर हो उठे कि
कर्मकांड कराते कराते
ही स्खलित हो गए।
भागवत में उल्लेख आता है कि शिव की
रक्षा के लिए
विष्णु ने मोहिनी रूप धारण किया तो
शिव
उसी रूप पर मुग्ध हो गए और उस के पीछे
दीवाने होकर भागे। भविष्य पुराण में आई
एक कथा के
अनुसार अत्रि ऋशि की पत्नी अनुपम
सुंदरी थी।
ब्रम्हा, विष्णु, महेश तीनों उस के पास गए।
ब्रह्मा ने
निर्लज्ज हो कर अनुसूया से रतिसुख मांगा
और
तीनों देवता अश्लील हरकतें करने लगे।
गौतम के वेश में इंद्र द्वारा अहल्या से
व्यभिचार
की कथा रामायण और ब्रहा वैवर्त पुराण
में
आती है। अनैतिकता की पराकाष्ठा
देखिए
कि इस का दंड बेचारी निर्दोष अहल्या
को भोगना पड़ा था।
भागवत (9। 14) और देवी भागवत में चंद्रमा
द्वारा गुरू
की पत्नी को अपने पास रखने
की कथा आती है गुरू ने
अपनी पत्नी बार-बार वापस
मांगी तो भी चन्द्रमा ने उसे वापस
नहीं लौटाया। लंबे अरसे तक साथ रहने के
कारण
चंद्रमा से तारा को एक पुत्र भी हुआ
जो चन्द्रमा को ही दे दिया गया ।
देवताओं के गुरू बृहस्पति ने स्वयं अपने भाई
की गर्भवती पत्नी से बलात्कार
किया देवताओं ने ममता ( बृहस्पति की
भावज ) को उस
समय काफी बुरा भला कहा जब उसने
बृहस्पति की मनमानी का प्रतिरोध
करना चाहा। इन प्रसंगों के सही गलत होने
का विवेचन
करने की आवशयकता नहीं है। इन
का उल्लेख इसी दृष्टि से किया जा रहा है
धर्म
ग्रन्थों में उल्लेखित पात्रों को किनं
मानदडों पर आदर्श सिद्ध
किया गया है ।
उन का समय
दूसरों की पत्नी छीनने व
व्यभिचार करने में बीतता था तो वे
लोगों को नैतिकता का पाठ
कब सिखाते थे और कैसे सिखाते थे । इंद्र
का तो सारा समय
ही स्त्रियों के साथ राग रंग में बीतता
था वह
जब असुरों से हार जाते तो ब्रह्मा, विष्णु,
महेश
की सहायता से षड्यंत्र रच कर अपना राज्य
वापस
प्राप्त करते और फिर उन्ही रागरंगों में रम
जाते।
अप्सराओं के नाच देखना, शराब पीना, और
दूसरा कोई
व्यक्ति अच्छे काम करता तो उस में विध्न
पैदा करना यही इंद्र
की जीवनचर्या थी । इस
की पुष्ठि करने वाले ढेरों प्रसंग
धर्मशास्त्रों में भरे पडे़
हैं। महाभारत के तो हर अघ्याय में झूठ,
बेईमानी और
धूर्तता की ढेरों कहानियां हैं। धर्मराज
युधिष्ठिर, जिन के
बारे में कहा जाता है कि उन्होंने जीवन में
कभी पाप नही किया, जुआ खेल कर
राजपाट
हार गए और पत्नी को भी दाव पर लगा बैठे,
युधिष्ठिर के इस कृत्य की द्रौपदी और
धृतराष्ट के ही एक पुत्र विकर्ण ने
भर्त्सना की थी।
‘‘महाभारत’’ की लड़ाई के लिए कोई एक
घटना मूल कारण
है तो वह युधिष्ठिर का जुआ खेलना और
द्रौपदी को दांव
पर लगाना है। इतने बड़े युद्ध का कारण
धार्मिक भले
ही हो, पर नैतिक कहां रह जाता है? दूसरे
धर्मावतार
भीष्म ने एक राजकुमारी अंबा का अपहरण
किया तथा न खुद उससे विवाह किया
और न
ही दूसरी जगह होने दिया ।
अंबा को इस संताप के कारण
आत्महत्या करनी पड़ी।
कुंती के चारों पुत्र कर्ण, युघिष्ठिर, भीम
और
अर्जुन परपुरूषों से उत्पन्न हुए थे । कर्ण तो
विवाह से पहले
ही जन्म ले चुका था। स्वयंवर में द्रौपदी ने
अर्जुन के गले में वरमाला डाली थी। किन्तु
पांचों भाइयों ने उसके साथ संयुक्त
विवाह का निश्चय किया। पांचाल नरेश
ने इसका विरोध किया तो युधिष्ठिर ने
ही जिद
की और अपनी बात मनवाई ।
संपूर्ण धर्म वाड्मय इस तरह की
विसंगतियों से
भरा हुआ है इसे कथित धार्मिक युग का
प्रतिबिंब
भी कह सकते हैं और धर्म का आदर्श
भी कह सकते हैं । जिनमें नैतिक गुणों का
कोई महत्व
नहीं है। इन प्रसंगों से यही सिद्ध
होता है कि अनैतिकता को तब धर्मगुरूओं
की स्वीकृति मिली हुई
थी। दान दक्षिणा, पूजापाठ, कर्मकांड,
यज्ञ, हवन
आदि धार्मिक क्रियाकृत्य करते हुए कैसा
भी आचरण
किया जाता तो वह सभ्य था । जरूरी
इतना भर
था कि ब्राह्मणों के स्वार्थ पुरे किये
जाते रहें।
नैतिक कौन? असुर देवताओं और धार्मिक
लोगों की तुलना में
अधिक नैतिक थे । वे देवताओं से युद्ध जरूर
लड़ते थे, लेकिन युद्ध में
उन्होंने
बेईमानी प्रायः नहीं की ।
देवताओं की स्त्रियों को भी उन्होंने
परेशान
नहीं किया अपमान का बदला लेने के लिए
रावण
सीता का हरण कर के ले तो गया था, पर
उस ने
सीता को लंका में बड़े ही आदर से रखा
था।
राम ने शूर्पनखा के प्रणय निवेदन को
ठुकराया, वहाँ तक
तो ठीक है, लेकिन उसे लक्ष्मण के पास प्रणय
प्रस्ताव ले कर जाने और बाद में नाककान
काट लेने का भद्दा मजाक
और दुव्र्यवहार करने का क्या औचित्य था?
रावण
यदि इसी स्तर पर प्रतिशोध
लेना चाहता तो सीता की शील
रक्षा असंभव थी। इस स्थिति में कौन
ज्यादा नैतिक था –
राम या रावण ??
टिप-: मैने ईस पोस्ट मे कुछ भी गलत
नही लिखा है भगवानों की वकालत और
गालीया गलोच करने से पेहले अपने ईन
काल्पनीक धर्म ग्रंथो मे ईसकी जाँच करें
फिर
यहा वकालत करें धन्यवाद..
पोस्ट ज्यादा से ज्यादा लाईक और शेअर
करीये
ताकी इन  कथाओं का मिथक
सबको पता चले..
जय बंदीछोड़ की

पंडित जी और नाविक

पंडित जी और नाविक


आज गंगा पार होनेके लिए कई लोग एक नौकामें बैठे, धीरे-धीरे नौका सवारियों के साथ सामने वाले किनारे की ओर बढ़ रही थी,एक पंडित जी भी उसमें सवार थे। पंडित जी ने नाविक से पूछा “क्या तुमने भूगोल पढ़ी है ?”
भोला- भाला नाविक बोला “भूगोल क्या है इसका मुझे कुछ पता नहीं।”
पंडितजी ने पंडिताई का प्रदर्शन करते कहा, “तुम्हारी पाव भर जिंदगी पानी में गई।”
फिर पंडित जी ने दूसरा प्रश्न किया, “क्या इतिहास जानते हो? महारानी लक्ष्मीबाई कब और कहाँ हुई तथा उन्होंने कैसे लडाई की ?”
नाविक ने अपनी अनभिज्ञता जाहिर की तो पंडित जी ने विजयीमुद्रा में कहा “ ये भी नहीं जानते तुम्हारी तो आधी जिंदगी पानी में गई।”
फिर विद्या के मद में पंडित जी ने तीसरा प्रश्न पूछा “महाभारत का भीष्म-नाविक संवाद या रामायण का केवट और भगवान श्रीराम का संवाद जानते हो ?”
अनपढ़ नाविक क्या कहे, उसने इशारे में ना कहा, तब पंडित जी मुस्कुराते हुए बोले “तुम्हारी तो पौनी जिंदगी पानी में गई।”
तभी अचानक गंगा में प्रवाह तीव्र होने लगा। नाविक ने सभी को तूफान की चेतावनी दी, और पंडितजी से पूछा “नौका तो तूफान में डूब सकती है, क्या आपको तैरना आता है?”
पंडित जी गभराहट में बोले “मुझे तो तैरना-वैरना नहीं आता है ?”
नाविक ने स्थिति भांपते हुए कहा ,“तब तो समझो आपकी पूरी जिंदगी पानी में गयी। ”
कुछ ही देर में नौका पलट गई। और पंडित जी बह गए।
लेकिन आज के धर्मगुरु दो बाटे अटबट कर के नाविक जैसी भोली जनता को गुमराह कर रहे है जो की सरासर गलत है। इनका पता तो तब लगे जब संत रामपाल जी महाराज के सामने आये। भोली जनता को तो कैसे भी मुर्ख बना दो।
अब दास का इन नक्लियो से अनुरोध है जनता को सच्चाई बता दो नही तो आपकी पूरी जिंदगी पानी में जायेगी।

शनिवार, 23 अप्रैल 2016

प्रार्थना कवीर परमेश्वर से

प्रार्थना    


 संकट मोचन कष्ट हरण हो, मंगल करन कबीर, के आ गए शरण तेरी........ पहले तो मोहे ज्ञान नहीं था, प्रेम बना ना तेरे में,, दीन जान कै माफ किजीयो, खता हुई जिन मेरे मैं। अनगिन अवगुण भरे मेरे मैं, माफ करो तकसीर, के आ गए शरण तेरी..... संकट मोचन कष्ट हरण हो, मंगल करन कबीर, के आ गए शरण तेरी.... या गीदड वाली रात चौरासी, आन गिरा हूँ झेरे में,, ऊंची ऊंची लाई छलांगा, यतन किए बहुतेरे मैं। काम क्रोध अंहकार लोभ की, मोटी लगी जंजीर, के आ गए शरण तेरी..... संकट मोचन कष्ट हरण हो, मंगल करन कबीर, के आ गए शरण तेरी..... कर्म कुसंगत बहुत किए, वो जाते है नहीं कहे,, आ के आप संभालो दाता, चौरासी में जान बहे। जन्म मरण के कष्ट सहे, अब मेटो जम की पीर, के आ गए शरण तेरी.... संकट मोचन कष्ट हरण हो, मंगल करन कबीर, के आ गए शरण तेरी....... गुप्त रुप में सब काम सारते, जो भी विपदा आन पडै,, एक दिन दर्शन देने होंगे, दीनदयाल यूं नही सरै। तुम बिन पापी नहीं तिरे, मेरा अवगुण भरा शरीर, के आ गए शरण तेरी..... संकट मोचन कष्ट हरण हो, मंगल करन कबीर, के आ गए शरण तेरी..... रज़ा तेरी से दादु नानक जी का, सतलोक में वास हुआ,, सौ सौ प्रश्न उत्तर किन्हें, तब धर्मदास कै विश्वास हुआ। भगत के कारण ख्वास हुआ, जागी सुलतानी की तकदीर, संकट मोचन कष्ट हरण हो, मंगल करन कबीर, के आ गए शरण तेरी..... पाव चनो के लालच में, या बंदर मूठ गई,, मूठ खुलै ना जान बचै ना, हे साहिब ये कोन भई। रामपाल सतगुरु शरण लई, खाई शब्द दूध की खीर, के आ गए शरण तेरी..... संकट मोचन कष्ट हरण हो, मंगल करन कबीर, के आ गए शरण तेरी..... पाव चनो के लालच में, या बंदर मूठ गई,, मूठ खुलै ना जान बचै ना, हे साहिब ये कोन भई। रामपाल सतगुरु शरण लई, खाई शब्द दूध की खीर, के आ गए शरण तेरी। संकट मोचन कष्ट हरण हो, मंगल करन कबीर, के आ गए शरण तेरी... सत् साहेब..

श्री हनुमान का विवाह


श्री हनुमान का विवाह


हनुमान जी को बाल ब्रह्मचारी माना जाता है इसलिए हनुमान जी लंगोट धारण किए हर मंदिर और तस्वीरों में अकेले दिखते हैं। कभी भी अन्य देवताओं की तरह हनुमान जी को पत्नी के साथ नहीं देखा होगा। लेकिन अगर आप हनुमान के साथ उनकी पत्नी को देखना चाहते हैं तो आपको आंध्रप्रदेश जाना होगा।आंध्रप्रदेश के खम्मम जिले में हनुमान जी का एक प्राचीन मंदिर है। इस मंदिर में हनुमान जीके साथ उनकी पत्नी के भी दर्शन प्राप्त होते हैं। यह मंदिर इकलौता गवाह है हनुमान जी के विवाह का। ऎसी मान्यता है कि हनुमान जी जब अपने गुरु सूर्य देव से शिक्षा प्राप्त कर रहे थे। उस दौरान एक विद्या जिसे सिर्फ विवाहित सीख सकते थे, के लिये, सूर्य देव ने हनुमान जी के सामने शर्त रख दी कि अब आगे कि शिक्षा तभी प्राप्त कर सकते हो जब तुम विवाह कर लो।ऎसे में आजीवन ब्रह्मचारी रहने का प्राण ले चुके हनुमान जी के लिए दुविधा की स्थिति उत्पन्न हो गई। शिष्य को दुविधा में देखकर सूर्य देव ने हनुमान जी से कहा कि तुम मेरी पुत्री सुवर्चला से विवाह कर लो। सुवर्चला तपस्विनी थी। हनुमान जी से विवाह के बाद सुवर्चला वापस तपस्या में लीन हो गई। इस तरह हनुमान जी ने विवाह की शर्त पूरी कर ली और ब्रह्मचारी रहने का व्रत भी कायम रहा। हनुमान जी के विवाह का उल्लेख पराशर संहिता में भी किया गया है।मान्यता है कि हनुमान जी के इस मंदिर में आकर जो दंपत्ति हनुमान और उनकी पत्नी के दर्शन करते हैं उनके वैवाहिक जीवन में प्रेम और आपसी तालमेल बना रहता है। वैवाहिक जीवन में चल रही परेशानियों से मुक्ति दिलाते हैं विवाहित हनुमान