गुरुवार, 30 सितंबर 2021

वर्तमान में किसी को कथा करने का अधिकार नही सब पाखंडी देखे प्रूफ यहां शास्त्रों में🌺👇🌺




पूछो इन पाखंडियो से :-   जब द्वापर युग में वेदव्यास सहित सभी ऋषि मुनियो ने राजा परीक्षित को ये कहकर भगवत की कथा सुनाने से इनकार कर दिया था की हम ये कथा सुनाने के अधिकारी नहीं है तो फिर इस कलयुग में तुम्हे किसने भागवत और रामायण का पाठ करने का लाइसेंस दे दिया।


पूछो इन पाखंडियो से :- जब तुम्हारे तीनो भगवान् ब्रह्मा विष्णु महेश स्वयं कह रहे है की हमारी जन्म और मृत्यु होती है हम पूर्ण भगवान् नहीं है, तो फिर पूर्ण परमात्मा कौन है कैसा है कहा रहता है और कैसे मिलता है
(श्री मद देवी भागवत देवी पुराण 6 वा अध्याय, तीसरा स्कन्द, पेज नंबर 123,)
पूछो इन पाखंडियो से :- जब गीता जी मना कर रही है की व्रत करने वाले, श्राद्ध निकालने वाले और देवी देवताओ की पूजा करने वालो को ना कोई सुख होता है ना ही मारने पर उनकी गति (मोक्ष) होती है। ( 6 वा अध्याय 16 वा श्लोक)
पूछो इन पाखंडियो से :- जिन 33 करोड़ देवी देवताओ को श्री लंका के राजा रावण ने अपनी कैद में डाल रखा था फिर क्यों सदियो से हमसे बेबस देवी देवता पूजवाते आ रहे हो।
पूछो इन पाखंडियो से :- जिस स्वर्ग के राजा इंद्र ने, रावण के स्वर्ग पर हमला करके उसे हराने पर अपनी पुत्री की शादी रावण के बेटे मेघनाथ से करके अपने प्राणों की रक्षा की। फिर किसलिए हमें मारने के बाद स्वर्ग भेजने की बात करते है।
पूछो इन पाखंडियो से,:-  जब दशरथ पुत्र रामचंद्र का जन्म त्रेता युग में हुआ तो फिर सतयुग में राम कौन था।
पूछो इन पाखंडियो से :- श्री कृष्ण का जन्म आज से 5500 वर्ष पहले द्वापर युग में हूवा था । जबकि त्रेता व् सतयुग के इंसान तो जानते भी नहीं थे की कृष्ण कौन है फिर ये कैसे पूर्ण भगवान् हुए।
पूछो इन पाखंडियो से :- ये कहते है की वेदों में भगवान् की महिमा है। फिर वेदों में कबीर (कविर्देव) के अलावा 33 करोड़ देवी देवताओ, राम, कृष्ण, व् ब्रह्मा विष्णु महेश दुर्गा किसी का भी नाम तक क्यों नहीं है।
पूछो इन पाखंडियो से:- गीता जी अध्याय नंबर 11 के श्लोक 32 मे श्री कृष्ण जी कहते है की अर्जुन मै काल हु और सबको खाने आया हु। श्री कृष्ण अपने को काल कह रहा है फिर ये पाखंडी उसे जबरदस्ती भगवान् क्यों बना रहे है।
और भी ना जाने कितने सवाल जिनके जवाब इनके पास नहीं है।
अब तक तो आपजी भी समझ चुके होने की संत रामपाल जी के सामने आकर ज्ञान चर्चा करने की क्यों इनकी हिम्मत नहीं होती है।
आपजी इन पाखंडियो से पूछेंगे या नहीं, ये तो आपका अपना फैसला होगा।
लेकिन हिन्दुस्तान का नागरिक होने के नाते मै आपसे पूछता हु। यदि आपजी ने अब भी विचार नहीं किया तो आप पढ़कर भी अनपढ़ रहे। इस शिक्षा से कमाया हुआ धन आपके साथ कभी नहीं जायेगा लेकिन पूर्ण संत की शरण लेकर कमाया भक्ति धन कई गुना होकर आपजी के साथ जायेगा।
जब पृथ्वी पर पूर्ण संत आ चूका है तो मत फंसो इन पाखंडियो के जाल में यदि फसे हुए हो तुरंत निकल जावो वहा से वरना ये स्वयं तो नर्क में जायेंगे ही जायेंगे तुम्हे भी साथ लेकर जायेंगे। और तुम्हारे बच्चों को भी तैयार कर जायेंगे।
यदि संत रामपाल जी को जेल में  देखकर अभी भी शंका हो तो याद करलो त्रेता में रामचंद्र को भी 14 वर्ष तक जेल काटनी पड़ी थी।
सीता जी को भी 12 वर्ष तक भूखी प्यासी रावण की जेल काटनी पड़ी थी।
द्वापर में श्री कृष्ण का तो जन्म ही जेल में हुआ था।
यदि आप इसे उनकी लीला कहते हो तो कोई बड़ी बात नहीं आने वाले समय में संत रामपाल जी का भी इतिहास बन जायेगा। लेकिन उनके चले जाने के बाद उनके आश्रमो में वे नहीं मिलेंगे केवल पश्चाताप मिलेगा।
लेकिन अभी समय है। जाग जाओ औरो को भी जगाओ भगवान् आएगा तो कोई सींग लगाकर नहीं आएगा जो अलग ही दिखाई दे। उसे ज्ञान आधार से पहचानने के लिए ही तो आज आपजी को उसने शिक्षित किया है।
पुनःप्रार्थना है चिंतन अवश्य कीजिये व् औरो को भी इस मैसेज के माध्यम से इन पाखंडियो के पाखंड से सचेत कीजिये।
#सत_साहेब 🙏🙏

साधना टीवी 7:30pm रोज शाम सम्पूर्ण ब्रहम रहस्य 

असली तत्वज्ञान से अज्ञान को काटकर मनुष्य को परम गति सनातन लोक का अधिकारी बनाना , 

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शनिवार, 25 सितंबर 2021

सच्चिदानंद घन ब्रह्म की वाणियां


✳️ सतगुरु कबीर - साखी ग्रंथ ✳️

✳️ सच्चिदानंद घन ब्रह्म की वाणियां ✳️



✳️अक्षय पुरुष एक पेड है , निरंजन वाको हार । 

✳️तिरदेवा साखा भये , पात भया संसार ॥१॥ 


✳️नाद बिंदु ते अगम भगोचर , पांच तत्व ते न्यार । 

✳️तीन गुनन ते भिन्न है , पुरुप अलेख अपार ॥२॥ 


✳️तीन गुनन की भक्ति में , भूलि पड़ा संसार । 

✳️कहै कबिर निजनाम बिन , केसे उतरै पार ॥३॥ 


✳️हरा होय सुखै मही , यौं तिरगुन विस्तार ।

✳️प्रथमहि ताको सुमिरिये , जाका सकल पसार ॥४॥ 


✳️सब्द सुरति के अंतरै , अलख पुरुप निरवान । 

✳️लखने हारै लखि लिया , जाको है गुरु ज्ञान ॥५॥


✳️राम क्रिस्न अवतार हैं , इनकी नाहीं मांड ।

✳️जिन साहब सृष्टि किया , किनहु न जाया रांड ॥६॥ 


✳️राम क्रिस्न को जिन किया , सो तो करता न्यार ।

✳️अंधा ग्यान न बुझयी , कहै कबीर विचार ॥७॥ 


✳️समुंद्र माहि समाईया , यो साहिब नहि होय । 

✳️सकल मांड में रमि रहा , मेरा साहिब सोय ॥८॥ 


✳️साहेब मेरा एक है , दूजा कहा न जाय ।

✳️दूजा साहिब जो कहूं , साहेब खरा रिसाय ॥९॥ 


✳️जाके मुँह माथा नहीं , नाहिं रूप अरूप । 

✳️पुहुप बास ते पातरा , ऐसा तत्व अनूप ॥१०॥


✳️बूझो करता आपना , मानो वचन हमार । 

✳️पांच तत्व के भीतरै , जाका यह आना सांसार  ॥११॥

 

✳️निबल सबल को जानकर , नाम धरा जगदीश ।

✳️कहै कबीर जन्मे मरे , ताहि धंरू नही सीस ॥१२॥ 


✳️जनम मरन से रहित है , मेरा साहिय सोय । 

✳️बलिहारी वही पीव की , जिन सिरजा सब कोय ॥१३॥ 


✳️समुंद पाटी लंका गयो , सीता को भरतार । 

✳️ताहि अगसत अचै गयो , इन में को करतार ॥१४॥


✳️गिरिवर धार्यो कृश्नन जी , द्रोना गिरि हनुमंत ।

✳️सेसनाग धरती धरी , इन में को भगवंत ॥१५॥


✳️अविगति पीसै पीसना , गौसा बिनै खुदाय । 

✳️निरंजन तो रोटी करै , गैवी बैठा खाय ॥१६॥ 


✳️तीन देव को सव कोइ ध्यावे , चौथे देव का मरहम न पावै । 

✳️चौथा छोड पंचम चित लावै , कहें कबिर हमरै ढिग आवै ॥१७॥ 


✳️जो ओंकार निश्चय किया , यह करता पति जान । 

✳️सांचा सबद कबीर का , परदे में पहिचान ॥१८॥ 


✳️अलख अलख सव कोउ कहै , अलख लखै नहि कोय । 

✳️अलख लखा जिन सब लखा , लखा अलख नहि होय ॥१९॥


✳️कथत कथत जुग थाकिया , थाकी सबै खलक । 

✳️देखत नजरि न आइया , हरि को कहा अलख ॥२०॥ 


✳️तीन लोक सब गम जपत , जानि मुक्ति को धाम । 

✳️रामचंद्र के वसिष्ट गुरु , काह सुनायो नाम ॥२१॥  


✳️जग में चारों राम हैं , तीन राम व्यौहार ।

✳️चौथा राम निज सार है , ताका करो विचार ॥२२॥ 


✳️एक राम दसरथ घर डोले , एक राम घट घट में बोले । 

✳️एक राम का सकल पसारा , एक राम तिरगुन ते न्यारा ॥२३॥ 


✳️कौन राम दसरथ घर डोलै , कौन राम घट घट में बोलै । 

✳️कौन राम का सकल पसारा , कौन राम तिरगुन ने न्यारा ॥२४॥


✳️आकार राम दसरथ घर डोलै , निराकार घट घट में बोलै । 

✳️बिंदु राम का सकल पसारा , निरालंब सबही ते न्यारा ॥२५॥ 


✳️जाकी थापी मांड है , ताकी करहु सेव ।

✳️जो थापा है मांड का , सो नहिं हमरा देव ॥२६॥

 

✳️रहै निराला मांड ते , सकल मांड तिहि मांहि । 

✳️कबीर सेवै तासु को , दूजा सेवै नॉहि ॥२७॥ 


✳️चार भुजा के भजन में , भूलि पड़े सब संत । 

✳️कबीर सुमिरै तासु को , जाके भुजा अनंत ॥२८॥ 


✳️काटे बंधन विपति में , कठिन किया संग्राम । 

✳️चीन्हो रे नर प्रानियां , गरुड बड़े की राम ॥२९॥ 


✳️कहै कबिर चित चैनहु , सबद करो निरुवार । 

✳️राम हि करता कहत हैं , भूलि पर्यो संसार ॥३०॥ 


✳️जाहि रोग उत्पन्न भया , औषधि देय जु ताहि । 

✳️वैद्य ब्रह्म बाहिर रहा , भीतर घसा जु नाहि ॥३१॥


✳️असुर रोग उतपति भया , औतार औषधि दीन्ह । 

✳️कहै कबीर या साखि को , अरथ जु लीजो चीन्ह ॥३२॥ 


✳️कबीर कारज भक्ति के , भुक्ति हि दीन्ह पठाय । 

✳️कहै कबीर विचारि के , ब्रह्म न आवै जाय ॥३३॥ 


✳️हम कर्ता सब सृष्टि के , हम पर दूसर नाँहि । 

✳️कहैं कबिर हमही चीन्हे , नहि चौरासी माँहि ॥३४॥


✳️साहिब सब का पाप है , बेटा किसी का नाहि । 

✳️बेटा होकर ऊतरा , सो तो साहिब नाहि ॥३५॥ 


✳️पिंड प्राण नहि तासु के , दम देही नहि सीन । 

✳️नाद बिंद आवै नहीं , पांच पचीस न तीन ॥३६॥ 


✳️राम राम तुम कहत हो , नहि सो अकथ सरूप ।

✳️वह तो आये जगत में , भये दसरथ घर भूप ॥३७॥ 


✳️रेख रूप बिनु वेद में , औ कुरान बेचून ।

✳️आपस में दोऊ लड़े , जाना नहि दोहून ॥३८॥ 


✳️सहज सुन्न में साईया , ताका वार न पार । 

✳️धरा सकल जग धरि रहा , आप रहा निरधार ॥४०॥

 

✳️देखन सरिखी बात है , कहने सरखी नाँहि । 

✳️अदभुत खेला पेखि के , समुझि रहो मन मॉहि ॥४१॥


साधना टीवी पर 7:30pm से 8:30pm 

#SaintRampalJiQuotes









The Secrets of Bhagavad Gita अद्भुद रहस्य गीता के जिसे गोपनीय _ज्ञान कहा जाता है जानिए यहां

 ये 32 प्रमाण जो सिद्ध करते हैं कि भगवद गीता का ज्ञान श्रीकृष्ण ने नही दिया | The Secrets of Bhagavad Gita


1. मैं सबको जानता हूँ, मुझे कोई नहीं जानता (अध्याय 7 मंत्र 26)
2 . मै निराकार रहता हूँ(अध्याय 9 मंत्र 4 )
3. मैं अदृश्य/निराकार  रहता हूँ (अध्याय 6 मंत्र 30) निराकार क्यो रहता है इसकी वजह नहीं बताया सिर्फ अनुत्तम/घटिया भाव कहा है ।
4. मैं कभी मनुष्य की तरह आकार में नहीं आता यह मेरा घटिया नियम है (अध्याय 7 मंत्र 24-25)
5.पहले मैं भी था और तू भी सब आगे भी होंगे (अध्याय 2 मंत्र 12) इसमें जन्म मृत्यु माना है ।
6. अर्जुन तेरे और मेरे जन्म होते रहते हैं (अध्याय 4 मंत्र 5)
7. मैं तो लोकवेद में ही श्रेष्ठ हूँ (अध्याय 15 मंत्र 18) लोकवेद =सुनी सुनाई बात/झूठा ज्ञान
8. उत्तम परमात्मा तो कोई और है जो सबका भरण-पोषण करता है (अध्याय 15 मंत्र 17)
9.उस परमात्मा को प्राप्त हो जाने के बाद कभी नष्ट/मृत्यु नहीं होती है (अध्याय 8 मंत्र 8,9,10)
10. मैं भी उस परमात्मा की शरण में हूँ जो अविनाशी है (अध्याय 15 मंत्र 5)
11. वह परमात्मा मेरा भी ईष्ट देव है (अध्याय 18 मंत्र 64)
12. जहां वह परमात्मा रहता है वह मेरा परम धाम है वह जगह जन्म – मृत्यु रहित है (अध्याय 8 मंत्र 21,22) उस जगह को वेदों में ऋतधाम, संतो की वाणी में सतलोक/सचखंड कहते हैं । गीताजी में शाश्वत स्थान कहा है ।
13. मैं एक अक्षर ॐ हूं (अध्याय 10 मंत्र 25 अध्याय 9 मंत्र 17 अध्याय 7 के मंत्र 8 और अध्याय 8 के मंत्र 12,13 में )
14. “ॐ” नाम ब्रम्ह का है (अध्याय 8 मंत्र 13)
15. मैं काल हूं (अध्याय 11 मंत्र 32)
16.वह परमात्मा ज्योति का भी ज्योति है (अध्याय 13 मंत्र 16)
17. अर्जुन तू भी उस परमात्मा की शरण में जा, जिसकी कृपा से तु परम शांति, सुख और परम गति/मोक्ष को प्राप्त होगा (अध्याय 18 मंत्र 62)
18. ब्रम्ह का जन्म भी पूर्ण ब्रम्ह से हुआ है (अध्याय 3 मंत्र 14,15)
19. तत्वदर्शी संत मुझे पुरा जान लेता है (अध्याय 18 मंत्र 55)
20. मुझे तत्व से जानो (अध्याय 4 मंत्र 14)
21. तत्वज्ञान से तु पहले अपने पुराने /84 लाख में जन्म पाने का कारण जानेगा, बाद में मुझे देखेगा /की मैं ही इन गंदी योनियों में पटकता हू, (अध्याय 4 मंत्र 35)
22. मनुष्यों का ज्ञान ढका हुआ है (अध्याय 5 मंत्र 16)
:- मतलब किसी को भी परमात्मा का ज्ञान नहीं है
23. ब्रम्ह लोक से लेकर नीचे के ब्रम्हा/विष्णु/शिव लोक, पृथ्वी ये सब पुर्नावृर्ति(नाशवान) है ।
24. तत्वदर्शी संत को दण्डवत प्रणाम करना चाहिए (तन, मन, धन, वचन से और अहं त्याग कर आसक्त हो जाना)  (अध्याय 4 मंत्र 34)
25. हजारों में कोई एक संत ही मुझे तत्व से जानता है (अध्याय 7 मंत्र 3)
26. मैं काल हु और अभी आया हूं (अध्याय 10 मंत्र 33)
तात्पर्य :-श्रीकृष्ण जी तो पहले से ही वहां थे,
27. शास्त्र विधि से साधना करो, शास्त्र विरुद्ध साधना करना खतरनाक है (अध्याय 16 मंत्र 23,24)
28. ज्ञान से और श्वासों से पाप भस्म हो जाते हैं (अध्याय 4 मंत्र 29,30, 38,49)
29. तत्वदर्शी संत कौन है पहचान कैसे करें :- जो उल्टा वृक्ष के बारे में समझा दे वह तत्वदर्शी संत होता है (अध्याय 15 मंत्र 1-4)
30. और जो ब्रम्हा के दिन रात/उम्र बता दें वह तत्वदर्शी संत होता है (अध्याय 8 मंत्र 17)
31. 3 भगवान बताये गये हैं गीताजी में
•क्षर , अक्षर, परमअक्षर
(•ब्रम्ह, परब्रह्म, पूर्ण/पार ब्रम्ह
•ॐ, तत्, सत्
•ईश, ईश्वर, परमेश्वर)
32. गीता जी में तत्वदर्शी संत का इशारा > 18.तत्वदर्शी संत वह है जो उल्टा वृक्ष को समझा देगा. (अध्याय 15 मंत्र 1-4)

साधना टीवी 7:30 से 8:30 रोज शाम देखिए पवित्र शास्रो में छिपे परम् कल्याणकारी रहस्य 











परमपिता परमेश्वर उत्तम पुरुष तो त्रिदेवों व इनके पिता ब्रह्म व प्रकृति से ऊपर अन्य है देखिए प्रमाण :- ब्रह्मज्ञान

परमपिता परमेश्वर उत्तम पुरुष तो त्रिदेवों व इनके पिता ब्रह्म व प्रकृति से ऊपर अन्य है देखिए प्रमाण :- ब्रह्मज्ञान

उत्तम ( पुजने योग्य) पुरुष गीता ज्ञान दाता से अन्य हैं।
कथाओं का सारांश :-
1. ब्रह्म साधना अनुत्तम (घटिया) है।
2. तीन ताप को श्री कृष्ण जी भी समाप्त नहीं कर सके। श्राप देना तीन ताप (दैविक ताप) में आता है। दुर्वासा के श्राप के शिकार स्वयं श्री कृष्ण सहित
सर्व यादव भी हो गए।
3. श्री कृष्ण जी ने श्रापमुक्त होने के लिए यमुना में स्नान करने के लिए कहा, यह समाधान बताया था। उससे श्राप नाश तो हुआ नहीं, यादवों का नाश
अवश्य हो गया। 
विचार करें :- जो अन्य सन्त या ब्राह्मण जो ऐसे स्नान या तीर्थ करने से संकट मुक्त करने की राय देते हैं, वे कितनी कारगर हैं? अर्थात् व्यर्थ हैं क्योंकि जब भगवान त्रिलोकी नाथ द्वारा बताए समाधान यमुना स्नान से कुछ लाभ नहीं हुआ तो अन्य टट्पुँजियों, ब्राह्मणों व गुरूओं द्वारा बताए स्नान आदि समाधान से कुछ होने वाला नहीं है।
4. पहले श्री कृष्ण जी ने दुर्वासा के श्राप से बचाव का तरीका बताया था। उस कढ़ाई को घिसाकर चूर्ण बनाकर प्रभास क्षेत्र में यमुना नदी में डाल दो। न रहेगा बाँस, न बजेगी बाँसुरी, बाँस भी रह गया, 56 करोड़ यादवों की बाँसुरी भी बज गई।
सज्जनो! वर्तमान में बुद्धिमान मानव है, शिक्षित है, मेरे द्वारा (सन्त रामपाल दास द्वारा) बताए ज्ञान को शास्त्रों से मिलाओ, फिर भक्ति करके देखो, क्या कमाल होता है।
प्रसंग आगे चलाते हैं :-
1. तीनों गुणों (रजगुण ब्रह्मा जी, सतगुण विष्णु जी तथा तमगुण शिव जी) की भक्ति करना व्यर्थ सिद्ध हुआ।
2. गीता ज्ञान दाता ब्रह्म की भक्ति स्वयं गीता ज्ञान दाता ने गीता अध्याय 7 श्लोक 18 में अनुत्तम बताई है। उसने गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में उस परमेश्वर अर्थात् परम अक्षर ब्रह्म की शरण में जाने को कहा है। यह भी कहा है कि उस परमेश्वर की कृपा से ही तू परम शान्ति तथा सनातन परम धाम को प्राप्त होगा।
3. गीता अध्याय 15 श्लोक 1 से 4 में संसार रूपी वृक्ष का वर्णन है तथा तत्वदर्शी सन्त की पहचान भी बताई है। संसार रूपी वृक्ष के सब हिस्से, जड़ें (मूल) कौन परमेश्वर है? तना कौन प्रभु है, डार कौन प्रभु है, शाखाऐं कौन-कौन देवता हैं? पात रूप संसार बताया है।
इसी अध्याय 15 श्लोक 16 में स्पष्ट किया है कि :-
1. क्षर पुरूष (यह 21 ब्रह्माण्ड का प्रभु है) :- इसे ब्रह्म, काल ब्रह्म, ज्योति निरंजन भी कहा जाता है। यह नाशवान है। हम इसके लोक में रह रहे हैं। हमें इसके लोक से मुक्त होना है तथा अपने परमात्मा कबीर जी के पास सत्यलोक में जाना है।
2. अक्षर पुरूष :- यह 7 संख ब्रह्माण्डों का प्रभु है, यह भी नाशवान है। हमने इसके 7 संख ब्रह्माण्डों के क्षेत्र से होकर सत्यलोक जाना है। इसलिए इसका टोल टैक्स देना है। बस इससे हमारा इतना ही काम है।
गीता अध्याय 15 श्लोक 17 में कहा है कि :-
उत्तमः पुरूषः तू अन्यः परमात्मा इति उदाहृतः।
यः लोक त्रायम् आविश्य विभर्ति अव्ययः ईश्वरः।।
सरलार्थ :- गीता अध्याय 15 श्लोक 16 में कहे दो पुरूष, एक क्षर पुरूष दूसरा अक्षर पुरूष हैं। इन दोनों से अन्य है उत्तम पुरूष अर्थात् पुरूषोत्तम, उसी को परमात्मा कहते हैं जो तीनों लोकों में प्रवेश करके सबका धारण-पोषण करता है। वह वास्तव में अविनाशी परमेश्वर है। (गीता अध्याय 15 श्लोक 17)
गीता अध्याय 3 श्लोक 14,15 में भी स्पष्ट किया है कि सर्वगतम् ब्रह्म अर्थात् सर्वव्यापी परमात्मा, जो सचिदानन्द घन ब्रह्म है, उसे वासुदेव भी कहते हैं जिसके विषय में गीता अध्याय 7 श्लोक 19 में कहा है। वही सदा यज्ञों अर्थात् धार्मिक अनुष्ठानों में प्रतिष्ठित है अर्थात् ईष्ट रूप में पूज्य है।
पूर्ण गुरू से दीक्षा लेकर मर्यादा में रहकर भक्ति करो। इस प्रकार जीने की राह पर चलकर संसार में सुखी जीवन जीऐं तथा मोक्ष रूपी मंजिल को प्राप्त करें।
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। साधना चैनल पर प्रतिदिन शाम 7:30 से 8.30 बजे। pm






यजुर्वेद अध्याय 19 मंत्र 25, 26 का वास्तविक अर्थ यहां पढ़िए 👇

 यजुर्वेद अध्याय 19 मंत्र 25, 26 में लिखा है कि जो वेदों के अधूरे वाक्यों अर्थात सांकेतिक शब्दों व एक चौथाई श्लोकों को पूरा करके विस्तार से बताएगा व तीन समय की पूजा करवाएगा। वह जगत का उपकारक संत सच्चा सतगुरु होगा।
वर्तमान में ऐसा सन्त एक मात्र #सन्तरामपालजीमहाराजजी हैं

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यजुर्वेद अध्याय 19 मंत्र 25, 26 का वास्तविक अर्थ

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अध्याय 7 श्लोक 24-25, अध्याय 11 श्लोक 47ए 48 तथा 32 के वास्तविक अर्थ रहस्य

 अध्याय 7 श्लोक 24-25, अध्याय 11 श्लोक 47ए 48 तथा 32)
पवित्रा गीता जी बोलने वाला ब्रह्म (काल) श्री कृष्ण जी के शरीर में प्रेतवत प्रवेश करके कह
रहा है कि अर्जुन मैं बढ़ा हुआ काल हूँ और सर्व को खाने के लिए आया हूँ। यह मेरा वास्तविक
रूप है, इसको तेरे अतिरिक्त न तो कोई पहले देख सका तथा न कोई आगे देख सकता अर्थात्
वेदों में वर्णित यज्ञ-जप-तप तथा ओ3म् नाम आदि की विधि से मेरे इस वास्तविक स्वरूप के
दर्शन नहीं हो सकते। (अध्याय 11 श्लोक 32 से 48) मैं कृष्ण नहीं हूँ, ये मूर्ख लोग कृष्ण रूप
में मुझ अव्यक्त को व्यक्त (मनुष्य रूप) मान रहे हैं। क्योंकि ये मेरे घटिया नियम से अपरिचित
हैं कि मैं कभी वास्तविक इस काल रूप में सबके सामने नहीं आता। क्योंकि मैं अपनी योग माया
अर्थात् सिद्धी शक्ति से छिपा रहता हूँ (गीता अध्याय 7 का श्लोक 24.25) विचार करें :- अपने
छूपे रहने वाले विधान को स्वयं अश्रेष्ठ (अनुत्तम) क्यों कह रहे हैं?
क्योंकि जो पिता अपनी सन्तान को भी दर्शन नहीं देता तो उसमें कोई त्राटि है जिस कारण
से छुपा है तथा सुविधाएं भी प्रदान कर रहा है। काल (ब्रह्म) को शापवश एक लाख मानव शरीर
धारी प्राणियों का आहार करना पड़ता है तथा 25 हजार प्रतिदिन जो अधिक उत्पन्न होते हैं
उन्हें ठिकाने लगाने के लिए तथा कर्म भोग का दण्ड देने के लिए चौरासी लाख योनियों की
व्यवस्था की हुई है। यदि सबके सामने बैठ कर किसी की पुत्रा, किसी की पत्नी, किसी के पुत्रा,
माता-पिता को खाए तो सर्व को काल ब्रह्म से घृणा हो जाए तथा जब भी कभी पूर्ण परमात्मा
कविरग्नि (कबीर परमेश्वर) स्वयं आऐं या अपना कोई संदेशवाहक (दूत) भेंजे तो सर्व प्राणी
सत्यभक्ति करके काल के जाल से निकल जाएं। इसलिए धोखा देकर रखता है तथा पवित्रा गीता
अध्याय 7 श्लोक 18,24,25 में अपनी साधना से होने वाली मुक्ति (गति) को भी (अनुत्तमाम्)
अति अश्रेष्ठ कहा है तथा अपने विधान (नियम)को भी (अनुत्तम) अश्रेष्ठ कहा है। (कृप्या देखें
एक ब्रह्मण्ड का लघु चित्रा पृष्ठ 89 पर।)
प्रत्येक ब्रह्मण्ड में बने ब्रह्मलोक में एक महास्वर्ग बनाया है। महास्वर्ग में एक स्थान पर
नकली सतलोक - नकली अलख लोक - नकली अगम लोक तथा नकली अनामी लोक की रचना
प्राणियों को धोखा देने के लिए प्रकृति (दुर्गा/आदि माया) द्वारा करा रखी है। एक ब्रह्मण्ड में
अन्य लोकों की भी रचना है, जैसे श्री ब्रह्मा जी का लोक, श्री विष्णु जी का लोक, श्री शिव जी
का लोक। जहाँ पर बैठकर तीनों प्रभु नीचे के तीन लोकों (स्वर्गलोक अर्थात् इन्द्र का लोक -
पृथ्वी लोक तथा पाताल लोक) पर एक - एक विभाग के मालिक बन कर प्रभुता करते हैं तथा
अपने पिता काल के खाने के लिए प्राणियों की उत्पत्ति, स्थिति तथा संहार का कार्यभार संभाले
हैं। तीनों प्रभुओं की भी जन्म व मृत्यु होती है। तब काल इन्हें भी खाता है। इसी ब्रह्मण्ड {इसे
अण्ड भी कहते हैं क्योंकि ब्रह्मण्ड की बनावट अण्डाकार है, इसे पिण्ड भी कहते हैं क्योंकि शरीर (पिण्ड) में
एक ब्रह्मण्ड की रचना कमलों में टी.वी. की तरह देखी जाती है।} में एक मानसरोवर तथा धर्मराय
(न्यायधीश) का भी लोक है तथा एक गुप्त स्थान पर पूर्ण परमात्मा अन्य रूप धारण करके रहता
है। जैसे प्रत्येक देश का राजदूत भवन होता है। वहाँ पर कोई नहीं जा सकता। वहाँ पर वे
आत्माऐं रहती हैं जिनकी सत्यलोक की भक्ति अधूरी रहती है। जब भक्ति युग आता है तो उस आत्मा को मनुुष्य शरीर दीया जाता है,  
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