सोमवार, 21 अक्टूबर 2024

अल्लाह के आदेश के विरुद्ध मुसलमानों को गुमराह किया शैतान में देखिए कैसे ....पड़िए phd ज्ञान यहां...

 بِسْمِ ٱللَّٰهِ ٱلرَّحْمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ

बकरीद  अल्लाह के आदेश के विरुद्ध मनमाना आचरण ...पड़िए पूरा लेख.....

चलिए इस answer में मैं आपको कुछ प्रमाण पवित्र मुसलमान धर्म के सद्ग्रंथो से ही देती हूं अगर आप वास्तव में सच्चे मुसलमान हैं तो आपको अपने पवित्र इस्लामिक धर्म के सद्ग्रंथो को तो मानना पड़ेगा...

इस्लामिक मान्यता के अनुसार हज़रत इब्राहिम अपने पुत्र हज़रत इस्माइल को इस दिन खुदा के हुक्म पर खुदा की राह में कुर्बान करने जा रहे थे (बलि देने जा रहे थे) तो अल्लाह ने उनके पुत्र को जीवनदान दे दिया जिसकी याद में यह पर्व मनाया जाता है और फिर शुरू हुई परम्परा बकरीद मनाने की।

🤔 पर वास्तव में तो ये सोचने वाली बात है कि अल्लाह ने हज़रत इस्माइल जी को तो जिंदगी दी थी और मुसलमान धर्म के श्रद्धालु बकरा ईद के दिन बकरे को मार कर खाते हैं। अल्लाह ने तो जिंदगी दी और मुस्लिम उस दिन की याद में बकरे की जिंदगी ले लेते है। क्या अल्लाह ऐसे लोगो को बख्शेंगे?

अब कुछ प्रमाणों को पढ़िए:-

• हजरत मुहम्मद जी का जीवन चरित्र” पुस्तक के पृष्ठ 307 से 315 में लिखा है कि हजरत मुहम्मद जी ने कभी खून खराबा करने का आदेश नहीं दिया।

• पवित्र तौरात पुस्तक के अंदर ‘पैदाइश’ में पृष्ठ नंबर 2 और 3 पर लिखा है कि अल्लाह ताला ने मनुष्यों को अपने स्वरूप के अनुसार उत्पन्न किया। जो बीज वाले फल हैं, उन्हें मनुष्यों को खाने का आदेश दिया और जीव जंतुओं को घास फूस खाने का आदेश दिया। इस प्रकार परमेश्वर ने छः दिन में सृष्टि रची औऱ सातवें दिन तख्त पर जा विराजा।

और तो और संत गरीबदास जी ने इसके विषय में बताया है की:-

नबी मोहम्मद नमस्कार है, राम रसूल कहाया ।

एक लाख अस्सी को सौगंध, जिन नहीं करद चलाया ||

अरस कुरस पर अल्लह तख्त है, खालिक बिन नहीं खाली |

वे पैगम्बर पाक पुरुष थे, साहेब के अब्दाली।।

पवित्र मुसलमान धर्म के पैगम्बर हजरत मोहम्मद जी जिस रास्ते पर थे उन प्यारे नबी को आदर्श मानकर समस्त मुस्लिम समुदाय उसी राह पर चल रहा है किंतु मुस्लिमो को वास्तव में उनके धार्मिक गुरुओं द्वारा बहकाया और भरमाया गया है। वर्तमान में सारे मुसलमान मांस खा रहे है परंतु नबी मोहम्मद ने कभी माँस नही खाया तथा न ही उनके सीधे (एक लाख अस्सी हजार) अनुयायियों ने कभी माँस खाया। हजरत मोहम्मद केवल रोजा व नमाज किया करते थे। गाय आदि को बिस्मिल (हत्या) नहीं करते थे। हज़रत मुहम्मद इतने दयालु थे कि वे चींटी को भी तंग करना हराम समझते थे।

ये भी विचार करना "बहुत महत्वपूर्ण"

मुसलमान भाई ये भी मानते हैं कि जिस बकरे की बकरीद के दिन कुर्बानी करते हैं, वह बकरा जन्नत में जाता है और उस बकरे का माँस हमारे लिए माँस नहीं बल्कि प्रसाद बन जाता है। यदि बकरे की कुर्बानी करने पर बकरे की रूह को सीधी जन्नत मिलती है तो विचार कीजिये कि जन्नत में तो आपको भी जाना है, तो क्यों न उस बकरे की जगह आप अपनी कुर्बानी दे दो और आप पहले ही जन्नत पहुंच जाओ जबकि वास्तविकता यह है कि इस तरह बकरे की या किसी भी अन्य पशु की कुर्बानी देने से जन्नत नहीं बल्कि सीधा दोजख मिलता है।

मुसलमान का अर्थ है जो इस्लाम में विश्वास करता है और उसके नियमों के अनुसार रहता है।

अगर आप आज सच्चे मुसलमान हो तो आपको ये अवश्य ही मानना पड़ेगा।

क्या कभी सोचा है:-

सूरत 42 आयत 1 में अल्लाह ताला को प्राप्त करने के तीन शब्द बताए हैं: "एन सीन काफ" । क्या आप जानते हैं ये एन सीन काफ आखिर क्या है??

पवित्र कुरान शरीफ सूरत फुरकान 25 आयत 59 में कहा है कि जिस कबीर नामक अल्लाह ताला ने इस सारी सृष्टि की रचना छः दिन में कर दी, वो अल्लाह कबीर बड़ा दयालु है। उस अल्लाह कबीर को प्राप्त करने की विधि किसी बाख़बर अर्थात तत्वदर्शी संत से पूछ देखो। आखिर वो बाखबर वर्तमान हैं कौन??

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धन्यवाद।

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