✳️ सतगुरु कबीर - साखी ग्रंथ ✳️
✳️ सच्चिदानंद घन ब्रह्म की वाणियां ✳️
✳️अक्षय पुरुष एक पेड है , निरंजन वाको हार ।
✳️तिरदेवा साखा भये , पात भया संसार ॥१॥
✳️नाद बिंदु ते अगम भगोचर , पांच तत्व ते न्यार ।
✳️तीन गुनन ते भिन्न है , पुरुप अलेख अपार ॥२॥
✳️तीन गुनन की भक्ति में , भूलि पड़ा संसार ।
✳️कहै कबिर निजनाम बिन , केसे उतरै पार ॥३॥
✳️हरा होय सुखै मही , यौं तिरगुन विस्तार ।
✳️प्रथमहि ताको सुमिरिये , जाका सकल पसार ॥४॥
✳️सब्द सुरति के अंतरै , अलख पुरुप निरवान ।
✳️लखने हारै लखि लिया , जाको है गुरु ज्ञान ॥५॥
✳️राम क्रिस्न अवतार हैं , इनकी नाहीं मांड ।
✳️जिन साहब सृष्टि किया , किनहु न जाया रांड ॥६॥
✳️राम क्रिस्न को जिन किया , सो तो करता न्यार ।
✳️अंधा ग्यान न बुझयी , कहै कबीर विचार ॥७॥
✳️समुंद्र माहि समाईया , यो साहिब नहि होय ।
✳️सकल मांड में रमि रहा , मेरा साहिब सोय ॥८॥
✳️साहेब मेरा एक है , दूजा कहा न जाय ।
✳️दूजा साहिब जो कहूं , साहेब खरा रिसाय ॥९॥
✳️जाके मुँह माथा नहीं , नाहिं रूप अरूप ।
✳️पुहुप बास ते पातरा , ऐसा तत्व अनूप ॥१०॥
✳️बूझो करता आपना , मानो वचन हमार ।
✳️पांच तत्व के भीतरै , जाका यह आना सांसार ॥११॥
✳️निबल सबल को जानकर , नाम धरा जगदीश ।
✳️कहै कबीर जन्मे मरे , ताहि धंरू नही सीस ॥१२॥
✳️जनम मरन से रहित है , मेरा साहिय सोय ।
✳️बलिहारी वही पीव की , जिन सिरजा सब कोय ॥१३॥
✳️समुंद पाटी लंका गयो , सीता को भरतार ।
✳️ताहि अगसत अचै गयो , इन में को करतार ॥१४॥
✳️गिरिवर धार्यो कृश्नन जी , द्रोना गिरि हनुमंत ।
✳️सेसनाग धरती धरी , इन में को भगवंत ॥१५॥
✳️अविगति पीसै पीसना , गौसा बिनै खुदाय ।
✳️निरंजन तो रोटी करै , गैवी बैठा खाय ॥१६॥
✳️तीन देव को सव कोइ ध्यावे , चौथे देव का मरहम न पावै ।
✳️चौथा छोड पंचम चित लावै , कहें कबिर हमरै ढिग आवै ॥१७॥
✳️जो ओंकार निश्चय किया , यह करता पति जान ।
✳️सांचा सबद कबीर का , परदे में पहिचान ॥१८॥
✳️अलख अलख सव कोउ कहै , अलख लखै नहि कोय ।
✳️अलख लखा जिन सब लखा , लखा अलख नहि होय ॥१९॥
✳️कथत कथत जुग थाकिया , थाकी सबै खलक ।
✳️देखत नजरि न आइया , हरि को कहा अलख ॥२०॥
✳️तीन लोक सब गम जपत , जानि मुक्ति को धाम ।
✳️रामचंद्र के वसिष्ट गुरु , काह सुनायो नाम ॥२१॥
✳️जग में चारों राम हैं , तीन राम व्यौहार ।
✳️चौथा राम निज सार है , ताका करो विचार ॥२२॥
✳️एक राम दसरथ घर डोले , एक राम घट घट में बोले ।
✳️एक राम का सकल पसारा , एक राम तिरगुन ते न्यारा ॥२३॥
✳️कौन राम दसरथ घर डोलै , कौन राम घट घट में बोलै ।
✳️कौन राम का सकल पसारा , कौन राम तिरगुन ने न्यारा ॥२४॥
✳️आकार राम दसरथ घर डोलै , निराकार घट घट में बोलै ।
✳️बिंदु राम का सकल पसारा , निरालंब सबही ते न्यारा ॥२५॥
✳️जाकी थापी मांड है , ताकी करहु सेव ।
✳️जो थापा है मांड का , सो नहिं हमरा देव ॥२६॥
✳️रहै निराला मांड ते , सकल मांड तिहि मांहि ।
✳️कबीर सेवै तासु को , दूजा सेवै नॉहि ॥२७॥
✳️चार भुजा के भजन में , भूलि पड़े सब संत ।
✳️कबीर सुमिरै तासु को , जाके भुजा अनंत ॥२८॥
✳️काटे बंधन विपति में , कठिन किया संग्राम ।
✳️चीन्हो रे नर प्रानियां , गरुड बड़े की राम ॥२९॥
✳️कहै कबिर चित चैनहु , सबद करो निरुवार ।
✳️राम हि करता कहत हैं , भूलि पर्यो संसार ॥३०॥
✳️जाहि रोग उत्पन्न भया , औषधि देय जु ताहि ।
✳️वैद्य ब्रह्म बाहिर रहा , भीतर घसा जु नाहि ॥३१॥
✳️असुर रोग उतपति भया , औतार औषधि दीन्ह ।
✳️कहै कबीर या साखि को , अरथ जु लीजो चीन्ह ॥३२॥
✳️कबीर कारज भक्ति के , भुक्ति हि दीन्ह पठाय ।
✳️कहै कबीर विचारि के , ब्रह्म न आवै जाय ॥३३॥
✳️हम कर्ता सब सृष्टि के , हम पर दूसर नाँहि ।
✳️कहैं कबिर हमही चीन्हे , नहि चौरासी माँहि ॥३४॥
✳️साहिब सब का पाप है , बेटा किसी का नाहि ।
✳️बेटा होकर ऊतरा , सो तो साहिब नाहि ॥३५॥
✳️पिंड प्राण नहि तासु के , दम देही नहि सीन ।
✳️नाद बिंद आवै नहीं , पांच पचीस न तीन ॥३६॥
✳️राम राम तुम कहत हो , नहि सो अकथ सरूप ।
✳️वह तो आये जगत में , भये दसरथ घर भूप ॥३७॥
✳️रेख रूप बिनु वेद में , औ कुरान बेचून ।
✳️आपस में दोऊ लड़े , जाना नहि दोहून ॥३८॥
✳️सहज सुन्न में साईया , ताका वार न पार ।
✳️धरा सकल जग धरि रहा , आप रहा निरधार ॥४०॥
✳️देखन सरिखी बात है , कहने सरखी नाँहि ।
✳️अदभुत खेला पेखि के , समुझि रहो मन मॉहि ॥४१॥
साधना टीवी पर 7:30pm से 8:30pm
#SaintRampalJiQuotes
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