जब श्री
कृष्ण जी को पैरो में तीर लगा था उस अंतिम समय मे पांडवो से अंतिम वार्ता में अर्जुन के प्रश्न के जवाब में श्री कृष्णजी कहते है कि अर्जुन तेरे को गीता ज्ञान मैंने नही दिया, मेरे से ऊपर की कोई शक्ति है जो मेरे योग युक्त होने पर आती है ,उसने ही तुझे ज्ञान दिया और उसने तुझसे क्या कहा मुझे नही मालूम, मेरे जन्म से लेकर अब तक कि सारी लीलाएं उसी शक्ति ने की है, अब मै तुम्हे जो कह रहा हूँ वो करो...
तुम्हे युद्ध से पाप बहुत ज्यादा हो गए है अब तुम राज्य त्यागकर हिमालय जाकर तप करते करते उम्र गुजार दो , शरीर गला दो,
अतः सिद्ध है गीता जी मे ज्ञान श्री कृष्ण ने नही दिया उनसे ऊपर की शक्ति ब्रह्म ने दिया है और उसने गीता ञञ देते समय खुद को ब्रह्म व काल कहा है, और 1000 भुजा वाला स्वरूप दिखाया है
जबकि कृष्ण अर्थात विष्णु जी चार भुजा वाले प्रभु है और बैकुंठ लॉकि में रहते है,
गीता ञञ दाता ब्रह्म कृष्ण में आकर कहता है मैं ब्रह्म हूँ ,काल हूँ ब्रह्म लॉकि में रहता हूँ ,ब्रह्म लोक तक सभी लोक नाशवान है ,
प्रकृति मेरी पत्नी और उससे मैं तीन पुत्र रजगुण ,सतोगुण और तमोगुन पैदा किये है
त् ईन तीनो गुणों रूपी माया ने संसार को अज्ञान में ढक रखा है, सच्चाई से दूर किया हुआ है, और संसार की दुर्गातु की हुई है,
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