शुक्रवार, 20 अक्तूबर 2017

सम्पूर्ण मानव जाती के लिए सन्देश imp.

गीता ज्ञान भावार्थ
सनातन परमेश्वर की भक्ति  तत्त्वदर्शी संत से तीन बार में प्राप्त होती है ।  प्रथम बार में गुझ गायत्री मन्त्र  जिसमे   ब्रह्मा जी सवित्रीजी , विष्णु जी लक्ष्मी जी, शिव जी पार्वती जी , दुर्गा जी और गणेश जी  के मन्त्र होते है ये हमारे शरीर के कमल चक्रों में उपस्थित होते
है इस मन्त्र से ये सभी देवता  सध जाते है और इनसे ऋणमुक्ति होती है ।।
 दूसरी बार में  "ॐ" और "तत्" मन्त्र होता है ये सांसो में चलता है तथा तीसरा सनातन सत्य परमेश्वर का मन्तर "सत" होता है ।। इस कंपलीट कोर्स से जीवात्मा सनातन लोक को जाती है ।

वर्तमान समय में  ये गुप्त साधना भक्ति एक मात्र तत्त्वदर्शी संत रामपाल जी ही दे रहे है । जाओ और अपना कल्याण कराओ ।
 हे मनुष्य तुम्हारी शंका समाधान हेतु बता दू की मेरी माया बड़ी दुष्कर है इसने   पाखंडियो को सम्मान दिलाया है और सच्चे संतो को सच्ची बात बताने वालो को तिरस्कार करवाया है । उदाहरण देख लो गुरुनानक जी , ईसा जी ,गरीब दास जी ,  सुकरात जी और अब वर्तमान में संत रामपाल जी ।  और मेरी माया ने ही मनुषयो को मूल भक्ति से हटाकर अनेको धर्मो और पंथो में बाँट दिया है ताकि मनुष्य की मुक्ति न हो सके ।। इस सच्चाई को जानकर और तत्वदर्शी  बाख़बर संत रामपाल जी से  कड़वा पूर्ण ब्रह्म ज्ञान प्राप्त कर लेता है और उसको स्वीकार करता है  वो मनुष्य मेरी त्रिगुण माया को लाँघ जाता है । ऐसे ज्ञानी  जीव मुझको प्रिय है ।  ये ज्ञानी जीव जी विकारो को त्यागकर भक्ति करते है ।
हे मानव जैसे पुरे वर्ष न सूखने वाला बड़ा जलाशय के प्राप्त हो जाने पर छोटे तालाब में मनुष्य की जैसी आस्था रह जाती है । फिर  तत्त्व दर्शी संत रामपाल जी से प्राप्त मूल ज्ञान और मूल सनातन भक्ति  की प्राप्ति के पश्चात् अन्य देवताओ में आस्था रह जाती है ।
हे मानव । त्रिगुण माया देवो की  भक्ति करने वाले मनुष्यो में नीच राक्षस स्वाभाव वाले दूषित कर्म करने वाले दुष्ट मनुष्य  मेरी भी भक्ति नही करते वो सनातन परमेश्वर को भक्ति क्या खाक करेंगे । इनको सच बताओ तो ये  सच स्वीकार नही करते  और उल्टा मारने को आएंगे । और षड्यंत्र करेंगे ।   हे मनुष्य  बाद विबाद सच और झूट में  शास्त्रो को प्रमाण मानकर सच को स्वीकार करना ।।  सच बहुत बड़ा है ।
हे मानव एक मात्र तत्त्वदर्शी बाखवर संत रामपाल जी ही है जो तुमको  शास्त्रो से  प्रमाणित कर के बता रहे है की तुम सभी जीवात्माएं सनातन लोक को छोड़कर इस मेरे मृत्युलोक में कैसे आए और कैसे मेरी माया के अधीन हुए । और अब वापस  हमेशा के लिए  पूर्ण मुक्त होकर सनातन लोक कैसे जाओगे । देर न करो ।। अभी उस मुक्ति दाता की शरण में जाओ ।। 
(( कविराग्ने : नमः )) 

गुरुवार, 19 अक्तूबर 2017

प्रोफेसर राम लखन मीना और ब्राह्मण जी की वार्तालाप । खुले कई रहस्य जरूर पढे यह पोस्ट

मैं प्रोफसर राम लखन मीना भारत के सभी ब्राह्मणों को खुला चैलेन्ज देता हूँ कि कोई भी ब्राह्मण सिद्ध कर दे कि दशहरे के दिन रावण मारा गया था और राम दीपावली को अयोध्या वापिस आया था ?

कृपया पूरी पोस्ट पड़े और अधिक से अधिक शेयर जरूर करें ।

ब्राह्मणवाद की पोल खोलती ये पोस्ट.....

एक बार भंते दीपावली के समय पर बाजार में एक दुकान पर बैठे हुए थे । बाजार में  दुकानों पर बहुत भीड़ थी । भंते जी ने उस दुकानदार से पूछा कि दुकानों पर आज इतनी  भीड़ क्यों है । दुकानदार ने बताया कि भंते जी कल दीपावली है , इसलिए दुकानों पर भीड़ अधिक है ।

भंते जी ने उस दुकानदार से पूछा कि ये दीवाली का त्यौहार क्यों मनाया जाता है ?

दुकानदार ने वहाँ बैठे पंडित को इशारा करते हुए कहा कि हे भंते जी ये पण्डित जी बतायेंगे । उस ब्राह्मण ने भंते जी को बताया कि दीवाली के दिन भगवान राम वनवास से वापिस आये थे , उस ख़ुशी में दीवाली का त्यौहार मनाया जाता है ।

भंते जी  - हे ब्राह्मण आप मनगढ़ंत कहानियों से भारत के आस्थावादी लोगों को खूब मूर्ख बनाते हैं ।

ब्राह्मण - हे भंते कैसे ?

भंते - हे ब्राह्मण ! कभी तुम राम के नाम पर दीपावली की मनगढ़ंत कहानी रचते हैं , कभी तुम सबरी के राम द्वारा झूठे बेर खाने का पाखण्ड रचते हैं , कभी सोने की लंका का पाखण्ड रच कर लोगों को मूर्ख बनाते हैं ।

ब्राह्मण - हे भंते ! इसमें क्या गलत है , राम दीपावली के दिन ही वनवास से वापिस आये थे ।

भंते - हे ब्राह्मण ! आपकी किसी भी रामायण में लिखा है कि राम दीपावली के दिन वन से वापिस आये थे ।

ब्राह्मण - हे भंते ! ऐसा किसी भी रामायण में नही लिखा है ।

भंते - हे ब्राह्मण ! आपकी किसी भी रामायण में लिखा है कि राम ने सबरी के झूठे बेर खाये थे ।

ब्राह्मण - हे भंते ! ऐसा किसी भी रामायण में नही लिखा है ।

भंते - हे ब्राह्मण ! आप लोग फिर मनगढ़ंत बातों से लोगों को दिग्भ्रमित क्यों करते हैं ।

ब्राह्मण - हे भंते ! ये आस्था का सवाल है ।

भंते - हे ब्राह्मण ! आस्था के पाखण्डों से लोगों को मूर्ख बनाना अधर्म नही है । आपको अपने ग्रंथों के सम्बंध में ज्ञान है ।

ब्राह्मण - हे भंते ! अच्छा ज्ञान है ।

भंते - हे ब्राह्मण ! राम का जन्म तुम कब मनाते हैं ।

ब्राह्मण - हे भंते ! राम का जन्म चैत्र माह में नवमीं को मनाते हैं।

भंते - हे ब्राह्मण ! वनवास के समय राम की आयु 17 वर्ष की थी , क्या आपको पता है ।

ब्राह्मण - हे भंते ! मुझे मालूम नही है , परन्तु आपको कैसे पता ?

भंते - हे ब्राह्मण ! राम वनवास के समय  कौशल्या ने राम से कहा कि बेटा तेरे जन्म से आजतक इन सत्तरह वर्षों में कैकेयी से मैंने बहुत दुःख झेले हैं , यदि तुम न होते तो मैं मर जाती । वाल्मीकि रामायण

ब्राह्मण - हे भंते ! इससे क्या सिद्ध होता ?

भंते  - हे ब्राह्मण ! राम को चौदह वर्ष का वनवास हुआ था और चौदह वर्ष के बाद अपने जन्म दिन चैत्र नवमीं के बाद ही वन से वापिस लौटे थे ।

ब्राह्मण - हे भंते ! ये कैसे प्रमाणित होता है कि राम चैत्र माह के बाद अर्थात मई माह में वन से वापिस आये थे ।

भंते  - हे ब्राह्मण ! पंचवटी से सीता का अपहरण कितने वर्ष बाद हुआ था ?

ब्राह्मण - हे भंते ! वनवास के 13 वर्ष बाद और वन से आने से एक वर्ष पूर्व ।

भंते - हे ब्राह्मण ! आप कैसे जानते हैं ?

ब्राह्मण - हे भंते ! जब सीता रावण के साथ जा रही थी , तब सीता ने रावण को कहा था कि मुझे वन में रहते 13 वर्ष हो गए हैं ।

भंते - हे ब्राह्मण ! ऐसा कौनसी रामायण में लिखा है ?

ब्राह्मण - हे भंते ! ऐसा वाल्मीकि रामायण में लिखा है ।

भंते - हे ब्राह्मण ! सीता का अपहरण चैत्र महीने के बाद ग्रीष्म ऋतु में हुआ था ।

ब्राह्मण - हे भंते ! यह कहाँ लिखा है ?

भंते - हे ब्राह्मण ! जब राम और लक्ष्मण सीता की खोज करते हुए सुग्रीव के पास पहुँचे तो उस समय ग्रीष्म ऋतु का समय था ।

ब्राह्मण - हे भंते ! यह कैसे प्रमाणित होता है ।

भंते - हे ब्राह्मण ! यह आपकी तुलसीकृत रामायण से प्रमाणित होता है ।

ब्राह्मण - हे भंते ! ऐसा तुलसीकृत रामायण में कहाँ लिखा है ?

भंते - हे ब्राह्मण ! यह किष्किन्धाकाण्ड के पृष्ठ संख्या - 597 पर लिखा है ।

ब्राह्मण - हे भंते ! इस सम्बंध में क्या लिखा है ?

भंते - हे ब्राह्मण ! तुलसीदास ने लिखा है -

गत ग्रीषम बरषा रितु आई । रहिहुँ निकट सैल पर छाई ।।

अर्थात - हे सुग्रीव ! ग्रीष्म ऋतु बीतकर वर्षा ऋतु आ गयी । अतः मैं पास के पर्वत पर ही रहूँगा ।

ब्राह्मण - हे भंते ! फिर हनुमान सीता की खोज में लंका कब गए थे ?

भंते - हे ब्राह्मण ! हनुमान सीता की खोज में अक्टूबर अर्थात कार्तिक महीने के आरम्भ में लंका गया था ।

ब्राह्मण - हे भंते ! ये कैसे ज्ञात हुआ ?

भंते - हे ब्राह्मण ! तुम अपने आपको बड़े बुद्धिमान समझते हैं और आपको अपने ग्रंथों के सम्बंध में कुछ भी ज्ञान नही है ।

ब्राह्मण - हे भंते ! कैसे ?

भंते - हे ब्राह्मण ! तुलसीकृत रामायण के किष्किन्धाकाण्ड के पृष्ठ संख्या - 602 पर साफ साफ लिखा है कि-

बरषा गत निर्मल रितु आई । सुधि न तात सीता की पाई ।।

अर्थात - हे लक्ष्मण ! वर्षा ऋतु बीत गई , निर्मल शरद ऋतु आ गयी , परन्तु अभी तक सुग्रीव ने सीता की खबर की कोई व्यवस्था नही की है ।

ब्राह्मण - हे भंते ! बिल्कुल सत्य है ।

भंते - हे ब्राह्मण ! सीता की खोज में हनुमान कार्तिक माह की शरद पूर्णिमा को लंका में पहुंचा था ।

ब्राह्मण - हे भंते ! ऐसा कहाँ लिखा है ।

भंते - हे ब्राह्मण ! ऐसा वाल्मीकि रामायण के पृष्ठ संख्या - 527 सुन्दरकाण्ड दूसरा सर्ग के श्लोक - 57 में लिखा है ।

ब्राह्मण - हे भंते ! इसका तात्पर्य है कि दीपावली पर राम का वन से आना एक पाखण्ड है ।

भंते - हे ब्राह्मण ! आप बिल्कुल सही पकड़े हैं । हनुमान सीता की खोज खबर लेकर एक महीने बाद आधे आश्विन में वापिस लौटा था अर्थात 15 नवम्बर के आस पास ।

ब्राह्मण - हे भंते ! ये कैसे प्रमाणित होता है ।

भंते - हे ब्राह्मण ! यह तुलसीकृत रामायण के पृष्ठ - 605 पर चौपाई 4 में लिखा है ।

ब्राह्मण - हे भंते ! इसके बाद राम को लंका पर फतह करने में कितना समय लगा ?

भंते - हे ब्राह्मण ! आपकी रामायण के अनुसार राम रावण युद्ध 6 महीने चला था ।

ब्राह्मण - हे भंते ! वन से राम अयोध्या वापिस कब लौटे ।

भंते - हे ब्राह्मण ! राम चैत्र महीने के बाद वन से वापिस लौटे थे ।

ब्राह्मण - हे भंते ! उस समय बहुत गर्मी होगी ।

भंते - हे ब्राह्मण ! जब राम अयोध्या वापिस लौट रहे थे तो भरत ने मजदूरों को आदेश दिया था कि सम्पूर्ण रास्ते और उसकी आस पास की जमीन पर बर्फ के समान ठण्डा पानी छिड़क कर भूमि को बिल्कुल ठण्डा कर दो ।

ब्राह्मण - हे भंते ! ऐसा आदेश कहाँ लिखा है ?

भंते - हे ब्राह्मण ! ऐसा आदेश वाल्मीकि रामायण के पृष्ठ संख्या - 873 युद्धकाण्ड के श्लोक 7 में है ।

ब्राह्मण - हे भंते ! उस रास्ते से राम को अयोध्या पैदल लाते समय  छाते की भी आवश्यकता हुई होगी ।

भंते - हे ब्राह्मण ! जब राम पैदल पैदल अयोध्या आ रहे थे , तब कुछ नौकर राम के ऊपर सफेद रंग का छाता लेकर चल रहे थे और कुछ हाथ के पंखे से हवा करते हुए चल रहे थे ।

ब्राह्मण - हे भंते ! रामायण में ऐसा वर्णन कौनसी जगह है ?

भंते - हे ब्राह्मण ! ऐसा वर्णन वाल्मीकि रामायण के युद्धकाण्ड के पृष्ठ संख्या - 873 के श्लोक 19 में है ।

ब्राह्मण - हे भंते ! इसका तात्पर्य है कि राम वैशाख अर्थात मई महीने में वापिस आये थे ।

भंते - हे ब्राह्मण ! जब राम अयोध्या वापिस आये , तब गगन में इतनी धूल छा गई कि गगन से धूल की वर्षा होने लगी ।

ब्राह्मण - हे भंते ! इससे क्या तात्पर्य है ?

भंते - हे ब्राह्मण ! इससे सिद्ध होता है कि उस समय ग्रीष्म ऋतु थी ।

ब्राह्मण - हे भंते ! ऐसा कहाँ लिखा है ।

भंते - हे ब्राह्मण ! ऐसा वाल्मीकि रामायण के युद्धकाण्ड के पृष्ठ संख्या 874 के श्लोक 29 में लिखा है ।

ब्राह्मण - हे भंते ! ग्रीष्म ऋतु के आरम्भ में सभी वृक्ष फल फूलों से लदे रहते हैं ।

भंते - हे ब्राह्मण ! जब राम की सेना राम के साथ अयोध्या की तरफ बढ़ रही थी , उस समय सभी मीठे फलदार वृक्ष फल फलों से आच्छादित थे ।

ब्राह्मण - हे भंते ! ऐसा कहाँ लिखा है ।

भंते - हे ब्राह्मण ! ऐसा वाल्मीकि रामायण के युद्धकाण्ड में पृष्ठ संख्या - 874 के श्लोक संख्या - 26 में लिखा है ।

ब्राह्मण - हे भंते ! इससे क्या सिद्ध होता है ?

भंते - हे ब्राह्मण ! इन सभी कथनों से सिद्ध होता है कि जब राम अयोध्या वापिस आये , उस समय वैशाख का महीना था ।

ब्राह्मण - हे भंते ! जब राम वैशाख में आये तो दीपावली का त्यौहार राम के वन से वापिस आने की ख़ुशी में क्यों मनाया जाता है ।

भंते - हे ब्राह्मण ! बुद्धिस्ट लोगों के त्यौहारों को नष्ट करने के लिए आप लोगों ने उनके सभी त्यौहारों का हरण कर लिया ।

ब्राह्मण - हे भंते ! दीपावली का त्यौहार बुद्धिस्ट लोगों द्वारा क्यों मनाया जाता है ?

भंते - हे ब्राह्मण ! तथागत बुद्ध ने उपदेश के रूप में 84 हजार गाथाएं गायी थी , उन गाथाओं को सम्यक रूप देने के लिए सम्राट अशोक ने पूरे देश में 84 हजार स्तूप बनवाये थे ।

ब्राह्मण - हे भंते ! इससे दीपावली का क्या सम्बंध है ?

भंते - हे ब्राह्मण ! कार्तिक की अमावस्या की रात देश के समस्त 84 हजार स्तूपों पर एक ही समय पर सभी बौद्ध भिक्षुओं द्वारा दीपदान किया था।

ब्राह्मण - हे भंते ! सम्राट अशोक द्वारा ये ही दिन क्यों चुना था ?

भंते - हे ब्राह्मण ! बौद्ध भिक्षुओं का वर्षावास शरद पूर्णिमा को समाप्त होता है ।

ब्राह्मण - हे भंते ! इसका क्या तात्पर्य है ?

भंते - हे ब्राह्मण ! उस समय वर्षावास समाप्त होने के उपरांत सभी बौद्ध भिक्षु अपनी व्यस्तता से स्वतंत्र हो गए थे ।

ब्राह्मण - हे भंते ! सभी बौद्ध भिक्षु अमावस्या की अँधेरी रात में सभी स्तूपों पर एक साथ दीपदान कर सकें , इसलिए सम्राट अशोक ने अमावस्या का ये दिन चुना था ।

भंते - हे ब्राह्मण ! आपने बिल्कुल सत्य कहा है ।

ब्राह्मण - हे भंते ! शरद पूर्णिमा मनाने का क्या तात्पर्य है ?

भंते  - हे ब्राह्मण ! वर्षावास समाप्त होने पर बौद्ध उपासकों द्वारा बौद्ध भिक्षुओं को खाने के लिए अपने निवास पर आमन्त्रित कर उनका स्वागत खीर से किया जाता था , उस दिन से शरद पूर्णिमा का त्यौहार मनाया जाता है ।

ब्राह्मण - हे भंते ! हम लोग शरद पूर्णिमा के दिन सुन्दरकाण्ड करते हैं ।

भंते  - हे ब्राह्मण ! आप लोगों द्वारा बुद्धिस्टों के सभी त्यौहारों का हरण करके अपनी भगवान रूपी दुकानदारी में बदल दिया ।

ब्राह्मण - हे भंते ! आपने सौ आना सिद्ध कर दिया कि दीपावली और शरद पूर्णिमा बुद्धिस्टों के त्यौहार हैं , इन पर हम लोगों द्वारा अवैध कब्जा कर रखा है ।

भंते - हे ब्राह्मण ! आप लोगों द्वारा बुद्धिस्टों के त्यौहारों का दुरूपयोग करके पाप कर्म किया है ।

ब्राह्मण - हे भंते ! इन पाप कर्मों से मुक्ति कैसे मिलेगी ?

भंते - हे ब्राह्मण ! आप देश की सम्पूर्ण जनता को गीता के अनुसार तत्वदर्शी संत के बारे में बताएं वही उनका कल्याण कर सकते हैं

ये है पोल भारतीय समाज को मूर्ख बनाने वाली ब्राम्हणो की मनगडन्त ,  कहानिया , पोथे पुराण , कथाएँ ।