गुरुवार, 12 फ़रवरी 2015

काल/ब्रम्ह के माया जाल

काल/ब्रम्ह के माया जाल 

 बन्दी छोड़ रामपाल जी महाराज जी की जय हो .. परमात्मा हमें बताते हैं कि:-

ऐ परमेश्वर के चाहने वाले भक्तात्माओं जागो, होश में आओ और जरा विचार करो इस काल/ब्रम्ह के माया जाल में आप किस हद तक बेसुध/अंधे हो चुको हो| जिस प्रकार शराब के नशे में धुत शराबी को होश नही रहता कि वह कहॉ है, क्या कर रहा है, कहॉ पड़ा है, किस हालत में है, वह यही समझता है कि मैं मजे में हूँ और मौज हो रही है पर जो व्यक्ति होश में है वह उसकी स्थिति को जानता है कि यह किस दलदल में है|
ऐसे ही भक्तात्माओं हम जीव इस काल के लोक (२१ब्रंहांड) में इसकी फैलायी माया के नशे में ऐसे बेसुध पड़े हैं कि हमें यह तक होश नही कि हम क्यों बार-बार मर रहे हैं, जिन्हे अपना समझ रहे हैं उनसे एक पल में नाता कैसे टूट जाता है, जिंदगी भर जिस संतान संपत्ति धन को अपना कहते रहे वह एक स्वप्न की तरह कैसे हमारे हाथ से फिसल जाता है| फिर शरीर छुटते ही कोई किसी का नही, अपना किया कर्म ही साथ रह जाता है|
इसके नशे की हद तो यहॉ तक हो गई कि यह ब्रम्ह जब स्वयं अपने आपको (गीता अ.११ श्लोक-३२में) ये कहता है कि मैं काल हूँ और सबको खाने के लिए आया हूँ तब भी हमारी बुध्दि काम नही करती, अर्जुन जैसा योध्दा भी इसके विकराल स्वरुप को देखकर कॉपते हूए (गीता अ.११ श्लोक-३१) में पूछता है कि आप कौन हो ? क्यों कि (गीता अ. ११ श्लोक-२० से ३० तक) यह काल देवताओं व सिध्दों जैसे उन भक्तात्माओं को भी खा रहा है जो वेदमंत्रों से इसकी स्तुति कर रहे हैं, तो हम किस खेत की मूली हैं| फिर भी हम इसी को ही सर्वशक्तिमान मानकर पूज रहे हैं जबकि इसने यह भी बता दिया है (गीता अ.८ श्लोक-१६ में) कि मेरे ब्रम्ह लोक तक गया साधक भी वापस (जन्म-मरण में) आता है, यह सब जान सुन व देखकर भी हमारा नशा नही उतरता और हमारी बुध्दि तो इतना ज्यादा गिर चुका है कि हम इसके नीचे के ३३ करोंड़ देवी-देवताओं को भी पूजने लग गए, अब इनका कहॉ ठिकाना होगा|
हमें ऐसी स्थिति में देखकर वह दयालु परमात्मा यहॉ एक संत/सतगुरू के रुप में आते हैं और इसकी वास्तविक स्थिति से अवगत कराते हुए बताते हैं कि-
सुर नर मुनि जन करै तपस्या, हे साहेब हमें मोक्ष दिए
तप करवा के राज दे दिया,फिर लख चौरासी में ठोंक दिए
आगे परमात्मा हमें बताते हैं कि-
जार बार कोयला कर डारे, फिर फिर दे अवतारा हो
ब्रम्हा विष्णु शिव तनधरआए,और का कौन विचारा हो
सुर नर मुनि जन छल बल मारै, चौरासी में डारा हो
मध्यआकाशआप जहॉ बैठे,जोंति सरुप उजियारा हो
परमात्मा ने इसकी वास्तविक स्थिति बताने में कोई कसर नही छोंड़ी जिसका समर्थन हमारे सदग्रंथ कर रहे हैं| अगर यह सब प्रमाण देखकर भी आपको उस शराबी के जैसा चढ़ा यहॉ का नशा नही उतरा तो आप स्वयं ही अपने जिम्मेदार हो क्यों कि इस ब्रम्ह ने (गीता अ.१८ श्लोक-६२ व ६६ में) यह भी बताया है कि अगर तुझे मुक्ति चाहिए तो सर्वभाव से उस परमेश्वर की शरण में जा उसकी कृपा से तू परमशांति व शास्वत स्थान को प्राप्त होगा, इसके लिए (गीता अ.४ श्लोक-३४में) कहा है कि तू तत्वदर्शी संत की शरण ढूँढ और उसके बताए अनुसार भक्ति कर|
भक्तात्माओं वर्तमान में इस तत्वग्यान को विस्तार से प्रमाण के साथ बताने वाला केवल एक ही संत है- "जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज"
जिसने अध्यात्म ग्यान के प्रत्येक पहलू को हमारे सभी सदग्रंथों से प्रमाणित करके दिखाया है, केवल इसी महापुरुष के बताए साधना से ही हमारा मोक्ष संभव है क्यों कि गीता अ.१६ श्लोक २३-२४ में यह विधान बताया गया है कि जो शास्त्रविधि को त्यागकर अपनी इच्छा से मनमाना आचरण/पूजा/भक्ति/साधना करता है वह न तो सिध्दि को प्राप्त होता है न परमगति को और न सुख को ही, इसलिए कर्तव्य व अकर्तव्य की व्यवस्था में केवल शास्त्र ही प्रमाण है |
तो पुन्यात्माओं जागो और होश में हो तो पहचानो अपने परमेश्वर को ऐसा अवसर बार-बार नहीं आता, परमात्मा कहते हैं-
समझा है तो सिर धर पॉव, बहूर नही रे ऐसा दॉव
 सत साहेब. 

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रोज देखिये , निराकार परमेश्वर के धरती पर आकर सम्पूर्ण ब्रह्म ज्ञान प्रदान करने की लीलाये

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