गुरुवार, 30 सितंबर 2021
वर्तमान में किसी को कथा करने का अधिकार नही सब पाखंडी देखे प्रूफ यहां शास्त्रों में🌺👇🌺
पूछो इन पाखंडियो से :- जब तुम्हारे तीनो भगवान् ब्रह्मा विष्णु महेश स्वयं कह रहे है की हमारी जन्म और मृत्यु होती है हम पूर्ण भगवान् नहीं है, तो फिर पूर्ण परमात्मा कौन है कैसा है कहा रहता है और कैसे मिलता है
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शनिवार, 25 सितंबर 2021
सच्चिदानंद घन ब्रह्म की वाणियां
✳️ सतगुरु कबीर - साखी ग्रंथ ✳️
✳️ सच्चिदानंद घन ब्रह्म की वाणियां ✳️
✳️अक्षय पुरुष एक पेड है , निरंजन वाको हार ।
✳️तिरदेवा साखा भये , पात भया संसार ॥१॥
✳️नाद बिंदु ते अगम भगोचर , पांच तत्व ते न्यार ।
✳️तीन गुनन ते भिन्न है , पुरुप अलेख अपार ॥२॥
✳️तीन गुनन की भक्ति में , भूलि पड़ा संसार ।
✳️कहै कबिर निजनाम बिन , केसे उतरै पार ॥३॥
✳️हरा होय सुखै मही , यौं तिरगुन विस्तार ।
✳️प्रथमहि ताको सुमिरिये , जाका सकल पसार ॥४॥
✳️सब्द सुरति के अंतरै , अलख पुरुप निरवान ।
✳️लखने हारै लखि लिया , जाको है गुरु ज्ञान ॥५॥
✳️राम क्रिस्न अवतार हैं , इनकी नाहीं मांड ।
✳️जिन साहब सृष्टि किया , किनहु न जाया रांड ॥६॥
✳️राम क्रिस्न को जिन किया , सो तो करता न्यार ।
✳️अंधा ग्यान न बुझयी , कहै कबीर विचार ॥७॥
✳️समुंद्र माहि समाईया , यो साहिब नहि होय ।
✳️सकल मांड में रमि रहा , मेरा साहिब सोय ॥८॥
✳️साहेब मेरा एक है , दूजा कहा न जाय ।
✳️दूजा साहिब जो कहूं , साहेब खरा रिसाय ॥९॥
✳️जाके मुँह माथा नहीं , नाहिं रूप अरूप ।
✳️पुहुप बास ते पातरा , ऐसा तत्व अनूप ॥१०॥
✳️बूझो करता आपना , मानो वचन हमार ।
✳️पांच तत्व के भीतरै , जाका यह आना सांसार ॥११॥
✳️निबल सबल को जानकर , नाम धरा जगदीश ।
✳️कहै कबीर जन्मे मरे , ताहि धंरू नही सीस ॥१२॥
✳️जनम मरन से रहित है , मेरा साहिय सोय ।
✳️बलिहारी वही पीव की , जिन सिरजा सब कोय ॥१३॥
✳️समुंद पाटी लंका गयो , सीता को भरतार ।
✳️ताहि अगसत अचै गयो , इन में को करतार ॥१४॥
✳️गिरिवर धार्यो कृश्नन जी , द्रोना गिरि हनुमंत ।
✳️सेसनाग धरती धरी , इन में को भगवंत ॥१५॥
✳️अविगति पीसै पीसना , गौसा बिनै खुदाय ।
✳️निरंजन तो रोटी करै , गैवी बैठा खाय ॥१६॥
✳️तीन देव को सव कोइ ध्यावे , चौथे देव का मरहम न पावै ।
✳️चौथा छोड पंचम चित लावै , कहें कबिर हमरै ढिग आवै ॥१७॥
✳️जो ओंकार निश्चय किया , यह करता पति जान ।
✳️सांचा सबद कबीर का , परदे में पहिचान ॥१८॥
✳️अलख अलख सव कोउ कहै , अलख लखै नहि कोय ।
✳️अलख लखा जिन सब लखा , लखा अलख नहि होय ॥१९॥
✳️कथत कथत जुग थाकिया , थाकी सबै खलक ।
✳️देखत नजरि न आइया , हरि को कहा अलख ॥२०॥
✳️तीन लोक सब गम जपत , जानि मुक्ति को धाम ।
✳️रामचंद्र के वसिष्ट गुरु , काह सुनायो नाम ॥२१॥
✳️जग में चारों राम हैं , तीन राम व्यौहार ।
✳️चौथा राम निज सार है , ताका करो विचार ॥२२॥
✳️एक राम दसरथ घर डोले , एक राम घट घट में बोले ।
✳️एक राम का सकल पसारा , एक राम तिरगुन ते न्यारा ॥२३॥
✳️कौन राम दसरथ घर डोलै , कौन राम घट घट में बोलै ।
✳️कौन राम का सकल पसारा , कौन राम तिरगुन ने न्यारा ॥२४॥
✳️आकार राम दसरथ घर डोलै , निराकार घट घट में बोलै ।
✳️बिंदु राम का सकल पसारा , निरालंब सबही ते न्यारा ॥२५॥
✳️जाकी थापी मांड है , ताकी करहु सेव ।
✳️जो थापा है मांड का , सो नहिं हमरा देव ॥२६॥
✳️रहै निराला मांड ते , सकल मांड तिहि मांहि ।
✳️कबीर सेवै तासु को , दूजा सेवै नॉहि ॥२७॥
✳️चार भुजा के भजन में , भूलि पड़े सब संत ।
✳️कबीर सुमिरै तासु को , जाके भुजा अनंत ॥२८॥
✳️काटे बंधन विपति में , कठिन किया संग्राम ।
✳️चीन्हो रे नर प्रानियां , गरुड बड़े की राम ॥२९॥
✳️कहै कबिर चित चैनहु , सबद करो निरुवार ।
✳️राम हि करता कहत हैं , भूलि पर्यो संसार ॥३०॥
✳️जाहि रोग उत्पन्न भया , औषधि देय जु ताहि ।
✳️वैद्य ब्रह्म बाहिर रहा , भीतर घसा जु नाहि ॥३१॥
✳️असुर रोग उतपति भया , औतार औषधि दीन्ह ।
✳️कहै कबीर या साखि को , अरथ जु लीजो चीन्ह ॥३२॥
✳️कबीर कारज भक्ति के , भुक्ति हि दीन्ह पठाय ।
✳️कहै कबीर विचारि के , ब्रह्म न आवै जाय ॥३३॥
✳️हम कर्ता सब सृष्टि के , हम पर दूसर नाँहि ।
✳️कहैं कबिर हमही चीन्हे , नहि चौरासी माँहि ॥३४॥
✳️साहिब सब का पाप है , बेटा किसी का नाहि ।
✳️बेटा होकर ऊतरा , सो तो साहिब नाहि ॥३५॥
✳️पिंड प्राण नहि तासु के , दम देही नहि सीन ।
✳️नाद बिंद आवै नहीं , पांच पचीस न तीन ॥३६॥
✳️राम राम तुम कहत हो , नहि सो अकथ सरूप ।
✳️वह तो आये जगत में , भये दसरथ घर भूप ॥३७॥
✳️रेख रूप बिनु वेद में , औ कुरान बेचून ।
✳️आपस में दोऊ लड़े , जाना नहि दोहून ॥३८॥
✳️सहज सुन्न में साईया , ताका वार न पार ।
✳️धरा सकल जग धरि रहा , आप रहा निरधार ॥४०॥
✳️देखन सरिखी बात है , कहने सरखी नाँहि ।
✳️अदभुत खेला पेखि के , समुझि रहो मन मॉहि ॥४१॥
साधना टीवी पर 7:30pm से 8:30pm
#SaintRampalJiQuotes
The Secrets of Bhagavad Gita अद्भुद रहस्य गीता के जिसे गोपनीय _ज्ञान कहा जाता है जानिए यहां
ये 32 प्रमाण जो सिद्ध करते हैं कि भगवद गीता का ज्ञान श्रीकृष्ण ने नही दिया | The Secrets of Bhagavad Gita
1. मैं सबको जानता हूँ, मुझे कोई नहीं जानता (अध्याय 7 मंत्र 26)
2 . मै निराकार रहता हूँ(अध्याय 9 मंत्र 4 )
3. मैं अदृश्य/निराकार रहता हूँ (अध्याय 6 मंत्र 30) निराकार क्यो रहता है इसकी वजह नहीं बताया सिर्फ अनुत्तम/घटिया भाव कहा है ।
4. मैं कभी मनुष्य की तरह आकार में नहीं आता यह मेरा घटिया नियम है (अध्याय 7 मंत्र 24-25)
5.पहले मैं भी था और तू भी सब आगे भी होंगे (अध्याय 2 मंत्र 12) इसमें जन्म मृत्यु माना है ।
6. अर्जुन तेरे और मेरे जन्म होते रहते हैं (अध्याय 4 मंत्र 5)
7. मैं तो लोकवेद में ही श्रेष्ठ हूँ (अध्याय 15 मंत्र 18) लोकवेद =सुनी सुनाई बात/झूठा ज्ञान
8. उत्तम परमात्मा तो कोई और है जो सबका भरण-पोषण करता है (अध्याय 15 मंत्र 17)
9.उस परमात्मा को प्राप्त हो जाने के बाद कभी नष्ट/मृत्यु नहीं होती है (अध्याय 8 मंत्र 8,9,10)
10. मैं भी उस परमात्मा की शरण में हूँ जो अविनाशी है (अध्याय 15 मंत्र 5)
11. वह परमात्मा मेरा भी ईष्ट देव है (अध्याय 18 मंत्र 64)
12. जहां वह परमात्मा रहता है वह मेरा परम धाम है वह जगह जन्म – मृत्यु रहित है (अध्याय 8 मंत्र 21,22) उस जगह को वेदों में ऋतधाम, संतो की वाणी में सतलोक/सचखंड कहते हैं । गीताजी में शाश्वत स्थान कहा है ।
13. मैं एक अक्षर ॐ हूं (अध्याय 10 मंत्र 25 अध्याय 9 मंत्र 17 अध्याय 7 के मंत्र 8 और अध्याय 8 के मंत्र 12,13 में )
14. “ॐ” नाम ब्रम्ह का है (अध्याय 8 मंत्र 13)
15. मैं काल हूं (अध्याय 11 मंत्र 32)
16.वह परमात्मा ज्योति का भी ज्योति है (अध्याय 13 मंत्र 16)
17. अर्जुन तू भी उस परमात्मा की शरण में जा, जिसकी कृपा से तु परम शांति, सुख और परम गति/मोक्ष को प्राप्त होगा (अध्याय 18 मंत्र 62)
18. ब्रम्ह का जन्म भी पूर्ण ब्रम्ह से हुआ है (अध्याय 3 मंत्र 14,15)
19. तत्वदर्शी संत मुझे पुरा जान लेता है (अध्याय 18 मंत्र 55)
20. मुझे तत्व से जानो (अध्याय 4 मंत्र 14)
21. तत्वज्ञान से तु पहले अपने पुराने /84 लाख में जन्म पाने का कारण जानेगा, बाद में मुझे देखेगा /की मैं ही इन गंदी योनियों में पटकता हू, (अध्याय 4 मंत्र 35)
22. मनुष्यों का ज्ञान ढका हुआ है (अध्याय 5 मंत्र 16)
:- मतलब किसी को भी परमात्मा का ज्ञान नहीं है
23. ब्रम्ह लोक से लेकर नीचे के ब्रम्हा/विष्णु/शिव लोक, पृथ्वी ये सब पुर्नावृर्ति(नाशवान) है ।
24. तत्वदर्शी संत को दण्डवत प्रणाम करना चाहिए (तन, मन, धन, वचन से और अहं त्याग कर आसक्त हो जाना) (अध्याय 4 मंत्र 34)
25. हजारों में कोई एक संत ही मुझे तत्व से जानता है (अध्याय 7 मंत्र 3)
26. मैं काल हु और अभी आया हूं (अध्याय 10 मंत्र 33)
तात्पर्य :-श्रीकृष्ण जी तो पहले से ही वहां थे,
27. शास्त्र विधि से साधना करो, शास्त्र विरुद्ध साधना करना खतरनाक है (अध्याय 16 मंत्र 23,24)
28. ज्ञान से और श्वासों से पाप भस्म हो जाते हैं (अध्याय 4 मंत्र 29,30, 38,49)
29. तत्वदर्शी संत कौन है पहचान कैसे करें :- जो उल्टा वृक्ष के बारे में समझा दे वह तत्वदर्शी संत होता है (अध्याय 15 मंत्र 1-4)
30. और जो ब्रम्हा के दिन रात/उम्र बता दें वह तत्वदर्शी संत होता है (अध्याय 8 मंत्र 17)
31. 3 भगवान बताये गये हैं गीताजी में
•क्षर , अक्षर, परमअक्षर
(•ब्रम्ह, परब्रह्म, पूर्ण/पार ब्रम्ह
•ॐ, तत्, सत्
•ईश, ईश्वर, परमेश्वर)
32. गीता जी में तत्वदर्शी संत का इशारा > 18.तत्वदर्शी संत वह है जो उल्टा वृक्ष को समझा देगा. (अध्याय 15 मंत्र 1-4)
साधना टीवी 7:30 से 8:30 रोज शाम देखिए पवित्र शास्रो में छिपे परम् कल्याणकारी रहस्य
परमपिता परमेश्वर उत्तम पुरुष तो त्रिदेवों व इनके पिता ब्रह्म व प्रकृति से ऊपर अन्य है देखिए प्रमाण :- ब्रह्मज्ञान
परमपिता परमेश्वर उत्तम पुरुष तो त्रिदेवों व इनके पिता ब्रह्म व प्रकृति से ऊपर अन्य है देखिए प्रमाण :- ब्रह्मज्ञान
उत्तम ( पुजने योग्य) पुरुष गीता ज्ञान दाता से अन्य हैं।
कथाओं का सारांश :-
1. ब्रह्म साधना अनुत्तम (घटिया) है।
2. तीन ताप को श्री कृष्ण जी भी समाप्त नहीं कर सके। श्राप देना तीन ताप (दैविक ताप) में आता है। दुर्वासा के श्राप के शिकार स्वयं श्री कृष्ण सहित
सर्व यादव भी हो गए।
3. श्री कृष्ण जी ने श्रापमुक्त होने के लिए यमुना में स्नान करने के लिए कहा, यह समाधान बताया था। उससे श्राप नाश तो हुआ नहीं, यादवों का नाश
अवश्य हो गया।
विचार करें :- जो अन्य सन्त या ब्राह्मण जो ऐसे स्नान या तीर्थ करने से संकट मुक्त करने की राय देते हैं, वे कितनी कारगर हैं? अर्थात् व्यर्थ हैं क्योंकि जब भगवान त्रिलोकी नाथ द्वारा बताए समाधान यमुना स्नान से कुछ लाभ नहीं हुआ तो अन्य टट्पुँजियों, ब्राह्मणों व गुरूओं द्वारा बताए स्नान आदि समाधान से कुछ होने वाला नहीं है।
4. पहले श्री कृष्ण जी ने दुर्वासा के श्राप से बचाव का तरीका बताया था। उस कढ़ाई को घिसाकर चूर्ण बनाकर प्रभास क्षेत्र में यमुना नदी में डाल दो। न रहेगा बाँस, न बजेगी बाँसुरी, बाँस भी रह गया, 56 करोड़ यादवों की बाँसुरी भी बज गई।
सज्जनो! वर्तमान में बुद्धिमान मानव है, शिक्षित है, मेरे द्वारा (सन्त रामपाल दास द्वारा) बताए ज्ञान को शास्त्रों से मिलाओ, फिर भक्ति करके देखो, क्या कमाल होता है।
प्रसंग आगे चलाते हैं :-
1. तीनों गुणों (रजगुण ब्रह्मा जी, सतगुण विष्णु जी तथा तमगुण शिव जी) की भक्ति करना व्यर्थ सिद्ध हुआ।
2. गीता ज्ञान दाता ब्रह्म की भक्ति स्वयं गीता ज्ञान दाता ने गीता अध्याय 7 श्लोक 18 में अनुत्तम बताई है। उसने गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में उस परमेश्वर अर्थात् परम अक्षर ब्रह्म की शरण में जाने को कहा है। यह भी कहा है कि उस परमेश्वर की कृपा से ही तू परम शान्ति तथा सनातन परम धाम को प्राप्त होगा।
3. गीता अध्याय 15 श्लोक 1 से 4 में संसार रूपी वृक्ष का वर्णन है तथा तत्वदर्शी सन्त की पहचान भी बताई है। संसार रूपी वृक्ष के सब हिस्से, जड़ें (मूल) कौन परमेश्वर है? तना कौन प्रभु है, डार कौन प्रभु है, शाखाऐं कौन-कौन देवता हैं? पात रूप संसार बताया है।
इसी अध्याय 15 श्लोक 16 में स्पष्ट किया है कि :-
1. क्षर पुरूष (यह 21 ब्रह्माण्ड का प्रभु है) :- इसे ब्रह्म, काल ब्रह्म, ज्योति निरंजन भी कहा जाता है। यह नाशवान है। हम इसके लोक में रह रहे हैं। हमें इसके लोक से मुक्त होना है तथा अपने परमात्मा कबीर जी के पास सत्यलोक में जाना है।
2. अक्षर पुरूष :- यह 7 संख ब्रह्माण्डों का प्रभु है, यह भी नाशवान है। हमने इसके 7 संख ब्रह्माण्डों के क्षेत्र से होकर सत्यलोक जाना है। इसलिए इसका टोल टैक्स देना है। बस इससे हमारा इतना ही काम है।
गीता अध्याय 15 श्लोक 17 में कहा है कि :-
उत्तमः पुरूषः तू अन्यः परमात्मा इति उदाहृतः।
यः लोक त्रायम् आविश्य विभर्ति अव्ययः ईश्वरः।।
सरलार्थ :- गीता अध्याय 15 श्लोक 16 में कहे दो पुरूष, एक क्षर पुरूष दूसरा अक्षर पुरूष हैं। इन दोनों से अन्य है उत्तम पुरूष अर्थात् पुरूषोत्तम, उसी को परमात्मा कहते हैं जो तीनों लोकों में प्रवेश करके सबका धारण-पोषण करता है। वह वास्तव में अविनाशी परमेश्वर है। (गीता अध्याय 15 श्लोक 17)
गीता अध्याय 3 श्लोक 14,15 में भी स्पष्ट किया है कि सर्वगतम् ब्रह्म अर्थात् सर्वव्यापी परमात्मा, जो सचिदानन्द घन ब्रह्म है, उसे वासुदेव भी कहते हैं जिसके विषय में गीता अध्याय 7 श्लोक 19 में कहा है। वही सदा यज्ञों अर्थात् धार्मिक अनुष्ठानों में प्रतिष्ठित है अर्थात् ईष्ट रूप में पूज्य है।
पूर्ण गुरू से दीक्षा लेकर मर्यादा में रहकर भक्ति करो। इस प्रकार जीने की राह पर चलकर संसार में सुखी जीवन जीऐं तथा मोक्ष रूपी मंजिल को प्राप्त करें।
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यजुर्वेद अध्याय 19 मंत्र 25, 26 का वास्तविक अर्थ यहां पढ़िए 👇
यजुर्वेद अध्याय 19 मंत्र 25, 26 में लिखा है कि जो वेदों के अधूरे वाक्यों अर्थात सांकेतिक शब्दों व एक चौथाई श्लोकों को पूरा करके विस्तार से बताएगा व तीन समय की पूजा करवाएगा। वह जगत का उपकारक संत सच्चा सतगुरु होगा।
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