शनिवार, 31 जनवरी 2015

कबीर साहेब जी ही नानक जी के गुरु थे proofs

“पवित्र कबीर सागर में प्रमाण”
> कबीर साहेब जी ही नानक
जी के गुरु थे <
विशेष विचार:- पूरे गुरु ग्रन्थ साहेब में कहीं प्रमाण
नहीं है कि श्री नानक जी, परमेश्वर
कबीर जी के गुरु जी थे। जैसे गुरु ग्रन्थ
साहेब आदरणीय तथा प्रमाणित है, ऐसे ही पवित्र
कबीर सागर भी आदरणीय तथा प्रमाणित
सद्ग्रन्थ है तथा श्री गुरुग्रन्थ साहेब से पहले का है।
इसीलिए तो लगभग चार हजार
वाणी ‘कबीर सागर‘ सद्ग्रन्थ से गुरु ग्रन्थ साहिब में
ली गई हैं। पवित्र कबीर सागर में विस्तृत विवरण है
नानक जी तथा परमेश्वर कबीर साहेब
जी की वार्ता का तथा श्री नानक
जी के पूज्य गुरुदेव कबीर परमेश्वर
जी थे। कृप्या निम्न पढ़ें --
विशेष प्रमाण के लिए कबीर सागर (स्वसमबेदबोध) पृष्ठ न.
158 से 159 से सहाभार :--
नानकशाह कीन्हा तप भारी। सब विधि भये ज्ञान
अधिकारी।।
भक्ति भाव ताको समिझाया। तापर सतगुरु कीनो दाया।।
जिंदा रूप धरयो तब भाई। हम पंजाब देश चलि आई।।
अनहद बानी कियौ पुकारा। सुनिकै नानक दरश निहारा।।
सुनिके अमर लोककी बानी। जानि परा निज समरथ
ज्ञानी।।
नानक वचन-
आवा पुरूष महागुरु ज्ञानी।
अमरलोकी सुनी न बानी।।
अर्ज सुनो प्रभु जिंदा स्वामी। कहँ अमरलोक
रहा निजधामी।।
काहु न कही अमर निजबानी। धन्य
कबीर परमगुरु ज्ञानी।।
कोई न पावै तुमरो भेदा। खोज थके ब्रह्मा चहुँ वेदा।।
जिन्दा वचन-
नानक तव बहुतै तप कीना। निरंकार बहुते दिन
चीन्हा।।
निरंकारते पुरूष निनारा। अजर द्वीप ताकी टकसारा।।
पुरूष बिछोह भयौ तव जबते। काल कठिन मग रोंक्यौ तबते।।
इत तव सरिस भक्त नहिं होई। क्यों कि परमपुरूष न भेटेंउ कोई।।
जबते हमते बिछुरे भाई। साठि हजार जन्म भक्त तुम पाई।।
धरि धरि जन्म भक्ति भलकीना। फिर काल चक्र निरंजन
दीना।।
गहु मम शब्द तो उतरो पारा। बिन सत शब्द लहै यम द्वारा।।
तुम बड़ भक्त भवसागर आवा। और जीवकी कौन
चलावा।।
निरंकार सब सृष्टि भुलावा। तुम करि भक्तिलौटि क्यों आवा।।
नानक वचन-
धन्य पुरूष तुम यह पद भाखी। यह पद हमसे गुप्त कह
राखी।।
जबलों हम तुमको नहिं पावा। अगम अपार भर्म फैलावा।।
कहो गोसाँई हमते ज्ञाना। परमपुरूष हम तुमको जाना।।
धनि जिंदा प्रभु पुरूष पुराना। बिरले जन तुमको पहिचाना।।
जिन्दा वचन-
भये दयाल पुरूष गुरु ज्ञानी। दियो पान परवाना बानी।।
भली भई तुम हमको पावा। सकलो पंथ काल को ध्यावा।।
तुम इतने अब भये निनारा। फेरि जन्म ना होय तुम्हारा।।
भली सुरति तुम हमको चीन्हा। अमर मंत्रा हम
तुमको दीन्हा।।
स्वसमवेद हम कहि निज बानी। परमपुरूष गति तुम्हैं
बखानी।।
नानक वचन-
धन्य पुरूष ज्ञानी करतारा। जीवकाज प्रकटे संसारा।।
धनि करता तुम बंदी छोरा। ज्ञान तुम्हार महाबल जोरा।।
दिया नाम दान किया उबारा। नानक अमरलोक पग धारा।।
भावार्थ:- परम पूज्य कबीर प्रभु एक जिन्दा महात्मा का रूप
बना कर श्री नानक जी से
(पश्चिमी पाकिस्त्तान उस समय पंजाब प्रदेश हिन्दूस्त्तान
का ही अंश था) मिलने पंजाब में गए तब श्री नानक
साहेब जी से वार्ता हुई। तब परमेश्वर कबीर
जी ने कहा कि आप जैसी पुण्यात्मा जन्म-मृत्यु
का कष्ट भोग रहे हो फिर आम जीव का कहाँ ठिकाना है ? जिस
निरंकार को आप प्रभु मान कर पूज रहे हो पूर्ण परमात्मा तो इससे
भी भिन्न है। वह मैं ही हूँ। जब से आप मेरे से
बिछुड़े हो साठ हजार जन्म तो अच्छे-अच्छे उच्च पद
भी प्राप्त कर चुके हो जैसे सतयुग में यही पवित्र
आत्मा राजा अम्ब्रीष तथा त्रेतायुग में राजा जनक
(जो सीता जी के पिता जी थे) हुए
तथा कलियुग में श्री नानक साहेब जी हुए। फिर
भी जन्म मृत्यु के चक्र में ही हो। मैं
आपको सतशब्द अर्थात् सच्चा नाम जाप मन्त्र बताऊंगा उससे आप अमर
हो जाओगे। श्री नानक साहेब जी ने प्रभु
कबीर से कहा कि आप बन्दी छोड़ भगवान हो,
आपको कोई बिरला सौभाग्यशाली व्यक्ति ही पहचान
सकता है।
अमृतवाणी कबीर सागर (अगम निगम बोध, बोध सागर
से) पृष्ठ नं. 44
।।नानक वचन।।
।।शब्द।।
वाह वाह कबीर गुरु पूरा है।
पूरे गुरु की मैं बलि जावाँ जाका सकल जहूरा है।।
अधर दुलिच परे है गुरुनके शिव ब्रह्मा जह शूरा है।।
श्वेत ध्वजा फहरात गुरुनकी बाजत अनहद तूरा है।।
पूर्ण कबीर सकल घट दरशै हरदम हाल हजूरा है।।
नाम कबीर जपै बड़भागी नानक चरण को धूरा है।।
विशेष विवेचन:- बाबा नानक जी ने उस कबीर जुलाहे
(धाणक) काशी वाले को सत्यलोक (सच्चखण्ड) में
आँखों देखा तथा फिर काशी में धाणक (जुलाहे) का कार्य करते हुए
तथा बताया कि वही धाणक रूप (जुलाहा) सत्यलोक में सत्यपुरुष
रूप में भी रहता है
तथा यहाँ भी वही है।
विशेष:- पवित्र सिक्ख समाज इस बात से सहमत नहीं है
कि श्री नानक साहेब जी के गुरु
जी काशी वाला धाणक (जुलाहा) कबीर
साहेब जी थे। इसके विपरीत श्री नानक
साहेब जी को पूर्ण ब्रह्म कबीर साहेब
जी का गुरु जी कहा है। परन्तु
श्री नानक साहेब जी के पूज्य गुरु
जी का नाम क्या है? इस विषय में पवित्र सिक्ख समाज मौन है,
जबकि स्वयं श्री गुरु नानक साहेब
जी श्री गुरु ग्रन्थ साहेब जी में
महला 1 की अमृतवाणी में स्वयं स्वीकार
करते हैं कि मुझे गुरु जी जिंदा रूप में आकार में मिले।
वही धाणक(जुलाहा) रूप में सत् कबीर
(हक्का कबीर) नाम से पृथ्वी पर भी थे
तथा ऊपर अपने सच्चखण्ड में भी वही विराजमान
है जिन्होंने मुझे अमृत नाम प्रदान किया।
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आदरणीय श्री नानक साहेब
जी का आविर्भाव सन् 1469 तथा सतलोक वास सन् 1539
‘‘पवित्र पुस्तक जीवनी दस गुरु साहिबान‘‘।
आदरणीय कबीर साहेब जी धाणक रूप मे
मृतमण्डल में सन् 1398 में सशरीर प्रकट हुए
तथा सशरीर सतलोक गमन सन् 1518 में ‘‘पवित्र
कबीर सागर‘‘।
दोनों महापुरुष 49 वर्ष तक समकालीन रहे। श्री गुरु
नानक साहेब जी का जन्म पवित्र हिन्दू धर्म में हुआ। प्रभु
प्राप्ति के बाद कहा कि ‘‘न कोई हिन्दू न मुसलमाना‘‘ अर्थात् अज्ञानतावश
दो धर्म बना बैठे। सर्व एक परमात्मा सतपुरुष के बच्चे हैं।
श्री नानक देव जी ने कोई धर्म
नहीं बनाया, बल्कि धर्म
की बनावटी जंजीरों से मानव को मुक्त
किया तथा शिष्य परम्परा चलाई। जैसे गुरुदेव से नाम दीक्षा लेने
वाले भक्तों को शिष्य बोला जाता है, उन्हें पंजाबी भाषा में सिक्ख
कहने लगे। जैसे वर्तमान मे जगतगुरु तत्व दर्शी संत रामपाल
जी महाराज जी के लाखो शिष्य हैं, परन्तु यह धर्म
नहीं है। सर्व पवित्र धर्मों की पुण्यात्माऐं आत्म
कल्याण करवा रही हैं। यदि आने वाले समय में कोई धर्म
बना बैठे तो वह दुर्भाग्य ही होगा। भेदभाव तथा संघर्ष
की नई दीवार ही बनेगी,
परन्तु लाभ कुछ नहीं होगा।
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विशेष:- केवल एक ही बात को ‘‘कि कौन किसका गुरु तथा कौन
किसका शिष्य है‘‘ वाद-विवाद का विषय न बना कर सच्चाई
को स्वीकार करना चाहिए। कुछ देर के लिए श्री नानक
साहेब जी को परमात्मा कबीर साहेब (कविर्देव)
जी का गुरु जी मान लें। यह विचार करें कि इन
महापुरुषों ने गुरु-शिष्य की भूमिका करके हमें
कितनी अनमोल वाणी रच कर दी हैं
तथा हम कितना उनका अनुशरण कर पा रहे हैं। आज
किसी व्यक्ति का जन्म पवित्र हिन्दू धर्म में है, वह
अपनी साधना तथा इष्ट को सर्वोच्च मान रहा है। मृत्यु उपरान्त
उसी पुण्यात्मा का जन्म पवित्र सिक्ख धर्म में हुआ तो फिर वह
उसी साधना को उत्तम मान कर निश्चिंत हो जाएगा, फिर पवित्र
मुसलमान धर्म में जन्म मिला तो उपरोक्त साधनाओं के विपरीत
पूजा पर आरूढ़ होगा तथा फिर पवित्र ईसाई धर्म में जन्म हुआ तो केवल
उसी पूजा पर आधारित हो जाएगा। फिर कभी पवित्र
आर्य समाज में वही पुण्यात्मा जन्म लेगी तो केवल
हवन यज्ञ करने को ही मुक्ति मार्ग कहेगा।
यदि वही पुण्यात्मा पवित्र जैन धर्म में
पहुँचेगी तो हो सकता है निवस्त्र रह कर या मुख पर कपड़ा बांध
कर नंगे पैरों चलना ही मुक्ति का अन्तिम साधन होगा। उपरोक्त
जन्म पूर्ण परमात्मा की भक्ति न मिलने तक होते रहेंगे,
क्योंकि द्वापर युग तक अपने पूर्वज एक ही थे तथा वेदों अनुसार
पूजा करते थे, अन्य धर्मों की स्थापना नहीं हुई
थी।
जब श्री गुरु गोबिन्द साहेब जी ने पाँच
प्यारों को चुना उनमें से
1. श्री दयाराम जी लाहौर के
खत्री परिवार से हिन्दू थे।
2. श्री धर्मदास जी इन्द्रप्रस्थ(दि
ल्ली) के जाट(हिन्दू) थे।
3. भाई मुहकम चन्द जी ‘छीबे‘ हिन्दू
द्वारका वासी
4. भाई साहिब चन्द जी ‘नाई‘ हिन्दू बीदर
निवासी
5. भाई हिम्मतमल जी ‘झींवर‘ हिन्दू जगन्नाथ
पुरी (उड़ीसा) निवासी थे
(‘‘जीवन दस गुरु साहिबान‘‘ लेखक सोढ़ी तेजा सिंह,
प्रकाशक भाई चतर सिंघ, जीवन सिंघ अमृतसर, पृष्ठ नं.
343-344 )।
इसलिए अपने संस्कार मिले-जुले हैं। भले ही उपरोक्त पंच प्यारे
उस समय अपनी भक्ति साधना गुरूग्रन्थ साहेब के अनुसार गुरूओं
की आज्ञा अनुसार कर रहे थे परन्तु सर्व हिन्दू समाज से
सम्बन्ध रखते थे। उस समय गुरूओं के अनुयाईयों को सिक्ख कहते थे।
हिन्दी भाषा में शिष्य कहते हैं। इस कारण से एक अलग
भक्ति मार्ग पर चलने वाले जन समूह को सिक्ख कहने लगे। अब यह एक
अलग धर्म का रूप धारण कर गया है।

शुक्रवार, 30 जनवरी 2015

सद्गुरु की पहचान

परमात्मा कबीर साहेब जी हमें स्वयं सतगुरु रुप में बताते हैं :-
कबीर,
गुरु-गुरु में भेद है, गुरु-गुरु में भाव |
सोई गुरु नित सराहिऐ,जो शब्द बतावै दाव ||
जैसा कि पहले भी बताया जा चुका है
कि सामान्यत: गुरु सात प्रकार के होते हैं जिनमें से वह
गुरु सर्वश्रेष्ठ होता है जो हमें शब्द लखाकर
शास्त्रानुकुल सत-साधना (गीता अ.१७, श्लोक-२३)
कराके इस काल-जाल(जन्म-मरण/चौरासी)
रुपी चक्रव्यूह से निकालकर उस शास्वत स्थान
(सतलोक) की प्राप्ति कराता है जिसके बारे में
गीता अ.१८, शलोक-६२ व ६६ में बताया गया है |
तभी तो इस साक्षात परमात्मा स्वरुप सतगुरु
(गीता अ.४, श्लोक-३४) के बारे में कहा गया है कि :-
कबीर,
गुरु-गुरु सब ही बड़े, अपनी-अपनी ठौर |
शब्द विवेकी-पारखी, ते माथे की मौर ||
पुन्यात्माओं ऐसे महान तत्वदर्शीसंत की पहचान
भी श्रीमदभगवत गीता के अ.१५, श्लोक १ से ४ तक में
बताई गयी है जिसकी कसौटी पर खरा उतरने
वाला इस धरा(२१ब्रम्हांड) के अंदर केवल और केवल एक
ही महान संत/सतगुरु है, वो है "परमपूज्य जगतगुरु
तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज"
इस संत को पहचानो दुनिया के लोगों कही बाद में
सिर धुन-धुन के पछताना न पड़े इसीलिए कहा गया है :-
कबीर,
करता था तो क्यों रहा, अब करि क्यों पछिताय |
बोंया पेंड़ बबूल का, तो अमूवा कहॉ से पाय ||
नोट :- यहॉ गीता को आधार इसलिए रखा गया है
कि क्यों कि गीता जी को पवित्र
चारों वेदों का निष्कर्ष माना जाता है |
||∆ सत साहेब ∆||

गुरुवार, 29 जनवरी 2015

identiti of true copmlete saint पूर्ण संत की पहचान



 :::::::पूर्ण संत की पहचान:::::::
●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●
(पवित्र सद्ग्रन्थों से पूर्ण संत की पहचान)
वेदों, गीता जी आदि पवित्र सद्ग्रंथों में
प्रमाण मिलता है कि जब-जब धर्म
की हानि होती है व अधर्म
की वृद्धि होती है तथा वर्तमान के
नकली संत, महंत व गुरुओं द्वारा भक्ति मार्ग
के स्वरूप को बिगाड़ दिया गया होता है।
फिर परमेश्वर स्वयं आकर या अपने
परमज्ञानी संत को भेज कर सच्चे ज्ञान के
द्वारा धर्म की पुनः स्थापना करता है। वह
भक्ति मार्ग को शास्त्रों के अनुसार
समझाता है। उसकी पहचान होती है
कि वर्तमान के धर्म गुरु उसके विरोध में खड़े
होकर राजा व प्रजा को गुमराह करके उसके
ऊपर अत्याचार करवाते हैं।
कबीर साहेब जी अपनी वाणी में कहते हैं कि-
जो मम संत सत उपदेश दृढावे(बतावै), वाके संग
सभि राड़ बढ़ावै।
या सब संत महंतन की करणी, धर्मदास मैं
तो से वर्णी।।
1 ) कबीर साहेब अपने प्रिय शिष्य धर्मदास
को इस वाणी में ये समझा रहे हैं
कि जो मेरा संत सत भक्ति मार्ग
को बताएगा उसके साथ सभी संत व महंत
झगड़ा करेंगे। ये उसकी पहचान होगी।
2 ) दूसरी पहचान वह संत सभी धर्म
ग्रंथों का पूर्ण जानकार होता है। प्रमाण
सतगुरु गरीबदास जी की वाणी में -
”सतगुरु के लक्षण कहूं, मधूरे बैन विनोद। चार वेद
षट शास्त्रा, कहै अठारा बोध।।“
सतगुरु गरीबदास जी महाराज
अपनी वाणी में पूर्ण संत की पहचान बता रहे
हैं कि वह चारों वेदों, छः शास्त्रों, अठारह
पुराणों आदि सभी ग्रंथों का पूर्ण जानकार
होगा अर्थात् उनका सार निकाल कर
बताएगा। यजुर्वेद अध्याय 19 मंत्र 25,26 में
लिखा है कि वेदों के अधूरे वाक्यों अर्थात्
सांकेतिक शब्दों व एक चैथाई
श्लोकों को पुरा करके विस्तार से
बताएगा व तीन समय की पूजा बताएगा।
सुबह पूर्ण परमात्मा की पूजा, दोपहर
को विश्व के देवताओं का सत्कार व
संध्या आरती अलग से बताएगा वह जगत
का उपकारक संत होता है।
यजुर्वेद अध्याय 19 मन्त्र 25 सन्धिछेदः-
अर्द्ध ऋचैः उक्थानाम् रूपम्
पदैः आप्नोति निविदः।
प्रणवैः शस्त्राणाम् रूपम्
पयसा सोमः आप्यते।(25)
अनुवादः- जो सन्त (अर्द्ध ऋचैः) वेदों के
अर्द्ध वाक्यों अर्थात् सांकेतिक
शब्दों को पूर्ण करके (निविदः)
आपूर्ति करता है (पदैः) श्लोक के चैथे
भागों को अर्थात् आंशिक
वाक्यों को (उक्थानम्) स्तोत्रों के (रूपम्) रूप
में (आप्नोति) प्राप्त करता है अर्थात्
आंशिक विवरण को पूर्ण रूप से समझता और
समझाता है (शस्त्राणाम्) जैसे
शस्त्रों को चलाना जानने वाला उन्हें
(रूपम्) पूर्ण रूप से प्रयोग करता है ऐसे पूर्ण सन्त
(प्रणवैः) औंकारों अर्थात् ओम्-तत्-सत्
मन्त्रों को पूर्ण रूप से समझ व समझा कर
(पयसा) दूध-पानी छानता है अर्थात्
पानी रहित दूध जैसा तत्व ज्ञान प्रदान
करता है जिससे (सोमः) अमर पुरूष अर्थात्
अविनाशी परमात्मा को (आप्यते) प्राप्त
करता है। वह पूण सन्त वेद को जानने
वाला कहा जाता है।
भावार्थः- तत्वदर्शी सन्त वह होता है
जो वेदों के सांकेतिक शब्दों को पूर्ण
विस्तार से वर्णन करता है जिससे पूर्ण
परमात्मा की प्राप्ति होती है वह वेद के
जानने वाला कहा जाता है।
यजुर्वेद अध्याय 19 मन्त्र 26
सन्धिछेद:-अश्विभ्याम् प्रातः सवनम् इन्द्रेण
ऐन्द्रम् माध्यन्दिनम्
वैश्वदैवम् सरस्वत्या ततीयम् आप्तम् सवनम् (26)
अनुवाद:- वह पूर्ण सन्त तीन समय
की साधना बताता है। (अश्विभ्याम्) सूर्य
के उदय-अस्त से बने एक दिन के आधार से
(इन्द्रेण) प्रथम श्रेष्ठता से सर्व देवों के
मालिक पूर्ण परमात्मा की (प्रातः सवनम्)
पूजा तो प्रातः काल करने को कहता है
जो (ऐन्द्रम्) पूर्ण परमात्मा के लिए
होती है। दूसरी (माध्यन्दिनम्) दिन के मध्य
में करने को कहता है जो (वैश्वदैवम्) सर्व
देवताओं के सत्कार के सम्बधित (सरस्वत्या)
अमतवाणी द्वारा साधना करने
को कहता है तथा (ततीयम्) तीसरी (सवनम्)
पूजा शाम को (आप्तम्) प्राप्त करता है
अर्थात् जो तीनों समय
की साधना भिन्न-2 करने को कहता है वह
जगत् का उपकारक सन्त है।
भावार्थः- जिस पूर्ण सन्त के विषय में मन्त्र
25में कहा है वह दिन में 3 तीन बार
(प्रातः दिन के मध्य-तथा शाम को)
साधना करने को कहता है। सुबह तो पूर्ण
परमात्मा की पूजा मध्याको सर्व देवताओं
को सत्कार के लिए तथा शाम
को संध्या आरती आदि को अमृत वाणी के
द्वारा करने को कहता है वह सर्व संसार
का उपकार करने वाला होता है।
यजुर्वेद अध्याय 19 मन्त्र 30
सन्धिछेदः- व्रतेन दीक्षाम्
आप्नोति दीक्षया आप्नोति दक्षिणाम्।
दक्षिणा श्रद्धाम्
आप्नोति श्रद्धया सत्यम् आप्यते (30)
अनुवादः- (व्रतेन) दुव्र्यसनों का व्रत रखने से
अर्थात् भांग, शराब, मांस तथा तम्बाखु
आदि के सेवन से संयम रखने वाला साधक
(दीक्षाम्) पूर्ण सन्त से
दीक्षा को (आप्नोति) प्राप्त होता है
अर्थात् वह पूर्ण सन्त का शिष्य बनता है
(दीक्षया) पूर्ण सन्त दीक्षित शिष्य से
(दक्षिणाम्) दान को (आप्नोति) प्राप्त
होता है अर्थात् सन्त उसी से
दक्षिणा लेता है जो उस से नाम ले लेता है।
इसी प्रकार विधिवत् (दक्षिणा) गुरूदेव
द्वारा बताए अनुसार जो दान-दक्षिणा से
धर्म करता है उस से (श्रद्धाम्)
श्रद्धा को (आप्नोति) प्राप्त होता है
(श्रद्धया) श्रद्धा से भक्ति करने से (सत्यम्)
सदा रहने वाले सुख व परमात्मा अर्थात्
अविनाशी परमात्मा को (आप्यते) प्राप्त
होता है।
भावार्थ:- पूर्ण सन्त उसी व्यक्ति को शिष्य
बनाता है जो सदाचारी रहे। अभक्ष्य
पदार्थों का सेवन व नशीली वस्तुओं का सेवन
न करने का आश्वासन देता है। पूर्ण सन्त
उसी से दान ग्रहण करता है जो उसका शिष्य
बन जाता है फिर गुरू देव से दीक्षा प्राप्त
करके फिर दान दक्षिणा करता है उस से
श्रद्धा बढ़ती है। श्रद्धा से सत्य भक्ति करने
से
अविनाशी परमात्मा की प्राप्ति होती है
अर्थात् पूर्ण मोक्ष होता है।
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**** पूर्ण संत भिक्षा व
चंदा मांगता नहीं फिरेगा। ****
--------------------------------------------------------
कबीर, गुरू बिन माला फेरते गुरू बिन देते
दान।
गुरू बिन दोनों निष्फल है पूछो वेद पुराण।।
3 ) तीसरी पहचान तीन प्रकार के
मंत्रों (नाम) को तीन बार में उपदेश
करेगा जिसका वर्णन कबीर सागर ग्रंथ पेज
नं. 265 बोध सागर में मिलता है व
गीता जी के अध्याय नं. 17 श्लोक 23 व
सामवेद संख्या नं. 822 में मिलता है।
कबीर सागर में अमर मूल बोध सागर पेज 265-
तब कबीर अस कहेवे लीन्हा, ज्ञानभेद सकल
कह दीन्हा ।
धर्मदास मैं कहो बिचारी, जिहिते निबहै
सब संसारी ।।
प्रथमहि शिष्य होय जो आई, ता कहैं पान देहु
तुम भाई ।।1।।
जब देखहु तुम दढ़ता ज्ञाना, ता कहैं कहु शब्द
प्रवाना ।।2।।
शब्द मांहि जब निश्चय आवै, ता कहैं ज्ञान
अगाध सुनावै ।।3।।
दोबारा फिर समझाया है -
बालक सम जाकर है ज्ञाना। तासों कहहू
वचन प्रवाना ।।1।।
जा को सूक्ष्म ज्ञान है भाई। ता को स्मरन
देहु लखाई ।।2।।
ज्ञान गम्य जा को पुनि होई। सार शब्द
जा को कह सोई ।।3।।
जा को होए दिव्य ज्ञान परवेशा,
ताको कहे तत्व ज्ञान उपदेशा ।।4।।
उपरोक्त वाणी से स्पष्ट है कि कडि़हार गुरु
(पूर्ण संत) तीन स्थिति में सार नाम तक
प्रदान करता है तथा चैथी स्थिति में सार
शब्द प्रदान करना होता है। क्योंकि कबीर
सागर में तो प्रमाण बाद में देखा था परंतु
उपदेश विधि पहले ही पूज्य दादा गुरुदेव
तथा परमेश्वर कबीर साहेब जी ने हमारे पूज्य
गुरुदेव को प्रदान कर दी थी जो हमारे
को शुरु से ही तीन बार में नामदान
की दीक्षा करते आ रहे हैं। हमारे गुरुदेव
रामपाल जी महाराज प्रथम बार में
श्री गणेश जी, श्री ब्रह्मा सावित्री जी,
श्री लक्ष्मी विष्णु जी, श्री शंकर
पार्वती जी व माता शेरांवाली का नाम
जाप देते हैं। जिनका वास हमारे मानव शरीर
में बने चक्रों में होता है। मूलाधार चक्र में
श्री गणेश जी का वास, स्वाद चक्र में
ब्रह्मा सावित्री जी का वास,
नाभि चक्र में लक्ष्मी विष्णु जी का वास,
हृदय चक्र में शंकर पार्वती जी का वास, कंठ
चक्र में शेरांवाली माता का वास है और इन
सब देवी-देवताओं के आदि अनादि नाम मंत्र
होते हैं जिनका वर्तमान में गुरुओं को ज्ञान
नहीं है। इन मंत्रों के जाप से ये पांचों चक्र खुल
जाते हैं। इन चक्रों के खुलने के बाद मानव
भक्ति करने के लायक बनता है।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
सतगुरु गरीबदास जी अपनी वाणी में प्रमाण
देते हैं कि:--
पांच नाम गुझ गायत्री आत्म तत्व जगाओ।
ॐ किलियं हरियम् श्रीयम् सोहं ध्याओ।।
भावार्थ: पांच नाम जो गुझ गायत्री है।
इनका जाप करके आत्मा को जागृत करो।
दूसरी बार में दो अक्षर का जाप देते हैं जिनमें
एक ओम् और दूसरा तत् (जो कि गुप्त है
उपदेशी को बताया जाता है)
जिनको स्वांस के साथ जाप
किया जाता है। तीसरी बार में सारनाम
देते हैं जो कि पूर्ण रूप से गुप्त है।
तीन बार में नाम जाप का प्रमाण:--
गीता अध्याय 17का श्लोक 23
ॐ, तत्, सत्, इति, निर्देशः, ब्रह्मणः,
त्रिविधः, स्मृत:,
ब्राह्मणाः, तेन, वेदाः, च, यज्ञाः, च,
विहिताः, पुरा।।23।।
अनुवाद: (ॐ) ब्रह्म का (तत्) यह सांकेतिक मंत्र
परब्रह्म का (सत्) पूर्णब्रह्म का (इति) ऐसे यह
(त्रिविधः) तीन प्रकार के (ब्रह्मणः) पूर्ण
परमात्मा के नाम सुमरण का (निर्देशः) संकेत
(स्मृत) कहा है (च) और (पुरा) सृष्टि के
आदिकालमें (ब्राह्मणाः) विद्वानों ने
बताया कि (तेन) उसी पूर्ण परमात्मा ने
(वेदाः) वेद (च) तथा (यज्ञाः)
यज्ञादि (विहिताः) रचे।
संख्या न. 822 सामवेद उतार्चिक अध्याय 3
खण्ड न. 5 श्लोक न. 8 (संत रामपाल दास
द्वारा भाषा-भाष्य)::-
मनीषिभिः पवते
पूव्र्यः कविनर्भिर्यतः परि कोशां असिष्यदत्।
त्रितस्य नाम जनयन्मधु क्षरन्निन्द्रस्य वायुं
सख्याय वर्धयन्।।8।।
मनीषिभिः-पवते-पूव्र्यः-कविर्-नभिः-
यतः-परि-कोशान्-असिष्यदत्-त्रि-तस्य-
नाम-जनयन्-मधु-क्षरनः-न-इन्द्रस्य-वायुम्-
सख्याय-वर्धयन्।
शब्दार्थ-(पूव्र्यः) सनातन अर्थात्
अविनाशी (कविर नभिः) कबीर परमेश्वर
मानव रूप धारण करके अर्थात् गुरु रूप में प्रकट
होकर (मनीषिभिः) हृदय से चाहने वाले
श्रद्धा से भक्ति करने वाले
भक्तात्मा को (त्रि) तीन (नाम) मन्त्र
अर्थात् नाम उपदेश देकर (पवते) पवित्रा करके
(जनयन्) जन्म व (क्षरनः) मृत्यु से (न) रहित
करता है तथा (तस्य) उसके (वायुम्) प्राण
अर्थात् जीवन-स्वांसों को जो संस्कारवश
गिनती के डाले हुए होते हैं को (कोशान्)
अपने भण्डार से (सख्याय) मित्राता के
आधार से (परि) पूर्ण रूप से (वर्धयन्)
बढ़ाता है। (यतः) जिस कारण से (इन्द्रस्य)
परमेश्वर के (मधु) वास्तविक आनन्द
को (असिष्यदत्) अपने आशीर्वाद प्रसाद से
प्राप्त करवाता है।
भावार्थ:- इस मन्त्र में स्पष्ट किया है
कि पूर्ण परमात्मा कविर अर्थात् कबीर
मानव शरीर में गुरु रूप में प्रकट होकर प्रभु
प्रेमीयों को तीन नाम का जाप देकर सत्य
भक्ति कराता है तथा उस मित्रा भक्त
को पवित्र करके अपने आर्शिवाद से पूर्ण
परमात्मा प्राप्ति करके पूर्ण सुख प्राप्त
कराता है। साधक की आयु बढाता है।
यही प्रमाण गीता अध्याय 17 श्लोक 23 में
है कि ओम्-तत्-सत्
इति निर्देशः ब्रह्मणः त्रिविद्य स्मृत:
भावार्थ है कि पूर्ण परमात्मा को प्राप्त
करने का ॐ (1) तत् (2) सत् (3) यह मन्त्र जाप
स्मरण करने का निर्देश है। इस नाम
को तत्वदर्शी संत से प्राप्त करो।
तत्वदर्शी संत के विषय में गीता अध्याय 4
श्लोक नं. 34 में कहा है तथा गीता अध्याय
नं. 15 श्लोक नं. 1 व 4 में तत्वदर्शी सन्त
की पहचान बताई तथा कहा है
कि तत्वदर्शी सन्त से तत्वज्ञान जानकर
उसके पश्चात् उस परमपद परमेश्वर की खोज
करनी चाहिए। जहां जाने के पश्चात् साधक
लौट कर संसार में नहीं आते अर्थात् पूर्ण मुक्त
हो जाते हैं। उसी पूर्ण परमात्मा से संसार
की रचना हुई है।
**** **** ****
विशेष:- उपरोक्त विवरण से स्पष्ट हुआ
कि पवित्र चारों वेद भी साक्षी हैं
कि पूर्ण परमात्मा ही पूजा के योग्य है,
उसका वास्तविक नाम कविर्देव (कबीर
परमेश्वर) है तथा तीन मंत्र के नाम का जाप
करने से ही पूर्ण मोक्ष होता है।
धर्मदास जी को तो परमेश्वर कबीर साहेब
जी ने सार शब्द देने से मना कर
दिया था तथा कहा था कि यदि सार
शब्द किसी काल के दूत के हाथ पड़
गया तो बिचली पीढ़ी वाले हंस पार
नहीं हो पाऐंगे। जैसे कलयुग के प्रारम्भ में प्रथम
पीढ़ी वाले भक्त अशिक्षित थे तथा कलयुग
के अंत में अंतिम पीढ़ी वाले भक्त
क्र्तघ्नी हो जाऐंगे तथा अब वर्तमान में सन्
1947 से भारत स्वतंत्र होने के पश्चात्
बिचली पीढ़ी प्रारम्भ हुई है। सन् 1951 में
सतगुरु रामपाल जी महाराज को भेजा है।
अब सर्व भक्तजन शिक्षित हैं। शास्त्र अपने
पास विद्यमान हैं। अब यह सत मार्ग सत
साधना पूरे संसार में फैलेगा तथा नकली गुरु
तथा संत, महंत छुपते फिरेंगे। इसलिए कबीर
सागर, जीव धर्म बोध, बोध सागर, पेज 1937
पर कबीर साहेब जी ने कहा है :-
धर्मदास तोहि लाख दुहाई, सार शब्द
कहीं बाहर नहीं जाई।
सार शब्द बाहर जो परि है,
बिचली पीढ़ी हंस नहीं तरि है।
पुस्तक “धनी धर्मदास जीवन दर्शन एवं वंश
परिचय” के पेज 46 पर लिखा है
कि ग्यारहवीं पीढ़ी को गद्दी नहीं मिली।
जिस महंत जी का नाम “धीरज नाम साहब”
कवर्धा में रहता था। उसके बाद
बारहवां महंत उग्र नाम साहेब ने
दामाखेड़ा में
गद्दी की स्थापना की तथा स्वयं ही महंत
बन बैठा। इससे पहले दामाखेड़ा में
गद्दी नहीं थी। इससे स्पष्ट है कि पूरे विश्व में
सतगुरु रामपाल जी महाराज के अतिरिक्त
वास्तविक भक्ति मार्ग नहीं है। संत
रामपाल जी महाराज अपने प्रवचनों में बार-
बार कहते हैं कि सर्व प्रभु प्रेमी श्रद्धालुओं से
प्रार्थना है कि मुझे प्रभु का भेजा हुआ दास
जान कर अपना कल्याण करवाऐं।
यह संसार समझदा नाहीं, कहन्दा श्याम
दोपहरे नूं।
गरीबदास यह वक्त जात है, रोवोगे इस पहरे
नूं।।
बारहवें पंथ (गरीबदास पंथ बारहवां पंथ
लिखा है कबीर सागर,कबीर चरित्र बोध
पेज 1870 पर) के विषय में कबीर सागर कबीर
वाणी पेज नं. 136,137 पर वाणी लिखी है
कि:-
सम्वत् सत्रा सौ पचहत्तर होई, तादिन प्रेम
प्रकटें जग सोई।
साखी हमारी ले जीव समझावै, असंख्य जन्म
ठौर नहीं पावै।
बारवें पंथ प्रगट ह्नै बानी, शब्द हमारे
की निर्णय ठानी।
अस्थिर घर का मरम न पावैं, ये बारा पंथ
हमही को ध्यावैं।
बारवें पंथ हम ही चलि आवैं, सब पंथ मेटि एक
ही पंथ चलावें।
धर्मदास मोरी लाख दोहाई, सार शब्द
बाहर नहीं जाई।
सार शब्द बाहर जो परही,
बिचली पीढी हंस नहीं तरहीं।
तेतिस अर्ब ज्ञान हम भाखा, सार शब्द गुप्त
हम राखा।
मूल ज्ञान तब तक छुपाई, जब लग द्वादश पंथ
मिट जाई।
यहां पर साहेब कबीर जी अपने शिष्य
धर्मदास जी को समझाते हैं कि संवत् 1775 में
मेरे ज्ञान का प्रचार
होगा जो बारहवां पंथ होगा। बारहवें पंथ में
हमारी वाणी प्रकट होगी लेकिन
सही भक्ति मार्ग नहीं होगा। फिर बारहवें
पंथ में हम ही चल कर आएगें और सभी पंथ
मिटा कर केवल एक पंथ चलाएंगे। लेकिन
धर्मदास तुझे लाख सौगंध है कि यह सार शब्द
किसी कुपात्र को मत दे
देना नहीं तो बिचली पीढ़ी के हंस पार
नहीं हो सकेंगे। इसलिए जब तक बारह पंथ
मिटा कर एक पंथ नहीं चलेगा तब तक मैं यह मूल
ज्ञान छिपा कर रखूंगा।
=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-
संत गरीबदास जी महाराज की वाणी में
नाम का महत्व:--
=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-
नाम अभैपद ऊंचा संतों, नाम अभैपद ऊंचा।
राम दुहाई साच कहत हूं, सतगुरु से पूछा।।
कहै कबीर पुरुष बरियामं, गरीबदास एक
नौका नामं।।
नाम निरंजन नीका संतों, नाम निरंजन
नीका।
तीर्थ व्रत थोथरे लागे, जप तप संजम
फीका।।
गज तुरक पालकी अर्था, नाम बिना सब
दानं व्यर्था।
कबीर, नाम गहे सो संत सुजाना, नाम
बिना जग उरझाना।
ताहि ना जाने ये संसारा, नाम बिना सब
जम के चारा।।
=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-
संत नानक साहेब जी की वाणी में नाम
का महत्व:--
=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-
नानक नाम चढ़दी कलां, तेरे भाणे
सबदा भला।
नानक दुःखिया सब संसार, सुखिया सोय
नाम आधार।।
जाप ताप ज्ञान सब ध्यान, षट
शास्त्रा सिमरत व्याखान।
जोग अभ्यास कर्म धर्म सब क्रिया, सगल
त्यागवण मध्य फिरिया।
अनेक प्रकार किए बहुत यत्ना, दान पूण्य होमै
बहु रत्ना।
शीश कटाये होमै कर राति, व्रत नेम करे बहु
भांति।।
नहीं तुल्य राम नाम विचार, नानक गुरुमुख
नाम जपिये एक बार।।
=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-
परम पूज्य कबीर साहेब (कविर् देव) की अमृत
वाणी
=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-
संतो शब्दई शब्द बखाना ।।टेक।।
शब्द फांस फँसा सब कोई शब्द
नहीं पहचाना।।
प्रथमहिं ब्रह्म स्वं इच्छा ते पाँचै शब्द
उचारा। सोहं, निरंजन, रंरकार, शक्ति और
ओंकारा।।
पाँचै तत्व प्रक्रति तीनों गुण उपजाया।
लोक द्वीप चारों खान चैरासी लख
बनाया।।
शब्दइ काल कलंदर कहिये शब्दइ भर्म भुलाया।
पाँच शब्द की आशा में सर्वस मूल गंवाया।।
शब्दइ ब्रह्म प्रकाश मेंट के बैठे मूंदे द्वारा।
शब्दइ निरगुण शब्दइ सरगुण शब्दइ वेद पुकारा।।
शुद्ध ब्रह्म काया के भीतर बैठ करे स्थाना।
ज्ञानी योगी पंडित औ सिद्ध शब्द में
उरझाना।।
पाँचइ शब्द पाँच हैं मुद्रा काया बीच
ठिकाना। जो जिहसंक आराधन
करता सो तिहि करत बखाना।।
शब्द निरंजन चांचरी मुद्रा है नैनन के माँही।
ताको जाने गोरख योगी महा तेज तप
माँही।।
शब्द ओंकार भूचरी मुद्रा त्रिकुटी है
स्थाना। व्यास देव ताहि पहिचाना चांद
सूर्य तिहि जाना।।
सोहं शब्द अगोचरी मुद्रा भंवर
गुफा स्थाना। शुकदेव
मुनी ताहि पहिचाना सुन अनहद
को काना।।
शब्द रंरकार खेचरी मुद्रा दसवें द्वार
ठिकाना। ब्रह्मा विष्णु महेश
आदि लो रंरकार पहिचाना।।
शक्ति शब्द ध्यान उनमुनी मुद्रा बसे आकाश
सनेही। झिलमिल झिलमिल जोत दिखावे
जाने जनक विदेही।।
पाँच शब्द पाँच हैं मुद्रा सो निश्चय कर
जाना। आगे पुरुष पुरान निःअक्षर
तिनकी खबर न जाना।।
नौ नाथ चैरासी सिद्धि लो पाँच शब्द में
अटके। मुद्रा साध रहे घट भीतर फिर ओंधे मुख
लटके।।
पाँच शब्द पाँच है मुद्रा लोक द्वीप
यमजाला। कहैं कबीर अक्षर के आगे
निःअक्षर का उजियाला।।
जैसा कि इस शब्द ‘‘संतो शब्दई शब्द बखाना‘‘
में लिखा है कि सभी संत जन शब्द (नाम)
की महिमा सुनाते हैं। पूर्णब्रह्म कबीर
साहिब जी ने बताया है कि शब्द सतपुरुष
का भी है जो कि सतपुरुष का प्रतीक है व
ज्योति निरंजन (काल) का प्रतीक भी शब्द
ही है। जैसे शब्द ज्योति निरंजन यह
चांचरी मुद्रा को प्राप्त करवाता है
इसको गोरख योगी ने बहुत अधिक तप करके
प्राप्त किया जो कि आम (साधारण)
व्यक्ति के बस की बात नहीं है और फिर
गोरख नाथ काल तक ही साधना करके
सिद्ध बन गए। मुक्त नहीं हो पाए। जब कबीर
साहिब ने सत्यनाम तथा सार नाम
दिया तब काल से छुटकारा गोरख नाथ
जी का हुआ। इसीलिए ज्योति निरंजन
नाम का जाप करने वाले काल जाल से
नहीं बच सकते अर्थात् सत्यलोक
नहीं जा सकते। शब्द ओंकार (ओ3म) का जाप
करने से भूंचरी मुद्रा की स्थिति में साधक आ
जाता हे। जो कि वेद व्यास ने
साधना की और काल जाल में ही रहा।
सोहं नाम के जाप से
अगोचरी मुद्रा की स्थिति हो जाती है
और काल के लोक में बनी भंवर गुफा में पहुँच
जाते हैं। जिसकी साधना सुखदेव ऋषि ने
की और केवल श्री विष्णु जी के लोक में बने
स्वर्ग तक पहुँचा। शब्द रंरकार
खैंचरी मुद्रा दसमें द्वार (सुष्मणा) तक पहुँच
जाते हैं । ब्रह्मा विष्णु महेश तीनों ने ररंकार
को ही सत्य मान कर काल के जाल में उलझे
रहे। शक्ति (श्रीयम्) शब्द ये
उनमनी मुद्रा को प्राप्त करवा देता है
जिसको राजा जनक ने प्राप्त किया परन्तु
मुक्ति नहीं हुई। कई संतों ने पाँच नामों में
शक्ति की जगह सत्यनाम जोड़ दिया है
जो कि सत्यनाम कोई जाप नहीं है। ये
तो सच्चे नाम की तरफ इशारा है जैसे
सत्यलोक को सच्च खण्ड भी कहते हैं एैसे
ही सत्यनाम व सच्चा नाम है। केवल सत्यनाम-
सत्यनाम जाप करने का नहीं है। इन पाँच
शब्दों की साधना करने वाले नौ नाथ
तथा चैरासी सिद्ध भी इन्हीं तक सीमित
रहे तथा शरीर में (घट में) ही धुनि सुनकर
आनन्द लेते रहे। वास्तविक सत्यलोक स्थान
तो शरीर (पिण्ड) से (अण्ड) ब्रह्मण्ड से पार है,
इसलिए फिर माता के गर्भ में आए (उलटे लटके)
अर्थात् जन्म-मृत्यु का कष्ट समाप्त नहीं हुआ।
जो भी उपलब्धि (घट) शरीर में होगी वह
तो काल (ब्रह्म) तक की ही है, क्योंकि पूर्ण
परमात्मा का निज स्थान (सत्यलोक)
तथा उसी के शरीर का प्रकाश तो परब्रह्म
आदि से भी अधिक तथा बहुत आगे (दूर) है।
उसके लिए तो पूर्ण संत
ही पूरी साधना बताएगा जो पाँच
नामों (शब्दों) से भिन्न है।
संतों सतगुरु मोहे भावै, जो नैनन अलख
लखावै।। ढोलत ढिगै ना बोलत बिसरै, सत
उपदेश दृढ़ावै।।
आंख ना मूंदै कान ना रूदैं ना अनहद उरझावै।
प्राण पूंज क्रियाओं से न्यारा, सहज
समाधि बतावै।।
=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-
घट रामायण के रचयिता आदरणीय
तुलसीदास साहेब जी हाथ रस वाले स्वयं
कहते हैं कि:- (घट रामायण प्रथम भाग पेज नं.
27)।
=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-
पाँचों नाम काल के जानौ तब दानी मन
संका आनौ।
सुरति निरत लै लोक सिधाऊँ ,आदिनाम ले
काल गिराऊँ।
सतनाम ले जीव उबारी, अस चल जाऊँ पुरुष
दरबारी।।
कबीर, कोटि नाम संसार में , इनसे मुक्ति न
हो।
सार नाम मुक्ति का दाता, वाको जाने न
कोए।।
=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-
गुरु नानक जी की वाणी में तीन नाम
का प्रमाण:--
=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-
पूरा सतगुरु सोए कहावै, दोय अखर का भेद
बतावै।
एक छुड़ावै एक लखावै, तो प्राणी निज घर
जावै।।
जै पंडित तु पढि़या, बिना दुउ अखर दुउ
नामा।
परणवत नानक एक लंघाए, जे कर सच समावा।
वेद कतेब सिमरित सब सांसत, इन
पढि़ मुक्ति न होई।।
एक अक्षर जो गुरुमुख जापै, तिस की निरमल
होई।।
भावार्थ: गुरु नानक जी महाराज
अपनी वाणी द्वारा समाझाना चाहते हैं
कि पूरा सतगुरु वही है जो दो अक्षर के जाप
के बारे में जानता है। जिनमें एक काल व
माया के बंधन से छुड़वाता है और
दूसरा परमात्मा को दिखाता है और
तीसरा जो एक अक्षर है वो परमात्मा से
मिलाता है।
=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-
संत गरीबदास जी महाराज की अमृत
वाणी में स्वांस के नाम का प्रमाण:--
=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-
गरीब, स्वांसा पारस भेद हमारा, जो खोजे
सो उतरे पारा।
स्वांसा पारा आदि निशानी, जो खोजे
सो होए दरबानी।
स्वांसा ही में सार पद, पद में स्वांसा सार।
दम देही का खोज करो, आवागमन निवार।।
गरीब, स्वांस सुरति के मध्य है, न्यारा कदे
नहीं होय।
सतगुरु साक्षी भूत कूं, राखो सुरति समोय।।
गरीब, चार पदार्थ उर में जोवै,
सुरति निरति मन पवन समोवै।
सुरति निरति मन पवन पदार्थ (नाम),
करो इक्तर यार।
द्वादस अन्दर समोय ले, दिल अंदर दीदार।
कबीर, कहता हूं कहि जात हूं, कहूं बजा कर
ढोल।
स्वांस जो खाली जात है, तीन लोक
का मोल।।
कबीर, माला स्वांस उस्वांस की, फेरेंगे निज
दास।
चैरासी भ्रमे नहीं, कटैं कर्म की फांस।।
=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-
गुरु नानक देव जी की वाणी में प्रमाण:--
=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-
चहऊं का संग, चहऊं का मीत, जामै
चारि हटावै नित।
मन पवन को राखै बंद, लहे
त्रिकुटी त्रिवैणी संध।।
अखण्ड मण्डल में सुन्न समाना, मन पवन सच्च
खण्ड टिकाना।।
पूर्ण सतगुरु वही है जो तीन बार में नाम दे और
स्वांस की क्रिया के साथ सुमिरण
का तरीका बताए। तभी जीव का मोक्ष
संभव है। जैसे परमात्मा सत्य है। ठीक
उसी प्रकार परमात्मा का साक्षात्कार व
मोक्ष प्राप्त करने
का तरीका भी आदि अनादि व सत्य है
जो कभी नहीं बदलता है। गरीबदास
जी महाराज अपनी वाणी में कहते हैं:
भक्ति बीज पलटै नहीं, युग जांही असंख।
सांई सिर पर राखियो, चैरासी नहीं शंक।।
घीसा आए एको देश से, उतरे एको घाट।
समझों का मार्ग एक है, मूर्ख बारह बाट।।
कबीर भक्ति बीज पलटै नहीं, आन पड़ै बहु
झोल। जै कंचन बिष्टा परै, घटै न
ताका मोल।।
बहुत से महापुरुष सच्चे नामों के बारे में
नहीं जानते। वे मनमुखी नाम देते हैं जिससे न
सुख होता है और न ही मुक्ति होती है। कोई
कहता है तप, हवन, यज्ञ आदि करो व कुछ
महापुरुष आंख, कान और मुंह बंद करके अन्दर
ध्यान लगाने की बात कहते हैं जो कि यह उनकी मनमुखी साधना का प्रतीक है।
जबकि कबीर साहेब, संत गरीबदास
जी महाराज, गुरु नानक देव जी आदि परम संतों ने सारी क्रियाओं को मना करके केवल एक नाम जाप करने को ही कहा है।
उपरोक्त पवित्र शास्त्रगत लक्षण जो बताए हैं ये सभी तत्वदर्शी संत रामपाल
जी महाराज में विद्यमान हैं ...

अवतार की परिभाषा


<<<<<<अवतार की परिभाषा

secret of bhakti - तीनों गुणों से अतीत अर्थात् ब्रह्मा, विष्णु, शिव की भक्ति से ऊपर उठे भक्त के लक्षण

। तीनों गुणों से अतीत अर्थात् ब्रह्मा, विष्णु, शिव
की भक्ति से ऊपर उठे भक्त के लक्षण।।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
~~~~~~~~~~~~
पवित्र गीता के अध्याय 14 के श्लोक 22 से 25 में
कहा है कि जो भक्त किसी देव की महिमात्मक
प्रशंसा सुन कर उस पर आसक्त नहीं होता क्योंकि उसे
पूर्ण ज्ञान है कि यह देव (गुण) केवल
इतनी ही महिमा रखता है जो जीव के उद्धार के लिए
पर्याप्त नहीं है। जैसे भगवान कृष्ण (विष्णु-सतगुण) ने
कंश-केशि, शिशुपाल आदि मारे तथा सुदामा को धन दे
दिया। आम जीव के कल्याण के लिए पर्याप्त नहीं है।
क्योंकि भगवान विष्णु (सतगुण) का उपासक केवल
स्वर्ग आदि उत्तम लोकों में जा सकता है। फिर
चैरासी लाख जूनियों का संकट बना रहेगा। इसलिए
वह साधक अपने विचार स्थिर रखता है
तथा अपना स्वभाव मोह वश नहीं बदलता और न
ही उन देवों (ब्रह्मा, विष्णु, शिव) से द्वेष करता। न
ही उनकी आकांक्षा (इच्छा)
करता जो उनकी शक्ति से परिचित है, उनको वहीं तक
समझता है तथा अविचलित स्थित एक रस इनसे भी परे
परमात्मा में लीन रहता है तथा सुख-दुःख, मिट्टी-
सोना, प्रिय-अप्रिय, निन्दा-स्तुति में सम भाव में
रहता है। मान-अपमान, मित्र-वैरी को समान
समझता है तथा सर्व प्रथम अभिमान का त्याग
करता है। वह (भक्त) गुणातीत कहा जाता है।
**!! सत साहेब !!

बुधवार, 28 जनवरी 2015

सच VS झूठ , संत VS असंत , संत और असंत की परिभाषा , must read this

सच VS झूठ
========
संत VS असंत
●●●●●●●●●
### संत और असंत की परिभाषा ###
-----लाल कपडे पहनने से, गले मे माला डालने से,
तिलक लगाने से, ब्रह्मचारी रहने पेठ
का पानी हिलाने से कोई संत
नही हो जाता.... जैसे गधा शेर की खाल
पहनने से शेर नही हो जाता... गधे और शेर
की पहचान उसकी आवाज से होती हैा ठीक
इसी तरह संत की पहचान उसके ज्ञान से
होती हैा
इस फोटो मे देखकर आपको पता चल
जायेगा कौन है गधा कौन है शेर....
प्रश्न- रामदेव बाबा जी कहते है रामपाल
जी देश के लिए खतरनाक है???
उत्तर- हम सब का ये कहना है रामपाल
जी भारत ही नही दुनिया के लिए
फरीश्ता हैा लेकिन रामदेव जैसे
नकली संतो के लिए खतरनाक
हैा क्योकि रामपाल जी महाराज के
ज्ञान ने इन नकली संत धर्मगुरूओ की पोल खुल
दी हैा
क्योकि ये गधे थे शेर की खाल पहन कर घूम रहे
थे.. संत रामपाल जी ने अपने तत्वज्ञान से
इनकी वो शेर की खाल उतार दी हैा अब ये
गधे के गधे रह गए.. जो भी संत रामपाल जी के
तत्वज्ञान से परिचत हो जाता हैा उसको ये
सभी संत रामपाल जी की तुलना मे गधे नजर
आते हैा...
असंत --------
रामदेव बाबा लडकियो के साथ Dance कर
रहा हैा ये आर्य समाजी हैा.. समाज के
लोगो पूछे रामदेव बाबा से
क्या कभी दयानंद जी ने भी लडकियो के
साथ Dance किया था.. किसी एक संत
का प्रमाण दो रविदास कबीर साहेब नानक
जी और भी संत हुए
हैा क्या कभी किसी संत ने रामदेव की तरह
लडकियो के साथ Dance किया..
संतो का काम नाचने
का होता हैा या भक्ति करने का..
शर्म आती है इसको बाबा कहते हुए.. कम से कम
इन लाल कपडो की तो लाज रख लेते रामदेव
बाबा जी.....
संतो का काम
राजनीती का होता हैा संत और
राजनीती का क्या मेल... राजा लोग
राजनीती करते हैा संत भक्ति किया करते
हैा...
कबीर - कंटी माला सुमरनी पहरे से क्या...
उपर डूंडा साधु का, अन्दर राख्य खो....
कबीर साहेब कहते
हैा कंटी माला सुमरनी लाल कपडे पहन कर
उपर से साधु संत बन जाता हैा अन्दर कखग
भी ज्ञान नही हैा जैसे उपर से सोने
का दिखने वाला मटका और उसके अन्दर
शराब भरी हैा क्या फायदा उसका.. कोई
मिट्टी का मटका है उसमे जल
भरा हैा वो सबको प्यारा होता हैा
गीता अध्याय 5 के श्लोक 2 मे
लिखा हैा कर्म सन्यासी अर्थात
ब्रह्मचारी रहकर भक्ति करने वालो से
कर्मयोगी अर्थात घर मे अपने बीवी बच्चो के
साथ रहकर भक्ति करने वाले श्रेष्ठ हैा..
मोक्ष ब्रह्मचारी रहकर
नही बल्कि शास्त्रनुकूल भक्ति से
होता हैा चाहे कोई भी करो...
कुछ लोगो को ये घमंड होता हैा मै
ब्रह्मचारी हुं या मेरा गुरू ब्रह्मचारी हैा...
कुछ लोग ब्रह्मचारी गुरू को ढूंढते हैा
अगर ब्रह्मचारी रहने से भगवान
मिलता हो तो सबसे पहले हिजडो को मिल
जाता.. सबसे पहले हिजडे पार हो जाते..
क्यो ये तो सपने मे भी कुछ नही कर सकते...
कबीर साहेब कहते है सपने मे तेरा बिंद
चला गया काहे का तू ब्रह्मचारी...
ये लोग संत रामपाल जी महाराज को देश के
लिए खतरनाक इसलिए बता रहे हैा क्यो ये
गधे थे शेर की खाल पहन कर घूम रहे थे.. संत
रामपाल जी ने अपने तत्वज्ञान से
इनकी वो शेर की खाल उतार दी हैा अब ये
गधे के गधे रह गए.. जो भी संत रामपाल जी के
तत्वज्ञान से परिचत हो जाता हैा उसको ये
सभी संत रामपाल जी की तुलना मे गधे नजर
आते हैा...
(Ek Hi To Satguru H Dharti Par)
उसको भी जेल मे डाल दिया
******* सतगुरू की Real पहचान**********
शेर की खाल पहन लेने से गधा शेर जैसा जरूर
दिखाई देता हैा लेकिन शेर की पहचान
उसकी आवाज से होती हैा ठीक इसी तरह
सतगुरू (जगतगुरू) की पहचान उसके ज्ञान से
होती है... दुनिया के धर्मगुरूओ के पास
incomplete ज्ञान है जबकि रामपाल
जी महाराज के पास तत्वज्ञान है..
इसलिए उनके
शिष्यो की सख्या बढती जा रही हैा
तत्वज्ञान क्या होता है????????
*** तत्वज्ञान गोला तोब
का होता जहा से चलता है मैदान साफ
करता हुआ चलता हैा *******
जगतगुरू (सतगुरू) को धरती पर अध्यित्मिक
ज्ञान मे कोई नही हारा सकता..
उसका ज्ञान तोब का गोला होता है.
कबीर - और ज्ञान सो ज्ञानडी कबीर
ज्ञान सो ज्ञान..
जैसे गोला तोब का अब करता चले मैदान....
वो सतगरू सूरज की तरह होता है उसके सामने
दूसरे सभी संत धर्मगुरू चाँद तारो की तरह
होते हैा जैसे सूरज के उदय होते
ही सारा अन्धेरा मिट जाता है चाँद तारे
भी दिखाई नही देते.. संतरामपाल
जी का अभी उदय हुआ है थोडा प्रकाश मे
आना बाकी है..
Q- संत रामपाल जी को जेल मे डालने
का कारण क्या था???
A -नकली संत गुरू नही चाहते रामपाल जी के
ज्ञान का सूरज संसार मे उदय हो वरना इन
चांद तारो को छुपने के लिए जगह
नही मिलेगी...
.कबीर - तारामंडल बैठकर चांद बडाई खाये..
उदय हुआ जब सूरज का सो तारो छिप जाये...
आैर सभी संतो का ज्ञान सिमित होता है
लेकिन सतगूरू का ज्ञान चकवे ज्ञान
होता है.. जैसे मुसलमान कुरान शरीफ तक
सिमित है हिन्दू वेद गीता तक, ईसाई सिख
बाईबल, गुरूग्रंथ तक सिमित है.. लेकिन
संतरामपाल जी का ज्ञान 4 वेद 6 शास्त्र
18 पुराण, कुरानशरीफ, बाईबल, गुरूग्रंथ, कबीर
सागर, संतो की वानी, सभी धर्मो के
आधार पर हैा
सब मे एक KABIR परमेश्वर अल्लाह सिद्ध कर
दिया हैा
कबीर - ऐसा ज्ञान कबीर का निर्मल करे
शरीर...
और ज्ञान सब मंडलिक है ये चकवे ज्ञान
कबीर..
रामपाल जी महाराज ने World को challenge
किया है आज तक तो किसी ने हिम्मत
नही की .. उनके ज्ञान को झूठा बताने
की या उनसे ज्ञान चर्चा करने की..
(डा० जकिर नायक का चलेंज हिन्दूस्तान
को)
जकिर नायक ने हिन्दूस्तान के धर्म गुरूओ
शंकराचार्य नेताओ सभी को Debete के लिए
चलेंज किया था कहा चले गये थे तब
हिन्दूस्तान के धर्म गुरू ....
ये दमाखेडा ये कबीर पंथी कहा चले गये थे.. ये
धन धन सतगुरू ये राधा स्वामी निरंकारी, ये
शंकाराचार्य आदि जितने भी धर्म गुरू है तब
कहा चले गये थे... कोई ज्ञान चर्चा के लिए
नही आया....
जब कोई नही आया तब ????
****जगतगुरू तत्वदर्शी संत रामपाल
जी महाराज***
ने डा० जकिर नायक के चलेंज को स्वीकार
किया था
रामपाल जी महाराज ने जकिर नायक के
चलेंज को मीडिया के द्वारा Accept
किया.. Aaj Tak, Sadhna और भी कई news
चनेल, व Newspaper के माध्यम से लोगो और
जाकिर नायक तक ये खबर पहुचायी..
साधना चनेल की तरफ से ईमेल भी जकिर
नायक को की.. लेकिन जाकिर नायक ने
ज्ञान चर्चो मे भाग लेने मे मना कर दिया..
फिर रामपाल जी ने जाकिर नायक के
ज्ञान की खाल उतार कर you tube पर डाल
रखी है जो कि आप देख सकते हो लेकिन
जाकिर नायक का कोई जवाब फिर
भी नही आया..
Dr Zakir Naik vs Jagat Guru Sant Rampal Ji
Maharaj - Debate
.
http://m.youtube.com/watch?hl=en&client=mv-
google&gl=IN&v=uG8oyG8ESH4
&
एक नही संतरामपाल जी महाराज ने बहुत से
धर्म गुरूवो को ज्ञान मे ऐसे धो रखा है जैसे
धोबी कपडो को धोता है.. ये नीचे लिंक
देखिये??
संत रामपाल जी ने विश्व के सभी धर्म
गुरूवो को ज्ञान चर्चा के लिए निमंत्रण
दिया हुआ है लेकिन आज तक कोई ज्ञान
चर्चा करने नही आया .. कोई नही बोलता??
कोई debete के लिए नही आता..
अाखिर क्यो धर्म गुरू ज्ञान चर्चा के लिए
नही आते.???
इसका क्या कारण हैा
कबीर -और ज्ञान सो ज्ञानडी कबीर
(रामपाल) ज्ञान सो ज्ञान
जैसे गोला तोब का अब करता चले मैदान..
जो इस TatavGyan के सामने
आयेगा वो अंधा गधा होगा
.जैसे एक बार एक अंधा गधा रेल की पटरी पर
खडा हो जाता है.. रेल आ रही होती है
गधा सोचता है मुझे डिस्टरब करने कौन आ
रहा है आने दे दोनो पैर उठा कर
पिछली लात मारूगा.
जैसे ही रेल आती है गधा लात मारता है रेल
उठाकर पटक देती है...
ये संत रामपाल जी महाराज का तत्वज्ञान
Supriem God कबीर परमेश्वर का मिशन है .
जो इसको रोकने की कौशिश
करेगा वो अंधा गधा होगा..
ये ज्ञान 2020 तक विश्व मे फैल जायेगा.. 2020
के बाद सभी धर्म मिट जायेगे.... केवल एक धर्म
होगा मानव धर्म.. एक परमेश्वर अल्लाह गोड
वाहेगुरू होगा.. वो होगा
पूर्णब्रह्म (कविर्देव) कबीर साहेब
कबीर - जब आयेगा बीसवे बीसा(2020)
ना रहेगा ईशा ना रहेगा मूसा
विश्व पर राज करेगा जगदीशा
पृथ्वी बनेगी स्वर्ग समान सुखी होगा अब हर
इंसान..
Plz visit- www.jagatgururampalji.org
सत साहेब जी
photo 

supreme god kabeer saheb proof in holy book ""ved"" welcome read this

पवित्र वेदों में कविर्देव (कबीर परमेश्वर) का प्रमाण
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ऋग्वेद मण्डल-9 सुक्त 96 मंत्र- 16
स्वायुधः सोतृभिः पृयमानोऽभयर्ष गुह्यं चारु नाम।
अभि वाजं सप्तिरिव श्रवस्याभि वायुमभि गा देव
सोम।।
अनुवाद:- हे परमेश्वर! आप (स्वायुधः) अपने तत्व ज्ञान
रूपी शस्त्र युक्त हैं। उस अपने तत्व ज्ञान रूपी शस्त्र
द्वारा (पूयमानः) मवाद रूपी अज्ञान को नष्ट करें
तथा (सोतृभिः) अपने उपासक को अपने (गृह्यम्) गुप्त
(चारु) सुखदाई श्रेष्ठ (नाम) नाम व मन्त्र का (अभ्यर्ष)
ज्ञान कराऐं (सोमदेव) हे अमर परमेश्वर आप के तत्व
ज्ञान की (गा) लोकोक्ति गान की (श्रवस्याभि)
कानों को अतिप्रिय लगने
वाली विश्रुति (वायुमभि) प्राणा अर्थात्
जीवनदायीनि (वाजम् अभि) शुद्ध घी जैसी श्रेष्ठ
(सप्तिरिव) घोड़े जैसी तिव्रगामी तथा बलशाली है
अर्थात् आप के द्वारा दिया गया तत्व ज्ञान
जो कविताओं, लोकोक्तियों में है वह मोक्ष दायक है
उस अपने यथार्थ ज्ञान व वास्तविक अपने नाम
का ज्ञान कराऐं।
भावार्थ:- इस मन्त्र 16 में प्रार्थना की गई है कि अमर
प्रभु का वास्तविक नाम क्या है तथा तत्वज्ञान
रूपी शस्त्र से अज्ञान को काटे अर्थात्
अपना वास्तविक नाम व तत्वज्ञान कराऐ।
यही प्रमाण गीता अध्याय-15 के श्लोक 1 से 4 में
कहा है कि संसार रूपी वृक्ष के विषय में जो सर्वांग
सहित जानता है वह तत्वदर्शी सन्त है। उस तत्वज्ञान
रूपी शस्त्रा से अज्ञान को काटकर उस परमेश्वर के
परमपद की खोज करनी चाहिए जहाँ जाने के पश्चात्
साधक फिर लौटकर संसार में नहीं आते। गीता ज्ञान
दाता प्रभु कह रहा है कि मैं भी उसी की शरण हूँ।
ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मन्त्र 16 में किए प्रश्न
का उत्तर निम्न श्लोक में दिया है कहा है कि उस अमर
पुरूष का नाम कविर्देव अर्थात् कबीर प्रभु है।
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ऋग्वेद मण्डल-9 सूक्त 96 मंत्र-17
शिशुम् जज्ञानम् हर्य तम् मृजन्ति शुम्भन्ति वहिन
मरूतः गणेन।
कविर्गीर्भि काव्येना कविर् सन्त् सोमः पवित्राम्
अत्येति रेभन्।।
अनुवाद - सर्व सृष्टी रचनहार (हर्य शिशुम्) सर्व कष्ट
हरण पूर्ण परमात्मा मनुष्य के विलक्षण बच्चे के रूप में
(जज्ञानम्) जान बूझ कर प्रकट होता है तथा अपने
तत्वज्ञान को (तम्) उस समय (मृजन्ति) निर्मलता के
साथ (शुम्भन्ति) उच्चारण करता है। (वन्हि:) प्रभु
प्राप्ति की लगी विरह अग्नि वाले (मरुतः) भक्त
(गणेन) समूह के लिए (काव्येना) कविताओं
द्वारा कवित्व से (पवित्राम् अत्येति) अत्यधिक
निर्मलता के साथ (कविर् गीर्भि) कविर्
वाणी अर्थात् कबीर वाणी द्वारा (रेभन्) ऊंचे स्वर से
सम्बोधन करके बोलता है, हुआ वर्णन करता (कविर् सन्त्
सोमः) वह अमर पुरुष अर्थात् सतपुरुष ही संत अर्थात्
ऋषि रूप में स्वयं कविर्देव ही होता है। परन्तु उस
परमात्मा को न पहचान कर कवि कहने लग जाते हैं।
परन्तु वह पूर्ण परमात्मा ही होता है।
उसका वास्तविक नाम कविर्देव है।
भावार्थ - ऋग्वेद मण्डल नं.-9 सुक्त नं. 96 मन्त्र-16 में
कहा है कि आओ पूर्ण परमात्मा के वास्तविक नाम
को जाने इस मन्त्र 17में उस परमात्मा का नाम व
परिपूर्ण परिचय दिया है। वेद बोलने वाला ब्रह्म कह
रहा है कि पूर्ण परमात्मा मनुष्य के बच्चे के रूप में प्रकट
होकर कविर्देव अपने वास्तविक
ज्ञानको अपनी कबीर बाणी के द्वारा अपने
हंसात्माओं अर्थात् पुण्यात्मा अनुयाईयों को ऋषि,
सन्त व कवि रूप में कविताओं, लोकोक्तियों के
द्वारा सम्बोधन करके अर्थात् उच्चारण करके वर्णन
करता है। इस तत्वज्ञान के अभाव से उस समय प्रकट
परमात्मा को न पहचान कर केवल ऋषि व संत
या कवि मान लेते हैं वह परमात्मा स्वयं भी कहता है
कि मैं पूर्ण ब्रह्म हूँ सर्व सृष्टी की रचना भी मैं
ही करता हूँ। मैं ऊपर सतलोक (सच्चखण्ड) में रहता हूँ।
परन्तु लोक वेद के आधार से परमात्मा को निराकार
माने हुए प्रजाजन नहीं पहचानते ,
जैसे गरीबदास जी महाराज ने काशी में प्रकट
परमात्मा को पहचान कर
उनकी महिमा कही तथा उस परमेश्वर
द्वारा अपनी महिमा बताई थी उसका यथावत् वर्णन
अपनी वाणी में किया ::-
गरीब, जाति हमारी जगत गुरू, परमेश्वर है पंथ।
दासगरीब लिख पडे़ नाम निरंजन कंत।।
गरीब, हम ही अलख अल्लाह है, कुतूब गोस और पीर।
गरीबदास खालिक धनी, हमरा नाम कबीर।।
गरीब, ऐ स्वामी सृष्टा मैं, सृष्टी हमरे तीर।
दास गरीब अधर बसू। अविगत सत कबीर।।
इतना स्पष्ट करने पर भी उसे कवि या सन्त, भक्त
या जुलाहा कहते हैं। परन्तु वह पूर्ण
परमात्मा ही होता है। उसका वास्तविक नाम
कविर्देव है। वह स्वयं सतपुरुष कबीर ही ऋषि, सन्त व
कवि रूप में होता है। परन्तु तत्व ज्ञानहीन ऋषियों व
संतों गुरूओं के अज्ञान सिद्धांत के आधार पर
आधारित प्रजा उस समय अतिथि रूप में प्रकट
परमात्मा को नहीं पहचानते क्योंकि उन
अज्ञानि ऋषियों, संतों व गुरूओं ने
परमात्मा को निराकार बताया होता है।
--------------------------------------------------------
ऋग्वेद मण्डल-9 सूक्त 96 मंत्र-18
ऋषिमना य ऋषिकृत्
स्वर्षाः सहस्राणीथः पदवीः कवीनाम्।
तृतीयम् धाम महिषः सिषा सन्त् सोमः विराजमानु
राजति स्टुप्।।
अनुवाद - वेद बोलने वाला ब्रह्म कह रहा है कि (य)
जो पूर्ण परमात्मा विलक्षण बच्चे के रूप में आकर
(कवीनाम्) प्रसिद्ध कवियों की (पदवीः)
उपाधी प्राप्त करके अर्थात् एक संत
या ऋषि की भूमिका करता है उस (ऋषिकृत्) संत रूप में
प्रकट हुए प्रभु द्वारा रची (सहस्राणीथः)
हजारों वाणी (ऋषिमना) संत स्वभाव वाले
व्यक्तियों अर्थात् भक्तों के लिए (स्वर्षाः) स्वर्ग
तुल्य आनन्द दायक होती हैं। (सोम) वह अमर पुरुष
अर्थात् सतपुरुष (तृतीया) तीसरे (धाम) मुक्ति लोक
अर्थात् सत्यलोक की (महिषः) सुदृढ़
पृथ्वी को (सिषा) स्थापित करके (अनु) पश्चात्
(सन्त्) मानव सदृश संत रूप में (स्टुप्) गुबंद अर्थात् गुम्बज में
उच्चे टिले जैसे सिंहासन पर (विराजमनु राजति)
उज्जवल स्थूल आकार में अर्थात् मानव सदृश तेजोमय
शरीर में विराजमान है।
भावार्थ - मंत्र 17 में कहा है कि कविर्देव शिशु रूप
धारण कर लेता है। लीला करता हुआ बड़ा होता है।
कविताओं द्वारा तत्वज्ञान वर्णन करने के कारण
कवि की पदवी प्राप्त करता है अर्थात् उसे ऋषि, सन्त
व कवि कहने लग जाते हैं, वास्तव में वह पूर्ण
परमात्मा कविर् ही है। उसके
द्वारा रची अमृतवाणी कबीर वाणी (कविर्वाणी)
कही जाती है, जो भक्तों के लिए स्वर्ग तुल्य सुखदाई
होती है। वही परमात्मा तीसरे मुक्ति धाम अर्थात्
सत्यलोक की स्थापना करके तेजोमय मानव सदृश
शरीर में आकार में गुबन्द में सिंहासन पर विराजमान है।
इस मंत्र में तीसरा धाम सतलोक को कहा है। जैसे एक
ब्रह्म का लोक जो इक्कीस ब्रह्मण्ड का क्षेत्र है,
दूसरा परब्रह्म का लोक जो सात संख ब्रह्मण्ड
का क्षेत्रा है, तीसरा परम अक्षर ब्रह्म अर्थात् पूर्ण
ब्रह्म का सतलोक है जो असंख्य
ब्रह्मण्डों का क्षेत्रा है। क्योंकि पूर्ण परमात्मा ने
सत्यलोक में सत्यपुरूष रूप में विराजमान होकर नीचे के
लोकों की रचना की है। इसलिए नीचे गणना की गई।
-----------------------------------------------
ऋग्वेद मण्डल-9 सूक्त 96 मंत्र-19
चमूसत् श्येनः शकुनः विभृत्वा गोबिन्दुः द्रप्स
आयुधानि बिभ्रत्।
अपामूर्भिः सचमानः समुद्रम् तुरीयम् धाम
महिषः विवक्ति।।
अनुवाद - (च) तथा (मृषत्) पवित्र (गोविन्दुः) कामधेनु
रूपी सर्व मनोकामना पूर्ण करने वाला पूर्ण
परमात्मा कविर्देव (विभृत्वा) सर्व का पालन करने
वाला है (श्येनः) सफेद रंग युक्त (शकुनः) शुभ लक्षण
युक्त (चमूसत्)सर्वशक्तिमान है। (द्रप्सः) दही की तरह
अति गुणकारी अर्थात् पूर्ण मुक्ति दाता (आयुधानि)
तत्व ज्ञान रूपी धनुष बाण युक्त अर्थात्
सारंगपाणी प्रभु है। (सचमानः) वास्तविक (विभ्रत्)
सर्व का पालन-पोषण करता है। (अपामूर्भिः) गहरे जल
युक्त (समुद्रम्) जैसे सागर में सर्व दरिया गिरती हैं
तो भी समुद्र विचलित नहीं होता ऐसे सागर की तरह
गहरा गम्भीर अर्थात् विशाल (तुरीयम्) चैथे (धाम)
लोक अर्थात् अनामी लोक में (महिषः) उज्जवल सुदृढ़
पृ थ्वी पर (विवक्ति) अलग स्थान पर भिन्न
भी रहता है यह जानकारी कविर्देव स्वयं ही भिन्न-
भिन्न करके विस्त्तार से देता है।
भावार्थ - मंत्र-18 में कहा है कि पूर्ण
परमात्मा कविर्देव (कबीर परमेश्वर) तीसरे मुक्ति धाम
अर्थात् सतलोक में रहता है। इस मंत्र-19 में कहा है
कि अत्यधिक सफेद रंग वाला पूर्ण प्रभु जो कामधेनु
की तरह सर्व मनोकामना पूर्ण करने वाला है,
वही वास्तव में सर्व का पालन कर्ता है। वही कविर्देव
जो मृतलोक में शिशु रूप धारकर आता है वही तत्व
ज्ञान रूपी धनुषबाण युक्त अर्थात् सारंगपाणी है
तथा जैसे समुद्र सर्व जल का श्रोत है वैसे ही पूर्ण
परमात्मा से सर्व की उत्पत्ति हुई है। वह पूर्ण प्रभु चौथे
धाम अकह अर्थात् अनामी लोक में रहता हैं, जैसे प्रथम
सतलोक दूसरा अलख लोक, तीसरा अगम लोक,
चैथा अनामी लोक है। इसलिए इस मंत्र-19 में स्पष्ट
किया है कि कविर्देव (कबीर परमेश्वर)
ही अनामी पुरुष रूप में चैथे धाम अर्थात्
अनामी अर्थात् अकह लोक में भी अन्य तेजोमय रूप
धारण करके रहता है। पूर्ण परमात्मा ने अकह लोक में
विराजमान होकर नीचे के अन्य तीन लोकों (अगम
लोक, अलख लोक तथा सत्य लोक)
की रचना की इसलिए अकह लोक चौथा धाम
कहा है।
----------------------------------------------------
ऋग्वेद मण्डल-9 सूक्त 96 मंत्र-20
मर्यः न शुभ्रस्तन्वम् मृजानः अत्यः न सृ त्वा सनये
धनानाम् !
वृषेव यूथा परिकोशम् अर्षन् कनिक्रदत्
चम्वोः इरा विवेश !!
अनुवाद - पूर्ण परमात्मा कविर्देव जो चैथे धाम
अर्थात् अनामी लोक में तथा तीसरे धाम अर्थात्
सत्यलोक में रहता है वही परमात्मा का (न मर्यः)
मनुष्य जैसा पाँच तत्व का शरीर नहीं है परन्तु है, मनुष्य
जैसा समरूप (मृजनः) निर्मल मुखमण्डल युक्त आकार में
विशाल श्वेत शरीर धारण करता हुआ ऊपर के लोकों में
विद्यमान है (न अत्यः शुभ्रस्तन्वम्) वह पूर्ण प्रभु न
अधिक तेजोमय शरीर सहित अर्थात् हल्के तेज पुंज के
शरीर सहित वहाँ से (सृत्वा) गति करके अर्थात् चलकर
(न) वही समरूप परमात्मा हमारे लिए अविलम्ब (इरा)
पृथ्वी पर (विवेश) अन्य वेशभूषा अर्थात् भिन्न रूप
(चम्वोः) धारण करके आता है। सतलोक तथा पृ
थ्वी लोक पर लीला करता है (यूथा) जो बहुत बड़े समुह
को वास्तविक(सनये) सनातन पूजा की (वृषेव)
वर्षा करके (धनानाम्) उन रामनाम की कमाई से हुए
धनियों को (कनिक्रदत्) मंद स्वर से अर्थात् स्वांस-
उस्वांस से मन ही मन में उचारण करके पूजा करवाता है,
जिससे असंख्य अनुयाईयों का पूरा संघ (परि कोशम्)
पूर्व वाले सुख सागर रूप अमृत खजाने अर्थात् सत्यलोक
को (अर्षन्) पूजा करके प्राप्त करता है।
भावार्थ - साकार पूर्ण परमेश्वर ऊपर के लोकों से
चलकर हल्के तेज पुंज का श्वेत शरीर धारण करके
यहाँ पृथ्वी लोक पर भी अतिथी रूप में अर्थात् कुछ
समय के लिए आता है तथा अपनी वास्तविक
पूजा विधि का ज्ञान करा के बहुत सारे भक्त समूह
को अर्थात् पूरे संघ को सत्यभक्ति के धनी बनाता है,
असंख्य अनुयाईयों का पूरा संघ सत्य भक्ति की कमाई
से पूर्व वाले सुखमय लोक पूर्ण मुक्ति के खजाने
को अर्थात् सत्यलोक को साधना करके प्राप्त
करता है।
_/\_
!! सत साहेब !!

मंगलवार, 27 जनवरी 2015

यू-टयूब की चार सीक्रेट ट्रिक्स, जो है बहुत काम की

यू-टयूब की चार सीक्रेट ट्रिक्स, जो है बहुत काम की
लगभग सभी इंटरनेट यूजर्स वीडियो सर्फिंग के लिए यू-टयूब का इस्तेमाल करते है। लेकिन बहुत कम इंटरनेट यूजर्स जानते है की वो यूट्यूब वीडियोज के URL में जरा-सा फेरबदल करके कई मुश्किल काम आसानी से कर सकते है जैसे की हम किसी भी यूट्यूब वीडियो को बिना किसी सॉफ्टवेयर की मदद के सिधे ही अपने कंप्यूटर पर मनचाहे फॉर्मेट में डाउनलोड कर सकते है। या फिर किसी भी देश में प्रतिबंधित वीडियो को हम उस देश में देख सकते है। आज इस लेख में हम आपको यू-टयूब से जुडी चार ऐसी ही उपयोगी सीक्रेट ट्रिक्स के बारे में बता रहे है। (यह भी पढ़े जानिए वॉट्सऐप (WhatsApp) को कैसे इस्तेमाल करे लैपटॉप या PC पर )
1. ऐसे बिना किसी सॉफ्टवेयर के करें वीडियोज डाउनलोड-
यूट्यूब की मदद से आसानी से वीडियोज डाउनलोड किए जा सकते हैं। इसके लिए किसी खास सॉफ्टवेयर की जरूरत नहीं होगी। इतना ही नहीं, यूट्यूब से MP3 फाइल्स भी डाउनलोड की जा सकती हैं। आपको सिर्फ URL में थोड़ा-सा फेरबदल करना होगा।
किसी भी वीडियो को डाउनलोड करने के लिए उसके URL के सामने PWN लिखना होगा। ध्यान रहे URL से http:// या https:// पहले हटा दिया हो।
ऊदाहरण-
www.youtube.com/watch?v=9yZDsep3IBA
ये वीडियो URL कुछ ऐसा बन जाएगा-
www.pwnyoutube.com/watch?v=9yZDsep3IBA
(नीचे दी गई ट्रिक का स्क्रीन शॉट)
करें MP3 डाउनलोड-
इसके बाद आप अपने मनपसंद फॉर्मेट में वीडियो डाउनलोड कर सकते हैं। इन्हें वीडियो से MP3 फाइल्स में भी इसी पेज से कन्वर्ट किया जा सकता है। वीडियो URL में PWN जोड़ने के बाद एक अलग साइट खुलेगी। इस साइट पर ऊपर के हिस्से में वीडियो डाउनलोड करने के ऑप्शन रहेंगे और निचले हिस्से में वीडियो को MP3 में बदलने के ऑप्शन रहेंगे (जैसा कि फोटो में दिखाया गया है)।
MP3 में बदलने के लिए दी गई वेबसाइट्स में से किसी एक को इस्तेमाल करना होगा। एक बार वीडियो कन्वर्ट हो जाए तो उसे अपने पीसी में डाउनलोड किया जा सकता है।
2. वीडियो को करें रिपीट-
यूट्यूब URL में थोड़ा-सा फेरबदल करके आप अपने यूट्यूब वीडियो को कितनी भी बार रिपीट कर सकते हैं। इसके लिए आपको बार-बार यूट्यूब साइट पर नहीं जाना होगा। ये प्रोसेस अपने आप होगी। इसके लिए यूट्यूब वीडियो URL में "repeater" Youtube के बाद जोड़ना होगा।
जैसे-
youtube.com/watch?v=9yZDsep3IBA
ऐसा बन जाएगा-
youtuberepeater.com/watch?v=9yZDsep3IBA
3. अगर वीडियो में रीजनल रिस्ट्रिक्शन हो तो-
कई बार ऐसे वीडियोज सामने आ जाते हैं, जो किसी और देश से होस्ट किए गए हों। ये वीडियोज आपके एरिया के लिए रिस्ट्रिक्ट होते हैं। ऐसे में, ये अपने आप में बहुत कॉम्प्लिकेटेड होते हैं। इन वीडियोज के URL में भी फेरबदल करना पड़ेगा।
उदाहरण-
watch?v=IEIWdEDFlQY ये URL
ऐसा बन जाएगा-
/v/IEIWdEDFlQY
इसके बाद वीडियो आपके एरिया में खुल जाएगा।
अगर वीडियो किसी खास जगह से चलाना हो तो-
अगर यूट्यूब का वीडियो किसी खास जगह से चलाना हो, तो इसके लिए आप वीडियो का करंट टाइम URL नोट कर सकते हैं। अगर कोई खास टाइम है, तो यूट्यूब वीडियो का करंट टाइम URL आप किसी भी समय वीडियो पर राइट क्लिक करके कॉपी कर सकते हैं, जैसा कि फोटो में दिखाया गया है।
अगर ऐसा नहीं करना है या कुछ सेकंड बाद से वीडियो चलाना है तो-
ये URL-
www.youtube.com/watch?v=9yZDsep3IBA
कुछ ऐसा बन जाएगा-
https://www.youtube.com/watch?v=9yZDsep3IBA#t=86

real true सुनो असली सच्चाई dont ignore this must read

                     सुनो असली सच्चाई
महाकाल के महादूतों ने किया संसार का बेड़ागर्क,संसार को उल्टी -सीधी भक्ति मार्ग में
कर महाकाल के मुख में ही भेजा न कि जन्म मरण से मुक्त करा सदेव के लिए सतलोक
परमात्मा के पास I..{{ {ऋग्वेद मंडल 9सूक्त 96मन्त्र 17} क्यूंकि वेद गवाही देते हैं की
परमात्मा वो है जो अपने निज लोक से शिशु रूप धारण कर पृथ्वी पर किसी पवित्र
सरोवर में कमल के पुष्प पर विराजमान हो जाता है और निःसंतान दंपत्ति उसको उठा
कर ले जाते हैं , क्वारी गाये के दूध से उसकी पालन पोषण की लीला होती है और वो
अपना मूल ज्ञान कविताओं के द्वारा गा-गा
कर संसार को देता है और ये ज्ञान "कविर्गिर्भी" अर्थात कवीर वाणी के नाम से प्रसिद्द
होती है I वह सर्व आत्माओं का पिता अपने बच्चो के पापों का शत्रु है और काल के बन्धनों
का काटने वाला है अर्थात बंदी छोड़ है I उसका नाम "कविराग्नी" कबीर परमेश्वर है I
ऋग्वेद मंडल 9सूक्त 96मन्त्र 18 भी पड़िए कोन कहाँ है परमपिता परमात्मा पता चल जायेगा }}
अब आप खुद विचार कीजिये की महाकाल के महादूतों ने भोले भाले लोगों को ऐसे -ऐसों की
भक्ति में लगा दिया की वो वेदों की परिभाषा में ही नही आते ..इसलिए जीव जन्म मरन में पड़ा
रहता है ... वेदों की परिभाषा के अनुशार अब से 600 वर्ष पूर्व काशी में ""परमात्मा पिताजी
कबीर"" लहरतारा सरोवर में कमल के फूल पर उतरे थे और नीरू नीमा निः संतान दंपत्ति
को मिले थे, जुलाहा रूप में रहकर गा गा कर मूल ज्ञान दिया .... नानक देव जी काशी गये
परमात्मा कबीर परमेश्वर को देख बोले {श्री गुरुग्रंथ साहेब पृष्ठ 24, राग सीरीमहला 1}
 "तेरा एक नाम तारे संसार ,में एहा आस ऐहो आधार, नानक नीच कहे विचार ,धाणक रूप
रहा करतार """(2)-{श्री गुरुग्रंथ साहेब पृष्ठ 721, राग तिलंग महला 1} '''' यक अर्ज गुफ्तम पेश तो दर कून करतार,
 हक्का कबीर करीम तू ,वेअब पर्वरदीगार, नानक बुगोयद जन तुरा तेरे चाखरा पखाक I
परमात्मा को जुलाहे के रूप में देख नानक जी के मुख से कई वाणीयां निकली I धाणक मतलब जुलाहाI
;;;;;;;;;;;;;;;सर्वत्र महाकाल के महादूत परमात्मा के बच्चो  को भटका रहे है ,,भईयों हम आत्माओं का पिता
परमात्मा ने अपना अंश सतलोक आश्रम बरवाला में भेज दिया है ...मेरी सभी परमात्मा को चाहने वाले भक्तों से निवेदन है  की
सच्चा असली ज्ञान के लिए  व भक्ति विधि के लिए
जो परमात्मा की बताई हुई है को जानने के लिए  ''सतलोक आश्रम बरवाला जिला हिसार [हरयाणा ]को जाये I
मोब  0992600855,801,802,803 पर संपर्क करेI ''ज्ञान गंगा'' बुक फ्री मंगवाने के लिए मोब.न. पर पता SMS करें i
ध्यान रखे यही मौका है जब हम अपने निज घर सतलोक परमपिताजी परमात्मा के पास जा सकेंगे ..
हमेशा हमेशा के लिए जन्म मरण-काल की मायाजाल  से मुक्त हो कर क्यूंकि परमपिताजी  ने भेज दिया है
हम सब को लेने ""तत्त्व दर्शी जगतगुरु संत रामपाल जी महाराज को '''' सतलोक आश्रम बरवाला हरयाणा में '''
 for more detail visit here http://www.jagatgururampalji.org/

शिक्षा लीजिये इस घटना से ...

चाइना में एक बैंक में डकैती के दौरान डाकू ने चिल्लाया और कहा " कोई भी अपने जगह से न हिले " ये पैसा तो देश का है लेकिन तुम्हारी जिंदगी तुम्हारी है. ये सुनते ही बैंक में मौजूद सभी लोग चुप-चाप लेट गए, इसे कहते हैं "दिमाग बदलने वाली तरकीब"[ Mind Changing Concept ], जो सामान्य सोच और मानसिकता को बदल देती है!! जब एक भद्र महिला गुस्से से पास के टेबल पर लेटी तो डाकू उसपर चिल्लाया और बोला "कृपया सभ्य बने रहें, यहाँ डकैती हो रही है, अभद्र व्यव्हार नहीं!! इसे कहते हैं " प्रोफेशनल होना", उसी काम पर ध्यान दें जिसके लिए आपको प्रशिक्षित किया गया है!! डकैती के बाद जब डाकू घर आये तो छोटे डाकू ने बड़े डाकू से पैसे गिनने की बात कही! बड़े डाकू ने छोटे से कहा " बेवकूफी वाली बात मत करो " इतना सारा पैसा गिनने में बहुत समय लग जायेगा, रात में टी. वी. पर न्यूज़ में देख लेंगे। इसे कहते हैं " अनुभव ", आजकल अनुभव, किताबी ज्ञान और योग्यताओं से ज्यादा महत्वपूर्ण है!! उधर जैसे ही डाकू भागे, बैंक मेनेजर ने क्लर्क से पुलिस को बुलाने के लिए लिए कहा, लेकिन क्लर्क ने कहा "रुकिए जनाब " हमलोग भी बैंक से 10 लाख निकाल लेते हैं और और हमने जो पहले 70 लाख गबन किये थे उसे भी जोड़ लेते हैं. इसे कहते हैं "लहरों के साथ तैरना "[ Swim with the tide ] यानि प्रतिकूल परिस्थिति का अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करना!! क्लर्क ने कहा "ऐसी डकैती हर महीने हो तो बहुत अच्छा रहेगा "!! इसे कहते हैं "उब को मारना"[ Killing Boredom], क्यूंकि व्यक्तिगत ख़ुशी और संतुष्टि नौकरी से ज्यादा महत्वपूर्ण होती है!! अगले दिन जब टी. वी. में खबर आई की 1 करोड़ रुपये बैंक से चोरी हो गए तो डाकुओं ने चुराए हुए पैसे कई बार गिने लेकिन उन्हें सिर्फ 20 लाख मिले; डाकू बहुत गुस्से में आ गए और बोले की हमने अपना जीवन खतरे में डाला और हमें सिर्फ 20 लाख मिले, बैंक मेनेजर ने 80 लाख रुपये बड़ी आसानी से गबन कर लिए, ऐसा लगता है पढ़ा लिखा होना ही चोरी और डकैती करने से बेहतर है . इसे कहते हैं "ज्ञान सोने-चांदी से ज्यादा मूल्यवान होता है " !! उधर बैंक मेनेजर खुश हो रहा था और मुस्कुरा रहा था क्यूंकि शेयर मार्किट में गवाए गए उसके सारे पैसो की भरपाई हो जाएगी! इसे कहते हैं " मौके का फायदा उठाना"[ Seizing the opportunity] और जोखिम लेने का हिम्मत करना!! अब आप ही तय कीजिये असली डकैत कौन थे ??

पवित्र र्कुआन शरीफ में गुप्त रहस्य अनावरण

पवित्र र्कुआन शरीफ
पवित्र र्कुआन शरीफ में प्रभु सशरीर है तथा उसका नाम कबीर है का प्रमाण
Jagat Guru Rampal Ji
संत रामपाल जी महाराज
‘‘प्रभु आकार में मानव सदृश है, र्कुआन शरीफ में प्रमाण‘‘
“पवित्र कुरान शरीफ़ से सहाभार ज्यों का त्यों लेख”
सुरत-फुर्कानि नं. 25 आयत नं. 52 से 59
(इन आयत नं. 52 से 59 में विशेष प्रमाण है)
(कृप्या देखें पवित्र कुरान शरीफ से ज्यों का त्यों फोटो कापी लेख)
आयत 52:- फला तुतिअल् - काफिरन् व जहिद्हुम बिही जिहादन् कबीरा(कबीरन्)।52।
तो (ऐ पैग़म्बर !) तुम काफ़िरों का कहा न मानना और इस (र्क़ुआन की दलीलों) से उनका सामना बड़े जोर से करो। (52)
आयत नं. 52 का ऊपर अनुवाद किसी मुसलमान श्रद्धालु का किया हुआ है। तत्वज्ञान के अभाव से ग्रन्थ के वास्तविक अर्थ को प्रकट नहीं कर सका। वास्तव में इसका भावार्थ है कि हजरत मुहम्मद जी का खुदा (प्रभु) कह रहा है कि हे पैगम्बर ! आप काफिरों (जो एक प्रभु की भक्ति त्याग कर अन्य देवी-देवताओं तथा मूर्ति आदि की पूजा करते हैं) का कहा मत मानना, क्योंकि वे लोग कबीर को पूर्ण परमात्मा नहीं मानते। आप मेरे द्वारा दिए इस र्कुआन के ज्ञान के आधार पर अटल रहना कि कबीर ही पूर्ण प्रभु है तथा कबीर अल्लाह के लिए संघर्ष करना(लड़ना नहीं) अर्थात् अडिग रहना।
आयत 58:- व तवक्कल् अलल् हरिूल्लजी ला यमूतु व सब्बिह् बिहम्दिही व कफा बिही बिजुनूबि अिबादिही खबीरा(कबीरा)।58।
और (ऐ पैग़म्बर ! ) उस जिन्दा (चैतन्य) पर भरोसा रखो जो कभी मरनेवाला नहीं और तारीफ़ के साथ उसकी पाकी बयान करते रहो और अपने बन्दों के गुनाहों से वह काफ़ी ख़बरदार है (58)
आयत संख्या 58 का ऊपर अनुवाद किसी मुसलमान भक्त का किया हुआ है जो वास्तविकता प्रकट करने में असमर्थ रहा है। वास्तव में इस आयत संख्या 58 का भावार्थ है कि हजरत मुहम्मद जी जिसे अपना प्रभु मानते हैं वह कुरान ज्ञान दाता अल्लाह (प्रभु) किसी और पूर्ण प्रभु की तरफ संकेत कर रहा है कि ऐ पैगम्बर उस कबीर परमात्मा पर विश्वास रख जो तुझे जिंदा महात्मा के रूप में आकर मिला था। वह कभी मरने वाला नहीं है अर्थात् वास्तव में अविनाशी है। तारीफ के साथ उसकी पाकी(पवित्र महिमा) का गुणगान किए जा, वह कबीर अल्लाह(कविर्देव) पूजा के योग्य है तथा अपने उपासकों के सर्व पापों को विनाश करने वाला है।
आयत 59:- अल्ल्जी खलकस्समावाति वल्अर्ज व मा बैनहुमा फी सित्तति अय्यामिन् सुम्मस्तवा अलल्अर्शि अर्रह्मानु फस्अल् बिही खबीरन्(कबीरन्)।59।।
जिसने आसमानों और जमीन और जो कुछ उनके बीच में है (सबको) छः दिन में पैदा किया, फिर तख्त पर जा विराजा (वह अल्लाह बड़ा) रहमान है, तो उसकी खबर किसी बाखबर (इल्मवाले) से पूछ देखो। (59)
आयत संख्या 59 का ऊपर वाला अनुवाद किसी मुसलमान श्रद्धालु का किया हुआ है जो पवित्र शास्त्र र्कुआन शरीफ के वास्तविक भावार्थ से कोसों दूर है। इसका वास्तविक भावार्थ है कि हजरत मुहम्मद को र्कुआन शरीफ बोलने वाला प्रभु (अल्लाह) कह रहा है कि वह कबीर प्रभु वही है जिसने जमीन तथा आसमान के बीच में जो भी विद्यमान है सर्व सृष्टी की रचना छः दिन में की तथा सातवें दिन ऊपर अपने सत्यलोक में सिंहासन पर विराजमान हो(बैठ) गया।
उस पूर्ण परमात्मा की प्राप्ति कैसे होगी ? तथा वास्तविक ज्ञान तो किसी तत्वदर्शी संत(बाखबर) से पूछो, मैं (कुर्रान ज्ञान दाता) नहीं जानता।
दोनों पवित्र धर्मों(ईसाई तथा मुसलमान) के पवित्र शास्त्रों ने भी मिल-जुल कर प्रमाणित कर दिया कि सर्व सृष्टी रचनहार सर्व पाप विनाशक, सर्व शक्तिमान, अविनाशी परमात्मा मानव सदृश शरीर में आकार में है तथा सत्यलोक में रहता है। उसका नाम कबीर है, उसी को अल्लाहु अकबिरू भी कहते हैं।

क्या आप जानते है की वेद की आज्ञाओ के उलंघन का कितना भयंकर परिणाम हो सकता है ? आईये जानते हैं ...

क्या आप जानते है की वेद की आज्ञाओ के उलंघन का कितना भयंकर परिणाम हो सकता है ?
क्या आप जानते है भारत की दुर्गति के पीछे वेद की आज्ञाओ का उलंघन ही था ?
1.) पहली आज्ञा
अक्षैर्मा दिव्य: ( ऋ 10/34/13 )
अर्थात जुआ मत खेलो ।
इस आज्ञा का उलंघन हुआ । इस आज्ञा का उलंघन धर्म राज कहेजाने वाले युधिष्टर ने किया ।
परिणाम :- एक स्त्री का भरी सभा में अपमान । माहाभारत जैसा भयंकर युद्ध जिसमे करोड़ो सेना मारी गयी । लाखो योद्धा मारे गये । हजारो विद्वान मारे गये और आर्यावर्त पतन की ओर अग्रसर हुआ ।
2.) दूसरी आज्ञा
मा नो निद्रा ईशत मोत जल्पिः । ( ऋ 8/48/14)
अर्थात आलस्य प्रमाद और बकवास हम पर शासन न करे ।
लेकिन इस आज्ञा का भी उलंघन हुआ । महाभारत के कुछ समय बाद भारत के राजा आलस्य प्रमाद में डूब गये ।
परिणाम :- विदेशियों के आक्रमण ,
3.) तीसरी आज्ञा
सं गच्छध्वं सं वद्ध्वम । ( ऋ 10/191/2 )
अर्थात मिल कर चलो और मिलकर बोलो ।
वेद की इस आज्ञा का भी उलंघन हुआ । जब विदेशियों के आक्रमण हुए तो देश के राजा मिल कर नहीं चले । बल्कि कुछ ने आक्र्म्नकारियो का ही सहयोग किया ।
परिणाम :- लाखो लोगो का कत्ल , लाखो स्त्रियों के साथ दुराचार , अपार धन धान्य की लूटपाट , गुलामी ।
4.) चौथी आज्ञा
कृतं मे दक्षिणे हस्ते जयो में सव्य आहितः । ( अथर्व 7/50/8 )
अर्थात मेरे दाए हाथ में कर्म है और बाएं हाथ में विजय ।
वेद की इस आज्ञा का उलंघन हुआ । लोगो ने कर्म को छोड़ कर ग्रहों फलित ज्योतिष आदि पर आश्रय पाया ।
परिणाम : कर्म्हीनता , भाग्य के भरोसे रह आक्रान्ताओ को मुह तोड़ जवाब न देना
, धन धान्य का व्यय , मनोबल की कमी और मानसिक दरिद्रता ।
5.) पांचवी आज्ञा
उतिष्ठत सं नह्यध्वमुदारा: केतुभिः सह ।
सर्पा इतरजना रक्षांस्य मित्राननु धावत ।। ( अथर्व 11/10/1)
अर्थात हे वीर योद्धाओ ! आप अपने झंडे को लेकर उठ खड़े होवो और कमर कसकर तैयार हो जाओ । हे सर्प के समान क्रुद्ध रक्षाकारी विशिष्ट पुरुषो ! अपने शत्रुओ पर धावा बोल दो ।
वेद की इस आज्ञा का भी उलंघन हुआ जब लोगो के बिच बुद्ध ओर जैन मत के मिथ्या अहिंसावाद का प्रचार हुआ । लोग आक्र्म्नकरियो को मुह तोड़ जवाब देने की वजाय मिथ्य अहिंसावाद को मुख्य मानने लगे ।
परिणाम :- अशोक जैसा महान योद्धा का युद्ध न लड़ना । विदेशियों के द्वारा इसका फायदा उठा कर भारत पर आक्रमण ।
6.) छठी आज्ञा
मिथो विघ्राना उप यन्तु मृत्युम । ( अथर्व 6/32/3 )
अर्थात परस्पर लड़नेवाले मृत्यु का ग्रास बनते है और नष्ट भ्रष्ट हो जाते है ।
वेद की इस आज्ञा का उलंघन हुआ ।
परिणाम - भारत के योद्धा आपस में ही लड़ लड़ कर मर गये और विदेशियों ने इसका फायदा उठाया ।
7.) सातवी आज्ञा
न तस्य प्रतिमा अस्ति
अर्थात ईश्वर का कोई प्रतिमान नहीं है ।
लेकिन इस आज्ञा का उलंघन हुआ और परिणाम आपके समक्ष है ।
परिणाम :-
१.) इश्वर के सत्य स्वरूप को छोड़ कर भिन्न स्वरूप की उपासना ।
२.) करोड़ो रूपये मंदिर में व्यय करके दरिद्र होते है और उसमे प्रमाद होता है ।
३.) स्त्री पुरुषो का मन्दिर में मेला होने से व्यभिचार ,लड़ाई , बखेड़ा और रोगादि उत्पन्न होते है ।
४.)उसी को धर्म अर्थ काम और मुक्ति का साधन मानके पुरुषार्थ रहित होकर मनुष्य जन्म व्यर्थ गँवाते है ।
५.) नाना प्रकार की विरुद्ध स्वरूप , नाम , चरित्रयुक्त मूर्तियों के पुजारियो का एक मत नष्ट होके विरुद्ध मत में चल कर आपस में फुट बढ़ाके देश का नाश करते है ।
६.) उसी के भरोसे में शत्रु की पराजय और अपनी विजय मान के बैठे रहते है । उनकी पराजय होके राज्य स्वतन्त्रता और धन का सुख उनके शत्रुओ के अधीन हो जाता है ।
७.) परमेश्वर की उपासना के स्थान पर पथर की मूर्ति को पूजते है तो परमेश्वर उन दुष्ट बुद्धिवालो का सत्यनाश कर देता है ।
८.) भ्रमित होके मंदिर मंदिर देश देशान्तर में घूमते घूमते दुःख पाते धर्म , संसार और परमार्थ का नष्ट करते और चोर आदि से पीड़ित होते है ।
९.) दुष्ट पुजारियो को धन देते है । वे उस धन को वेश्या , मद्य , मांसाहार लड़ाई बखेड़ो में व्यय करते है जिससे दाता के सुख का मूल नष्ट होकर दुःख होता है 

क्या खाए कैसे खाए क्या ना खाए क्यों ना खाए

कुछ सूत्र जो याद रक्खे.....!
चाय के साथ कोई भी नमकीन चीज नहीं खानी चाहिए।दूध और नमक का संयोग सफ़ेद दाग या किसी भी स्किन डीजीज को जन्म दे सकता है, बाल असमय सफ़ेद होना या बाल झड़ना भी स्किन डीजीज ही है।
सर्व प्रथम यह जान लीजिये कि कोई भी आयुर्वेदिक दवा खाली पेट खाई जाती है और दवा खाने से आधे घंटे के अंदर कुछ खाना अति आवश्यक होता है, नहीं तो दवा की गरमी आपको बेचैन कर देगी।
दूध या दूध की बनी किसी भी चीज के साथ दही ,नमक, इमली, खरबूजा,बेल, नारियल, मूली, तोरई,तिल ,तेल, कुल्थी, सत्तू, खटाई, नहीं खानी चाहिए।
दही के साथ खरबूजा, पनीर, दूध और खीर नहीं खानी चाहिए।
गर्म जल के साथ शहद कभी नही लेना चाहिए।
ठंडे जल के साथ घी, तेल, खरबूज, अमरूद, ककड़ी, खीरा, जामुन ,मूंगफली कभी नहीं।
शहद के साथ मूली , अंगूर, गरम खाद्य या गर्म जल कभी नहीं।
खीर के साथ सत्तू, शराब, खटाई, खिचड़ी ,कटहल कभी नहीं।
घी के साथ बराबर मात्र1 में शहद भूल कर भी नहीं खाना चाहिए ये तुरंत जहर का काम करेगा।
तरबूज के साथ पुदीना या ठंडा पानी कभी नहीं।
चावल के साथ सिरका कभी नहीं।
चाय के साथ ककड़ी खीरा भी कभी मत खाएं।
खरबूज के साथ दूध, दही, लहसून और मूली कभी नहीं।
कुछ चीजों को एक साथ खाना अमृत का काम करता है जैसे-
खरबूजे के साथ चीनी
इमली के साथ गुड
गाजर और मेथी का साग
बथुआ और दही का रायता
मकई के साथ मट्ठा
अमरुद के साथ सौंफ
तरबूज के साथ गुड
मूली और मूली के पत्ते
अनाज या दाल के साथ दूध या दही
आम के साथ गाय का दूध
चावल के साथ दही
खजूर के साथ दूध
चावल के साथ नारियल की गिरी
केले के साथ इलायची
कभी कभी कुछ चीजें बहुत पसंद होने के कारण हम ज्यादा बहुत ज्यादा खा लेते हैं।
ऎसी चीजो के बारे में बताते हैं जो अगर आपने ज्यादा खा ली हैं तो कैसे पचाई जाएँ ----
केले की अधिकता में दो छोटी इलायची
आम पचाने के लिए आधा चम्म्च सोंठ का चूर्ण और गुड
जामुन ज्यादा खा लिया तो ३-४ चुटकी नमक
सेब ज्यादा हो जाए तो दालचीनी का चूर्ण एक ग्राम
खरबूज के लिए आधा कप चीनी का शरबत
तरबूज के लिए सिर्फ एक लौंग
अमरूद के लिए सौंफ
नींबू के लिए नमक
बेर के लिए सिरका
गन्ना ज्यादा चूस लिया हो तो ३-४ बेर खा लीजिये
चावल ज्यादा खा लिया है तो आधा चम्म्च अजवाइन पानी से निगल लीजिये
बैगन के लिए सरसो का तेल एक चम्म्च
मूली ज्यादा खा ली हो तो एक चम्म्च काला तिल चबा लीजिये
बेसन ज्यादा खाया हो तो मूली के पत्ते चबाएं
खाना ज्यादा खा लिया है तो थोड़ी दही खाइये
मटर ज्यादा खाई हो तो अदरक चबाएं
इमली या उड़द की दाल या मूंगफली या शकरकंद या जिमीकंद ज्यादा खा लीजिये तो फिर गुड खाइये
मुंग या चने की दाल ज्यादा खाये हों तो एक चम्म्च सिरका पी लीजिये
मकई ज्यादा खा गये हो तो मट्ठा पीजिये
घी या खीर ज्यादा खा गये हों तो काली मिर्च चबाएं
खुरमानी ज्यादा हो जाए तोठंडा पानी पीयें
पूरी कचौड़ी ज्यादा हो जाए तो गर्म पानी पीजिये
अगर सम्भव हो तो भोजन के साथ दो नींबू का रस आपको जरूर ले लेना चाहिए या पानी में मिला कर पीजिये या भोजन में निचोड़ लीजिये ,८०% बीमारियों से बचे रहेंगे