सोमवार, 21 अक्टूबर 2024

श्राद्ध कर्म के बारे में पवित्र शास्त्र क्या कहते हैं देखिए phd ज्ञान....

 श्राद्ध एक पवित्र अनुष्ठान है जिस अवसर पर पितरों का आह्वान करते हुए उनकी संतुष्टि हेतु विppधिपूर्वकs पूजा की जाती है। तर्पण और पिंडदान जैसे अनुष्ठानों के माध्यम से पूर्वजों को चावल, तिल, जौ और जल अर्पित किया जाता है।

हिंदू धर्म के लोगों की मान्यता है कि इस अनुष्ठान से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है व मोक्ष की प्राप्ति होती है और वे प्रसन्न होकर अपने वंशजों को आशीर्वाद देते हैं। पर यहां पर अगर आप अपने धर्म के प्रति अडिग हैं और आज शिक्षित होने के नाते आपको ये जानना जरूरी है कि धर्म में फैली मान्यताओं और धर्म शास्त्रों में लिखी बातें आपस में मेल खाती हैं भी या नहीं?

चलिए अब जान लेते हैं श्राद्ध और पितृ पूजा के विषय में क्या कहना है हमारे पवित्र धर्म शास्त्रों का?

गीता अध्याय 9 श्लोक 25:

"यान्ति देवव्रता देवान् पितृन्यान्ति पितृव्रताः।" इस श्लोक में भगवान कृष्ण स्पष्ट रूप से कहते हैं कि जो देवताओं की पूजा करते हैं, वे देवताओं के लोकों में जाते हैं, और जो पितरों की पूजा करते हैं, वे पितरों के लोकों में जाते हैं। यह श्लोक स्पष्ट करता है कि पितरों की पूजा से केवल पितृलोक की प्राप्ति होती है, मोक्ष नहीं मिलता।

महाभारत, अनुशासनपर्व, अध्याय 143

| इदं चैवापरं देवि ब्रह्मणा समुदाहृतम् ।| अध्यात्मं नैष्ठिकं सद्भिर्धर्मकामैर्निषेव्यते ।१६।| उग्रान्नं गर्हितं देवि गणान्नं श्राद्धसूतकम् ।| दुष्टान्नं नैव भोक्तव्यं शूद्रान्नं नैव कर्हिचित् । १७।

महेश्वर जी बोले - देवि ! ब्रह्मा जी ने यह एक बात और बतायी है, धर्म की इच्छा रखने वाले सत्पुरुषों को आजीवन अध्यात्म का सेवन करना चाहिये। हे देवि ! उग्र स्वभाव के मनुष्य का अन्न निन्दित माना गया है। किसी समुदाय का, श्राद्ध का, जननाशौच का, दुष्ट पुरुष का और शूद्र का अन्न भी निषिद्ध है उसे कभी नहीं खाना चाहिये ।।

ब्रह्म पुराण, अध्याय 223

| उग्रान्नं गर्हितं देवि गणान्नं श्राद्धसूतकम् ।| घुष्टान्नं नैव भोक्तव्यं शुद्रान्नं नैव वा क्वचित् ।२३।| शुद्रान्नं गर्हितं देवि सदा देवैर्महात्मभिः ।| पितामहामुखोत्सृष्टं प्रमाणमिति मे मतिः ।२४।

महादेव जी बोले - इसी प्रकार उग्र मनुष्य का अन्न, एक समुदाय का अन्न, श्राद्ध और सूतक का अन्न तथा शूद्र का अन्न कभी नहीं खाना चाहिये। देवि! देवताओं और महात्मा पुरुषों ने शूद्र के अन्न की सदा ही निन्दा की है। यह श्री ब्रह्माजी के श्री मुख का कथन होने के कारण अत्यन्त प्रामाणिक है ।।

पद्म पुराण, स्वर्गखण्ड, अध्याय 56

| चक्रोपजीविरजकतस्करध्वजिनां तथा ।| गान्धर्वलोहकारान्नेमृतकान्नं विवर्जयेत् ।५।| ब्रह्मद्विशः पापरुसेः श्रद्धान्नं मृतकस्य च ।| वृथापकस्य चैवन्नं शवान्नं चातुर्म्य च ।११।| गुरोरापि न भोक्तव्यमन्नं संस्कारवर्जितम् ।| दुष्कृतं हि मनुष्यस्य सर्वमन्ने व्यवस्थितम् ।१५।

व्यास जी बोले - कुम्हार, धोबी, चोर, शराब बेचने वाले, नाचने गाने वाले, लुहार तथा मरणाशौच से युक्त अन्न वर्जित है। ब्राह्मण से द्वेष रखने वाले, पाप में रुचि वाले का अन्न तथा मृतक के श्राद्ध का अन्न, व्यर्थ रूप से बनाया अन्न, मृत शरीर से प्राप्त अन्न, रोगी का अन्न, संस्कार वर्जित गुरुजी का भी अन्न नहीं खानेयोग्य है, मनुष्य का सब पाप अन्न मैं स्थित होता है ।।

स्कंद पुराण, प्रभासखण्ड, प्रभासक्षेत्र माहात्म्य, अध्याय 207

| तथा संचयनश्रद्धे जातिजन्मकृतं नृणाम् । | मृत शय्याप्रतिग्रही वेदस्यैव च विक्रयि । | ब्रह्मस्वाहरि च नरस्तस्य शुद्धिर्न विद्यते ।१४।

महादेव जी बोले - संचयन श्राद्ध में भोजन करने से सम्पूर्ण जीवन का अर्जित पुण्य नष्ट हो जाता है। मृतक की शय्या, वेद बेचने वाले तथा ब्राह्मण की सम्पत्ति हड़पने वाले मनुष्य के लिए कोई शुद्धिकरण नहीं है ।।

गरूड़ पुराण, सारोद्धार, अध्याय 5

| मृतस्यैकादशाहं तु भुञ्जानः श्वा विजायते । | लभेद्देवलको विप्रो योनिं कुक्कुटसंज्ञकाम् । ३२।

विष्णु जी बोले - किसी के मरणाशौच में एकादशाह तक भोजन करने वाला कुत्ता होता है। देव द्रव्य भोक्ता देवलक ब्राह्मण मुर्गे की योनि प्राप्त करता है ।।

उपरोक्त प्रमाणों पर अगर आपको विश्वास न हो तो आप स्वयं भी इन्हें अपने घर पर रखे पवित्र ग्रंथों से मिलान कर के देख सकते हैं। अगर कोई समझदार व्यक्ति मेरे इस उत्तर को पढ़ रहा होगा तो वो खुद ही निर्णय कर सकता है की अब हमें श्राद्ध क्रिया कर्म करनी चाहिए या नहीं? मान्यताओं को मानें या फिर धर्म शास्त्रों को...? वैसे तो अगर आप देखें तो ये लेकिन यहां कई लोगों के मन में प्रश्न उठता है कि अगर हम ये सब कर्म काण्ड नहीं करेंगे तो हमे दोष लगेगा या अनहोनी घटनाएं हमारे साथ बीतेगी, तो इसका समाधान भी हमारे धर्म शास्त्रों में वर्णित सतभक्ति करने से संभव है। और भी किसी प्रकार की शंका के लिए और सही भक्ति साधना के लिए अवश्य पढ़ें पुस्तक ज्ञान गंगा। निःशुल्क मंगवाने हेतु आप अपना एड्रेस इस +918630385761 पर whatsapp कर सकते हैं।

समझदार को संकेत ही काफी है, प्रमाण आप सभी के सामने हैं।

धन्यवाद 🙏🏻

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