शनिवार, 28 जनवरी 2023

Q -: मगहर क्षेत्र में मंदिर और मस्जिद की स्थापना कैसे हुई?

🎆 *कबीर परमेश्वर निर्वाण दिवस* 🎆

Q -: मगहर क्षेत्र में मंदिर और मस्जिद की स्थापना कैसे हुई?
Ans-: मगहर क्षेत्र, वर्तमान जिला संतकबीर नगर उत्तर प्रदेश में कबीर साहिब जी ने अपने लीला के अंतिम दिन में सशरीर हजारों लोगों के सामने जिसमें हिंदू-मुसलमान आदि सभी सम्मिलित थे। अपने दिव्य शरीर के साथ सशरीर अपने निजधाम सतलोक चले गए। उनके शरीर के स्थान पर सुगंधित फूल मिले। मगहर के नवाब बिजली खान पठान और काशी नरेश बीरदेव सिंह बघेल परमात्मा कबीर जी के शिष्य थे। कबीर परमात्मा जी ने हमेशा सबको यही बताया कि आप एक परमात्मा की संतान हो आपका पिता एक है। इसलिए आपस में धर्म ओर क्षेत्र के नाम पर लड़ो मत। एक होकर रहो। 

"हिंदू मुस्लिम दो नहीं भाई, दो कहै सो दोजख (नरक) जाही।"

जब परमात्मा जी सशरीर अपने सतलोक चले गए। तब मगहर नवाब बिजली खां पठान ने 500 बीघा जमीन हिंदुओं को और 500 बीघा जमीन मुस्लिमों को दी। कबीर साहेब के दोनों धर्मों के अनुयायियों ने अपने-अपने मजहब के अनुसार मगहर में उन पवित्र सुगंधित फूलों से जो परमात्मा कबीर जी के शरीर के स्थान पर मिले थे उनको लेकर 100 फुट की दूरी में दोनों ने यादगार के रूप में समाधियाँ बनाई। जो आज भी मगहर वर्तमान संत कबीर नगर में विद्यमान है। 


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#कबीरपरमेश्वर_निर्वाणदिवस 1 फरवरी 2023
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Q-: क्या कबीर जी की मृत्यु हुई थी ?

🎍 *कबीर परमेश्वर निर्वाण दिवस* 🎍

Q-: क्या कबीर जी की मृत्यु हुई थी?
Ans-: नहीं! कबीर साहेब जी सन 1518 में मगहर से सशरीर अपने निजधाम सतलोक (अमरलोक) गए थे। कबीर साहेब जी ने आम जनमानस की तरह लीला की। परंतु उनकी मृत्यु आम आदमी की तरह नहीं हुई वह सशरीर गये थे। 

ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 93 मंत्र 2, ऋग्वेदमण्डल 10 सूक्त 4 मंत्र 4 और ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मंत्र 9 में वर्णित लीला के अनुसार परमात्मा कबीर जी सन् 1398 में काशी के लहरतारा नामक तालाब पर सुबह ब्रह्म मुहूर्त में कमल के फूल पर शिशु रूप में प्रकट हुये। नीरू और नीमा नामक निसंतान जुलाहा दम्पति को मिले। परमात्मा कबीर जी के बचपन की परवरिश की लीला कुंवारी गाय के दूध से हुई। वह काशी में 120 वर्ष जुलाहे की भूमिका करते रहे और अपने सच्चे ज्ञान से लोगों को परिचित करवाते रहें। लोगों को उस समय यह भ्रम था कि जो काशी में शरीर छोड़ता है, वह सीधा स्वर्ग जाता है और जो मगहर में शरीर छोड़ता है, वह नरक जाता है। इस वजह से बहुत सारे लोग काशी में करोंत लेकर गर्दन कटवाते थे। 

गरीब, बिना भगति क्या होत है, भावैं कासी करौंत लेह। 
मिटे नहीं मन बासना, बहुबिधि भर्म संदेह।।

इस भ्रम को दूर करने के लिए परमात्मा कबीर जी अपने अंतिम समय में मगहर गए और हजारों हिंदू-मुस्लिमों के सामने सशरीर अपने निजधाम सतलोक चले गए। चादर के बीच में जिस पर कबीर परमात्मा जी लेटे हुए थे और ओढ़े हुए थे, उनके बीच मे केवल सुगंधित पुष्प मिले। जिन्हें दोनों धर्मों के अनुयायियों ने आपस में बांट लिया और कबीर साहेब के निर्वाण की लीला को गवाह के रूप में बनाये रखने के लिए वहां पर उनकी दो समाधियाँ बनाई जो आज भी विद्यमान हैं।


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जिला संत कबीर नगर में स्थित मगहर स्थान क्यों प्रसिद्ध है?

🎈 *कबीर परमेश्वर निर्वाण दिवस* 🎈

Q -: जिला संत कबीर नगर में स्थित मगहर स्थान क्यों प्रसिद्ध है?
Ans-: जिला संत कबीर नगर, उत्तर प्रदेश में मगहर नामक स्थान पर परमात्मा कबीर जी की यादगार समाधियाँ स्थित है। जोकि सन् 1518 में माघ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को कबीर साहेब जी सशरीर अपने निजधाम सतलोक चले जाने के उपलक्ष्य में बनाई गई थीं। उस समय वहां पर सभी धर्मों के हजारों लोग उपस्थित थे। सन् 1398 में कबीर परमात्मा जी काशी के लहरतारा नामक तालाब पर बालक के रूप में कमल के फूल पर प्रकट हुए थे। नीरू-नीमा नामक निसंतान जुलाहे दंपति को मिले। कबीर परमात्मा ने 120 वर्ष काशी में जुलाहे की भूमिका की और अपने दिव्य तत्वज्ञान से लाखों लोगों को ज्ञान दीक्षा दी। उस समय पूरे विश्व की जनसंख्या 1 अरब भी नहीं रही होगी तब 64 लाख लोगों ने परमात्मा कबीर जी से नाम दीक्षा ली और उनके शिष्य बने और पाखंड पूजा आदि समाज को मुक्त किया।


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