परमेश्वर का सत्य ज्ञान प्रचार ही इस ग्रुप का मुख्य उद्देश्य है ..
(इस संसार के सभी जीवों की उत्पति की सत्य व् प्रमाणित कहानी।)
पुण्यात्माओ, कबीर साहेबजी ने खुद अपने द्वारा रची गयी सृष्टि की जानकारी को अपनी दिव्य अमृतवाणी में बताया है। आओ अब हम उनकी वही अमृतवाणी को पढ़ते है --
इस अमृतवाणी में परमात्मा कबीर साहेबजी अपने प्रिय शिष्य धर्मदास दास जी को बता रहे है ----
"धर्मदास यह जग बौराना। कोइ न जाने पद निरवाना।।
यही कारन मैं कथा पसारा। जगसे कहियो एक राम (परमात्मा) न्यारा।।
यही ज्ञान जग जीव सुनाओ। सब जीवों का भरम नशाओ।।
अब मैं तुमसे कहों चिताई। त्रयदेवन की उत्पति भाई।।
कुछ संक्षेप कहों गुहराई। सब संशय तुम्हरे मिट जाई।।
भरम गये जग वेद पुराना। आदि राम (सनातन परमात्मा) का भेद न जाना।।
राम राम सब जगत बखाने। आदि राम कोइ बिरला जाने।।
ज्ञानी सुने सो हिरदै लगाई। मूर्ख सुने सो गम्य ना पाई।।
माँ अष्टंगी (दुर्गा) पिता निरंजन (काल ब्रम्ह)। वे जम दारुण वंशन अंजन।।
पहिले कीन्ह निरंजन राई। पीछे से माया (दुर्गा) उपजाई।।
माया रूप देख अति शोभा। देव निरंजन तन मन लोभा।।
कामदेव धर्मराय (काल ब्रम्ह) सत्ताये। देवी (दुर्गा) को तुरतही धर खाये।।
पेट से देवी करी पुकारा। साहब (परमात्मा) मेरा करो उबारा।।
टेर सुनी तब हम (कबीर परमात्मा स्वयं) तहाँ आये। अष्टंगी को बंद छुड़ाये।।
सतलोक में कीन्हा दुराचारि, काल निरंजन दिन्हा निकारि।।
माया समेत दिया भगाई, सोलह संख कोस दूरी पर आई।।
अष्टंगी और काल अब दोई, मंद कर्म से गए बिगोई।।
धर्मराय (काल ब्रम्ह) को हिकमत कीन्हा। नख रेखा से भगकर लीन्हा।।
धर्मराय किन्हाँ भोग विलासा। मायाको रही तब आसा (गर्भ)।।
तीन पुत्र अष्टंगी जाये। ब्रह्मा विष्णु शिव नाम धराये।।
तीन देव विस्त्तार चलाये। इनमें यह जग धोखा खाये।।
पुरुष गम्य कैसे को पावै। काल निरंजन जग भरमावै।।
तीन लोक अपने सुत दीन्हा। सुन्न निरंजन बासा लीन्हा।।
अलख निरंजन (काल भगवान) सुन्न ठिकाना। ब्रह्मा विष्णु शिव भेद न जाना।।
तीन देव सो उनको धावें। निरंजन का वे पार ना पावें।।
अलख निरंजन बड़ा बटपारा (ठग)। तीन लोक जिव कीन्ह अहारा।।
ब्रह्मा विष्णु शिव नहीं बचाये। सकल खाय पुन धूर उड़ाये।।
तिनके सुत हैं तीनों देवा। आंधर जीव (ज्ञानहीन साधक) करत हैं सेवा।।
अकाल पुरुष (अमर परमात्मा) काहू नहिं चीन्हां। काल पाय सबही गह लीन्हां।।
ब्रह्म काल सकल जग जाने। आदि ब्रह्मको(पूर्ण परमात्मा) ना पहिचाने।।
तीनों देव और औतारा। ताको भजे सकल संसारा।।
तीनों गुणका यह विस्त्तारा। धर्मदास मैं कहों पुकारा।।
गुण तीनों की भक्ति में, भूल परो संसार।
कहै कबीर निज नाम (मुझ द्वारा प्रदत्त वास्तविक मोक्ष मंत्र) बिन, कैसे उतरैं पार।।"............
(इस संसार के सभी जीवों की उत्पति की सत्य व् प्रमाणित कहानी।)
पुण्यात्माओ, कबीर साहेबजी ने खुद अपने द्वारा रची गयी सृष्टि की जानकारी को अपनी दिव्य अमृतवाणी में बताया है। आओ अब हम उनकी वही अमृतवाणी को पढ़ते है --
इस अमृतवाणी में परमात्मा कबीर साहेबजी अपने प्रिय शिष्य धर्मदास दास जी को बता रहे है ----
"धर्मदास यह जग बौराना। कोइ न जाने पद निरवाना।।
यही कारन मैं कथा पसारा। जगसे कहियो एक राम (परमात्मा) न्यारा।।
यही ज्ञान जग जीव सुनाओ। सब जीवों का भरम नशाओ।।
अब मैं तुमसे कहों चिताई। त्रयदेवन की उत्पति भाई।।
कुछ संक्षेप कहों गुहराई। सब संशय तुम्हरे मिट जाई।।
भरम गये जग वेद पुराना। आदि राम (सनातन परमात्मा) का भेद न जाना।।
राम राम सब जगत बखाने। आदि राम कोइ बिरला जाने।।
ज्ञानी सुने सो हिरदै लगाई। मूर्ख सुने सो गम्य ना पाई।।
माँ अष्टंगी (दुर्गा) पिता निरंजन (काल ब्रम्ह)। वे जम दारुण वंशन अंजन।।
पहिले कीन्ह निरंजन राई। पीछे से माया (दुर्गा) उपजाई।।
माया रूप देख अति शोभा। देव निरंजन तन मन लोभा।।
कामदेव धर्मराय (काल ब्रम्ह) सत्ताये। देवी (दुर्गा) को तुरतही धर खाये।।
पेट से देवी करी पुकारा। साहब (परमात्मा) मेरा करो उबारा।।
टेर सुनी तब हम (कबीर परमात्मा स्वयं) तहाँ आये। अष्टंगी को बंद छुड़ाये।।
सतलोक में कीन्हा दुराचारि, काल निरंजन दिन्हा निकारि।।
माया समेत दिया भगाई, सोलह संख कोस दूरी पर आई।।
अष्टंगी और काल अब दोई, मंद कर्म से गए बिगोई।।
धर्मराय (काल ब्रम्ह) को हिकमत कीन्हा। नख रेखा से भगकर लीन्हा।।
धर्मराय किन्हाँ भोग विलासा। मायाको रही तब आसा (गर्भ)।।
तीन पुत्र अष्टंगी जाये। ब्रह्मा विष्णु शिव नाम धराये।।
तीन देव विस्त्तार चलाये। इनमें यह जग धोखा खाये।।
पुरुष गम्य कैसे को पावै। काल निरंजन जग भरमावै।।
तीन लोक अपने सुत दीन्हा। सुन्न निरंजन बासा लीन्हा।।
अलख निरंजन (काल भगवान) सुन्न ठिकाना। ब्रह्मा विष्णु शिव भेद न जाना।।
तीन देव सो उनको धावें। निरंजन का वे पार ना पावें।।
अलख निरंजन बड़ा बटपारा (ठग)। तीन लोक जिव कीन्ह अहारा।।
ब्रह्मा विष्णु शिव नहीं बचाये। सकल खाय पुन धूर उड़ाये।।
तिनके सुत हैं तीनों देवा। आंधर जीव (ज्ञानहीन साधक) करत हैं सेवा।।
अकाल पुरुष (अमर परमात्मा) काहू नहिं चीन्हां। काल पाय सबही गह लीन्हां।।
ब्रह्म काल सकल जग जाने। आदि ब्रह्मको(पूर्ण परमात्मा) ना पहिचाने।।
तीनों देव और औतारा। ताको भजे सकल संसारा।।
तीनों गुणका यह विस्त्तारा। धर्मदास मैं कहों पुकारा।।
गुण तीनों की भक्ति में, भूल परो संसार।
कहै कबीर निज नाम (मुझ द्वारा प्रदत्त वास्तविक मोक्ष मंत्र) बिन, कैसे उतरैं पार।।"............
(इस संसार के सभी जीवों की उत्पति की सत्य व् प्रमाणित कहानी।)
पुण्यात्माओ, कबीर साहेबजी ने खुद अपने द्वारा रची गयी सृष्टि की जानकारी को अपनी दिव्य अमृतवाणी में बताया है। आओ अब हम उनकी वही अमृतवाणी को पढ़ते है --
इस अमृतवाणी में परमात्मा कबीर साहेबजी अपने प्रिय शिष्य धर्मदास दास जी को बता रहे है ----
"धर्मदास यह जग बौराना। कोइ न जाने पद निरवाना।।
यही कारन मैं कथा पसारा। जगसे कहियो एक राम (परमात्मा) न्यारा।।
यही ज्ञान जग जीव सुनाओ। सब जीवों का भरम नशाओ।।
अब मैं तुमसे कहों चिताई। त्रयदेवन की उत्पति भाई।।
कुछ संक्षेप कहों गुहराई। सब संशय तुम्हरे मिट जाई।।
भरम गये जग वेद पुराना। आदि राम (सनातन परमात्मा) का भेद न जाना।।
राम राम सब जगत बखाने। आदि राम कोइ बिरला जाने।।
ज्ञानी सुने सो हिरदै लगाई। मूर्ख सुने सो गम्य ना पाई।।
माँ अष्टंगी (दुर्गा) पिता निरंजन (काल ब्रम्ह)। वे जम दारुण वंशन अंजन।।
पहिले कीन्ह निरंजन राई। पीछे से माया (दुर्गा) उपजाई।।
माया रूप देख अति शोभा। देव निरंजन तन मन लोभा।।
कामदेव धर्मराय (काल ब्रम्ह) सत्ताये। देवी (दुर्गा) को तुरतही धर खाये।।
पेट से देवी करी पुकारा। साहब (परमात्मा) मेरा करो उबारा।।
टेर सुनी तब हम (कबीर परमात्मा स्वयं) तहाँ आये। अष्टंगी को बंद छुड़ाये।।
सतलोक में कीन्हा दुराचारि, काल निरंजन दिन्हा निकारि।।
माया समेत दिया भगाई, सोलह संख कोस दूरी पर आई।।
अष्टंगी और काल अब दोई, मंद कर्म से गए बिगोई।।
धर्मराय (काल ब्रम्ह) को हिकमत कीन्हा। नख रेखा से भगकर लीन्हा।।
धर्मराय किन्हाँ भोग विलासा। मायाको रही तब आसा (गर्भ)।।
तीन पुत्र अष्टंगी जाये। ब्रह्मा विष्णु शिव नाम धराये।।
तीन देव विस्त्तार चलाये। इनमें यह जग धोखा खाये।।
पुरुष गम्य कैसे को पावै। काल निरंजन जग भरमावै।।
तीन लोक अपने सुत दीन्हा। सुन्न निरंजन बासा लीन्हा।।
अलख निरंजन (काल भगवान) सुन्न ठिकाना। ब्रह्मा विष्णु शिव भेद न जाना।।
तीन देव सो उनको धावें। निरंजन का वे पार ना पावें।।
अलख निरंजन बड़ा बटपारा (ठग)। तीन लोक जिव कीन्ह अहारा।।
ब्रह्मा विष्णु शिव नहीं बचाये। सकल खाय पुन धूर उड़ाये।।
तिनके सुत हैं तीनों देवा। आंधर जीव (ज्ञानहीन साधक) करत हैं सेवा।।
अकाल पुरुष (अमर परमात्मा) काहू नहिं चीन्हां। काल पाय सबही गह लीन्हां।।
ब्रह्म काल सकल जग जाने। आदि ब्रह्मको(पूर्ण परमात्मा) ना पहिचाने।।
तीनों देव और औतारा। ताको भजे सकल संसारा।।
तीनों गुणका यह विस्त्तारा। धर्मदास मैं कहों पुकारा।।
गुण तीनों की भक्ति में, भूल परो संसार।
कहै कबीर निज नाम (मुझ द्वारा प्रदत्त वास्तविक मोक्ष मंत्र) बिन, कैसे उतरैं पार।।"............
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