शनिवार, 14 नवंबर 2020

हे मनुष्यो ! आपने यह रहस्य जान लिए तब ही आप परमात्मा के सच्चे मार्ग पर चल सकोगे आईये जानिये 💮

 *हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई*

किसी को भी अपने धर्म ग्रन्थों में क्या लिखा है इसकी सम्पूर्ण जानकारी नहीं है ।।


सिर्फ़ कथाएं पता है लेकिन :-


मोक्ष कैसे होगा क्या मंत्र है ?

कौन भगवान मोक्ष देता है ?

मुक्त होकर कहाँ जाएंगे ?

जन्म मृत्यु क्यों होती है ?

84 लाख योनियां क्यों बनी ?


जिहाद के नाम पर कत्लेआम क्यों होता है ??


गुरु नानक देव जी के गुरु और इष्ट देव का नाम क्या है ??


परमात्मा साकार है कि निराकार ??


बलात्कार क्यों होते है ? 

सभी दुःखी क्यों है ?

सृष्टि की रचना किसने और कैसे की ?

"सबका मालिक एक" कौन है ??

मनुष्य जन्म क्यों मिलता है ?


ऐसे अनेक अनसुलझे सवालों के जवाब जानने के लिए रोज शाम 7:30 pm साधना टीवी जरूर देखें ।।


नहीं तो बहुत पछताओगे, बेवजह आपस में धर्म और जातियों के नाम पर लड़ते लड़ते 84 में चले जाओगे ।


अधिक जानकारी के लिए 

हमसे मिलें whatsapp पे :- 9953984946

साधना टीवी पर रोज शाम 7:30 से 8:30pm

श्रद्धा टीवी रोज दोपहर 2:00pm 


*जीव हमारी जाति है, मानव धर्म हमारा ।।*

www.supremegod.org

शनिवार, 16 मई 2020

अदभुद असली दिव्य रहस्य दर्शन गुरुनानक जी का परमेश्वर मिलाप


( मेरे कुछ सिक्ख भाई /दोस्त ज़रूर पढ़े )
वाहेगुरु जी दा खालसा वाहेगुरु जी दी फतह
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
    ‘‘नानक जी का संक्षिप्त परिचय’’

     श्री नानक देव का जन्म विक्रमी संवत् 1526 (सन् 1469) कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा को हिन्दु परिवार में श्री कालु राम मेहत्ता (खत्री) के घर माता श्रीमति तृप्ता देवी की पवित्र कोख (गर्भ) से पश्चिमी पाकिस्त्तान के जिला लाहौर के तलवंडी नामक गाँव में हुआ। इन्होंने फारसी, पंजाबी, संस्कृत भाषा पढ़ी हुई थी। श्रीमद् भगवत गीता जी को श्री बृजलाल पांडे से पढ़ा करते थे। श्री नानक देव जी के श्री चन्द तथा लखमी चन्द दो लड़के थे।

    श्री नानक जी अपनी बहन नानकी की सुसराल शहर सुल्तान पुर में अपने बहनोई श्री जयराम जी की कृपा से सुल्तान पुर के नवाब के यहाँ मोदीखाने की नौकरी किया करते थे। प्रभु में असीम प्रेम था क्योंकि यह पुण्यात्मा युगों-युगों से पवित्र भक्ति ब्रह्म भगवान(काल) की करते हुए आ रहे थे। सत्ययुग में यही नानक जी राजा अम्ब्रीष थे तथा ब्रह्म भक्ति विष्णु जी को इष्ट मानकर किया करते थे। दुर्वासा जैसे महान तपस्वी ऋषि भी इनके दरबार में हार मान कर क्षमा याचना करके गए थे।

    त्रेता युग में श्री नानक जी की आत्मा राजा जनक विदेही बने। जो सीता जी के पिता कहलाए। उस समय सुखदेव ऋषि जो महर्षि वेदव्यास के पुत्र थे जो अपनी सिद्धि से आकाश में उड़ जाते थे। परन्तु गुरु से उपदेश नहीं ले रखा था। जब सुखदेव विष्णुलोक के स्वर्ग में गए तो गुरु न होने के कारण वापिस आना पड़ा। विष्णु जी के आदेश से राजा जनक को गुरु बनाया तब स्वर्ग में स्थान प्राप्त हुआ। फिर कलियुग में यही राजा जनक की आत्मा एक हिन्दु परिवार में श्री कालुराम महत्ता (खत्री) के घर उत्पन्न हुए तथा श्री नानक नाम रखा गया।

 🛐नानक जी तथा परमेश्वर कबीर जी की ज्ञान चर्चा
 
बाबा नानक देव जी प्रातःकाल प्रतिदिन सुल्तानपुर के पास बह रही बेई दरिया में स्नान करने जाया करते थे तथा घण्टों प्रभु चिन्तन में बैठे रहते थे।

    एक दिन एक जिन्दा फकीर बेई दरिया पर मिले तथा नानक जी से कहा कि आप बहुत अच्छे प्रभु भक्त नजर आते हो। कृप्या मुझे भी भक्ति मार्ग बताने की कृपा करें। मैं बहुत भटक लिया हूँ। मेरा संशय समाप्त नहीं हो पाया है।

    श्री नानक जी ने पूछा कि आप कहाँ से आए हो? आपका क्या नाम है? क्या आपने कोई गुरु धारण किया है?

    तब जिन्दा फकीर का रूप धारण किए कबीर जी ने कहा मेरा नाम कबीर है, बनारस (काशी) से आया हूँ। जुलाहे का काम करता हूँं। मैंने पंडित रामानन्द स्वामी जी से नाम उपदेश ले रखा है।

    श्री नानक जी ने बन्दी छोड़ कबीर जी को एक जिज्ञासु जानकर भक्ति मार्ग बताना प्रारम्भ किया:-

    श्री नानक जी ने कहा हे जिन्दा! गीता में लिखा है कि एक ‘ओ3म’ मंत्र का जाप करो। सतगुण श्री विष्णु जी (जो श्री कृष्ण रूप में अवतरित हुए थे) ही पूर्ण परमात्मा है। स्वर्ग प्राप्ति का एक मात्र साधारण-मार्ग है। गुरु के बिना मोक्ष नहीं, निराकार ब्रह्म की एक ‘ओम् ’मंत्र की साधना से स्वर्ग प्राप्ति होती है।

    जिन्दा रूप में कबीर परमेश्वर ने कहा गुरु किसे बनाऊँ? कोई पूरा गुरु मिल ही नहीं रहा जो संशय समाप्त करके मन को भक्ति में लगा सके।

    स्वामी रामानन्द जी मेरे गुरु हैं परन्तु उन से मेरा संशय निवारण नहीं हो पाया है(यहाँ पर कबीर परमेश्वर अपने आप को छुपा कर लीला करते हुए कह रहे हैं तथा साथ में यह उद्देश्य है कि इस प्रकार श्री नानक जी को समझाया जा सकता है।)।

    श्री नानक जी ने कहा मुझे गुरु बनाओ, आप का कल्याण निश्चित है। जिन्दा महात्मा के रूप में कबीर परमेश्वर ने कहा कि मैं आप को गुरु धारण करता हूँ, परन्तु मेरे कुछ प्रश्न हैं, उनका आप से समाधान चाहूँगा। श्री नानक जी बोले - पूछो। जिन्दा महात्मा के रूप में कबीर परमेश्वर ने कहा हे गुरु नानक जी! आपने बताया कि तीन लोक के प्रभु (रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु तथा तमगुण शिव) है। त्रिगुण माया सृष्टि, स्थिति तथा संहार करती है। श्री कृष्ण जी ही श्री विष्णु रूप में स्वयं आए थे, जो सर्वेश्वर, अविनाशी, सर्व लोकों के धारण व पोषण कर्ता हैं। यह सर्व के पूज्य हैं तथा सृष्टि रचनहार भी यही हैं। इनसे ऊपर कोई प्रभु नहीं है। इनके माता-पिता नहीं है, ये तो अजन्मा हैं। श्री कृष्ण ने ही गीता ज्ञान दिया है(यह ज्ञान श्री नानक जी ने श्री बृजलाल पाण्डे से सुना था, जो उन्हें गीता जी पढ़ाया करते थे)। परन्तु गीता अध्याय 2 श्लोक 12, अध्याय 4 श्लोक 5 में गीता ज्ञान दाता ने कहा है कि अर्जुन! मैं तथा तू पहले भी थे तथा यह सर्व सैनिक भी थे, हम सब आगे भी उत्पन्न होंगे। तेरे तथा मेरे बहुत जन्म हो चुके हैं, तू नहीं जानता मैं जानता हूँ। इससे तो सिद्ध है कि गीता ज्ञान दाता भी नाशवान है, अविनाशी नहीं है। गीता अध्याय 7 श्लोक 15 में गीता ज्ञान दाता प्रभु कह रहा है कि जो त्रिगुण माया (रजगुण ब्रह्मा जी, सतगुण विष्णु जी, तमगुण शिवजी) के द्वारा मिलने वाले क्षणिक लाभ के कारण इन्हीं की पूजा करके अपना कल्याण मानते हैं, इनसे ऊपर किसी शक्ति को नहीं मानते अर्थात् जिनकी बुद्धि इन्हीं तीन प्रभुओं(त्रिगुणमयी माया) तक सीमित है वे राक्षस स्वभाव को धारण किए हुए, मनुष्यों में नीच, दुष्कर्म करने वाले, मूर्ख मुझे भी नहीं पूजते। इससे तो सिद्ध हुआ कि श्री विष्णु (सतगुण) आदि पूजा के योग्य नहीं है तथा अपनी साधना के विषय में गीता ज्ञान दाता प्रभु ने गीता अध्याय 7 श्लोक 18 में कहा है कि मेरी (गति) पूजा भी (अनुत्तमाम्) अति घटिया है। इसलिए गीता अध्याय 15 श्लोक 4, अध्याय 18 श्लोक 62 में कहा है कि उस परमेश्वर की शरण में जा जिसकी कृपा से ही तू परम शान्ति तथा सनातन परम धाम सतलोक चला जाएगा। जहाँ जाने के पश्चात् साधक का जन्म-मृत्यु का चक्र सदा के लिए छूट जाएगा। वह साधक फिर लौट कर संसार में नहीं आता अर्थात् पूर्ण मोक्ष प्राप्त करता है। उस परमात्मा के विषय में गीता ज्ञान दाता प्रभु ने कहा है कि मैं नहीं जानता। उस के विषय में पूर्ण (तत्व) ज्ञान तत्वदर्शी संतों से पूछो। जैसे वे कहें वैसे साधना करो। प्रमाण गीता अध्याय 4 श्लोक 34 में। श्री नानक जी से परमेश्वर कबीर साहेब जी ने कहा कि क्या वह तत्वदर्शी संत आपको मिला है जो पूर्ण परमात्मा की भक्ति विधि बताएगा ? श्री नानक जी ने कहा नहीं मिला। परमेश्वर कबीर जी ने कहा जो भक्ति आप कर रहे हो यह तो पूर्ण मोक्ष दायक नहीं है। उस पूर्ण परमात्मा के विषय में पूर्ण ज्ञान रखने वाला मैं ही वह तत्वदर्शी संत हूँ। बनारस (काशी) में धाणक (जुलाहे) का कार्य करता हूँ। गीता ज्ञान दाता प्रभु स्वयं को नाशवान कह रहा है, जब स्वर्ग तथा महास्वर्ग (ब्रह्मलोक) भी नहीं रहेगा तो साधक का क्या होगा ? जैसे आप ने बताया कि श्रीमद् भगवत गीता में लिखा है कि ओ3म मंत्र के जाप से स्वर्ग प्राप्ति हो जाती है। वहाँ स्वर्ग में साधक जन कितने दिन रह सकते हैं? श्री नानक जी ने उत्तर दिया जितना भजन तथा दान के आधार पर उनका स्वर्ग का समय निर्धारित होगा उतने दिन स्वर्ग में आनन्द से रह सकते हैं।

    जिन्दा फकीर ने प्रश्न किया कि तत् पश्चात् कहाँ जाएँगे?
    उत्तर (नानक जी का) - फिर इस मृत लोक में आना होता है तथा कर्माधार पर अन्य योनियाँ भी भोगनी पड़ती हैं।

    प्रश्न (जिन्दा रूप में कबीर साहेब का)- क्या जन्म मरण मिट सकता है? उत्तर (श्री नानक जी का) - नहीं, गीता में कहा है अर्जुन तेरे मेरे अनेक जन्म हो चुके हैं और आगे भी होंगे अर्थात् जन्म-मरण बना रहेगा(गीता अध्याय 2 श्लोक 12 तथा अध्याय 4 श्लोक 5)। शुभ कर्म ज्यादा करने से स्वर्ग का समय अधिक हो जाता है।

    प्रश्न {जिन्दा फकीर (कबीर जी) का} - गीता अध्याय न. 8 के श्लोक न. 16 में लिखा है कि ब्रह्मलोक से लेकर सर्वलोक नाशवान हैं। उस समय कहाँ रहोगे? जब न पृथ्वी रहेगी, न श्री विष्णु रहेगा, न विष्णुलोक, न स्वर्ग लोक तथा पूरे ब्रह्मण्ड का विनाश होगा। इसलिए गीता ज्ञान दाता प्रभु कह रहा है कि किसी तत्वदर्शी संत की खोज कर, फिर जैसे उस पूर्ण परमात्मा की प्राप्ति की विधि वह संत बताए उसके अनुसार साधना कर। उसके पश्चात् उस परम पद परमेश्वर की खोज करनी चाहिए, जहाँ पर जाने के पश्चात् साधक का फिर जन्म-मृत्यु कभी नहीं होता अर्थात् फिर लौट कर संसार में नहीं आते। जिस परमेश्वर से सर्व ब्रह्मण्डों की उत्पत्ति हुई है। मैं (गीता ज्ञान दाता) भी उसी पूर्ण परमात्मा की शरण में हूँ (गीता अध्याय 4 श्लोक 34, अध्याय 15 श्लोक 4) इसलिए कहा है कि अर्जुन सर्व भाव से उस परमेश्वर की शरण में जा जिसकी कृपा से ही तू परम शान्ति तथा सतलोक स्थान अर्थात् सच्चखण्ड में चला जाएगा(गीता अध्याय 18 श्लोक 62)। उस पूर्ण परमात्मा की प्राप्ति का ओम-तत्-सत् केवल यही मंत्र है(गीता अध्याय 17 श्लोक 23)।

    उत्तर नानक जी का - इसके बारे में मुझे ज्ञान नहीं।
    जिन्दा फकीर (कबीर साहेब) ने श्री नानक जी को बताया कि यह सर्व काल की कला है। गीता अध्याय न. 11 के श्लोक न. 32 में स्वयं गीता ज्ञान दाता ब्रह्म ने कहा है कि मैं काल हूँ और सभी को खाने के लिए आया हूँ। वही निरंकार कहलाता है। उसी काल का ओंकार (ओम्) मंत्र है।

    गीता अध्याय न. 11 के श्लोक न. 21 में अर्जुन ने कहा है कि आप तो ऋषियों को भी खा रहे हो, देवताओं को भी खा रहे हो जो आपही का स्मरण स्तुति वेद विधि अनुसार कर रहे हैं। इस प्रकार काल वश सर्व साधक साधना करके उसी के मुख में प्रवेश करते रहते हैं। आपने इसी काल (ब्रह्म) की साधना करते करते असंख्यों युग हो गए। साठ हजार जन्म तो आपके महर्षि तथा महान भक्त रूप में हो चुके हैं। फिर भी काल के लोक में जन्म-मृत्यु के चक्र में ही रहे हो।

    सर्व सृष्टि रचना सुनाई तथा श्री ब्रह्मा (रजगुण), श्री विष्णु (सतगुण) तथा श्री शिव (तमगुण) की स्थिति बताई। श्री देवी महापुराण तीसरा स्कंद (पृष्ठ 123, गीता प्रैस गोरखपुर से प्रकाशित, मोटा टाईप) में स्वयं विष्णु जी ने कहा है कि मैं (विष्णु) तथा ब्रह्मा व शिव तो नाशवान हैं, अविनाशी नहीं हैं। हमारा तो आविर्भाव (जन्म) तथा तिरोभाव (मृत्यु) होता है। आप (दुर्गा/अष्टांगी) हमारी माता हो। दुर्गा ने बताया कि ब्रह्म (ज्योति निरंजन) आपका पिता है। श्री शंकर जी ने स्वीकार किया कि मैं तमोगुणी लीला करने वाला शंकर भी आपका पुत्र हूँ तथा ब्रह्मा भी आपका बेटा है। परमेश्वर कबीर जी ने कहा कि हे नानक जी! आप इन्हें अविनाशी, अजन्मा, इनके कोई माता-पिता नहीं हैं आदि उपमा दे रहे हो। यह दोष आप का नहीं है। यह दोष दोनों धर्मों(हिन्दू तथा मुसलमान) के ज्ञानहीन गुरुओं का है जो अपने-अपने धर्म के सद्ग्रन्थों को ठीक से न समझ कर अपनी-अपनी अटकल से दंत कथा (लोकवेद) सुना कर वास्तविक भक्ति मार्ग के विपरीत शास्त्रा विधि रहित मनमाना आचरण (पूजा) का ज्ञान दे रहे हैं। दोनों ही पवित्र धर्मों के पवित्र शास्त्रा एक पूर्ण प्रभु का(मेरा) ही ज्ञान करा रहे हैं। र्कुआन शरीफ में सूरत फुर्कानि 25 आयत 52 से 59 में भी मुझ कबीर का वर्णन है।

    श्री नानक जी ने कहा कि यह तो आज तक किसी ने नहीं बताया। इसलिए मन स्वीकार नहीं कर रहा है। तब जिन्दा फकीर जी (कबीर साहेब जी) श्री नानक जी की अरूचि देखकर चले गए। उपस्थित व्यक्तियों ने श्री नानक जी से पूछा यह भक्त कौन था जो आप को गुरुदेव कह रहा था? नानक जी ने कहा यह काशी में रहता है, नीच जाति का जुलाहा(धाणक) कबीर था। बेतुकी बातें कर रहा था। कह रहा था कि कृष्ण जी तो काल के चक्र में है तथा मुझे भी कह रहा था कि आपकी साधना ठीक नहीं है। तब मैंने बताना शुरू किया तब हार मान कर चला गया। {इस वार्ता से सिक्खों ने श्री नानक जी को परमेश्वर कबीर साहेब जी का गुरु मान लिया।}

    श्री नानक जी प्रथम वार्ता पूज्य कबीर परमेश्वर के साथ करने के पश्चात् यह तो जान गए थे कि मेरा ज्ञान पूर्ण नहीं है तथा गीता जी का ज्ञान भी उससे कुछ भिन्न ही है जो आज तक हमें बताया गया था। इसलिए हृदय से प्रतिदिन प्रार्थना करते थे कि वही संत एक बार फिर आए। मैं उससे कोई वाद-विवाद नहीं करूंगा, कुछ प्रश्नों का उत्तर अवश्य चाहूँगा। परमेश्वर कबीर जी तो अन्तर्यामी हैं तथा आत्मा के आधार व आत्मा के वास्तविक पिता हैं, अपनी प्यारी आत्माओं को ढूंढते रहते हैं। कुछ समय के ऊपरान्त जिन्दा फकीर रूप में कबीर जी ने उसी बेई नदी के किनारे पहुँच कर श्री नानक जी को राम-राम कहा। उस समय श्री नानक जी कपड़े उतार कर स्नान के लिए तैयार थे। जिन्दा महात्मा केवल श्री नानक जी को दिखाई दे रहे थे अन्य को नहीं। श्री नानक जी से वार्ता करने लगे। कबीर जी ने कहा कि आप मेरी बात पर विश्वास करो। एक पूर्ण परमात्मा है तथा उसका सतलोक स्थान है जहाँ की भक्ति करने से जीव सदा के लिए जन्म-मरण से छूट सकता है। उस स्थान तथा उस परमात्मा की प्राप्ति की साधना का केवल मुझे ही पता है अन्य को नहीं तथा गीता अध्याय न. 18 के श्लोक न. 62, अध्याय 15 श्लोक 4 में भी उस परमात्मा तथा स्थान के विषय में वर्णन है।

    पूर्ण परमात्मा गुप्त है उसकी शरण में जाने से उसी की कृपा से तू (शाश्वतम्) अविनाशी अर्थात् सत्य (स्थानम्) लोक को प्राप्त होगा। गीता ज्ञान दाता प्रभु भी कह रहा है कि मैं भी उसी आदि पुरुष परमेश्वर नारायण की शरण में हूँ। श्री नानक जी ने कहा कि मैं आपकी एक परीक्षा लेना चाहता हूँ। मैं इस दरिया में छुपूँगा और आप मुझे ढूंढ़ना। यदि आप मुझे ढूंढ दोगे तो मैं आपकी बात पर विश्वास कर लूँगा। यह कह कर श्री नानक जी ने बेई नदी में डुबकी लगाई तथा मछली का रूप धारण कर लिया। जिन्दा फकीर (कबीर पूर्ण परमेश्वर) ने उस मछली को पकड़ कर जिधर से पानी आ रहा था उस ओर लगभग तीन किलो मीटर दूर ले गए तथा श्री नानक जी बना दिया।
    (प्रमाण श्री गुरु ग्रन्थ साहेब सीरी रागु महला पहला, घर 4 पृष्ठ 25) -

    तू दरीया दाना बीना, मैं मछली कैसे अन्त लहा।
    जह-जह देखा तह-तह तू है, तुझसे निकस फूट मरा।
    न जाना मेऊ न जाना जाली। जा दुःख लागै ता तुझै समाली।1।रहाऊ।।

    नानक जी ने कहा कि मैं मछली बन गया था, आपने कैसे ढूंढ लिया? हे परमेश्वर! आप तो दरीया के अंदर सूक्ष्म से भी सूक्ष्म वस्तु को जानने वाले हो। मुझे तो जाल डालने वाले(जाली) ने भी नहीं जाना तथा गोताखोर(मेऊ) ने भी नहीं जाना अर्थात् नहीं जान सका। जब से आप के सतलोक से निकल कर अर्थात् आप से बिछुड़ कर आए हैं तब से कष्ट पर कष्ट उठा रहा हूँ। जब दुःख आता है तो आपको ही याद करता हूँ, मेरे कष्टों का निवारण आप ही करते हो? (उपरोक्त वार्ता बाद में काशी में प्रभु के दर्शन करके हुई थी)।

    तब नानक जी ने कहा कि अब मैं आपकी सर्व वार्ता सुनने को तैयार हूँ। कबीर परमेश्वर ने वही सृष्टि रचना पुनर् सुनाई तथा कहा कि मैं पूर्ण परमात्मा हूँ मेरा स्थान सच्चखण्ड (सत्यलोक) है। आप मेरी आत्मा हो। काल (ब्रह्म) आप सर्व आत्माओं को भ्रमित ज्ञान से विचलित करता है तथा नाना प्रकार से प्राणियों के शरीर में बहुत परेशान कर रहा है। मैं आपको सच्चानाम (सत्यनाम/वास्तविक मंत्र जाप) दूँगा जो किसी शास्त्रा में नहीं है। जिसे काल (ब्रह्म) ने गुप्त कर रखा है।

    श्री नानक जी ने कहा कि मैं अपनी आँखों अकाल पुरूष तथा सच्चखण्ड को देखूं तब आपकी बात को सत्य मानूं। तब कबीर साहेब जी श्री नानक जी की पुण्यात्मा को सत्यलोक ले गए। सच्च खण्ड में श्री नानक जी ने देखा कि एक असीम तेजोमय मानव सदृश शरीर युक्त प्रभु तख्त पर बैठे थे। अपने ही दूसरे स्वरूप पर कबीर साहेब जिन्दा महात्मा के रूप में चंवर करने लगे। तब श्री नानक जी ने सोचा कि अकाल मूर्त तो यह रब है जो गद्दी पर बैठा है। कबीर तो यहाँ का सेवक होगा। उसी समय जिन्दा रूप में परमेश्वर कबीर साहेब उस गद्दी पर विराजमान हो गए तथा जो तेजोमय शरीर युक्त प्रभु का दूसरा रूप था वह खड़ा होकर तख्त पर बैठे जिन्दा वाले रूप पर चंवर करने लगा। फिर वह तेजोमय रूप नीचे से गये जिन्दा (कबीर) रूप में समा गया तथा गद्दी पर अकेले कबीर परमेश्वर जिन्दा रूप में बैठे थे और चंवर अपने आप ढुरने लगा।

    तब नानक जी ने कहा कि वाहे गुरु, सत्यनाम से प्राप्ति तेरी। इस प्रक्रिया में तीन दिन लग गए। नानक जी की आत्मा को साहेब कबीर जी ने वापस शरीर में प्रवेश कर दिया। तीसरे दिन श्री नानक जी होश में आऐ।

    उधर श्री जयराम जी ने (जो श्री नानक जी का बहनोई था) श्री नानक जी को दरिया में डूबा जान कर दूर तक गोताखोरों से तथा जाल डलवा कर खोज करवाई। परन्तु कोशिश निष्फल रही और मान लिया कि श्री नानक जी दरिया के अथाह वेग में बह कर मिट्टी के नीचे दब गए। तीसरे दिन जब नानक जी उसी नदी के किनारे सुबह-सुबह दिखाई दिए तो बहुत व्यक्ति एकत्रित हो गए, बहन नानकी तथा बहनोई श्री जयराम भी दौड़े गए, खुशी का ठिकाना नहीं रहा तथा घर ले आए।

    श्री नानक जी अपनी नौकरी पर चले गए। मोदी खाने का दरवाजा खोल दिया तथा कहा जिसको जितना चाहिए, ले जाओ। पूरा खजाना लुटा कर शमशान घाट पर बैठ गए। जब नवाब को पता चला कि श्री नानक खजाना समाप्त करके शमशान घाट पर बैठा है। तब नवाब ने श्री जयराम की उपस्थिति में खजाने का हिसाब करवाया तो सात सौ साठ रूपये अधिक मिले। नवाब ने क्षमा याचना की तथा कहा कि नानक जी आप सात सौ साठ रूपये जो आपके सरकार की ओर अधिक हैं ले लो तथा फिर नौकरी पर आ जाओ। तब श्री नानक जी ने कहा कि अब सच्ची सरकार की नौकरी करूँगा। उस पूर्ण परमात्मा के आदेशानुसार अपना जीवन सफल करूँगा। वह पूर्ण परमात्मा है जो मुझे बेई नदी पर मिला था।

    नवाब ने पूछा वह पूर्ण परमात्मा कहाँ रहता है तथा यह आदेश आपको कब हुआ? श्री नानक जी ने कहा वह सच्चखण्ड में रहता हेै। बेई नदी के किनारे से मुझे स्वयं आकर वही पूर्ण परमात्मा सच्चखण्ड (सत्यलोक) लेकर गया था। वह इस पृथ्वी पर भी आकार में आया हुआ है। उसकी खोज करके अपना आत्म कल्याण करवाऊँगा। उस दिन के बाद श्री नानक जी घर त्याग कर पूर्ण परमात्मा की खोज पृथ्वी पर करने के लिए चल पड़े। श्री नानक जी सतनाम तथा वाहिगुरु की रटना लगाते हुए बनारस पहुँचे। इसीलिए अब पवित्र सिक्ख समाज के श्रद्धालु केवल सत्यनाम श्री वाहिगुरु कहते रहते हैं। सत्यनाम क्या है तथा वाहिगुरु कौन है यह मालूम नहीं है। जबकि सत्यनाम(सच्चानाम) गुरु ग्रन्थ साहेब में लिखा है, जो अन्य मंत्र है।

    जैसा की कबीर साहेब ने बताया था कि मैं बनारस (काशी) में रहता हूँ। धाणक (जुलाहे) का कार्य करता हूँ। मेरे गुरु जी काशी में सर्व प्रसिद्ध पंडित रामानन्द जी हैं। इस बात को आधार रखकर श्री नानक जी ने संसार से उदास होकर पहली उदासी यात्रा बनारस (काशी) के लिए प्रारम्भ की (प्रमाण के लिए देखें ‘‘जीवन दस गुरु साहिब‘‘ (लेखक:- सोढ़ी तेजा सिंह जी, प्रकाशक=चतर सिंघ, जीवन सिंघ) पृष्ठ न. 50 पर।)।

    परमेश्वर कबीर साहेब जी स्वामी रामानन्द जी के आश्रम में प्रतिदिन जाया करते थे। जिस दिन श्री नानक जी ने काशी पहुँचना था उससे पहले दिन कबीर साहेब ने अपने पूज्य गुरुदेव रामानन्द जी से कहा कि स्वामी जी कल मैं आश्रम में नहीं आ पाऊँगा। क्योंकि कपड़ा बुनने का कार्य अधिक है। कल सारा दिन लगा कर कार्य निपटा कर फिर आपके दर्शन करने आऊँगा।

    काशी(बनारस) में जाकर श्री नानक जी ने पूछा कोई रामानन्द जी महाराज है। सब ने कहा वे आज के दिन सर्व ज्ञान सम्पन्न ऋषि हैं। उनका आश्रम पंचगंगा घाट के पास है। श्री नानक जी ने श्री रामानन्द जी से वार्ता की तथा सच्चखण्ड का वर्णन शुरू किया। तब श्री रामानन्द स्वामी ने कहा यह पहले मुझे किसी शास्त्रा में नहीं मिला परन्तु अब मैं आँखों देख चुका हूँ, क्योंकि वही परमेश्वर स्वयं कबीर नाम से आया हुआ है तथा मर्यादा बनाए रखने के लिए मुझे गुरु कहता है परन्तु मेरे लिए प्राण प्रिय प्रभु है। पूर्ण विवरण चाहिए तो मेरे व्यवहारिक शिष्य परन्तु वास्तविक गुरु कबीर से पूछो, वही आपकी शंका का निवारण कर सकता है।

    श्री नानक जी ने पूछा कि कहाँ हैं (परमेश्वर स्वरूप) कबीर साहेब जी ? मुझे शीघ्र मिलवा दो। तब श्री रामानन्द जी ने एक सेवक को श्री नानक जी के साथ कबीर साहेब जी की झोपड़ी पर भेजा। उस सेवक से भी सच्चखण्ड के विषय में वार्ता करते हुए श्री नानक जी चले तो उस कबीर साहेब के सेवक ने भी सच्चखण्ड व सृष्टि रचना जो परमेश्वर कबीर साहेब जी से सुन रखी थी सुनाई। तब श्री नानक जी ने आश्चर्य हुआ कि मेरे से तो कबीर साहेब के चाकर (सेवक) भी अधिक ज्ञान रखते हैं। इसीलिए गुरुग्रन्थ साहेब पृष्ठ 721 पर अपनी अमृतवाणी महला 1 में श्री नानक जी ने कहा है कि -

    “हक्का कबीर करीम तू, बेएब परवरदीगार।
    नानक बुगोयद जनु तुरा, तेरे चाकरां पाखाक”

    जिसका भावार्थ है कि हे कबीर परमेश्वर जी मैं नानक कह रहा हूँ कि मेरा उद्धार हो गया, मैं तो आपके सेवकों के चरणों की धूर तुल्य हूँ।

    जब नानक जी ने देखा यह धाणक (जुलाहा) वही परमेश्वर है जिसके दर्शन सत्यलोक (सच्चखण्ड) में किए तथा बेई नदी पर हुए थे। वहाँ यह जिन्दा महात्मा के वेश में थे यहाँ धाणक (जुलाहे) के वेश में हैं। यह स्थान अनुसार अपना वेश बदल लेते हैं परन्तु स्वरूप (चेहरा) तो वही है। वही मोहिनी सूरत जो सच्चखण्ड में भी विराजमान था। वही करतार आज धाणक रूप में बैठा है। श्री नानक जी की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। आँखों में आँसू भर गए।

    तब श्री नानक जी अपने सच्चे स्वामी अकाल मूर्ति को पाकर चरणों में गिरकर सत्यनाम (सच्चानाम) प्राप्त किया। तब शान्ति पाई तथा अपने प्रभु की महिमा देश विदेश में गाई।

    पहले श्री नानकदेव जी एक ओंकार(ओम) मन्त्रा का जाप करते थे तथा उसी को सत मान कर कहा करते थे एक ओंकार। उन्हें बेई नदी पर कबीर साहेब ने दर्शन दे कर सतलोक(सच्चखण्ड) दिखाया तथा अपने सतपुरुष रूप को दिखाया। जब सतनाम का जाप दिया तब नानक जी की काल लोक से मुक्ति हुई। नानक जी ने कहा कि:
    इसी का प्रमाण गुरु ग्रन्थ साहिब के राग ‘‘सिरी‘‘ महला 1 पृष्ठ नं. 24 पर शब्द नं. 29

    शब्द - एक सुआन दुई सुआनी नाल, भलके भौंकही सदा बिआल
    कुड़ छुरा मुठा मुरदार, धाणक रूप रहा करतार।।1।।
    मै पति की पंदि न करनी की कार। उह बिगड़ै रूप रहा बिकराल।।
    तेरा एक नाम तारे संसार, मैं ऐहो आस एहो आधार।
    मुख निंदा आखा दिन रात, पर घर जोही नीच मनाति।।
    काम क्रोध तन वसह चंडाल, धाणक रूप रहा करतार।।2।।
    फाही सुरत मलूकी वेस, उह ठगवाड़ा ठगी देस।।
    खरा सिआणां बहुता भार, धाणक रूप रहा करतार।।3।।
    मैं कीता न जाता हरामखोर, उह किआ मुह देसा दुष्ट चोर।
    नानक नीच कह बिचार, धाणक रूप रहा करतार।।4।।

    इसमें स्पष्ट लिखा है कि एक(मन रूपी) कुत्ता तथा इसके साथ दो (आशा-तृष्णा रूपी) कुतिया अनावश्यक भौंकती(उमंग उठती) रहती हैं तथा सदा नई-नई आशाएँ उत्पन्न(ब्याती हैं) होती हैं। इनको मारने का तरीका(जो सत्यनाम तथा तत्व ज्ञान बिना) झुठा(कुड़) साधन(मुठ मुरदार) था। मुझे धाणक के रूप में हक्का कबीर (सत कबीर) परमात्मा मिला। उन्होनें मुझे वास्तविक उपासना बताई।

    नानक जी ने कहा कि उस परमेश्वर(कबीर साहेब) की साधना बिना न तो पति(साख) रहनी थी और न ही कोई अच्छी करनी(भक्ति की कमाई) बन रही थी। जिससे काल का भयंकर रूप जो अब महसूस हुआ है उससे केवल कबीर साहेब तेरा एक(सत्यनाम) नाम पूर्ण संसार को पार(काल लोक से निकाल सकता है) कर सकता है। मुझे(नानक जी कहते हैं) भी एही एक तेरे नाम की आश है व यही नाम मेरा आधार है। पहले अनजाने में बहुत निंदा भी की होगी क्योंकि काम क्रोध इस तन में चंडाल रहते हैं।

    मुझे धाणक(जुलाहे का कार्य करने वाले कबीर साहेब) रूपी भगवान ने आकर सतमार्ग बताया तथा काल से छुटवाया। जिसकी सुरति(स्वरूप) बहुत प्यारी है मन को फंसाने वाली अर्थात् मन मोहिनी है तथा सुन्दर वेश-भूषा में(जिन्दा रूप में) मुझे मिले उसको कोई नहीं पहचान सकता। जिसने काल को भी ठग लिया अर्थात् दिखाई देता है धाणक(जुलाहा) फिर बन गया जिन्दा। काल भगवान भी भ्रम में पड़ गया भगवान(पूर्णब्रह्म) नहीं हो सकता। इसी प्रकार परमेश्वर कबीर साहेब अपना वास्तविक अस्तित्व छुपा कर एक सेवक बन कर आते हैं। काल या आम व्यक्ति पहचान नहीं सकता। इसलिए नानक जी ने उसे प्यार में ठगवाड़ा कहा है और साथ में कहा है कि वह धाणक(जुलाहा कबीर) बहुत समझदार है। दिखाई देता है कुछ परन्तु है बहुत महिमा(बहुता भार) वाला जो धाणक जुलाहा रूप मंे स्वयं परमात्मा पूर्ण ब्रह्म(सतपुरुष) आया है। प्रत्येक जीव को आधीनी समझाने के लिए अपनी भूल को स्वीकार करते हुए कि मैंने(नानक जी ने) पूर्णब्रह्म के साथ बहस(वाद-विवाद) की तथा उन्होनें (कबीर साहेब ने) अपने आपको भी (एक लीला करके) सेवक रूप में दर्शन दे कर तथा(नानक जी को) मुझको स्वामी नाम से सम्बोधित किया। इसलिए उनकी महानता तथा अपनी नादानी का पश्चाताप करते हुए श्री नानक जी ने कहा कि मैं(नानक जी) कुछ करने कराने योग्य नहीं था। फिर भी अपनी साधना को उत्तम मान कर भगवान से सम्मुख हुआ(ज्ञान संवाद किया)। मेरे जैसा नीच दुष्ट, हरामखोर कौन हो सकता है जो अपने मालिक पूर्ण परमात्मा धाणक रूप(जुलाहा रूप में आए करतार कबीर साहेब) को नहीं पहचान पाया? श्री नानक जी कहते हैं कि यह सब मैं पूर्ण सोच समझ से कह रहा हूँ कि परमात्मा यही धाणक (जुलाहा कबीर) रूप में है।

    भावार्थ:- श्री नानक साहेब जी कह रहे हैं कि यह फासने वाली अर्थात् मनमोहिनी शक्ल सूरत में तथा जिस देश में जाता है वैसा ही वेश बना लेता है, जैसे जिंदा महात्मा रूप में बेई नदी पर मिले, सतलोक में पूर्ण परमात्मा वाले वेश में तथा यहाँ उतर प्रदेश में धाणक(जुलाहे) रूप में स्वयं करतार (पूर्ण प्रभु) विराजमान है। आपसी वार्ता के दौरान हुई नोक-झोंक को याद करके क्षमा याचना करते हुए अधिक भाव से कह रहे हैं कि मैं अपने सत्भाव से कह रहा हूँ कि यही धाणक(जुलाहे) रूप में सत्पुरुष अर्थात् अकाल मूर्त ही है।
    दूसरा प्रमाण:- नीचे प्रमाण है जिसमें कबीर परमेश्वर का नाम स्पष्ट लिखा है। श्री गु.ग्रपृष् ठ नं. 721 राग तिलंग महला पहला में है।
    और अधिक प्रमाण के लिए प्रस्तुत है ‘‘राग तिलंग महला 1‘‘ पंजाबी गुरु ग्रन्थ साहेब पृष्ठ नं. 721

    यक अर्ज गुफतम पेश तो दर गोश कुन करतार।
    हक्का कबीर करीम तू बेएब परवरदिगार।।
    दूनियाँ मुकामे फानी तहकीक दिलदानी।
    मम सर मुई अजराईल गिरफ्त दिल हेच न दानी।।
    जन पिसर पदर बिरादराँ कस नेस्त दस्तं गीर।
    आखिर बयफ्तम कस नदारद चूँ शब्द तकबीर।।
    शबरोज गशतम दरहवा करदेम बदी ख्याल।
    गाहे न नेकी कार करदम मम ई चिनी अहवाल।।
    बदबख्त हम चु बखील गाफिल बेनजर बेबाक।
    नानक बुगोयद जनु तुरा तेरे चाकरा पाखाक।।

    सरलार्थ:-- (कुन करतार) हे शब्द स्वरूपी कर्ता अर्थात् शब्द से सर्व सृष्टि के रचनहार (गोश) निर्गुणी संत रूप में आए (करीम) दयालु (हक्का कबीर) सत कबीर (तू) आप (बेएब परवरदिगार) निर्विकार परमेश्वर हंै। (पेश तोदर) आपके समक्ष अर्थात् आप के द्वार पर (तहकीक) पूरी तरह जान कर (यक अर्ज गुफतम) एक हृदय से विशेष प्रार्थना है कि (दिलदानी) हे महबूब (दुनियां मुकामे) यह संसार रूपी ठिकाना (फानी) नाशवान है (मम सर मूई) जीव के शरीर त्यागने के पश्चात् (अजराईल) अजराईल नामक फरिश्ता यमदूत (गिरफ्त दिल हेच न दानी) बेरहमी के साथ पकड़ कर ले जाता है। उस समय (कस) कोई (दस्तं गीर) साथी (जन) व्यक्ति जैसे (पिसर) बेटा (पदर) पिता (बिरादरां) भाई चारा (नेस्तं) साथ नहीं देता। (आखिर बेफ्तम) अन्त में सर्व उपाय (तकबीर) फर्ज अर्थात् (कस) कोई क्रिया काम नहीं आती (नदारद चूं शब्द) तथा आवाज भी बंद हो जाती है (शबरोज) प्रतिदिन (गशतम) गसत की तरह न रूकने वाली (दर हवा) चलती हुई वायु की तरह (बदी ख्याल) बुरे विचार (करदेम) करते रहते हैं (नेकी कार करदम) शुभ कर्म करने का (मम ई चिनी) मुझे कोई (अहवाल) जरीया अर्थात् साधन (गाहे न) नहीं मिला (बदबख्त) ऐसे बुरे समय में (हम चु) हमारे जैसे (बखील) नादान (गाफील) ला परवाह (बेनजर बेबाक) भक्ति और भगवान का वास्तविक ज्ञान न होने के कारण ज्ञान नेत्र हीन था तथा ऊवा-बाई का ज्ञान कहता था। (नानक बुगोयद) नानक जी कह रहे हैं कि हे कबीर परमेश्वर आप की कृपा से (तेरे चाकरां पाखाक) आपके सेवकों के चरणों की धूर डूबता हुआ (जनु तूरा) बंदा पार हो गया।

    केवल हिन्दी अनुवाद:-- हे शब्द स्वरूपी राम अर्थात् शब्द से सर्व सृष्टि रचनहार दयालु ‘‘सतकबीर‘‘ आप निर्विकार परमात्मा हैं। आप के समक्ष एक हृदय से विनती है कि यह पूरी तरह जान लिया है हे महबूब यह संसार रूपी ठिकाना नाशवान है। हे दाता! इस जीव के मरने पर अजराईल नामक यम दूत बेरहमी से पकड़ कर ले जाता है कोई साथी जन जैसे बेटा पिता भाईचारा साथ नहीं देता। अन्त में सभी उपाय और फर्ज कोई क्रिया काम नहीं आता। प्रतिदिन गश्त की तरह न रूकने वाली चलती हुई वायु की तरह बुरे विचार करते रहते हैं। शुभ कर्म करने का मुझे कोई जरीया या साधन नहीं मिला। ऐसे बुरे समय कलियुग में हमारे जैसे नादान लापरवाह, सत मार्ग का ज्ञान न होने से ज्ञान नेत्र हीन था तथा लोकवेद के आधार से अनाप-सनाप ज्ञान कहता रहता था। नानक जी कहते हैं कि मैं आपके सेवकों के चरणों की धूर डूबता हुआ बन्दा नानक पार हो गया।

    भावार्थ - श्री गुरु नानक साहेब जी कह रहे हैं कि हे हक्का कबीर (सत् कबीर)! आप निर्विकार दयालु परमेश्वर हो। आप से मेरी एक अर्ज है कि मैं तो सत्यज्ञान वाली नजर रहित तथा आपके सत्यज्ञान के सामने तो निर्उत्तर अर्थात् जुबान रहित हो गया हूँ। हे कुल मालिक! मैं तो आपके दासों के चरणों की धूल हूँ, मुझे शरण में रखना।

    इसके पश्चात् जब श्री नानक जी को पूर्ण विश्वास हो गया कि पूर्ण परमात्मा तो गीता ज्ञान दाता प्रभु से अन्य ही है। वही पूजा के योग्य है। पूर्ण परमात्मा की भक्ति तथा ज्ञान के विषय में गीता ज्ञान दाता प्रभु भी अनभिज्ञ है। परमेश्वर स्वयं ही तत्वदर्शी संत रूप से प्रकट होकर तत्वज्ञान को जन-जन को सुनाता है। जिस ज्ञान को वेद भी नहीं जानते वह तत्वज्ञान केवल पूर्ण परमेश्वर (सतपुरुष) ही स्वयं आकर ज्ञान कराता है।

see more...
WATCH ...Sadhana channel daily 7:30 to 8:30pm

पोपकोर्न टीवी :- 7:30pm रोज देखे वास्तविक ज्ञान रहस्य

अधिक जानकारी के लिए मंगाए बिलकुल फ्री में
ज्ञान गंगा पवित्र पुस्तक जिसमे आपको सम्पूर्ण ज्ञान दर्शन होगा ,इस लिंक पर जाकर आपका ऑर्डर दर्ज करे और घर वैठे बिलकुल फ्री ज्ञान गंगा पुस्तक प्राप्त करे मानव जीवन को सफल बनाने का प्राइम टाइम है यह, 
, धन्यवाद
..

रविवार, 3 मई 2020

रहस्य जानिए, त्रिगुण, ब्रह्म, अक्षर ब्रह्म, परम अक्षर ब्रह्म, जड़ प्रकृति, चेतन प्रकृति, आदि के वास्तविक रहस्य जानकारी जानिए इस पोस्ट में

शास्त्रो में दर्ज कुछ बातो का रहस्य जानते है
#जड़_प्रकृति :- निर्जीव वस्तु :- यह वास्तब में ब्रहाण्ड में इंस्टाल विशेष प्रोग्राम सॉफ्टवेर है जिससे ब्रह्म अपने 21 ब्रह्मांडो का संचालन करता है नियंत्रित रखता है,,
#चेतन_प्रकृति :-  सजीव जिंदा मानव रूपी शक्ति :-  चेंतन का अर्थ  किसी जिंदा प्राण वाले की तरफ संकेत है, जिसका प्रयोग गीता ज्ञान प्रदाता  प्रकृति दुर्गा जी के लिए किया है , और इनको अपनी पत्नी कहा है


सम्पूर्ण मृत्युलोक में  2 शक्ति का जिक्र
#ब्रह्म :-  गीता ज्ञान दाता खुद को ब्रह्म कहता है, और खुद को जन्म व मृत्यु में होना बताता है और आगे कहता है वो खुद व उसके ब्रह्म लोक तक सभी लोक व ब्रह्माण्ड नाशवान है,  इससे मुक्त होकर अमर लोक जाने के लिए मनुष्य के लिए एक संकेत भी देताहै, इसका मृत्युलोक 21 ब्रह्माण्ड का एरिया है, इसका मन्त्र #प्रणव है

#अक्षर_ब्रह्म :-  ब्रह्म के मृत्युलोक के साथ बार्डर पर 16 शंख ब्रह्माण्ड का एरिया है, यह इससे ज्यादा शक्तिशाली है,  उम्र में इससे के गुना ज्यादा है, इसके यहां मनुष्य की आयु भी करोड़ो वर्षो की व यहां से ज्यादा सुखमय है, यह जीवो को कष्ट नही देता, लेकिन इसने भी घूमने आयी सभी जीवात्माओं को सब कुछ भुला दिया , इसका मन्त्र  #तत  है  जो गीता जि में स्पष्ट है,

#परम_अक्षर_ब्रह्म  :-  यह वास्तविक अजर अमर पूर्ण परमेश्वर , सर्व लोको व ब्रह्मांडो के रचनहार, व सबको  धारण पोषण करने वाले मूल शक्ति है,  जैसे बृक्ष की जड़ होती है जो पूरे बृक्ष को धारण पोषण करती है,  इन्होंने ही  ब्रह्म हो मृत्युलोक बनाकर दिया और उसका एडमिन भी देकर स्वामी  भगवान बना दिया,
इन्होंने ही अक्षर ब्रह्म को 16 शंख ब्रह्मांडो को बनाकर दिया व एडमिन देकर उसका स्वामी भगवान बना दिया,   अक्षर ब्रह्म को विशेष गलती के दंड में इसके सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड नाशवान बनाकर दिये जिस कारण यह मृत्युलोक कहा गया
ब्रह्म को अमर ब्रह्माण्ड जिनका कभी नाश नही होता बना कर दिये थे, लेकिन इसने भी एक विशेष गलती की थी, जिस कारण दंड स्वरूप परमेश्वर ने इसके ब्रह्मांडो की कोडिंग कमांड चेंज करते हुए सभी को नाशवान बना दिया ,  और  अजर अमर सनातन लोक के एक कोने में चारो तरफ से बन्द कर सम्पूर्ण काला अंधकारमय दुनिया को लोक कर दिया,  यहां कुछ जीवात्मायें परमेश्वर कविर के मना करने पर भी जबर्दस्ती घूमे ब इनसे मिलने आ गयी,  परम अक्षर ब्रह्म परमेश्वर कविर का मन्त्र #सत है,

 इनदोनो से सभी को सब कुछ भुलाकर बंधक बना लिया, किसी को देव किसी को दानव किसी को मानव किसी को पशु पक्षी जीवाणु आदि बनाकर अपनी इस दुनिया को सजाया,
परमेश्वर ने सनातन अजर अमर लोक से शक्ति सन्देश जैसे ब्लूटूथ ऐसे छोड़ा जो ब्रह्म के मुख से वेद रूप में निकला जिसमे सम्पूर्ण सच्चाई विस्तार से लिखी थी, और यहां के ब्रह्माण्ड, पृथ्वी आदि की भी सम्पूर्ण जानकारी थी,  सम्पूर्ण यहां का विज्ञान था जिसके प्रयोग से यहां आयी जीवात्मा मनुष्य रूप से सुख से रह सके, लेकिन इसने उसमे से बहुत इंपोर्टेंट पेज निकाल दिये, और समुद्र में छिपा दिये,  इसकी पूर्ति हेतु अब परमेश्वर ने अपनी  एक शक्ति मानव रूप #संतरामपालजीमहाराज जी को भेज दिया है,

गायत्री मन्त्र :- भूर्भुवः स्व: तत्सवितुर वरेन्यम भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात  इस वेद मन्त्र में मनुष्य की तरफ से परमेशर से प्रार्थना की गयी है की
हम जीवात्मा यहां इस अंधकारमय लोक नाशवान लोक में फंसे हुए है , हे परमेश्वर आप हम सभी पर दया करके हम सभी को अजर अमर स्व प्रकाशित लोक सनातन लोक को हमेशा के लिए ले चलिये,    परमात्मा ने यह पुकार सुनी और सन्त रामपाल जी स्वरूप में आ गये है, मूल।ज्ञान प्रदान कर मनुष्य जीव को माया से ऊपर उठा कर  #ब्रह्म_गायत्री से सुसज्जित कर  #प्रणव_तत_सत नामक  सतनाम मुक्तामणि से शक्ति सम्पन्न कर  हमेशा के लिए अजर अमर सनातन प्रकाश लोक ले जाएंगे,

#तीन_गुण_माया :-  माया का अर्थ वास्तविकता से दूर कर झूठ व अज्ञान में आधारित कर देना,  तीन अलग अलग  फ्रीक्वेंसी है जैसे रेडियो, टीवी, मोबाइल की होती है ऐसे ही,
ब्रह्म ने हर ब्रह्माण्ड में  ब्रहमा विष्णु शिव को प्रकट कर वाहा तीन लोक स्वर्ग पाताल पृथ्वी बनाकर उनका अधिपति बनाया व इनके शरीरो को नेटवर्क टावर बनाया जिनके शरीरो से यह फ्रीक्वेंसी तीनो लोको में ब्याप्त हो रही है जिसका वर्णन गीता जि में बहुत अच्छे से किया गया है

1#रजगुण  :-  देवी भागवत पुराण अनुसार ब्राह्मा जी इस गुण माया के प्रधान नेटवर्क ताबर है,

2 #रजोगुण :- देवी भागवत पुराण अनुसार विष्णु जी इस गुण माया के वाहक है

3:-  तमोगुण :-  देवी भागवत पुराण अनुसार शिव जी इस गुण माया के वाहक है,

काल/ महाकाल  : कुछ लोग शिव को कुछ लोग यमराज को काल कहते है,  लेकिन शास्त्र अनुसार शिव जी काल/ महाकाल नही है,    यह नाम प्रकृति दुर्गा के पति ब्रह्म के लिए यूज होता है क्योकि यह हर रोज 1 लाख मनुष्यो का भोगलगाता है,  और इसकी व्यवस्था दुर्गा सहित सर्व देवो।से करवाता है, इसके ही बिधान को विधि का बिधान कहते है जिसको यहां कोई भी नही टाल सकता, शास्त्र कहते है एस्सेको केवल परम अक्षर ब्रह्म कविर टाल सकते है उसकी शरण आया मनुष्य आदि जीव रक्षा पाता है मुक्त होता है

#प्रणव_तत_सत :- यह सतनाम मुक्ता मणि राम रसायन है  यह तीनो शब्द कोड वर्ड है इनके असली मतलब अलग है जिनको सद्गुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी से प्राप्त कर सनातन लोक के अधिकारी बने
देखिये साधना टीवी 7:30pm रोज


दिव्य ज्ञान पढ़िए इसको भी

यह मृत्युलोक का स्वामी अपनी माया जादू शक्ति से सभी जीवात्माओं को अज्ञान भूल में मोहित कर रखता है,
हर कल्प में एक जैसी स्टोरी चलता है , इस ब्रह्माण्ड में इसका सॉफ्टवेर इंस्टाल है जिसको शास्त्रो में #जड़_प्रकृति कहा है
  यह इसके प्रयोग से सबको नियंत्रित करता है, पुण्य आधार पर किसी जीवात्मा को ब्रह्मा, शिव , विष्णु, इंद्र आदि देवता की पदवी देता है, और खुद पर्दे के पीछे रहता है, अपनी पत्नी चेतन प्रकृति दुर्गा को आगे कर सर्व देवताओ को निर्देशित व नियंत्रित रखता है,  यह जब भी किसी को दर्शन देता है तो ये अपने असली रूप में न आकर किसी न किसी देवता के रूप में आकर काम कर जाता है और महिमा सम्बंधित देवता की बन जाती है,  इसने शास्त्रो में कहा है की मैं किसी भी जप तप ब्रत पूजा पाठ यज्ञ आदि धार्मिक क्रियाओ से नही मिलता ये सब व्यर्थ है,  क्योकि इसने कसम खाई है की किसी भी धार्मिक क्रियाओ के फल स्वरूप किसी को दर्शन नही देगा, 
यह नही चाहता की किसी भी जीवात्मा को इससे ऊपर वास्तविक अजर अमर परमेश्वर की जानकारी हो जाये
इसलिए जीवो को तरह तरह के अज्ञान,पाखंड, झूठ, आदि माया जाल में फंसा कर रखता है,
हर कल्प में किसी न किसी जीवात्मा को यह राक्षस बनाता है अन्य जीवात्माओं को ऋषि मनुष्य राजा, देवता आदि
 यह इनको आपस में लड़वाता रहता है ,  कहानिया पुराणों में आपने पड़ी होंगी यह भी जाना होगा हर कल्प में बार बार ऐसा ही होता है, यह बात प्रमसन है यह मरोत्युलोक का स्वामी बड़ा निर्दयी है बार बार जीवात्माओं की दुर्गति जान बूझकर करता है,  अजर अमर सनातन लोक को छोड़कर  भोली भाली जीवात्मायें इसके लोक में केवल घूमने आयी थी उन्होंने सोचा था की यहां भी सनातन लोक जैसा असीम आनंद आयेगा  लेकिन हो उल्टा गया अब किसी को कुछ याद नही,  सनातन लोक से सनातन परमेश्वर ने हमको सबकुछ याद कराने अपना एक रूप मानव रूप में भेज दिया है जिसकी पहचान है #संतरामपालजीमहाराज , इन्होंने अपना कार्य कर दिया है पूरे विश्व को सम्पूर्ण ज्ञान दे दिया है, यह 2020 वाला प्रोग्राम इन्होंने दुनिया को सनातन परमेश्वर की शरण में लांने को किया है,  इस मृत्युलोक का स्वामी इनके पोल खोल कार्यक्रम से घबरा गया,  इसने लोगों की बुद्धि को और ज्यादा हर लिया  षड्यंत्र करा कर बिना सबूत जेल में बैठा कर सोचने लगा की विराम लग जायेगा, लेकिन यह परमेश्वर की लीला को रोक नही पायेगा , अब कुछ समय शेष है वो समय निकट है जब  दुनिया को#संतरामपालजीमहाराज जी के वास्तविक विराट रूप के दर्शन होंगे और दुनिया अपनी गलती को रो रो कर माफी मांगेगी,    आईये साधना टीवी पर जान लीजिये वो सब कुछ जो एक मनुष्य के लिए जानना जरूरी है जो अमृत पवित्र शास्त्रो में दवा रह गया साधना टीवी पर 7:30pm
ईश्वर टीवी 8:30pm   श्रद्धा टीवी 2:00pm




शुक्रवार, 24 अप्रैल 2020

24 सिद्धियां व परम गति इस भगति साधना से प्राप्त करे

#सप्त_चक्र_जाग्रत
सर्व #देवशक्तियाँ प्रसन्न व इनसे ऋण मुक्ति
24 #सिद्धियां परम हंस की स्थिति
मृत्युलोक के पूर्ण मुक्ति
व अजर अमर #सनातन_सतलोक में स्थाई निवास प्राप्ति यानी #पूर्णपरमगति
#जन्ममरण से #पूर्णमुक्ति
आदि लाभ #सनातन #सद्गुरु #संतरामपालजीमहाराज की शरण में आकर #दीक्षा प्राप्त करे ब मर्यादा में रहकर भगति करे
मिलिए रोज #साधना_टीवी पर 7:30pm
#ईश्वर_टीवी पर 8:30pm रोज
#श्रद्धा_टीवी दोपहर रोज 2:00pm

बुधवार, 22 अप्रैल 2020

अज्ञानी मनुष्य त्रिलोकपति उमा पति शिव शंकर व यमराज को महाकाल व काल समझते है, काल यानी महाकाल कोई और है पढ़िए क्लिक करे

त्रिगुण माया द्वारा मुरखित मनुष्य
उमापति  त्रिलोकपति शिव शंकर को या यमराज को
काल या महाकाल समझते है
यह उनकी मूर्खता है,
#काल_महाकाल यह देवी प्रकृति दुर्गा जी के पति है और यह दोनो ब्रह्मा विष्णु शिव त्रिदेवो के माता पिता है
यह ब्रह्म, ज्योति निरंजन नाम से भी जाने जाते है
इसने मृत्युलोक रूपी 21 ब्रह्माण्ड तप के प्रतिफल के रूप में पाये तथा यहां इसके लोक में अजर अमर सनातन लोक से घूमने आयी असंख्य जीवात्माओं को सब कुछ भुलाकर अपनी त्रिगुण मई माया पाश में बांध लिया ब बंधक बना लिए और औस विधान व व्यवस्था बनाई की कोई जीवात्मा को सच याद न आये व सच्ची भगति न मिले और कोई असली सनातन लोक बापस न चला जाये,  इसने इन्ही जीवात्माओं में से देवी देवता, असुर,मनुष्य आदि व 84 लाख शरीरो में जीवात्माओं के डाल दिया, यह सीधे देवताओ को आगे करके अपनी व्यवथा बनाता है, जिससे मनुष्य देवताओ को सब कुछ मानने लगते है,
यह कभी अपने असली रूप में प्रकट नही होता, जब भी आयेगा किसी न किसी देवता का रूप धर कर अपना प्रयोजन सिद्ध करता है और उस देवता की फोकट महिमा बना जाता है,
इसने अपनी माया को अपने अधीन सर्व जगहों पर फैलाया हुआ है जिससे कोई देवता,मनुष्य, असुर गंधर्व आदि व 84 लाख शरीरो में पड़े जीव नीयनत्रीत रहते है व इसके अनुसार सर्व कार्य करते है, यह इसी माया से जीवो से पाप कर्म करवाता है, जीवो को भगति योग्य नही रहने देता, यदि कोई ज्यादा तप कर लेता है उसकी बुद्धि को वश कर शाप आदि दूषित कर्म करवाउसका तप नष्ट करवा देता है।
हर ब्रह्माण्ड में एक जैसा सिस्टम बनाकर पत्नी दुर्गा जी को आगे कर हर ब्रह्माण्ड में देवताओ से व्यवस्था सम्हालवाता है इसका बनाया बिधान, एक जैसे चार युग एक जैसी कहानिया हर ब्रह्माण्ड में बार बार हर कल्प में चल रही है
और कोई भी देवता एसजे विधान के आगे नत मस्तक है, और कोई भी अजर अमर नही है,  देवताओ को अमृत देकर उनके शरीरो की आयु बड़ा देता है  जिससे उसके बनाये असुरो से राहत रहे ,  यह खुद अपने घटिया बिधान अनुसार असुरो को बनाता है पापियो को बढ़ाता है फिर उनका नाश करने देवताओ को आगे करता है, हर ब्रह्माण्ड में इसने अपनी बनी बनाई एक स्टोरी हर कल्प में बार बार हर लोक में अपनी ऑटोमेटिक शक्ति माया से चलाकर   जीवो की दुर्गति करता रहता है
जब कोई अजर अमर सनातन  लोक से कोई शक्ति मानव रूप में आकर सच्चाई बताती है तब यह मनुष्य बुद्धि को अलनि माया से नियंत्रित करके उसका विरोध करवाता है व मुक्ति से जीवोको दूर करने का पुरा प्रयास करता है, जो जीव उस सनातन दिव्य शक्ति का ज्ञान पूरा समझ लेता है और श्रं में आ जाता हैवो पूर्ण ज्ञानी बन केवल सनातन अजर अमर स्व प्रकाशित सनातन लोक में स्थाई निवास हेतु यहां से पूर्ण मुक्ति हेतु भगति प्रयास करता है, उसका यहां किसी भी वस्तु में कोई मोह नही रहता, वह सर्व देवताओ सहित ब्रह्म कर्ज उतार कर यहां से पूर्ण मुक्त हो सनातन लोक को प्राप्त करता है,
वेद गायत्री मन्त्र में भी यही सन्देश प्रार्थना सनातन अजर अमर परमेशर कविर से है की
हे परमेश्वर कविर ! आप हमे इस मृत्युलोक रूपी अंधकार मय लोक से निकाल कर अजर अमर प्रकाश लोक सनातन लोक में हमको ले चलो,  हमे अब इस मृत्युलोक में नही रहना,  क्रमशः .....

साधना टीवी 7:30pm
ईश्वर टीवी 8:30pm
श्रद्धा टीवी 2:00pm  रोज रोज

रविवार, 9 फ़रवरी 2020

सच्ची भगति से केंसर जैसी गम्भीर बीमारियों का भी अंत,


सच्ची भगति साधना से होता है गम्भीर बीमारियों केंसर जैसे रोगों का भी सम्पूर्ण बिनाश, जिंदगी होती है खुशहाल,
प्रह्लाद जैसे दृढ़ भगत बनना पड़ता है,