शनिवार, 25 सितंबर 2021

सच्चिदानंद घन ब्रह्म की वाणियां


✳️ सतगुरु कबीर - साखी ग्रंथ ✳️

✳️ सच्चिदानंद घन ब्रह्म की वाणियां ✳️



✳️अक्षय पुरुष एक पेड है , निरंजन वाको हार । 

✳️तिरदेवा साखा भये , पात भया संसार ॥१॥ 


✳️नाद बिंदु ते अगम भगोचर , पांच तत्व ते न्यार । 

✳️तीन गुनन ते भिन्न है , पुरुप अलेख अपार ॥२॥ 


✳️तीन गुनन की भक्ति में , भूलि पड़ा संसार । 

✳️कहै कबिर निजनाम बिन , केसे उतरै पार ॥३॥ 


✳️हरा होय सुखै मही , यौं तिरगुन विस्तार ।

✳️प्रथमहि ताको सुमिरिये , जाका सकल पसार ॥४॥ 


✳️सब्द सुरति के अंतरै , अलख पुरुप निरवान । 

✳️लखने हारै लखि लिया , जाको है गुरु ज्ञान ॥५॥


✳️राम क्रिस्न अवतार हैं , इनकी नाहीं मांड ।

✳️जिन साहब सृष्टि किया , किनहु न जाया रांड ॥६॥ 


✳️राम क्रिस्न को जिन किया , सो तो करता न्यार ।

✳️अंधा ग्यान न बुझयी , कहै कबीर विचार ॥७॥ 


✳️समुंद्र माहि समाईया , यो साहिब नहि होय । 

✳️सकल मांड में रमि रहा , मेरा साहिब सोय ॥८॥ 


✳️साहेब मेरा एक है , दूजा कहा न जाय ।

✳️दूजा साहिब जो कहूं , साहेब खरा रिसाय ॥९॥ 


✳️जाके मुँह माथा नहीं , नाहिं रूप अरूप । 

✳️पुहुप बास ते पातरा , ऐसा तत्व अनूप ॥१०॥


✳️बूझो करता आपना , मानो वचन हमार । 

✳️पांच तत्व के भीतरै , जाका यह आना सांसार  ॥११॥

 

✳️निबल सबल को जानकर , नाम धरा जगदीश ।

✳️कहै कबीर जन्मे मरे , ताहि धंरू नही सीस ॥१२॥ 


✳️जनम मरन से रहित है , मेरा साहिय सोय । 

✳️बलिहारी वही पीव की , जिन सिरजा सब कोय ॥१३॥ 


✳️समुंद पाटी लंका गयो , सीता को भरतार । 

✳️ताहि अगसत अचै गयो , इन में को करतार ॥१४॥


✳️गिरिवर धार्यो कृश्नन जी , द्रोना गिरि हनुमंत ।

✳️सेसनाग धरती धरी , इन में को भगवंत ॥१५॥


✳️अविगति पीसै पीसना , गौसा बिनै खुदाय । 

✳️निरंजन तो रोटी करै , गैवी बैठा खाय ॥१६॥ 


✳️तीन देव को सव कोइ ध्यावे , चौथे देव का मरहम न पावै । 

✳️चौथा छोड पंचम चित लावै , कहें कबिर हमरै ढिग आवै ॥१७॥ 


✳️जो ओंकार निश्चय किया , यह करता पति जान । 

✳️सांचा सबद कबीर का , परदे में पहिचान ॥१८॥ 


✳️अलख अलख सव कोउ कहै , अलख लखै नहि कोय । 

✳️अलख लखा जिन सब लखा , लखा अलख नहि होय ॥१९॥


✳️कथत कथत जुग थाकिया , थाकी सबै खलक । 

✳️देखत नजरि न आइया , हरि को कहा अलख ॥२०॥ 


✳️तीन लोक सब गम जपत , जानि मुक्ति को धाम । 

✳️रामचंद्र के वसिष्ट गुरु , काह सुनायो नाम ॥२१॥  


✳️जग में चारों राम हैं , तीन राम व्यौहार ।

✳️चौथा राम निज सार है , ताका करो विचार ॥२२॥ 


✳️एक राम दसरथ घर डोले , एक राम घट घट में बोले । 

✳️एक राम का सकल पसारा , एक राम तिरगुन ते न्यारा ॥२३॥ 


✳️कौन राम दसरथ घर डोलै , कौन राम घट घट में बोलै । 

✳️कौन राम का सकल पसारा , कौन राम तिरगुन ने न्यारा ॥२४॥


✳️आकार राम दसरथ घर डोलै , निराकार घट घट में बोलै । 

✳️बिंदु राम का सकल पसारा , निरालंब सबही ते न्यारा ॥२५॥ 


✳️जाकी थापी मांड है , ताकी करहु सेव ।

✳️जो थापा है मांड का , सो नहिं हमरा देव ॥२६॥

 

✳️रहै निराला मांड ते , सकल मांड तिहि मांहि । 

✳️कबीर सेवै तासु को , दूजा सेवै नॉहि ॥२७॥ 


✳️चार भुजा के भजन में , भूलि पड़े सब संत । 

✳️कबीर सुमिरै तासु को , जाके भुजा अनंत ॥२८॥ 


✳️काटे बंधन विपति में , कठिन किया संग्राम । 

✳️चीन्हो रे नर प्रानियां , गरुड बड़े की राम ॥२९॥ 


✳️कहै कबिर चित चैनहु , सबद करो निरुवार । 

✳️राम हि करता कहत हैं , भूलि पर्यो संसार ॥३०॥ 


✳️जाहि रोग उत्पन्न भया , औषधि देय जु ताहि । 

✳️वैद्य ब्रह्म बाहिर रहा , भीतर घसा जु नाहि ॥३१॥


✳️असुर रोग उतपति भया , औतार औषधि दीन्ह । 

✳️कहै कबीर या साखि को , अरथ जु लीजो चीन्ह ॥३२॥ 


✳️कबीर कारज भक्ति के , भुक्ति हि दीन्ह पठाय । 

✳️कहै कबीर विचारि के , ब्रह्म न आवै जाय ॥३३॥ 


✳️हम कर्ता सब सृष्टि के , हम पर दूसर नाँहि । 

✳️कहैं कबिर हमही चीन्हे , नहि चौरासी माँहि ॥३४॥


✳️साहिब सब का पाप है , बेटा किसी का नाहि । 

✳️बेटा होकर ऊतरा , सो तो साहिब नाहि ॥३५॥ 


✳️पिंड प्राण नहि तासु के , दम देही नहि सीन । 

✳️नाद बिंद आवै नहीं , पांच पचीस न तीन ॥३६॥ 


✳️राम राम तुम कहत हो , नहि सो अकथ सरूप ।

✳️वह तो आये जगत में , भये दसरथ घर भूप ॥३७॥ 


✳️रेख रूप बिनु वेद में , औ कुरान बेचून ।

✳️आपस में दोऊ लड़े , जाना नहि दोहून ॥३८॥ 


✳️सहज सुन्न में साईया , ताका वार न पार । 

✳️धरा सकल जग धरि रहा , आप रहा निरधार ॥४०॥

 

✳️देखन सरिखी बात है , कहने सरखी नाँहि । 

✳️अदभुत खेला पेखि के , समुझि रहो मन मॉहि ॥४१॥


साधना टीवी पर 7:30pm से 8:30pm 

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