रविवार, 20 मार्च 2016

बुद्धिमानो के लिए सन्देश

सपष्टीकरण।
जो पूण्य आत्माएं संत रामपाल जी महाराज के शिश्यों से बार बार ये स्वाल करते हैं के अगर आपके गुरु भगवान हैं तो वो जेल से बाहर क्यों नही आते?।हम आपके स्वाल का जवाब जरूर देंगे लेकिन उससे पहले आपको इतिहास पे एक नजर ढलवाते हैं।
1 सतोगुण प्रधान विष्णु जी के अवतार श्री कृष्ण जी का जन्म जेल में ही हुआ और पूरी उम्र उनकी युद्ध जितने में ही निकल गयी। महाभारत जैसा युद्ध जिसमे करोड़ों लोग मारे गए जिसमे उनके पक्ष की भी बहुत सी नेक आत्माएं मृत्यू को प्राप्त हुई थी, क्या वो उन युद्धों को टाल नही सकते थे। समझिये परमात्मा की वाणी से:-
श्री कृष्ण गोवर्धन धारयो, द्रोणागीरि हनुमान।
शेसनाग सब पृथ्वी धारी, इनमे कौन भगवान।।
परमात्मा कबीर जी कहते हैं के आपके द्वारा प्रचलित कथाएँ ही कहती हैं के श्री कृष्ण और हनुमान ने पहाड़ उठाये।और आप ही कहते हो के शेसनाग के फैन पे सारी पृथ्वी है तो भगवान कौन हुए धरती के एक छोटे से पहाड़ को उठाने वाले या पूरी पृथ्वी उठाने वाला?
2 सतोगुण प्रधान विष्णु जी के दूसरे अवतार श्री रामचंद्र जी अपनी पत्नी सीता को ढूंढते हुए रोते रहे।उसी समुन्दर को जहाज से पार करके एक राक्षस सीता माता को उठा ले गया लेकिन भगवान पुल बना रहे हैं। परमात्मा की वाणी है :-
समुदर पाट लंका गए, सीता के भरतार।
उन्हें अगस्त ऋषि पिय गए, इनमे कौन करतार।।
जिस समुदर को पार करने के लिए श्री रामचंद्र जी ने पुल इतनी मुश्किल से बनाया उस एक समुद्र नही बल्कि सातों समुद्रों को एक अगस्त नामक ऋषि अपनी सिद्धि से केवल एक घूंट में पी गए थे तो इन दोनों में बड़ा कौन हुआ? मालिक की दूसरी वाणी:-
काटे बंधन विपत्ति में, कठिन कियो संग्राम।
चिन्हो रे नर प्राणिया, वो गरुड़ बड़ो के राम।।
जिस गरुड़ ने मेघनाथ के नागपास में फंसे श्री राम जी और लक्षमण की जान बचाई वो बड़े हुए या राम?
अब आइये संतों पे आधरणीय नानक जी को उस समय लोगों ने भला बुरा कहा 13 महीने तक उस संत को जेल में रखा और आज सब मानते हैं के वो परमात्मा की प्यारी आत्मा थे।लेकिन उस समय हम उनके जीते जी उनका आदर ना कर सके।
इशा मसीह जी को उस समय लोगों ने शरीर में कीलें ठोक ठोक के मारा आज आधा विश्व उनको मानता है।।लेकिन उस समय उनका आदर ना कर सके
वो भी मुर्ख है जो कहता है की राम कृष्ण अवतार नही थे। वो तीन लोक के भगवान विष्णु के अवतार थे ।लेकिन हमे पूर्ण मोक्ष के लिये इनसे ऊपर के भगवान की तलास करनी है।
अब आपको बताते हैं के संत रामपाल जी महाराज क्यों चमत्कारी तरीके से जेल से बाहर नही आते ??
सतयुग द्वापर त्रेता और कलयुग के भी लगभग 200 साल पहले के टाइम तक संचार माध्यमों का अभाव था ,कोई भी घटना अगर यहां घटती है तो 200 से 400k m तक उस घटना की जानकारी फैलने में भी महीनो लग जाते थे। इसी लिए उस समय के संत या अवतार चमत्कार कर देते थे,क्योंकि व्यवस्था बनी रहती थी लोगों तक खबर भी एक साथ नही पहुंचती थी और खबर मिलने के बाद लोग भी एक साथ नही पहुंच पाते थे। लेकिन आज के इस साइंस युग में जब भारत के किसी कोने में हो रही घटना लाइव पुरे संसार में देखी जा रही है।और घंटों के अंदर लोग संसार में कहीं भी पहुंच जाते हैं तो ऎसे में क्या संत रामपाल जी महाराज के कोई चमत्कार दिखाने के बाद आप पुरे संसार को छोटे से हरियाणा में आप कंट्रोल कर पाएंगे। नही । मुर्ख मत बनिए ज्ञान को आधार बनाइये।समय का इंतजार करें और समजे की ऐसा क्या ज्ञान है संत रामपाल जी महाराज का की उनके शिष्य उनके दूसरी बार जेल जाने के बाद भी पीछे हटने को त्यार नही । वो समय दूर नही जब पूरा संसार संत रामपाल जी महाराज के बताये मार्ग पे चलेगा। लेकिन इस समय को तरसेंगे वो लोग जो आज ये कहते हैं के अभी नही बाद में देखेंगे।और वो तो फुट फुट कर रोयेंगे जो आज निंदक बने बैठे हैं। उन्हें छुपने को जगह नही मिलेगी। हाथ जोड़ कर विनति के समय रहते ज्ञान को समझे।उसके लिए 7:40से 8:40 pm तक साधना टीवी और सुबह 06 से 07 बजे तक हरियाणा न्यूज़ देखें। ज्ञान गंगा पुस्तक पढ़ें और किसी भी प्रकार की जानकारी के लिए आप किसी भी संत रामपाल जी महाराज के शिष्य से मिलिए। हम सब परमात्मा के कुते आप पूण्य आत्माओं तक इस ज्ञान को पहुंचाने में हर संभव मदद के लिए तैयार बैठे है।
सत साहेब

परमेश्वर का सत्य ज्ञान प्रचार ही इस ग्रुप का मुख्य उद्देश्य है ..


परमेश्वर का सत्य ज्ञान प्रचार ही इस ग्रुप का मुख्य उद्देश्य है ..

(इस संसार के सभी जीवों की उत्पति की सत्य व् प्रमाणित कहानी।)

पुण्यात्माओ, कबीर साहेबजी ने खुद अपने द्वारा रची गयी सृष्टि की जानकारी को अपनी दिव्य अमृतवाणी में बताया है। आओ अब हम उनकी वही अमृतवाणी को पढ़ते है -- 

इस अमृतवाणी में परमात्मा कबीर साहेबजी अपने प्रिय शिष्य धर्मदास दास जी को बता रहे है ----

"धर्मदास यह जग बौराना। कोइ न जाने पद निरवाना।। 
यही कारन मैं कथा पसारा। जगसे कहियो एक राम (परमात्मा) न्यारा।।
यही ज्ञान जग जीव सुनाओ। सब जीवों का भरम नशाओ।। 
अब मैं तुमसे कहों चिताई। त्रयदेवन की उत्पति भाई।।
कुछ संक्षेप कहों गुहराई। सब संशय तुम्हरे मिट जाई।। 
भरम गये जग वेद पुराना। आदि राम (सनातन परमात्मा) का भेद न जाना।।
राम राम सब जगत बखाने। आदि राम कोइ बिरला जाने।। 
ज्ञानी सुने सो हिरदै लगाई। मूर्ख सुने सो गम्य ना पाई।।
माँ अष्टंगी (दुर्गा) पिता निरंजन (काल ब्रम्ह)। वे जम दारुण वंशन अंजन।। 
पहिले कीन्ह निरंजन राई। पीछे से माया (दुर्गा) उपजाई।।
माया रूप देख अति शोभा। देव निरंजन तन मन लोभा।। 
कामदेव धर्मराय (काल ब्रम्ह) सत्ताये। देवी (दुर्गा) को तुरतही धर खाये।।
पेट से देवी करी पुकारा। साहब (परमात्मा) मेरा करो उबारा।। 
टेर सुनी तब हम (कबीर परमात्मा स्वयं) तहाँ आये। अष्टंगी को बंद छुड़ाये।।
सतलोक में कीन्हा दुराचारि, काल निरंजन दिन्हा निकारि।। 
माया समेत दिया भगाई, सोलह संख कोस दूरी पर आई।।
अष्टंगी और काल अब दोई, मंद कर्म से गए बिगोई।। 
धर्मराय (काल ब्रम्ह) को हिकमत कीन्हा। नख रेखा से भगकर लीन्हा।।
धर्मराय किन्हाँ भोग विलासा। मायाको रही तब आसा (गर्भ)।। 
तीन पुत्र अष्टंगी जाये। ब्रह्मा विष्णु शिव नाम धराये।।
तीन देव विस्त्तार चलाये। इनमें यह जग धोखा खाये।। 
पुरुष गम्य कैसे को पावै। काल निरंजन जग भरमावै।।
तीन लोक अपने सुत दीन्हा। सुन्न निरंजन बासा लीन्हा।। 
अलख निरंजन (काल भगवान) सुन्न ठिकाना। ब्रह्मा विष्णु शिव भेद न जाना।।
तीन देव सो उनको धावें। निरंजन का वे पार ना पावें।। 
अलख निरंजन बड़ा बटपारा (ठग)। तीन लोक जिव कीन्ह अहारा।।
ब्रह्मा विष्णु शिव नहीं बचाये। सकल खाय पुन धूर उड़ाये।। 
तिनके सुत हैं तीनों देवा। आंधर जीव (ज्ञानहीन साधक) करत हैं सेवा।।
अकाल पुरुष (अमर परमात्मा) काहू नहिं चीन्हां। काल पाय सबही गह लीन्हां।। 
ब्रह्म काल सकल जग जाने। आदि ब्रह्मको(पूर्ण परमात्मा) ना पहिचाने।।
तीनों देव और औतारा। ताको भजे सकल संसारा।। 
तीनों गुणका यह विस्त्तारा। धर्मदास मैं कहों पुकारा।।
गुण तीनों की भक्ति में, भूल परो संसार। 
कहै कबीर निज नाम (मुझ द्वारा प्रदत्त वास्तविक मोक्ष मंत्र) बिन, कैसे उतरैं पार।।"............


(इस संसार के सभी जीवों की उत्पति की सत्य व् प्रमाणित कहानी।)

पुण्यात्माओ, कबीर साहेबजी ने खुद अपने द्वारा रची गयी सृष्टि की जानकारी को अपनी दिव्य अमृतवाणी में बताया है। आओ अब हम उनकी वही अमृतवाणी को पढ़ते है --

इस अमृतवाणी में परमात्मा कबीर साहेबजी अपने प्रिय शिष्य धर्मदास दास जी को बता रहे है ----

"धर्मदास यह जग बौराना। कोइ न जाने पद निरवाना।।
यही कारन मैं कथा पसारा। जगसे कहियो एक राम (परमात्मा) न्यारा।।
यही ज्ञान जग जीव सुनाओ। सब जीवों का भरम नशाओ।।
अब मैं तुमसे कहों चिताई। त्रयदेवन की उत्पति भाई।।
कुछ संक्षेप कहों गुहराई। सब संशय तुम्हरे मिट जाई।।
भरम गये जग वेद पुराना। आदि राम (सनातन परमात्मा) का भेद न जाना।।
राम राम सब जगत बखाने। आदि राम कोइ बिरला जाने।।
ज्ञानी सुने सो हिरदै लगाई। मूर्ख सुने सो गम्य ना पाई।।
माँ अष्टंगी (दुर्गा) पिता निरंजन (काल ब्रम्ह)। वे जम दारुण वंशन अंजन।।
पहिले कीन्ह निरंजन राई। पीछे से माया (दुर्गा) उपजाई।।
माया रूप देख अति शोभा। देव निरंजन तन मन लोभा।।
कामदेव धर्मराय (काल ब्रम्ह) सत्ताये। देवी (दुर्गा) को तुरतही धर खाये।।
पेट से देवी करी पुकारा। साहब (परमात्मा) मेरा करो उबारा।।
टेर सुनी तब हम (कबीर परमात्मा स्वयं) तहाँ आये। अष्टंगी को बंद छुड़ाये।।
सतलोक में कीन्हा दुराचारि, काल निरंजन दिन्हा निकारि।।
माया समेत दिया भगाई, सोलह संख कोस दूरी पर आई।।
अष्टंगी और काल अब दोई, मंद कर्म से गए बिगोई।।
धर्मराय (काल ब्रम्ह) को हिकमत कीन्हा। नख रेखा से भगकर लीन्हा।।
धर्मराय किन्हाँ भोग विलासा। मायाको रही तब आसा (गर्भ)।।
तीन पुत्र अष्टंगी जाये। ब्रह्मा विष्णु शिव नाम धराये।।
तीन देव विस्त्तार चलाये। इनमें यह जग धोखा खाये।।
पुरुष गम्य कैसे को पावै। काल निरंजन जग भरमावै।।
तीन लोक अपने सुत दीन्हा। सुन्न निरंजन बासा लीन्हा।।
अलख निरंजन (काल भगवान) सुन्न ठिकाना। ब्रह्मा विष्णु शिव भेद न जाना।।
तीन देव सो उनको धावें। निरंजन का वे पार ना पावें।।
अलख निरंजन बड़ा बटपारा (ठग)। तीन लोक जिव कीन्ह अहारा।।
ब्रह्मा विष्णु शिव नहीं बचाये। सकल खाय पुन धूर उड़ाये।।
तिनके सुत हैं तीनों देवा। आंधर जीव (ज्ञानहीन साधक) करत हैं सेवा।।
अकाल पुरुष (अमर परमात्मा) काहू नहिं चीन्हां। काल पाय सबही गह लीन्हां।।
ब्रह्म काल सकल जग जाने। आदि ब्रह्मको(पूर्ण परमात्मा) ना पहिचाने।।
तीनों देव और औतारा। ताको भजे सकल संसारा।।
तीनों गुणका यह विस्त्तारा। धर्मदास मैं कहों पुकारा।।
गुण तीनों की भक्ति में, भूल परो संसार।
कहै कबीर निज नाम (मुझ द्वारा प्रदत्त वास्तविक मोक्ष मंत्र) बिन, कैसे उतरैं पार।।"............

(इस संसार के सभी जीवों की उत्पति की सत्य व् प्रमाणित कहानी।)

पुण्यात्माओ, कबीर साहेबजी ने खुद अपने द्वारा रची गयी सृष्टि की जानकारी को अपनी दिव्य अमृतवाणी में बताया है। आओ अब हम उनकी वही अमृतवाणी को पढ़ते है --

इस अमृतवाणी में परमात्मा कबीर साहेबजी अपने प्रिय शिष्य धर्मदास दास जी को बता रहे है ----

"धर्मदास यह जग बौराना। कोइ न जाने पद निरवाना।।
यही कारन मैं कथा पसारा। जगसे कहियो एक राम (परमात्मा) न्यारा।।
यही ज्ञान जग जीव सुनाओ। सब जीवों का भरम नशाओ।।
अब मैं तुमसे कहों चिताई। त्रयदेवन की उत्पति भाई।।
कुछ संक्षेप कहों गुहराई। सब संशय तुम्हरे मिट जाई।।
भरम गये जग वेद पुराना। आदि राम (सनातन परमात्मा) का भेद न जाना।।
राम राम सब जगत बखाने। आदि राम कोइ बिरला जाने।।
ज्ञानी सुने सो हिरदै लगाई। मूर्ख सुने सो गम्य ना पाई।।
माँ अष्टंगी (दुर्गा) पिता निरंजन (काल ब्रम्ह)। वे जम दारुण वंशन अंजन।।
पहिले कीन्ह निरंजन राई। पीछे से माया (दुर्गा) उपजाई।।
माया रूप देख अति शोभा। देव निरंजन तन मन लोभा।।
कामदेव धर्मराय (काल ब्रम्ह) सत्ताये। देवी (दुर्गा) को तुरतही धर खाये।।
पेट से देवी करी पुकारा। साहब (परमात्मा) मेरा करो उबारा।।
टेर सुनी तब हम (कबीर परमात्मा स्वयं) तहाँ आये। अष्टंगी को बंद छुड़ाये।।
सतलोक में कीन्हा दुराचारि, काल निरंजन दिन्हा निकारि।।
माया समेत दिया भगाई, सोलह संख कोस दूरी पर आई।।
अष्टंगी और काल अब दोई, मंद कर्म से गए बिगोई।।
धर्मराय (काल ब्रम्ह) को हिकमत कीन्हा। नख रेखा से भगकर लीन्हा।।
धर्मराय किन्हाँ भोग विलासा। मायाको रही तब आसा (गर्भ)।।
तीन पुत्र अष्टंगी जाये। ब्रह्मा विष्णु शिव नाम धराये।।
तीन देव विस्त्तार चलाये। इनमें यह जग धोखा खाये।।
पुरुष गम्य कैसे को पावै। काल निरंजन जग भरमावै।।
तीन लोक अपने सुत दीन्हा। सुन्न निरंजन बासा लीन्हा।।
अलख निरंजन (काल भगवान) सुन्न ठिकाना। ब्रह्मा विष्णु शिव भेद न जाना।।
तीन देव सो उनको धावें। निरंजन का वे पार ना पावें।।
अलख निरंजन बड़ा बटपारा (ठग)। तीन लोक जिव कीन्ह अहारा।।
ब्रह्मा विष्णु शिव नहीं बचाये। सकल खाय पुन धूर उड़ाये।।
तिनके सुत हैं तीनों देवा। आंधर जीव (ज्ञानहीन साधक) करत हैं सेवा।।
अकाल पुरुष (अमर परमात्मा) काहू नहिं चीन्हां। काल पाय सबही गह लीन्हां।।
ब्रह्म काल सकल जग जाने। आदि ब्रह्मको(पूर्ण परमात्मा) ना पहिचाने।।
तीनों देव और औतारा। ताको भजे सकल संसारा।।
तीनों गुणका यह विस्त्तारा। धर्मदास मैं कहों पुकारा।।
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कहै कबीर निज नाम (मुझ द्वारा प्रदत्त वास्तविक मोक्ष मंत्र) बिन, कैसे उतरैं पार।।"............

मूल मंत्र रहस्य 1

'धरती पर स्वर्ग' पुस्तक के पृष्ठ नं 190 पर पढे़ -- बीबी रक्खी जी जो समाधिस्थ अवस्था मे नरक पहुँच गई थी, स्वयं सावन सिंह जी महाराज जी को बता रही है कि नरक मे ये पाँच नाम का सिमरन काम नही कर रहा |
पुण्यात्माओ विचार करें -- 
कबीर साहेब कहते है --
कच्ची सरसो पेल कर , खल होया न तेल ||
कबीर साहेब ने मोक्ष मार्ग को अपने एक दोहे मे समेट दिया है|---
जप मरे अजपा मरे, अनहद भी मर जाय।
सुरत समानी शब्द में, ताहि काल नहीं खाय ।।
कबीर साहेब कहते है कि ब्रह्मरन्ध्र पर नीचे के 5 कमलो के 5 जप मंत्र निष्प्रभावी हो जाते है, और अजपा जाप(सतनाम, जो दो मंत्र का है,जिसे साँसो की माला पे जपा जाता है, इसलिये इसे अजपा जाप कहते है ) ब्रह्म एवम् परब्रह्म के लोक पार करते ही निष्प्रभावी हो जाते है| इसके बाद महासुन्न में अनहद धुन भी बंद हो जाती है, इस महासुन्न को सारनाम(सारशब्द) से पारकरते है| यहाँ से आगे मकरतार की डोरी प्रारंभ होती है जिसे सारशब्द से पार करके सतलोक मे प्रवेश करते है| यहाँ काल से पूर्णतया मुक्ति मिल जाती है|
नानक जी ने भी लिखा है ---
१ऊँ सतनाम करतापुरख ---
पूर्ण परमात्मा का नाम ऊँ तत् सत् है| तत् और सत् गुप्त है| इसे
ही गुरबाणी मे नानक जी ने तत् को सतनाम से और सत् को करतापुरख से अंकित किया है| वास्तविक मंत्र अन्य है | ये code word है |
जैसे नानक जी अपनी वाणियो मे "१ऊँ सतनाम करतापुरख निरभय निरवैर अकालमूर्त अजुनी सैभं" लिखा है , यहां १ लगाकर उसी एक परमात्मा के गुणो का वर्णन किया गया है कि
१ पूर्ण परमात्मा( जिसका सांकेतिक नाम "ऊँ तत् सत् " या "ऊँ सतनाम करतापुरख" या "अन् सिन कॉफ" है) ही निरभय , निरवैर,अकालमुर्त, अजुनी, सैभं(स्वयंभू )है|
जैसे नानक जी ने लिखा है -
सोई गुरू पूरा कहावे, दो अक्षर का भेद बताये|
एक छुड़ावे एक लखावे तो प्राणी निज घर को पावे||
जे तू पढया पंडित बिन अक्षर दुय नावां|
प्रणवत नानक एक लंघाय जेकर सच समावां||
और कबीर साहेब ने लिखा है-
कह कबीर दो अक्षर भाख, होगा खसम तो लेगा राख||
ये वाणियां 'ऊँ+ तत् ' के लिये है जो अजपा जाप की ओर इशारा है|
फिर लिखा है-
वेद कतेब सिमृत सभ सासत इन पढया मुक्त न होई|
एक अक्षर जो गुरमुख जापे तिस की निर्मल सोई||
ये वाणी सत् या करतापुरख के लिये लिखी है | जो सारनाम ( सारशब्द) की ओर संकेत है| वास्तविक मंत्र अन्य है|
इस प्रकार वेदो और कबीर साहेब ने अपनी वाणियो मे लिखा है कि पूर्ण गुरू तीन बार मे सतलोक जाने के मंत्र का भेद बताता है , शिष्य के नाम कमाई के हिसाब से और गुणो के आधार पर आगे के वास्तविक मंत्रो को उजागर करता है|
प्रथम बार मे शरीर के पांच कमलो के मंत्र दिये जाते है|
रामकली महला ३ अनंदु --
वाजे पंच सबद तितु घरि सभागे|| घरि सभागै सबद वाजे कला जितु घरि
धारीआ|| पंच दूत तुधु वसि कीते कालु कंटकु मारिआ|| धुरि करमि पाइआ तुधु जिन कउ सि नामि हरि कै लागे||
कहै नानकु तह सुखु होआ तितु घरि अनहद वाजे|| ५||
ये शब्द भी बताता है कि प्रथम मंत्र के पांच नाम , शरीर मे स्थित पांच दूतो ( गणेश, ब्रह्मा , विष्णु, शिव, दुर्गा )के है |
इसके बाद अजपा जाप और अंत मे साधक की कमाई को देखकर सारनाम (सारशब्द ) का भेद खोला जाता है |



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मृतुलोक में फंसे जीवो के लिए विशेष सन्देश

सत् साहेब।।
यदि मैसेज पूरा पढ़ने की आदत नहीं है तो कृप्या इस SMS को बिलकुल ना पढ़े।

हिन्दुस्थान के अपने आप को आज की युवा पीढ़ी और 21वी सदी के शिक्षित व् मॉडर्न कहलाने वाले उन तमाम भाई बहनो से,
इसी हिन्दुस्थान के मुझ गवार व अशिक्षित इंसान का आपजियो से करबद् निवेदन है की अभी आप शिक्षित व मॉडर्न नहीं हो पाये हो बल्कि मुझसे ज्यादा गवार हो।
जानिए कैसे।।
यदि शिक्षा को आपने केवल आधुनिक सुविधा प्राप्ति का व् रोजी रोटी का ही एक साधन मान लिया है तो ये आपकी सबसे बड़ी भूल है।
आपके पूर्वज अशिक्षित थे ना वे PHD करते और नहीं MBBS करते थे क्योंकि उस समय शिक्षा थी ही नहीं और यदि थी तो वे पढ़ नहीं पाते थे।
इसके बावजूद भी आज तुम शिक्षित व् समझदार कहलाने वालो से ज्यादा सुखी जीवन जीते थे व् प्रेम पूर्वक ईमानदारी से भगवान् से डरकर अपने सारे काम नेक निति से किया करते थे।
उनके जीवन में आज आपकी तरह दिन रात अंधे होकर माया के पीछे दौड़ने की होड़ नहीं हुआ करती थी।
वे न्याय का साथ व् अन्याय के विरुद्ध एक जुट होकर लड़ने वाले इंसान थे।
आज यदि भारत के वे शूरवीर और आजादी के दीवाने, भगत सिंह राज शेखर, सुभाष चंद्र बोस, चंद्र शेखर आजाद,जिन्होंने एक सुन्दर भविष्य की कल्पना में हँसते हँसते अपने को देश पर न्योछावर कर डाला।
आज वे जिन्दा होते तो देश की ऐसी दुर्दशा पर पछताते और कहते। क्या हमने अपना खून इसलिए व्यर्थ में बहाया था की...
1, इस इस देश का नागरिक एक बेईमान नेता बने और जनता को अपने जूतो की नोक पर रखे।
2. इस देश का नागरिक एक घूसखोर पुलिस अफसर बनकर आमजन में डर और अपराधियो में विश्वास पैदा करे।
3. इस देश का नागरिक एक भृष्ट जज बने और न्याय का सरेआम गला घोट दे। चंद कागज के टुकड़ो के लिए अपना ईमान बेच दे। सत्य जानने के बाद भी अपने जमीर को बेच दे।
आज यही तो हो रहा है उनके सपनो के हिन्दुस्थान में। पढ़िए अपनी आखो से और जानिये सच्चाई को। और ये सच्चाई जानने के बाद भी अगर तुम पढ़े लिखो के सीने में चोट नहीं लगती है तो हर वर्ष उन महापुरषो की शहादतो पर दी जानी वाली श्रदांजली मात्र एक ढोंग है दिखावा है।
👇 क्या यही न्याय है 👇
1. नाम
सलमान खान
2. काम
अपना पेट भरने के लिए दुनिया के सामने चटक मटक करके उनका मन बहलाना
3. समाज को क्या दिया
उसके द्वारा बनाई गई फिल्मो ने समाज को एक गलत दिशा दी। समाज में नए नए अपराधो को जन्म दिया। लोगो को नशे का आदी बना दिया। राह चलती बहन बेटियो पर बुरी नजर डालना सिखा दिया। समाज में आपसी झगड़ो को व् हिंसा को जन्म दिया। स्कूल के बच्चों को आशिकी के रास्ते पर चला दिया। समाज को उन्नति के बजाये पतन के कगार पर ला खड़ा किया।
इस देश का दुर्भाग्य है इतना होने पर भी आज उसे अभिनेता कहते है
देश की न्यायपालिका में बैठे रिश्वतखोर जज उसे जमानत पर रिहा कर देते है की जाओ और बिगाड़ो समाज को।
अमीन पठान जैसे चश्मदीद गवाह पूरे देश के सामने चीख चीख कर कह रहा है की उन पांच व्यक्तियो को मेरी आँखों के सामने इसी ने शराब के नशे में कुचलकर मार डाला।
फिर भी सच को जानते हुए उसे झूठा करार देते हुए पैसो के आगे अंधे बहरे हो चुके माया के पुजारी भृष्ट जज उसे बाईज्जत बरी कर देते है।
🙏👇इसके विपरीत 👇🙏
1. नाम
जगत गुरु तत्त्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज।
2. काम
तत्त्व ज्ञान का प्रचार
3. समाज को क्या दिया।
1. समाज को शास्त्र अनुकूल भक्ति देकर व् इस अनमोल मानव जीवन के महत्व को समझाया।
2. लाखो नशे के आदि होकर अपने परिवार व् स्वास्थ्य खो चुकी भोली आत्माओ को पुन भक्ति से सर्व सुख देकर जीना सिखाया।
3. अपने तत्त्व ज्ञान से समाज में व्याप्त बुराइया जैसे भ्रुन्हत्या, दहेज़, नशा, जातिगत भेदभाव, धार्मिक भेदभाव, आदि से विश्व को बचाने का काम किया।
4. सभी पवित्र धर्मो के पवित्र धर्म ग्रंथो से ये सार निकालकर देना की वास्तव में वह पूर्ण परमात्मा कौन है जिसको समाज के दुश्मन इन नकली गुरुओ ने निराकार की संज्ञा दे रखी है।
4. जिससे उपदेश प्राप्त भक्त अपना शीश तो कटवा सकते है लेकिन वापस बुराइयो की तरफ नहीं मुड़ सकते।
इस देश व् देशवासियो का दुर्भाग्य है की ऐसे परोपकारी परम संत को देशद्रोही कहते है।
भाइयो आप अपने आपको 21वी सदी के ब्रिलियंट नोजवान समझते हो तुम् से 100 गुना बुद्दिमान तो वे अनपढ़ पूर्वज थे। जो सत्य के साथ अपना जीवन जीते थे।
👤कभी सोचा है अपने बारे में👤
मै कौन हूँ।
कहा से आया हूँ
मुझे मानव शरीर क्यों मिला हैं
मेरी मृत्यु क्यों होती है
मरने के बाद कहा जाऊंगा
क्या बिना भक्ति के मुझे भी चौरासी लाख योनियो में जाकर गधे कुत्ते सूअर के जीवन भोगने पड़ेंगे
कौन है जो मुझे मानव जीवन के सही उदेश्य को समझा सकता है।
कौन है जो मुझे यहाँ भी सर्व सुख दे व् मरने के बाद मोक्ष दे।
विशेष प्रार्थना।
परमेश्वर इस पृथ्वी पर आ चुका है यह अनमोल समय है इस काल लोक से छुटकारा पाने का। कहते है बिना ज्ञान के इंसान और जानवर में कोई अंतर नहीं होता है।
आपने ये सांसारिक ज्ञान तो बहुत समझ लिया और अपने विनाश का सामान भी तैयार कर लिया है इस विज्ञानं से अर्जित ज्ञान ने आज पूरे विश्व को महायुद् के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया है।
लोगो में डर और दहशत भर दी है। संसार से सुख चैन अमन गायब हो चूका है विज्ञानं ने इंसान को इंसान का और एक देश को दूसरे देश का घोर शत्रु बना दिया।
अगर समझ है तो अब अपनी बुद्दी को सांसारिक ज्ञान से हटाकर आध्यात्मिक मार्ग में लगाओ। पहले भगवान् व् उसकी भक्ति को समझो। भक्ति से मिलने वाले लाभ उठाओ।
वर्तमान में उस भगवान् की पहचान व् सही भक्ति बताने वाला पुरे विश्व में वह एक मात्र तत्त्व दर्शी संत कौन है
1. भविष्य वक्ताओं के अनुसार सन् 2016 से तीसरे विश्व युध्द की शुरुआत हो जायेगी।
2. 2023 तक महा विनाश हो जायेगा। जो आप देख भी रहे है
3. बहुत जल्द इस महा विनाश में विश्व की कुल आबादी का 75% व् भारत में 50% सब कुछ नष्ट हो जायेगा।
उस समय केवल वही मनुष्य बचेंगे जो उस तत्त्व दर्शी संत की शरण में होने व् मर्यादा में रहकर नेक निति से भक्ति कर रहे होंगे।
वह तत्त्वदर्शी संत कौन है जानने के लिए पवित्र पुस्तक ज्ञान गँगा अपने घर पर निःशुल्क मंगवाने के लिए अपना पूरा पता 8222880541, 42, 43, 44, 45 पर SMS करे या देखिये प्रतिदिन सायं 7:40 से 8:40 तक साधना TV पर जगतगुरु तत्त्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी के सत्संग।
सत् साहेब

सदगुरुदेव का सन्देश भक्तो+ के लिए

सदगुरुदेव का सन्देश भक्तो+ के लिए 

एक भक्त ने सतगुरु देव जी से पूछा की हे परमात्मा आपजी कह रहे हो की कलयुग के इस समय में मैं अरबो खरबो मेरी हंस आत्माओ को सतलोक लेकर जाऊंगा। हे मालिक आप जो कह रहे हो तो सत्य ही होगा लेकिन मुझ तुच्छ जीव् की बुद्दी घनी छोटी है आप खुल कर बताये मेरे दाता।
क्योंकि आप कह रहे हो यदि ये सत्यनाम मिलने के बाद यदि जीव् की एक स्वास् भी नाम के बिना खाली जाती है तो इसका मोक्ष नहीं हो सकता है।
हे मालिक इस काल लोक में यम के कर्म दंड से भयभीत जीव् कैसे 24 घंटे इस नाम का सुमरिन कर सकता है।कभी ये रोग ग्रस्त रहता है सैकड़ो तरह की इसको टेंसन लगी रहती है सुख और शांति आज के प्राणी को स्वपन में भी नहीं ह।
इस शरीर में काल भगवान् ने टट्टी पेशाब हाड मॉस खून लार थूक आदि घृणित पदार्थ रुपी कचरा भर रखा है।कभी इस मंद बुद्दी प्राणी को घर परिवार की चिंता तो कभी समाज व् रिस्तेदारी की यहाँ कभी सूखा अकाल पड़ जाये कभी अति वृष्टि तो कभी बाढ़ व् भूकंप में मरने की चिंता। हे दाता अब आपही बताये।तब परमात्मा बोले भाई ये मेरा काम है कैसे इस जीव् को भक्ति करवाऊंगा और कैसे काल के कर्म दंड कटवाकर इसे भक्ति से युक्त करवाकर सतलोक लेकर जाऊंगा।
परमात्मा बोले भाई इस वक़्त जो पुण्यात्माये मेरी शरण में है वे मेरी विशेष विशेष कृपा पात्र है। मै युगों युगों से इनको भक्ति करवाता हुवा इनको इस समय यहाँ इस मोक्ष के कालीन समय तक लाया है भाई पार तो इनको मै पहले भी कर देता क्योंकि मुझसे इनका दुःख देखा नहीं जाता है लेकिन काल को दिए वचन के आधार से मुझे इनको इस समय ही पार करना है।आज मेरे बच्चों की युगों युगों की भक्ति इनके साथ है उसके बाद तरह तरह के अनेक धार्मिक अनुष्ठान सेवा सुमरिन दान आदि करवाकर इनको भक्ति से इतना प्रबल कर दूंगा, आज तो ये इतने भक्ति हीन है की काल का नाम सुनते ही इनको पसीने आ जाते है लेकिन जब भक्ति से युक्त होकर जब मेरे साथ चलेंगे तो काल भी इनको अपने सामने देखते ही अपना शीश झुक देगा क्योंकि काल तभी अपना शीश झुकाएगा जब उससे प्रबल भक्ति सामने वाले में होती है।
और रही बात इनमे भक्ति प्रवेश करने की....
तो मालिक बोले भाई..
जैसे हाड़ मॉस की देह में अमृत दूध सरवंत -
और गरीब दास इस देह में यूँ मिले भगवंत।
जैसे एक पशु के शरीर में मल मूत्र हाड़ मॉस आदि होते हुए भी उसमे से अमृत रुपी दूध मेरी रजा से उत्पन हो जाता है ठीक इसी तरह इस मानव मानव शरीर में मेरी दया से, जो सतनाम मन्त्र मै दूंगा फिर उसके जाप से वो भक्ति रुपी बच्चा बनना शुरू हो जायेगा। फिर ऐसे इस शरीर से भक्ति करवाकर इस जीव् को सतलोक भेजूंगा।
विशेष चिंतन करने योग्य बाते
पुण्यात्माओं आज परमेश्वर ने हमारे लिए मोक्ष के सारे द्वार खोल दिए है और सतगुरु देव जी ने कहा है बच्चों चाहे तुम भक्ति कम कर लेना लेकिन मर्यादा का विशेस ध्यान रखना और ये काल भी यही चाहता है की एक बार ये जीव् अपने गुरु (नाम) से दूर हो जाये फिर मै इसको देख लूंगा।
सतगुरु देव जी बोले बच्चों तुम कैसे भी सुख दुःख में मेरे ऊपर विश्वास करने इस नाम पर लगे रहना। किसी के कहने से विचलित ना होना।
आज आपने ये भक्ति रुपी पौधा लगाया ह दो चार वर्ष का समय दो इस भक्ति रुपी पोधे की दान सुमरिन सेवा से इसकी खूब अच्छी तरह से सिचाई करो फिर देखना इतने फल लगा दूंगा जब तक यहाँ रहोगे कभी ख़त्म नहीं होंगे।
एक समय सतगुरु देव जी ने कहा था बच्चों तुम विस्वास के साथ इस मार्ग पर अडिग रहना आगे आने वाला समय केवल तुम्हारा ही होगा भगवान् अपने बच्चों को इतने सुख देगा की वे जिस गाव नगर सहर में रहेंगे उनके अलग ही मकान छाँट देगा मालिक। और सतगुरु देव जी कह रहे थे बच्चों आने वाले समय मे भगवान् आपको इतने सुख देगा की संसार के प्राणी भी तुम्हारे सुखो को देखकर यहाँ बरवाला में नाम लेने के लिए आया करेंगे।
एक समय मैं (दास) अपने किसी मुसलमान भाई के यहाँ बैठा हुवा था उनकी कुरआन सरीफ को लेकर चर्चा हो रही थी उनकी बातो में मुझे अपना कबीर भगवान् नजर आ रहा था।
वो मुसलमान भाई दुसरे को कह रहा था कुरान में एक जगह लिखा है ... की वो सबका परवरदिगार अल्लहा अपने बच्चों के हर घोर से घोर गुनाहो को भी माफ़ कर देता है केवल एक गुनाह को छोड़कर, और वो गुनाह ये है यदि तूने मुझे छोड़कर जिस दिन एक सेकंड के लिए भी किसी अन्य ( देव या फरिस्ते) को पूज लिया या अपनी आस्था उसमे बनाली तो मै उसी क्षण से तुझ से दूर हो जाऊंगा।
उनकी ये बात सुनकर मुझे बड़ी खुसी हुई और सतगुरु देव जी की वाणी याद आई .. सो वर्ष तो सतगुरु की पूजा और एक 6दिन आन उपासी।
वो अपराधी आत्मा फिर पड़ै काल की फ़ासी।।
मैने मन ही मन सोचा इनकी आस्था कितनी मजबूत है परमात्मा में।और जिस दिन इनको ये मालूम पड़ जायेगा की हमारे उस अल्लाह का पैगम्बर संत रामपाल जी महाराज के रूप में आ चुका है तो भाई ये लोग तो आस्था के इतने पक्के है मालिक के बच्चों की बाढ़ सी आ जायेगी।
मालिक कहते है ।
सो छल छिद्र मै करू अपने जन के काज । हिरणाकुश उदर विदारिया
और नरसिंग धरलु साज ।।
एक समय आश्रम में एक 80 साल की माई बिहार से सत्संग सुनने आई हुई थी। और वो बड़ी तल्लीनता से परमात्मा के सत्संग सुन रही थी। एक भक्तिमति ने माई से पूछा माई मै पढ़ी लिखी हु लेकिन बिहार की भाषा इतनी नहीं समझ सकती क्या आपकोे हरियाणवी भाषा में सतगुरु देव जी के सत्संग समझ में आ जाते है।
माई प्यार से है मुस्काते हुए बोली बेटी .. कौन कहता है गुरूजी हरियाणवी में सत्संग कर रहे है गुरूजी तो बिहारी में और वो भी हमारे गाव की भाषा में सत्संग सुना रहे है। ये सुनते ही भक्तमति सन्न रह गई।
ऐसे ही एक भक्त ने बताया की शुरूआती दिनों में जब गुरूजी को नाम दान देने का आदेश हो चूका था। एक समय गुरूजी आश्रम में सबको सत्संग के बाद आशीर्वाद दे रहे थे। वही लाइन में सतगुरु देव जी के (काल लोक के) पिताजी भी आशीर्वाद के लिए लाइन में खड़े थे जब गुरूजी ने आशीर्वाद के लिए उनकी तरफ हाथ उठाया तो वे पिच्छे हट गए और बोले भाई मै तू तो मेरा बेटा है मै बेटे से आशीर्वाद कैसे लू। अचानक गुरूजी का शरीर जमीन पर गिरा और और उसी जगह जहा पहले गुरूजी खड़े थे कबीर साहेब दिखाई दिए केवल उन्ही को। और कबीर साहेब बोले भाई यदि बेटा चाहिए तो निचे से उठा लो जो मरा हुवा है और यदि भगवान् चाहिए तो आशीर्वाद लेलो। तब तुरंत उन्होंने आशीर्वाद ले लिया।
हम रोज सन्ध्या आरती में सुनते है की ... तेरा रामपाल अज्ञान किया सतलोक का वासी।
अर्थात सतगुरु देव जी की आत्मा तो सतलोक में पूर्ण आंनद ले रही है यहाँ उनके चोले में स्वयं कबीर साहेब विराजमान है।
एक भक्त को सतगुरु देव जी ने आशीर्वाद के महत्व को समझाया की तुम इस आशीर्वाद को सामान्य मत समझना और एक मजबूरी या रूटीन मानकर लाइन में मत लगा करो।
इस आशीर्वाद में इतनी पॉवर है की सिर्फ एक बार ही भैंसे को दिया था मालिक ने. उसी समय उसने इंसानी भाषा में वेदों का मन्त्र ही नहीं बल्कि उनका शुध्द हिन्दि भाषा में अनुवाद भी करके सुनाया और आगे के जन्म में उसी आशीर्वाद से वह मानव जन्म लेकर अब इस समय भक्ति भी कर रहा है।
इसलिए भक्तो हमने सतगुरु देव जी की किसी भी लीला या बात पर बात पर शंका तक नहीं करनी है।
कहते है साधू बोलै सहज सुभाव और जो चाहवै सो करदे।
सतगुर जो चाहवै सो करदे भ्रम पड़ो मत कोई ।
सेउ धड़ पै शीश चढ़ाया पाछै करी रसोई।।

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गुरुवार, 10 मार्च 2016

मानव का सफर पत्थर से शुरु हुआ था। पत्थरों को ही महत्व देता है और आज पत्थर ही बन कर रह गया

मानव का सफर पत्थर से शुरु हुआ था। पत्थरों को ही महत्व देता है और आज पत्थर ही बन कर रह गया -

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1. चूहा अगर पत्थर का तो उसको पूजता है।(गणेश की सवारी मानकर)
लेकिन जीवित चूहा दिख जाये तो पिंजरा लगाता है और चूहा मार दवा खरीदता है।
2.सांप अगर पत्थर का तो उसको पूजता है।(शंकर का कंठहार मानकर)
लेकिन जीवित सांप दिख जाये तो लाठी लेकर मारता है और जबतक मार न दे, चैन नही लेता।
3.बैल अगर पत्थर का तो उसको पूजता है।(शंकर की सवारी मानकर)
लेकिन जीवित बैल(सांड) दिख जाये तो उससे बचकर चलता है ।
4.कुत्ता अगर पत्थर का तो उसको पूजता है।(शनिदेव की सवारी मानकर)
लेकिन जीवित कुत्ता दिख जाये तो 'भाग कुत्ते' कहकर अपमान करता है।
5. शेर अगर पत्थर का तो उसको पूजता है।(दुर्गा की सवारी मानकर)
लेकिन जीवित शेर दिख जाये तो जान बचाकर भाग खड़ा होता है।
हे मानव!
पत्थर से इतना लगाव क्यों और जीवित से इतनी नफरत क्यों?????
ये कैसा दोहरा मापदंड है तेरा????

बुधवार, 9 मार्च 2016

कबीर साहेब हीं पूर्ण परमात्मा हैं। लगभग एक दर्जन संतो ने इनकी गवाही ठोककर दी है

कबीर साहेब हीं पूर्ण परमात्मा हैं। लगभग एक दर्जन संतो ने इनकी गवाही ठोककर दी है।

आएं देखें परमात्मा प्राप्त संतो की वाणी में क्या है प्रमाण!!


1.
✒सतगुरु पुरुष कबीर हैं, चारों युग प्रवान।
झूठे गुरुवा मर गए, हो गए भूत मसान।।
-गरीबदास जी

✒अनंत कोटि ब्रम्हांड में, बंदीछोड़ कहाये।सो तो पुरष कबीर है, जननी जने न माय।।
-गरीबदास जी

✒हम सुल्तानी नानक तारे, दादु को उपदेश दिया।जाति जुलाहा भेद न पाया,कशी माहे कबीर हुआ।।
-गरीबदास जी

2.
✒और संत सब कूप हैं, केते झरिता नीर।
दादू अगम अपार है, दरिया सत्य कबीर।।
-दादु दयाल जी

✒जिन मोको निज नाम दिया,सोई सतगुरु हमार।दादु दूसरा कोई नहीं, कबीर सृजनहार।।
-दादु दयाल जी

3.
✒खालक आदम सिरजिआ आलम बडा कबीर॥
काइम दिइम कुदरती सिर पीरा दे पीर॥
सयदे (सजदे) करे खुदाई नू आलम बडा कबीर॥
-नानक जी

✒यक अर्ज गुफ्तम पेश तोदर कून करतार।हक्का कबीर करीम तू बेऐब परवरदिगार।।
-नानक जी

✒नानक नीच कह विचार, धाणक रूप रहा करतार।
-नानक जी

4.
✒वाणी अरबो खरवो, ग्रन्थ कोटी हजार। करता पुरुष कबीर है, रहै नाभे विचार।।
-नाभादास जी

5.
✒साहेब कबीर समर्थ है, आदी अन्त सर्व काल।
ज्ञान गम्य से दे दीया, कहै रैदास दयाल॥
-रैदास जी

6.
✒नौ नाथ चौरसी सिद्धा, इनका अन्धा ज्ञान।
अविचल ज्ञान कबीर का, यो गति विरला जान॥
-गोरखनाथ जी

7.
✒बाजा बाजा रहितका, परा नगरमे शोर।
सतगुरू खसम कबीर है, नजर न आवै और॥
-धर्मदास जी

8.
✒सन्त अनेक सन्सार मे, सतगुरू सत्य कबीर।
जगजीवन आप कहत है, सुरती निरती के तीर॥
-जगजीवन जी

9.
✒तुम स्वामी मै बाल बुद्धि, भर्म कर्म किये नाश।
कहै रामानन्द निज हमरा दृढ़ विश्वास।।
-रामानन्द जी

10.
✒बंदीछोड़ हमारा नामम्, अजर अमर अस्थिर ठामम्।।
-कबीर जी

✒तारण तरण अभय पद दाता, मैं हूँ कबीर अविनाशी।
-कबीर

✒कबीर इस संसार को, समझांऊ के बार ।
पूंछ जो पकङे भेड़ की, उतरया चाहे पार ॥

-कबीर साहेब**
सत् साहेब..