शनिवार, 21 मई 2016

उस सच्चे संत को खोज लो जो सच्ची सच्ची बात बतावे - निरंकारी बाबा हरदेव जी

पूर्ण सच्चे संत की पहचान जो सच्ची सच्ची बात बतावे 


पूर्ण सन्त की पहचान व उसके लक्षण हमारे सद्ग्रन्थों में लिखे हुए है जी...पूर्ण सन्त की पहचान के लिए आप सभी सन्तों के ज्ञान का अध्ययन करिये..क्योंकि ज्ञान से ही सन्त की पहचान होगी। जो सन्त शास्त्रानुकूल ज्ञान देता है वह पूर्ण ज्ञानी सन्त होगा और जो सन्त शास्त्रों के विपरीत ज्ञान बताता है अर्थात् सिलेबस(शास्त्रों) के बाहर जाकर ज्ञान देता है वह नकली और अज्ञानी है।
आपजी सभी धर्मगुरुओं की किताबों का तुलनात्मक अध्ययन करिये। उनके प्रवचन सुन कर खुद समझिये कि इन धर्म गुरूओं द्वारा कही जा रही बातो का उल्लेख किसी धर्म शाश्त्र में है या कि नहीं है। जहा पर इन धर्म गुरूओ का ज्ञान समझ मे ना आये तब इनसे प्रश्न करिये और बार बार प्रश्न करिये। इस तरह सच्चाई का पता अपने आप चल जायेगा।
कबीर भेष देख मत भूलिये, बूझ लीजिये ज्ञान।
बिना कसौटी होत नहीं, कंचन की पहिचान।।
विश्व मे तत्वदर्शी सन्त रामपाल जी महाराज ही ऐसे सन्त है जो हमारे सदग्रन्थो में से प्रमाण सहित ज्ञान को निकाल निकाल कर समझाते है.. पर दुर्भाग्य की बात है कि उनको षड्यंत्र के तहत जेल मे डाला गया है। आप अगर सदग्रन्थों का निष्कर्ष समझना चाहते है तो आप तत्वदर्शी सन्त रामपाल जी महाराज के अमृत वचनो को 'साधना टीवी पर शाम 7 बजकर 40 से 8 बजकर 40 मिनट' तक सुने, साथ में कापी कलम लेकर बैठे। वह जो भी प्रमाण जिस दिन भी दिखाये उन प्रमाणो को नोट करे। तत्पश्चात उन प्रमाणो का मिलान अपने ग्रन्थो से करे। इस तरह शास्त्रों में स्थित ज्ञान को आसानी से समझ सकते है। जहा पर समझ मे ना आते हो तब सन्त रामपाल जी महाराज के अनुयायियों से अपनी जिज्ञासा का समाधान जरूर करे जी।
ज्ञान गंगा को पढे..यदि आपके ज्ञान समझ मे आये तब आप जरूर उपदेश ले। पूरे विश्व मे सन्त रामपाल जी महाराज ही ऐसे सन्त है जो हमेशा ही प्रत्येक बात का जबाव विस्तार से देते है व जिज्ञासुओ की प्रत्येक शंका का समाधान करते है।
आज लाखों करोडो की संख्या में दूसरे सभी पंथो व संतो से लोग जुडे हुए है। कारण यह है कि अभी जनता को सन्त रामपाल जी महाराज और उनके तत्वज्ञान के बारे में पूर्ण जानकारी नहीं है इस कारण वह अपने-अपने गुरुओं को ही पूर्ण सन्त मानकर पूज रहे है...और ऐसा आध्यात्मिक नियम भी है कि गुरु बनाने के बाद अपने गुरु में पूर्ण विश्वास रखे...इसी बात का सभी नकली सन्त महन्त धर्मगुरु फायदे उठाते है। जिस प्रकार शेर और गधे की पहचान उनकी बोली से होती है उसी प्रकार पूर्ण सन्त की पहचान उसकी बोली से अर्थात् उसके ज्ञान से होगी।
जब तक किसी व्यक्ति के पास पिछली सत साधना के फलस्वरूप पुण्य कर्म होते है तो वह वर्तमान में सत साधना ना करने पर भी पिछले पुण्यों का भोग भोगता है और वह सोचता है कि यह लाभ मुझे अपने गुरु द्वारा बतायी हुई साधना से मिला है लेकिन जब पिछले साधना वाले पुण्य समाप्त हो जाते है और पाप कर्म उदय होते है तब आपत्तियाँ आनी शुरु होती है तब उनके गुरु द्वारा बताई भक्ति से कोई बचाव नहीं हो पाता है...क्योंकि पापकर्म काटने वाली भक्ति(सतनाम व सारनाम) सिर्फ पूर्ण सन्त ही बता सकता है...अन्य सन्तों के पास यह विधि नहीं होती। पूर्ण सन्त ही अपने शिष्यों के पापकर्म काटकर उनके प्रारब्ध में आने वाले दुखो को दूर करता है और सुख व पूर्ण मोक्ष देता है। इसलिए पूर्ण सन्त की पहचान कर नाम उपदेश लेकर अपना कल्याण करवाओ।
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सनातन धर्मियों सुनो कैसा है हमारा शाश्वत स्थान लोक अमरलोक कविराग्निः की कविर्गिर्भी में अर्थात अमरलोक कबीर परमेश्वर की वाणी मे

सनातन धर्मियों सुनो कैसा है हमारा शाश्वत स्थान लोक अमरलोक कविराग्निः की कविर्गिर्भी में अर्थात अमरलोक कबीर परमेश्वर की वाणी मे

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चल देखो देश हमारा रे, जहाँ कोटि पदम उजियारा रे, 🏃
🏃 देखो देश हमारा रे,जहाँ उजल भँवर गुंजारा रे, 🏃
चल देखो देश हमारा रे, जहाँ चवंर सुहगंम डारा रे, 🏃
चल देखो देश हमारा रे, जहाँ चन्द्र सूरज नहीं तारा रे, 🏃
चल देखो देश हमारा रे, नहीं धर अम्बर कैनारा रे,🌎 🏃
चल देखो देश हमारा रे, जहाँ अनन्त फूल गुलजारा रे, 🏃
चल देखो देश हमारा रे, जहाँ भाटी चवै कलारा रे, 🏃
चल देखो देश हमारा रे, जहाँ धूमत है मतवारा रे,🚁 
रे मन कीजै दारमदारा रे तुझे ले छोडूं दरबारा रे,
फिर वापिस ना ही आवे रे सतगुरु सब नाँच मिटावै रे, 🏃
चल अजब नगर विश्रामा रे, तुम छोड़ो देना बाना रे, 🏃
चल देखो देश अमानी रे, जहाँ कुछ पावक ना पानीरे,🚣 🏃
चल देखो देश अमानी रे, जहाँ झलकै बारा बानी रे, 🏃
चल अक्षर धाम चलाऊं रे, मैं अवगत पंथ लखाऊं रे,
कर मकरतार पियाना रे, क्यों शब्दै शब्द समाना रे,🌞 🌳
जहाँ झिलझिल दरिया नागर रे, जहाँ हंस रहे सुखसागर रे, जहाँ अनहद नाद बजन्ता रे, जहाँ कुछ आदि नहीं अन्ता रे,💥 🌿जहाँ अजब हिरम्बर हीरा रे,त जहाँ हंस रहे सुख तीरा रे, 🌲जहाँ अजब हिरम्बर हीरा रे, जहाँ यम दण्ड नहीं दुख पीडा रे ..आदरणीय गरीब दासजी महाराज परमेश्वर कबीर साहिब जी को सतलोक में आँखों देख कर बता रहे हैं 
🏃चल देखो देश अमानी रे मैं तो सतगुरु पर कुर्बानी रे, 🏃चल देखो देश बिलन्दा रे, जहाँ बसे कबीरा जिन्दा रे,🌳 🏃चल देखो देश अगाहा रे, जहाँ बसे कबीर जुलाहा रे🏤 🏃चल देखो देश अमोली रे, जहाँ बसे कबीरा कोली रे 🏃
चल देखो देश अमाना रे, जहाँ बुने कबीरा ताना रे,🏇 🏃
चल अवगत नगर निबासा रे, जहाँ नहीं मन माया का बासा रे 🏃चल देखो देश अगाहा रे, जह बसै कबीर जुलाहा रे.. .
हे मालिक आपके चरणों में कोटि कोटि दण्डवत् प्रमाण, ऐसा निर्मल ग्यान देने के लिए...
ऐसा निर्मल ग्यान है जो निर्मल करे शरीर,
और ग्यान मण्डलीक कहै ये चकवै ग्यान कबीर। 
और ग्यान सब ग्यानडी कबीर ग्यान सो ग्यान,
जैसे गोला तोब का अब करता चलै मैदान।
और संत सब कूप है, केते झरिया नीर,
दादू अगम अपार है ये दरिया सत् कबीर
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अवश्य पढे - पर्भु प्रेमी आत्माऐ परदेश (काललोक) से स्वदेश (अमरलोक) लौटने की सडक (विधि)

अवश्य पढे = पर्भु प्रेमी आत्माऐ
परदेश (काललोक) से स्वदेश (अमरलोक) लौटने की सडक (विधि)

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घीसादास जी कहते है मूल कमल से सीधी सडक जात है सतनाम(ओम + तत) ले जा उडा कर...
जैसे हमे अपने घर से दूसरे देश जाना हो तो पहले बस या कार से by सडक airport जायेगे उसके बाद हम बस कार से नही जा सकते फिर हमे airport से हवाई जहाज से उडकर जाना पडेगा..
ठीक इसी तरह मूल कमल से त्रिकुटी तक सीधी सडक जाती है गुरू जी का प्रथम मंत्र समझो बस कार जो हमे त्रिकुटी तक लेकर जायेगा.. त्रिकुटी हवाई अडडा समझो.. त्रिकुटी से आगे हमे सतनाम का मंत्र उडाकर लेकर जायेगा.. सतनाम के दो अक्षर को हवाई जहाज समझो.. ( नाम की नौका ही भवसागर से पार करती है)
विशेष जानकारी->
नोट - हमारा शरीर एक ब्रह्मांड का नक्शा है जो कुछ एक ब्रह्मांड मे है वो हम शरीर मे भी देख सकते है जैसे internet पर आप कुछ भी देख सकते हो इसी तरह परमात्मा की पावर से हम ब्रह्मांड को इस शरीर मे देख सकते है संत कमल बोलते है योगी चक्र बोलते है ये कमल चक्र इन देवताओ के आवास स्थल है जहा ये रहते है ये ब्रह्मांड मे ही है ये समझ लो हमारा शरीर मिनी ब्रह्मांड है ये देवता कमल के अन्दर हमारे शरीर मे भी विधमान है..
विस्तार से - संत रामपाल जी महाराज के तीन बार मे नामदान देते है प्रथम नाम , दूसरा नाम, तीसरा नाम (सारनाम)... अब जानिये तीनो मंत्रो का महत्व
प्रथम नाम का महत्व======
ये ब्रह्मांड सात कमलो(चक्रो) मे बांटा हुआ है और हर कमल मे एक एक देवी देवता को प्रधान बना रखा है..
मूल कमल --------
मूल कमल से सीधी सडक त्रिकुटी तक जाती है.. जब साधक की भक्ति पूरी हो जाती है तो कबीर परमेश्वर एक विमान लेकर गुरू रूप मे आते है..
(नोट - हमारी आत्मा पर पांच शरीर चढे हुए है स्थूल, सूक्ष्म ,कारण, महाकारण, कैवल्य शरीर..)
हम 5 तत्व के स्थूल शरीर को छोडकर सूक्षम शरीर मे आ जाते है तब हमारा विमान पहले मूल कमल से गुजरता है वहा गणेश जी विधमान है हम गंणेश के मंत्र की कमाई उनको देकर उनके कर्ज से मुक्त हो जायेगे..
फिर गंणेश जी हमे आगे जाने की अनुमति देगे...
स्वाद कमल------
फिर हम स्वाद कमल मे प्रवेश कर जायेगे यहा के प्रधान ब्रह्मा और सवित्री है.. हम ब्रह्मा सवित्री के मंत्र की कमाई इनको देकर कर्ज चुका देगे.. क्योकि ब्रह्मा हमारी उत्पति कर्ता है.. इसके बाद ब्रह्मा जी हमे आगे जाने की अनुमति हमे देगे..
नाभी कमल------
फिर हम नाभी कमल मे प्रवेश कर जायेगे नाभी कमल मे विष्णु लक्ष्मी प्रधान है हम इनके मंत्र की कमाई इनको देकर कर्ज चुका देगे.. क्योकि विष्णु पालन पोषण कर्ता है. फिर विष्णु जी हमारे विमान को आगे जाने की अनुमति देगे..
हदय कमल-----
फिर हम हदय कमल मे प्रवेश कर जायेगे. यहा के प्रधान शिव पार्वती है इनके मंत्र की कमाई इनको देकर इनका कर्ज चुका देगे.. क्योकि शिव संहार करते है.. फिर शिव हमारे विमान को आगे जाने की अनुमति द्गे.
कंठ कमल-----
फिर हम कंठ कमल मे प्रवेश कर जायेगे.. यहा की प्रधान दुर्गा माता है हम दुर्गा माता के मंत्र की कमाई दुर्गा माता को देकर इसका कर्ज चुका देगे.. फिर दुर्गा माता हमे आगे जाने की अनुमति देगी..
त्रिकुटी कमल-----
फिर हम त्रिकुटी कमल दसवे द्वार मे प्रवेश कर जायेगे... दसवे द्वार मे आगे चलकर त्रिवेणी आती है.. तीन रास्ते हो जाते है.. ये हवाई अडडा समझो प्रथम मंत्र हमे यहा तक लाकर छोड देते है. इससे आगे सतनाम के दो अक्षर उडाकर लेकर जाते है..
दूसरा नाम( सतनाम) का महत्व
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त्रिकुटी मे आगे चलकर तीन रास्ते हो जाते है जिसे त्रिवेणी बोलते है.. वहा काल के पुजारी दायं बाय चले जाते है.. लेकिन सामने जो रास्ता होता है उसको ब्रह्मरंद( बज्रकपाट) बोलते है.. वह अमरलोक जाने का रास्ता है.. कबीर परमात्मा कहते है शिव ने भी 97 बार try किया था.. लेकिन वो भी इस गेट को नही खोल पाये थे.. वो भी उल्टे हट गये थे क्योकि शिव के पास सतनाम मंत्र नही है..
गरीब- ब्रह्मरंद को खोलत है कोई एक
द्वारे से फिर जात है ऐसे बहुत अनेक
इस ब्रह्मरंद के बज्रकपाट को सतनाम के दो अक्षर खोलते है तब हम दसवे द्वार मे आगे सहंसार कमल मे प्रवेश करते है.. (यहा से ब्रह्मा विष्णु शिव के पिता काल की सीमा शुरू होती है.. जहा पर काल अपने भयानक वास्तविक रूप मे बैठा है) आगे बहुत भयानक आवाजे आती है डाकनी शाकनी बहुत सारी मिलती है.. सतनाम के मंत्र को सुनकर सब भाग जाते है.. (सतनाम मे इतनी पावर है अगर 12 करोड यम के दूत और साथ मे ब्रह्मा विष्णु शिव का पिता काल ये सभी एक साथ आ जाये मात्र एक जाप सबको उठाकर फैक देगा) आगे चलकर काल अपने वास्तविक रूप मे बैठा नजर आता है लेकिन गुरू रूप मे परमात्मा साथ होते है.. तब हमे तीनो मंत्रो का जाप एक साथ करना होता है..
तीसरे नाम (सारनाम) का महत्व
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(सतनाम के बाद जब हम तीसरा सारनाम गुरू जी से लेते है तो गुरू जी सतनाम के दो अक्षर मे ही सारनाम का एक अक्षर एड कर देते है ऐसे ब्रह्म परब्रह्म पूर्णब्रह्म तीनो का जाप एक साथ करना होता है.. जाप विधि गुरू जी बताते है गीता अध्याय 17 के 23 मे लिखा है ओम- तत- सत ये पूर्ण परमात्मा का मंत्र(नाम) कहा है ओम सीधा ही है तत सत कोड वर्ड है सतगुरू रामपाल जी महाराज बतायेगे.. फिर इन तीनो मंत्र का एक साथ जाप करना होता है सतनाम और सारनाम एक नाम बन जाता है)
जब हम दसवे द्वार के last मे जाते है तो वहा काल वास्तविक रूप मे बैठा है.. वहा हम जब इन तीनो मंत्रो (सतनाम और सारनाम)का जाप एक साथ करते है तो काल निरंजन सर झुका देता है गीता 8/13 श्लोक मे ओम मंत्र काल ब्रह्म का है इसकी कमाई काल अपने पास रख लेता है और हमे आगे आठवे कमल ग्यारहवे द्वार मे जाने की अनुमति दे देता है. इसके सर के पीछे ग्यारहवा द्वार है. जब काल सर झुकाता है तो हम इसके सर पर पैर रख कर ग्यारहवे द्वार परब्रह्म के लोक आठवे कमल मे प्रवेश कर जाते है वहा हमारा सूक्ष्म शरीर छुट जाता है हमारे पास तत और सत मंत्र की कमाई शेष रह जाती है जब हम परब्रह्म(अक्षरपुरूष) के लोक मे आगे बढते जाते है हमारी तत मंत्र की कमाई परब्रह्म रख लेता है क्योकि तत मंत्र परब्रह्म का है और हमे आगे जाने की अनुमति दे देता है. हमारे कारण महाकारण शरीर छुट जाते है केवल कैवल्य शरीर शेष रह जाता है (नौवे कमल मे बारहरवा द्वार पार करके अमरलोक है) ग्यारहवा द्वार के last मे भव्वर गुफा आती है वहा पर मानसरोवर बना है वहा से अमरलोक दिखाई देने लगता है वहा परमात्मा इस आत्मा को मानसरोवर मे स्नान करवाते है तब इस आत्मा का कैवल्य शरीर छुट जाता है और वास्तविक नूरी रूप बन जाता है तब वहा इस आत्मा के शरीर का प्रकाश सोलह सुरज और चंद्रमा जितना हो जाता है.. फिर सत मतलब सारनाम मंत्र की कमाई लेकर ये आत्मा सतलोक मतलब अमरलोक मे प्रवेश कर जाती है.. वहा सदा के लिए स्थाई हो जाती है.. मौज मनाती है नाचती गाती है परमात्मा कबीर साहेब के रोज दर्शन करती है.. इस तरह से ये आत्मा काल के जाल से निकलकर अपने घर अपने वतन अमरलोक लौट आती है.. फिर कभी काल के लोक मे वापिस नही आती.. सदा के लिए अमर और स्थाई हो जाती है.. सदा के लिए जन्म मरन से पीछा छुट जाता है.. फोटो मे लिखी कबीर सागर की अमरलोक की कबीर वाणी पढिये.. वहा जन्म मरण बुढापा नही होता सदा युवा रहती है आत्मा.. अमरलोक मे भी नर नारी है परिवार है. लेकिन शब्द शक्ति से बच्चे पैदा होते है गर्भ से नही होते.. वहा कोई कर्म नही करना पडता.. अमरलोक मे बाग बगीचे है फल फूल नदी मानसरोवर है लेकिन सब कुछ नूरी है हिरे की तरह स्वय प्रकासित.. वहा सभी प्रेम से रहते है.. कोई किसी को जरा भी बुरा नही बोलता..
सत साहेब जैसा इस दास ने गुरू जी के ज्ञान को समझा वैसा बता दिया कोई गलती हो तो गुरू जी क्षमा करना.. अज्ञानी जीव हु..
अमरलोक कबीर परमेश्वर की वाणी मे
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चल देखो देश हमारा रे, जहाँ कोटि पदम उजियारा रे, 🏃
🏃 देखो देश हमारा रे,जहाँ उजल भँवर गुंजारा रे, 🏃
चल देखो देश हमारा रे, जहाँ चवंर सुहगंम डारा रे, 🏃
चल देखो देश हमारा रे, जहाँ चन्द्र सूरज नहीं तारा रे, 🏃
चल देखो देश हमारा रे, नहीं धर अम्बर कैनारा रे,🌎 🏃
चल देखो देश हमारा रे, जहाँ अनन्त फूल गुलजारा रे, 🏃
चल देखो देश हमारा रे, जहाँ भाटी चवै कलारा रे, 🏃
चल देखो देश हमारा रे, जहाँ धूमत है मतवारा रे,🚁
रे मन कीजै दारमदारा रे तुझे ले छोडूं दरबारा रे,
फिर वापिस ना ही आवे रे सतगुरु सब नाँच मिटावै रे, 🏃
चल अजब नगर विश्रामा रे, तुम छोड़ो देना बाना रे, 🏃
चल देखो देश अमानी रे, जहाँ कुछ पावक ना पानीरे,🚣 🏃
चल देखो देश अमानी रे, जहाँ झलकै बारा बानी रे, 🏃
चल अक्षर धाम चलाऊं रे, मैं अवगत पंथ लखाऊं रे,
कर मकरतार पियाना रे, क्यों शब्दै शब्द समाना रे,🌞 🌳
जहाँ झिलझिल दरिया नागर रे, जहाँ हंस रहे सुखसागर रे, जहाँ अनहद नाद बजन्ता रे, जहाँ कुछ आदि नहीं अन्ता रे,💥 🌿जहाँ अजब हिरम्बर हीरा रे,त जहाँ हंस रहे सुख तीरा रे, 🌲जहाँ अजब हिरम्बर हीरा रे, जहाँ यम दण्ड नहीं दुख पीडा रे ..आदरणीय गरीब दासजी महाराज परमेश्वर कबीर साहिब जी को सतलोक में आँखों देख कर बता रहे हैं
🏃चल देखो देश अमानी रे मैं तो सतगुरु पर कुर्बानी रे, 🏃चल देखो देश बिलन्दा रे, जहाँ बसे कबीरा जिन्दा रे,🌳 🏃चल देखो देश अगाहा रे, जहाँ बसे कबीर जुलाहा रे🏤 🏃चल देखो देश अमोली रे, जहाँ बसे कबीरा कोली रे 🏃
चल देखो देश अमाना रे, जहाँ बुने कबीरा ताना रे,🏇 🏃
चल अवगत नगर निबासा रे, जहाँ नहीं मन माया का बासा रे 🏃चल देखो देश अगाहा रे, जह बसै कबीर जुलाहा रे.. .
हे मालिक आपके चरणों में कोटि कोटि दण्डवत् प्रमाण, ऐसा निर्मल ग्यान देने के लिए...
ऐसा निर्मल ग्यान है जो निर्मल करे शरीर,
और ग्यान मण्डलीक कहै ये चकवै ग्यान कबीर।
और ग्यान सब ग्यानडी कबीर ग्यान सो ग्यान,
जैसे गोला तोब का अब करता चलै मैदान।
और संत सब कूप है, केते झरिया नीर,
दादू अगम अपार है ये दरिया सत् कबीर
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हम कब सुधरेंगे जी

हम कब सुधरेंगे जी



ये अन्धविश्वास,पाखंड,ढोंग नही तो और क्या है ?
गर्भ धारण व शिशु पैदा होने का कोई मूहुर्त नही....

मृत्यु का कोई मुहूर्त नही ., क्योंकि ये बातें प्राकृतिक है।
विद्यालय मे प्रवेश ,परीक्षा मे प्रवेश , नौकरी हेतु इंटरव्यू, नौकरी की ज्वाइनिंग ,वेतन पाने इत्यादि का कोई मुहूर्त नही , पहले से तिथि निर्धारित होती है . और अंधभक्त इसके लिए मुहूर्त ढूंढते भी नहीं ...
फिर नामकरण ,शादी ,मकान हेतु भूमि पूजन ,गृह प्रवेश , मृत्यु भोज (terahi) इत्यादि कर्म कान्ड मे मुहूर्त कैसे घुस गया ???
जाहिर है धूर्त , बेइमान लोगो ने अपने निहित स्वार्थ हेतु समाज को गुमराह किया व उनके दिमाग को खराब किया
"मुहूर्त "एक कूटरचित शब्द है ,इस को रचने वालो पोगे पंथियो का बहिष्कार होना चाहिए जी । और इन दकियानुषि कुरीतियों का विरोध । निचे लिखे लिंक पर क्लिक करो जी और अपने मित्रों को इस ग्रुप में एड करो जी भगत और जगत सभी को करो जीwww.facebook.com/groups/arya.nareshdas/ परमेश्वर के आने से पहले "फॉलोवर ऑफ़ जगतगुरु रामपाल जी " ग्रुप में लाखों फॉलोवर होने चाहिए जी ।अभी तक मात्र 32000 हैं जी इसलिए अधिक से अधिक एड करें जी ताकि निर्मल और श्रेष्ट समाज के मिशन में आपकी भी आहुति डले और आप भी पूण्य के भागी हों जी 🙏जयबन्दीछोड़की🙏

गुरुनानक देव जी का सन्देश 1

गुरुनानक देव जी का सन्देश 

गुरु ग्रन्थ साहिब के राग ‘‘सिरी‘‘ महला 1 पृष्ठ नं. 24 पर शब्द नं. 29शब्द -
एक सुआन दुई सुआनी नाल, भलके भौंकही सदा बिआल
कुड़ छुरा मुठा मुरदार, धाणक रूप रहा करतार।।1।।
मै पति की पंदि न करनी की कार। उह बिगड़ै रूप रहा बिकराल।।
तेरा एक नाम तारे संसार, मैं ऐहो आस एहो आधार।
मुख निंदा आखा दिन रात, पर घर जोही नीच मनाति।।
काम क्रोध तन वसह चंडाल, धाणक रूप रहा करतार।।2।।
फाही सुरत मलूकी वेस, उह ठगवाड़ा ठगी देस।।
खरा सिआणां बहुता भार, धाणक रूप रहा करतार।।3।।
मैं कीता न जाता हरामखोर, उह किआ मुह देसा दुष्ट चोर।
नानक नीच कह बिचार, धाणक रूप रहा करतार।।4।।
इसमें स्पष्ट लिखा है कि एक(मन रूपी) कुत्ता तथा इसके साथ दो (आशा-तृष्णा रूपी) कुतिया अनावश्यक भौंकती(उमंग उठती) रहती हैं तथा सदा नई-नई आशाएँ उत्पन्न(ब्याती हैं) होती हैं। इनको मारने का तरीका(जो सत्यनाम तथा तत्व ज्ञानबिना) झुठा(कुड़) साधन(मुठ मुरदार) था। मुझे धाणक के रूप में हक्का कबीर (सत कबीर) परमात्मा मिला। उन्होनें मुझे वास्तविक उपासना बताई।नानक जी ने कहा कि उस परमेश्वर(कबीर साहेब) की साधना बिना न तो पति(साख) रहनी थी और न ही कोई अच्छी करनी(भक्ति की कमाई) बन रही थी। जिससे काल का भयंकर रूप जो अब महसूस हुआ है उससे केवल कबीर साहेब तेरा एक(सत्यनाम) नाम पूर्ण संसार कोपार(काल लोक से निकाल सकता है) कर सकता है। मुझे(नानक जी कहते हैं) भी एही एक तेरे नाम की आश है व यही नाम मेरा आधार है। पहले अनजाने में बहुत निंदा भी की होगी क्योंकि काम क्रोध इस तन में चंडाल रहते हैं।मुझे धाणक(जुलाहे का कार्य करने वाले कबीर साहेब) रूपी भगवान ने आकर सतमार्ग बताया तथा काल से छुटवाया। जिसकी सुरति(स्वरूप) बहुत प्यारी है मन को फंसाने वाली अर्थात् मन मोहिनी है तथा सुन्दर वेश-भूषा में(जिन्दा रूप में) मुझे मिलेउसको कोई नहीं पहचान सकता। जिसने काल को भी ठग लिया अर्थात् दिखाई देता है धाणक(जुलाहा) फिर बन गया जिन्दा। काल भगवान भी भ्रम में पड़ गया भगवान(पूर्णब्रह्म) नहीं हो सकता। इसी प्रकार परमेश्वर कबीर साहेब अपना वास्तविक अस्तित्व छुपा कर एक सेवक बन कर आते हैं। काल या आम व्यक्ति पहचान नहीं सकता। इसलिए नानक जी ने उसे प्यार में ठगवाड़ा कहा है और साथ में कहा है किवह धाणक(जुलाहा कबीर) बहुत समझदार है। दिखाई देता है कुछ परन्तु है बहुत महिमा(बहुता भार) वाला जो धाणक जुलाहा रूप मंे स्वयं परमात्मा पूर्ण ब्रह्म(सतपुरुष) आया है। प्रत्येक जीव को आधीनी समझाने के लिए अपनी भूल को स्वीकार करते हुए कि मैंने(नानक जी ने) पूर्णब्रह्म के साथ बहस(वाद-विवाद) की तथा उन्होनें (कबीर साहेब ने) अपने आपको भी (एक लीला करके) सेवक रूप में दर्शनदे कर तथा(नानक जी को) मुझको स्वामी नाम से सम्बोधित किया। इसलिए उनकी महानता तथा अपनी नादानी का पश्चाताप करते हुए श्री नानक जी ने कहा कि मैं(नानक जी) कुछ करने कराने योग्य नहीं था। फिर भी अपनी साधना को उत्तम मान कर भगवान से सम्मुख हुआ(ज्ञान संवाद किया)। मेरे जैसा नीच दुष्ट, हरामखोर कौन हो सकता है जोअपने मालिक पूर्ण परमात्मा धाणक रूप(जुलाहा रूप में आए करतार कबीर साहेब) को नहीं पहचान पाया? श्री नानक जी कहते हैं कि यह सब मैं पूर्ण सोच समझ से कह रहाहूँ कि परमात्मा यही धाणक (जुलाहा कबीर) रूप में है।
भावार्थ:- श्री नानक साहेब जी कह रहे हैं कि यह फासने वाली अर्थात् मनमोहिनी शक्ल सूरत में तथा जिस देश में जाता है वैसा ही वेश बना लेता है, जैसे जिंदा महात्मा रूप में बेई नदी पर मिले, सतलोक में पूर्ण परमात्मा वाले वेश में तथा यहाँ उतर प्रदेश में धाणक(जुलाहे) रूप में स्वयं करतार (पूर्ण प्रभु) विराजमानहै। आपसी वार्ता के दौरान हुई नोक-झोंक को याद करके क्षमा याचना करते हुए अधिक भाव से कह रहे हैं कि मैं अ byपने सत्भाव से कह रहा हूँ कि यही धाणक(जुलाहे) रूप में सत्पुरुष अर्थात् अकाल मूर्त ही है।





शुक्रवार, 20 मई 2016

झूठी शानो शौकत मानव सभ्यता पर कलंक

सत् साहेब।।
सभी भाई बहनो, बुजुर्गो व् माताओ से प्रार्थना है इस सन्देश को ध्यान से पढ़े व् परमात्मा की दी हुई बुद्दी से विचार करे की आज हम व्यर्थ की परम्पराओ में, लोकलाज में, व् समाज को दिखाने की झूठी शानो शौकत में इतने उलझ चुके है की आज हमें ना चाहते हुए भी विवाह शादी में इतने सारे फिजूल के खर्चे करने पड़ते है ताकि कल को हमें कोई ताने ना मारे,
लेकिन हम तत्त्वज्ञान व् परमात्मा की दी हुई बुद्दी से सोचेंगे तो पाएंगे की, शादी में फिजूल खर्च जैसे, घोड़ी,बैंड बाजा,कई तरह की मीठी व् चटपटी रसोई, भात, मेल, तिलक, टिका, लगन, आदि अनेको ऐसी परम्पराये है जिनका हमारे प्रमाणित सद्ग्रंथो पवित्र गीता जी, व् वेदों में कही भी कोई जिक्र नहीं है।
विचार करने की बात है। जब ब्रह्मा विष्णु महेश जी की शादी हुई तब उसमे नाही तो कोई बैंड बजाने वाला था, नाही कोई रसोई बनाई गई थी, नाही कोई भात भरने वाला था, नाही कोई बाराती थे। सागर मंथन में तीन कन्याए सावित्री, लक्ष्मी व् उमा निकली और तीनो देवताओ की माता दुर्गा जी ने ब्रह्मा जी को सावित्री, विष्णु जी को लक्ष्मी व् शंकर जी को उमा देकर कहा, बेटा जावो और अपना घर बसाओ।
यहाँ विचार करने की बात है क्या आज हम तीनो देवताओ ब्रह्मा विष्णु महेश जी से भी बड़े हो गए है जो इतनी सारी परम्पराओ में उलझकर बेटी को अपनी दुश्मन बना लिया है इस परम्पराओ के चक्कर में बेटी का होना भी दुःख मान लिया है जबकि बेटी साक्षात् लक्ष्मी का रूप होती है
सतयुग में ऐसा कोई भी आडम्बर नहीं हुआ करता था। लेकिन समय के साथ साथ कुछ धनवान लोगो व् राजाओ ने अपनी मान बड़ाई व् दिखावे के चक्कर में ये सब करना शुरू कर दिया अब कोई गरीब की बेटी जब उन धनवानों की शादी में जाती और देखती की उसके पिता ने उसकी शादी में इतने सुन्दर सुन्दर बेस दिए है इतने महंगे गहने दिए है इतना सामान दिया है और साथ में काफी पैसे भी दिए है, ये सब देखकर उस गरीब की लड़की की भी इच्छा होती थी की मेरी शादी में भी मेरा पिता मुझे वही सब कुछ दे जो उस धनवान पिता ने अपनी पुत्री को दिया है।
जब गरीब की लड़की शादी के लायक होती थी तो उस गरीब को चिंता सताने लग जाती थी की यदि मैंने भी अपनी बेटी की शादी में थोडा बहुत उस धनवान पिता की पुत्री जैसा नहीं किया तो मेरी बेटी की आत्मा बहुत दुखी होगी, ऐसा सोचकर वह गरीब आदमी, की कही मेरी बेटी की आत्मा दुखी ना हो उसने किसी से कर्जा लेना शुरू कर दिया या अपनी जमीन जायदाद सेठ साहूकारों के यहाँ गिरवी रखने लग गए, और उन साहूकारों का पैसा चुकाने के चक्कर में दिन रात चिंतित रहता और पैसा नहीं चुकाने पर उसे अपनी जमीन अंत में बेचनी पड़ती थी। धीरे धीरे आगे चलकर विवाह शादी में इतना खर्चा व् लोक दिखावा करना एक परंपरा बन गई जो आज एक आम व् गरीब आदमी के लिए जी का जंजाल बन गई है।
आज संत रामपाल जी महाराज जी के तत्त्वज्ञान की रौशनी में पता चला की ये सब कर्म काण्ड कभी पैसे वाले लोगो ने दिखावे के लिए शुरू किये थे जिस कारन आज ये परम्पराये बन गई है और अंदर ही अंदर समाज को खोखला कर दिया है आज जिस पिता के 2, 4 बेटियां है उनकी परवरिश व् आगे चलकर शादी की चिंता में वह रात दिन चिंतित रहता है।
लेकिन आज हम सब शिक्षित है और संत रामपाल जी महाराज के प्रवचन सुनकर सब समझ में आ चुका है की ये सभी व्यर्थ की परम्पराये एक हँसते खेलते परिवार में जहर घोल रही है
आज यहाँ आप सभी के सामने परम संत सद्गुरु रामपाल जी महाराज जी के आशिर्वाद से मात्र 16 मिनट में साधारण तरीके से इन दोनों बच्चों की रमैनी सम्पन्न होने जा रही है। जिसमे नाही कोई भाती होंगे, नाही बाराती होंगे ना घोड़ी ना बैंड बाजे होंगे, नाही कोई लेन देन (दहेज) होगा और नाही कोई 56 भोग होंगे केवल सादा भंडारा ( सब्जी पूरी ) होगा।
संत रामपाल जी महाराज के आशीर्वाद से इस तरह की शादिया आने वाली पीढ़ियों के लिए वरदान साबित होंगी, पिता अपनी पुत्री की शादी में दहेज देने की चिंता छोड़कर उसे अच्छी शिक्षा दिया करेगा जिससे दो परिवारो का भला होगा।
आज बिना ज्ञान के दहेज के चक्कर में बेटियो को जिन्दा जला दिया जाता है उन्हें घर से बाहर निकाल दिया जाता है तरह तरह की घोर यातनाये ससुराल वालो की तरफ से दी जाती है ये सब बंद होगी। यदि लड़की ससुराल में सुखी रहेगी तो लड़की के माता पिता भी सुखी रहेंगे।
पढ़ी लिखी लड़की अपने बच्चों को भी शिक्षित व् संस्कारी बनाएगी, जिससे एक परिवार सुधरेगा, एक परिवार से धीरे धीरे समाज सुधरेगा फिर समाज से एक दिन देश सुधरेगा, और उन व्यक्तियों के नाम इतिहास के पन्नों में सुनहरे अक्षरो में लिखे जायेंगे जो आज इस शुरुआत में अपना योगदान दे रहे है।
विचार करे जिस गरीब बाप के 5 लडकिया है पहले तो उन 5 लड़कियो की शादी करने के लिए कर्जा लेकर सारी जिंदगी वो बाप परेशान रहता है बाप के मरने के बाद उन 5 लड़कियो के भात छूछक व् अन्य परम्पराओ में उनका भाई सारी जिंदगी परेशान रहता है। और कर्जा ले लेकर अपनी सात पीढ़ियों को परेशानी में डाल जाते है।
आज तो सरकार ने भी इन व्यर्थ की परम्पराओ से निजात दिलाने के लिए कोर्ट मैरिज शुरू कर दी है जिसमे लड़का लड़की के अलावा दो गवाह होते है इसके अलावा ना घोड़ी ना बाजा ना भाती ना बाराती और नाही समाज का दुश्मन दहेज कुछ भी नहीं होता है।
आप सभी समाज के शिक्षित भाई बहनो व् बुजर्गो से पुन हाथ जोड़कर निवेदन है अपने बच्चों के सुखद जीवन व् सफल विवाह के लिए किसी समय अपनी शानो शौकत व् मान बड़ाई के लिए उन धनवानों के द्वारा समाज में चलाई गई इन फिजूल की कुरूतियों से बाहर निकल कर आज रमैनी जैसे आदर्श विवाह को अपनाकर अपने बच्चों के भविष्य में खुशियो के बीज बोये।
आज कहने की जरुरत नहीं है आप स्वयं अपनी अंतरात्मा से सोचे की आपने अपने बच्चों की शादियों में कितना पैसा पानी की तरह व्यर्थ बहाकर आज कर्जे की आफत मोल लिए बैठे है और मांगने वालो के दस ताने सुनने पड़ते है।
आपजियो से निवेदन है परम संत सद्गुरु रामपाल जी महाराज के सत्संग सुनिए उनपर कुछ विचार अमल कीजिये और उनसे नाम उपदेश लेकर अर्थात सतभक्ति अपनाकर इन सभी दुखो से निजात पाइए।

सम्पूर्ण मृत्युलोक में केवल संत रामपाल जी ही है जो  असली  मूल सनातन भक्ति बिधि व मर्यादा प्रदान कर अपने शिष्य को सनातन लोक का अधिकारी बनाते है , इस मृत्युलोक का स्वामी ब्रह्म मायापति नही चाहता कि कोई भी जीव को सच्चाई का पता चले, कोई भी माया से ऊपर उठे , इसलिए वो सच्चे संतो औऱ उसके सच्चे ज्ञान को फैलने से रोकता है , लेकिन इस बार परमेश्वर कवीर संत रामपाल जी रूप में विशेष तैयारी के साथ आये है वो शरण आये जीवों की परीक्षा भी लेंगे और भ्रष्ट मीडिया ,भ्रष्ट जजो, भ्रष्ट प्रशासनिक अधिकारियों , भ्रष्ट नेताओं , और भ्रष्ट दयानंद के चेलों की चांडाल चौकड़ी को इन्ही के दाव पेचो में उलझा कर पटकी देंगे , और संसार को नकलियो से भ्रष्टों से और ब्रह्म मायापति से मुक्त कराएंगे ,,
हे जीवात्माओं आपसे निवेदन है कृपया रोज शाम को साधना टीवी पर 7:30 बजे से (भारतीय समयानुसार )   सत्संग अर्थात भक्ति की सच्चाई जाने सबूतों के साथ,  जो अनेको सबूतों को देखकर  भी नही मानेगा वो वास्तव गीताजी नुसार महा मूर्ख है, वो अनंत काल तक मृत्युलोक में 84 लाख प्रकार की योनियो शरीरो में कष्ट भोगेंगे,

अन्य टीवी चैनलों पर भी सेवा का लाभ ले
श्रद्धा टीवी पर रोज दोपहर 2 :00 बजे से
ईश्वर टीवी पर 8:30 बजे शाम को
हरयाणा न्यूज़ पर सुबह 7 बजे से  रोज भारतीय समयानुसार
सत् साहेब।।

सोमवार, 16 मई 2016

देश की बर्बादी के मुख्य कारक

भ्रष्ट न्यायधीश- बकील -पत्रकार, राजनेता, मंत्री , सरकारी अफसर , इस सबने देश को कर दिया है बर्वाद ,,, इनको ढूंढ ढूंढ कर देश से बहार निकाल फेको ,,जैसे एक किसान अपनी फसल से खरपतवार को निकल फ़ेंकता है ... तभी उसकी फसल अच्छी होती है ... देखिये इन लिंक पर  इनके गठ्जोड की  सच्ची शर्मनाक दास्ताँ  http://www.rsss.co.in

विश्व के सभी सच्चे अच्छे लोगो का आह्वान करता हु की वो सभी विश्व के महापरिवर्तन के महानायक महासंत परमेश्वर कवीर के अवतार रामपाल जी के साथ जुड़े ... ये विश्व के एकमात्र ऐसे संत है जिन्होंने उपरोक्त भ्रष्टो के खिलाफ मोर्चा खोला हुआ है ,,,इन्होने ही पुस्तके लिखी भ्रष्ट जज कुमार्ग पर और न्यायालय की गिरती गरिमा जिसमे प्रमाणों के साथ जजों के नाम और उनकी कारस्तानिया लिखी हुयी है, इन भ्रष्टो के एक साथ मिलकर योजनास्वरुप संत रामपाल जी और उनके मिशन को ख़तम कारने के लिए क़ानून को ताक पर राख कर बरवाला काण्ड कर दिया और मिडिया द्वारा बदनाम करने की कुचेष्टा की , हे बिश्व के सच्चे अच्छे सच्चाई पसंद मानव आप स्वयं चेक करो इस परम संत रामपाल जी के विचार उनके मिसन को ....अधिक जानकारी के लिए वेबसाइट -http://www.rsss.co.in और www.jagatgururampaljimaharaj.org  पर खोजे .. इन परम संत के विषय में अनेको भविष्यबक्ताओ ने भविष्यवानिया की है की वो परम संत उत्तर भारत में है जो कलयुग में सतयुग लायेगा .... आप इसके प्रमाण देख सकते हो वर्तमान में जो भी इस समय इनके अनुयायी है वो सभी बुराईयों से दूर रहकर परमेश्वर की भक्ति करते है और सदा जीवन उच्चविचार का जीवन जी रहे है ... हजारो  नशेड़ियो ने नशा त्याग दिया इन परम संत के सानिद्ध्य में आकर ... बिना दहेज लिए दिए सादे समारोह में रोज अनेको शादिया होती है इनके बनाये समाज में .  हे बुद्धिमानो समय का सदुपयोग करो इन परम संत को जानने के लिए ..क्युकी जो कुछ भी मिडिया द्वारा  फैलाया गया है वो  निरा झूट भ्रम है , भ्रष्टाचारियो का जाल है ... आप को खुद ही कष्ट उठाना होगा सच्चाई को जानने के लिए  ...  {सत साहेब }

मंगलवार, 3 मई 2016

breaking news 2016 - जय गुरुदेव पन्थ के हजारो भगत ले चुके हैं अन्न त्याग का दृढ़ संकल्प - क्यों ???

जय गुरुदेव पन्थ के हजारो भगत ले चुके हैं अन्न त्याग का दृढ़ संकल्प।



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जय गुरु देव पंथ के मुखी बाबा तुलसी दास साहेब ने जब से इस बात की भविष्यवाणी की कि वह सन्त जिसकी अध्यक्षता मे सतयुग जैसा माहौल कलयुग मे आयेगा उसका जन्म हो चुका है। तब से जयगुरुदेव पंथ के अधिकांश अनुयायी उस सन्त की खोज मे रात दिन लगे रहते है।

आपको यह जानकर आश्चर्य भले ही हो पर यह सत्य है। जय गुरुदेव पंथ के हजारों भगतो ने उस सन्त की खोज के पूरे होने तक अन्न का त्याग कर रखा है।

बाबा जय गुरु देव के समर्थको द्वारा बार बार यह प्रश्न किये जाने पर कि बाबा आप कहते रहते है सतयुग आयेगा कलयुग जायेगा पर अभी तक सतयुग जैसा माहौल उत्पन्न नही हुआ है अपितु घोर कलयुग आता जा रहा है तब स॔गत के बार बार आग्रह करने पर
बाबा जय गुरुदेव ने 7 सितम्बर 1971 को इस बहुचर्चित प्रश्न पर पटाक्षेप करते हुये उदघोषित किया कि उनकी अगुवाई मे सतयुग जैसा माहौल नही आयेगा अपितु वह सन्त कोई और है
बाबा जयगुरुदेव के मुख से ऐसा वक्तव्य सुनकर बाबा जयगुरुदेव के सभी अनुयायियों को विस्मय भरा घोर आश्चर्य हुआ ।तब उन सभी अनुयायियों ने उन सन्त के बारे मे और ज्यादा जानकारी जाननी चाही तब जयगुरुदेव ने 7 सितम्बर 1971 को बताया कि आज वह सन्त पूरे वीस वर्ष का हो चुका है।
जय गुरुदेव के उक्त वचन के अनुसार उस सन्त की जन्म तिथि 8 सितम्बर 1951 बनती है।क्योंकि 7 सितम्बर 1971 को उन सन्त जी ने पूरे 20 वर्ष पूर्ण किये थे।
जयगुरुदेव के जीवित रहते ही इस बिषय पर मन्थन शुरु हो गया था कि वह सन्त कौन है जिनकी जन्मतिथि 8 सितम्बर 1971 है।इसी क्रम मे बाबा जयगुरुदेव के कुछ 8 सितम्बर 1971 को जन्मे व कुछ 7 सितम्बर 1971 को जन्मे 11 अनुयायियों ने वह सन्त होने का दावा ठोंका जिसे बाबा जयगुरुदेव ने रिजेक्ट कर दिया था
उसके बाद अनेको भगत यह दावा ठोंकते रहे पर बाबा जयगुरुदेव ने सभी दावे निरस्त करते हुये यहाँ तक कह दिया था कि उनके शिष्यों मे कोई भी वह सन्त नही है।इसके बाद सन 1981 की गुरुपूर्णिमा पर भी बाबा जयगुरुदेव ने उन सन्त का पुनः जिक्र किया।और ठोंककर कर कहा कि वह सन्त 30 वर्ष का होने जा रहा है
इसके वाबजूद भी जयगुरुदेव पंथ के कई अनुयायियों ने अपने मत से अनेक सन्त मत चला रखे है ज्ञात हो कि बाबा जयगुरुदेव ने मृत्यु पर्यन्त किसी को भी अपना उत्तराधिकारी नही बनाया था।फिर भी बाबा जयगुरुदेव के अनेकानेक अनुयायियी साम दाम दन्ड भेद के सिद्धान्त की आड़ लेकर गुरुपद पर विराज मान हो गये है।
पर इसके ठीक विपरीत जयगुरुदेव पंथ के हजारों की संख्या मे अनुयायियों ने खुद को गुरुपद पर विराजित करने के स्थान पर उन परम सन्त की खोज मे अन्न का त्याग कर रखा है कि जिन सन्त की जन्म तिथि 8 सितम्बर 1951 है।
अब इनको कौन समझाये कि वह सन्त और कोई नही बल्कि सन्त रामपाल जी महाराज ही है।