बुधवार, 30 सितंबर 2015

धर्म भ्रष्ट लोग हिन्दू समाज में - अपने शरीर को मांसाहारी भोजन द्वारा गंदा मत करो

धर्म भ्रष्ट लोग हिन्दू समाज मेंअपने शरीर को मांसाहारी भोजन द्वारा गंदा मतकरो

घर में जो मानुष मरे, बाहर देत जलाए,
आते हैं फिर घर में, औघट घाट नहाय,
औघट घाट नहाय, बाहर से मुर्दा लावें,
नून मिर्च घी डाल, उसे घर माहिं पकावें,
कहे कबीरदास उसे फिर भोग लगावें,
घर - घर करें बखान, पेट को कबर बनावें |
संत कबीर जी कहते हैं कि घर में
जो परिजन मर जाता है, उसे तो लोग तुरन्त शमशान ले जाकर फूँक आते
हैं | फिर वापिस आकर खूब अच्छी तरह से मल - मल
कर नहाते हैं | मगर विडम्बना देखो, नहाने के थोड़ी देर
बाद, बाहर से (किसे मरे जानवर का ) मुर्दा उठाकर घर में ले आते हैं |
खूब नमक, मिर्च और घी डालकर उसे पकाते हैं |
तड़का लगाते हैं और फिर उसका भोग लगाते हैं | बात इतने पर
भी ख़त्म नहीं होती | आस -
पड़ोस में, रिश्तेदार या मित्रों के बीच उस मुर्दे के स्वाद
का गा - गाकर बखान भी करते हैं | मगर ये मूर्ख
नहीं जानते ,जाने - अनजाने ये अपने पेट
को ही कब्र बना बैठे हैं!
कुछ लोगों का ये विचार है कि मंगलवार और शनिवार को तो मैं
भी नहीं खाता | पर
क्या यही दो दिन धार्मिक बातें माननी चाहिए?
क्या बाकी दिन ईश्वर के नहीं है? जब
पता है कि चीज गलत है, अपवित्र है, भगवान को पसंद
नहीं, तो फिर उसे किसी भी दिन
क्यों खाया जाए? वैसे भी, क्या हम मंदिर में
कभी मांस वगैरह लेकर जाते हैं? नहीं न!
फिर क्या यह शारीर परमात्मा का जीता -
जागता मंदिर नहीं है? हमारे अंदर
भी तो वही शक्ति है, जिसे हम बाहर
पूजते हैं | फिर इस जीवंत मंदिर में मांस क्यों?
कबीर जी ने सही कहा, हमने
तो इस मंदिर रुपी शारीर को कब्र बना दिया है |
बर्नार्ड शा ने भी यही कहा - 'हम मांस
खाने वाले वो चलती फिरती कब्रें हैं, जिनमें मारे
गए पशुओं की लाशें दफ़न की गई हैं|'
जीअ बधहु सु धरमु करि थापहु अधरमु कहहु कत
भाई ॥
आपस कउ मुनिवर करि थापहु का कउ कहहु कसाई ॥२॥(Gurbani
- 1103)
यदि तुम लोग किसी जीव
की हत्या करके, उसे धर्म कहते हो तो फिर अधर्म
किसे कहोगे? ये ऐसे कुकर्म करके तुम स्वयं को सज्जन समझते
हो, तो यह बताओ कि फिर कसाई किसे कहोगे?
जैसे हर जीव की एक विशेष खुराक है |
अपना एक स्वाभाविक भोजन है और वह
उसी का भक्षण करता है | उसी पर कायम
रहता है | शेर भूखा होने पर भी कभी शाक
- पत्तियां नहीं खाएगा | गाय चाहे
कितनी भी शुधाग्रस्त क्यों न हो, पर
अपना स्वाभाविक आहार नहीं बदलेगी |
क्या कभी उसको मांसाहार करते हुए देखा है? बस एक
इन्सान ही है, जो अपने स्वाभाविक आहार से हटकर
कुछ भी भक्ष्य - अभक्ष्य खा लेता है | स्वयं विचार
कीजिए, पशुओं की तुलना में आज मनुष्य
कौन से स्तर पर खड़ा है

खतना कराना शैतान की चाल है असली काफिर कौन

खतना कराना शैतान की चाल है !" 

"असली काफिर कौन ???
♪वैसे तो सभी मुसलमान मानते हैं की इंसान को अल्लाह ने बनाया है.और उसका अकार,रूप संतुलित और ठीकठाक बनाया है .उसे किसी तरह की कमी नहीं रखी.और यह
भी दावा करते हैं कि अल्लाह ने कुरआन में सारी बातें खोल खोल कर साफ़ बता दी हैं.लेकिन जब उनसे खतना के बारे में
पूछा जाता है ,तो वे बेकार के बहाने करने लगते हैं. अब हम मुख्य विषय पर आते हैं कि यह अल्लाह का हुक्म नहीं !!
1 -अल्लाह ने इंसान को उचित रूप में बनाया
"हमने तुम्हें बनाया तो ,ठीक अनुपात और आकार में बनाया और
इस प्रकार की रचना बनाई जैसी होना चाहिए .सूरा अल
इनफितार 82 :7 -8
"तुम क्यों नहीं मानते कि हमने ही तुम्हें पैदा किया और
तुम्हारा आकार देने वाले हम हैं ,या तुम आकार देने वाले
हो .सूरा अल वाकिया -56 :57
"हमने तुम्हारा अकार बनाया और अच्छा आकार बनाया .सूरा अल मोमिनीन -40 :64
"अल्लाह ने जो भी चीज बनाई व्यर्थ नहीं बनाई .सुरा आले
इमरान -3 :191
"हमने इन्सान को अच्छे से अच्छी स्थिति में बनाया .सूरा अत
तीन -95
2 -अल्लाह के दिए आकार को बदलना शैतान की चाल है -
"शैतान ने अल्लाह से कहा ,मैं तेरे
बन्दों को बहकाऊँगा ,उनको वासना के मायाजाल में
फंसऊँगा ,फिर वे अपने चौपायों के कान फडवाएंगे और अलाह
की रचना में बदलाव करेंगे ,और पशुओं को देवताओं के नाम छोड़
देंगे ,ऐसा करने वाले शैतान के मित्र हैं "सूरा अन निसा -4 :119
इस आयत की तफ़सीर में "अल्लाह की रचना "में बदलाव
का उदहारण दिया गया है जैसे -
नसबंदी करना .किसी को बाँझ करना ,परिवार नियोजन
करना ,आजीवन ब्रह्मचारी रहना ,और
किसी को हिजड़ा बनाना है .इसी आयत कि बदौलत मुसलमान परिवार नियोजन नहीं करते हैं .इसे गुनाह मानते है .
3 -खतना कराना यहूदिओं की नक़ल है -
वैसे तो मुसलमान यहूदिओं को रोज गालियाँ देते हैं .लेकिन
उनकी नक़ल करके छोटे छोटे बच्चों की खतना कर देते है .जब वह
नादान होते है .कुरआन में ऐसा कोई आदेश नहीं है !!
यह बाईबिल
का आदेश है -
" खुदा ने कहा तू और तेरे बाद तेरे वंशज पीढी दर पीढी हरेक बच्चे
का खतना कराये,और उनके लिंग की खलाड़ी काट दे जो तेरे
में पैदा हो या जिसे मोल से खरीदा हो सबका खतना कर
"बाइबिल -उत्पत्ति अध्याय -17 :9 से 14
4 -मूसा और उसके पुत्रों का खतना नहीं हुआ
" मिस्र निकालने बाद जितने लोग पैदा हुए
किसी का खतना नहीं हुआ -यहोशु-5 :5
"अपना नहीं बल्कि अपने ह्रदय का खतना करो "बाइबिल
व्यवस्था -10 :16

गुरुवार, 3 सितंबर 2015

सतसंग जी आवश्यकता

सतसंग जी आवश्यकता


मुझे रोज सत्संग की क्या जरूरत हैएक बार एक युवक पुज्य कबीर साहिब जी के पास आया और कहने लगा, ‘गुरु महाराज! मैंने अपनी शिक्षा से पर्याप्त ज्ञान ग्रहण कर लिया है। मैं विवेकशील हूं और अपना अच्छा-बुरा भली-भांति समझता हूं, किंतु फिर भी मेरे माता-पिता मुझे निरंतर सत्संग की सलाह देते रहते हैं। जब मैं इतना ज्ञानवान और विवेकयुक्त हूं, तो मुझे रोज सत्संग की क्या जरूरत है?’ कबीर ने उसके प्रश्न का मौखिक उत्तर न देते हुए एक हथौड़ी उठाई और पास ही जमीन पर गड़े एक खूंटे पर मार दी। युवक अनमने भाव से चला गया। 

अगले दिन वह फिर कबीर के पास आया और बोला, ‘मैंने आपसे कल एक प्रश्न पूछा था, किंतु अापने उत्तर नहीं दिया। क्या आज आप उत्तर देंगे?’ कबीर ने पुन: खूंटे के ऊपर हथौड़ी मार दी। किंतु बोले कुछ नहीं। युवक ने सोचा कि संत पुरुष हैं, शायद आज भी मौन में हैं।
वह तीसरे दिन फिर आया और अपना प्रश्न दोहराया। कबीर साहेब ने फिर से खूंटे पर हथौड़ी चलाई। अब युवक परेशान होकर बोला, ‘आखिर आप मेरी बात का जवाब क्यों नहीं दे रहे हैं? मैं तीन दिन से आपसे प्रहेब श्न पूछ रहा हूं।’ तब कबीर ने कहा, ‘मैं तो तुम्हें रोज जवाब दे रहा हूं। मैं इस खूंटे पर हर दिन हथौड़ी मारकर जमीन में इसकी पकड़ को मजबूत कर रहा हूं। यदि मैं ऐसा नहीं करूंगा तो इससे बंधे पशुओं द्वारा खींचतान से या किसी की ठोकर लगने से अथवा जमीन में थोड़ी सी हलचल होने पर यह निकल जाएगा। यही काम सत्संग हमारे लिए करता है। वह हमारे मनरूपी खूंटे पर निरंतर प्रहार करता है, ताकि हमारी पवित्र भावनाएं दृढ़ रहें। युवक को कबीर साहेब जी  ने सही दिशा-बोध करा दिया। सत्संग हररोज नित्यप्रति हृदय में सत् को दृढ़ कर असत् को मिटाता है, इसलिए सत्संग हमारी जीवन चर्या का अनिवार्य अंग होना चाहिए 


सनातन धर्म क्या है - तनिक विचारें

Sant Rampal ji Maharaj 

सनातन धर्म क्या है?हम आज बहुत गर्व से राम-कथा में अथवा भागवत-कथामें, कथा के अंत में कहते हैं ,बोलिए — सत्य सनातन धर्मं कि !!जय !तनिक विचारें ? सनातन का क्या अर्थ है ?सनातन अर्थात जो सदा से है . जो सदा रहेगा ,जिसका अंत नहीं है , वही सनातनहै , जिसका कोईआरंभ नहीं है वही सनातन है , और सत्य मैं केवलहमारा धर्मं ही केवल सनातन है, यीशु से पहलेईसाईमत नहीं था , मुहम्मद से पहले इस्लाम मत नहीं था |केवल सनातन धर्मं ही सदा से है , सृष्टि आरंभ से |किन्तु ऐसा क्या है हिंदू धर्मं में जो सदा से है ?श्री कृष्ण कि भगवत कथा श्री कृष्ण के जन्म से पहलेनहीं थी अर्थात कृष्ण भक्ति सनातन नहीं है |श्री राम की रामायण , तथा रामचरितमानस भीश्री राम जन्म से पहले नहीं थी तो अर्थात , श्रीराम भक्ति भी सनातन नहीं है |श्री लक्ष्मी भी ,(यदि प्रचलित सत्य-असत्य कथाओके अनुसार भी सोचें तो) ,तो समुद्र मंथन से पहले नहींथी ,अर्थात लक्ष्मी पूजन भी सनातन नहीं है |गणेश जन्म से पूर्व गणेश का कोई अस्तित्व नहीं था ,तो गणपति पूजन भी सनातन नहीं है |शिव पुराण के अनुसार शिव ने विष्णुव् ब्रह्मा कोबनाया तो विष्णु भक्तिव् ब्रह्मा भक्ति सनातननहीं, विष्णु पुराण के अनुसार विष्णु नेशिव औरब्रह्मा को बनाया तो शिव भक्ति और ब्रह्माभक्ति सनातन नहीं,ब्रह्म पुराण के अनुसार ब्रह्मा ने विष्णु और शिव कोबनाया तो विष्णु भक्ति और शिव भक्ति सनातननहीं |देवी पुराण के अनुसार देवी ने ब्रह्मा, विष्णु और शिवको बनाया तो यहाँ से तीनो कि भक्ति सनातननहीं रही |यहाँ तनिक विचारें ये सभी ग्रन्थएक दुसरे से बिलकुलउलट बात कर रहे हैं, तो इनमे से अधिक से अधिक एकही सत्य हो सकता है बाकि झूठ , लेकिन फिर भीसब हिंदू इन चारो ग्रंथो को सही मानते हैं ,अहो! दुर्भाग्य !!फिर ऐसा सनातन क्या है ? जिसका हम जयघोषकरते हैं?वो सत्य सनातन है परमात्मा कि वाणी !आप किसी मुस्लमान से पूछिए , परमात्मा ने ज्ञानकहाँ दिया है ?वो कहेगा कुरान मैं |आप किसी ईसाई से पूछिए परमात्मा ने ज्ञान कहाँदिया है ?वो कहेगा बाईबल मैं |लेकिन आप हिंदू से पूछिए परमात्मा नेमनुष्य कोज्ञान कहाँ दिया है ?हिंदू निरुतर हो जाएगा |आज दिग्भ्रमित हिंदू ये भी नहीं बता सकता किपरमात्मा ने ज्ञान कहाँ दियाहै ?आधे से अधिक हिंदू तो केवल हनुमान चालीसा में हीदम तोड़ देते हैं | जो कुछ धार्मिक होते हैं वो गीताका नाम ले देंगे, किन्तु भूल जाते हैं कि गीता तोयोगीश्वर श्री कृष्ण देकर गएहैं परमात्मा का ज्ञानतो उस से पहले भी होगा या नहीं , अर्थात वोज्ञान जो श्री कृष्ण , सांदीपनी मुनि के आश्रम मेंपढ़े थे .?जो कुछ अधिक ज्ञानी होंगे वो उपनिषद कह देंगे,परुन्तु उपनिषद तो ऋषियों कि वाणी है न किपरमात्मा की …|तो परमात्मा का ज्ञान कहाँ है ?वेद !! जो स्वयं परमात्मा कि वाणी है ,उसकाअधिकांश हिन्दुओ को केवल नाम हीपता है |वेद परमात्मा ने मनुष्यों को सृष्टि के प्रारंभ में दिए |जैसे कहा जाता है कि ” गुरु बिना ज्ञान नहीं “, तोसंसार का आदि गुरु कौन था? वो परमात्मा ही था| उस परमपिता परमात्मा ने ही सब मनुष्यों केकल्याण के लिए वेदों का प्रकाश , सृष्टि आरंभ मेंकिया |जैसे जब हम नया मोबाइल लाते हैं तो साथ में एकगाइड मिलती है , कि इसे यहाँ पर रखें , इस प्रकार सेवरतें , अमुक स्थान पर न ले जायें, अमुक चीज़ के साथ नरखें, आदि …उसी प्रकार जब उस परमपिता ने हमे ये मानव तन दिए, तथा ये संपूर्ण सृष्टि हमे रच कर दी , तब क्या उसनेहमे यूं ही बिना किसी ज्ञान व् बिना किसीनिर्देशों के भटकने को छोड़ दिया ?जी नहीं , उसने हमे साथ में एक गाइड दी, कि इससृष्टि को कैसे वर्तें, क्या करें, ये तन से क्या करें, इसेकहाँ लेकर जायें, मन से क्या विचारें, नेत्रों से क्यादेखें , कानो से क्या सुनें , हाथो से क्या करें ,आदि |उसी का नाम वेद है | वेद का अर्थ है ज्ञान |परमात्मा के उस ज्ञान को आज हमने लगभग भुलादिया है |वेदों में क्या है?वेदों में कोई कथा कहानी नहीं है | न तो कृष्ण कि नराम कि , वेद मे तो ज्ञान है |मैं कौन हूँ? मुझमे ऐसा क्या है जिसमे मैं कि भावनाहै ?मेरे हाथ , मेरे पैर , मेरा सर , मेरा शरीर ,पर मैं कौन हूँ?मैं कहाँ से आया हूँ? मेरा तन तो यहीं रहेगा , तो मैंकहाँ जाऊंगा | परमात्मा क्या करता है ?मैं यहाँ क्या करूँ? मेरा लक्ष्य क्या है ? मुझे यहाँ क्यूँभेजा गया ?इन सबका उत्तर तो केवल वेदों में ही मिलेगा |रामायण व् भगवत व् महाभारत आदि तो इतिहासिकघटनाएं है , जिनसे हमे सीख लेनी चाहिए और इन जैसेमहापुरुषों के दिखाए सन्मार्ग पर चलना चाहिए |लेकिन उनको ही सब कुछ मान लेना , और जो स्वयंपरमात्मा का ज्ञान है उसकी अवहेलना करना ठीक नहीं।इस से आगे अगली बार | धन्यवाद शेयर करेँ