बुधवार, 15 फ़रवरी 2023

प्रश्न :- वर्तमान में पूर्ण सच्चा सतगुरु कौन है?

प्रश्न :-  वर्तमान में पूर्ण सच्चा सतगुरु कौन है? 
प्रश्न :-  वर्तमान में वास्तविक तत्त्वदर्शी सन्त कौन है? 

उत्तर:- पूर्ण सतगुरु मिलना आसान नहीं है। और हर कोई सतगुरु, धर्मगुरु, पूर्ण संत नहीं हो सकता। सतगुरु का शाब्दिक अर्थ है। एक सच्चा (सतगुरु) संत ( अर्थात जो भगवान का अवतार है और जो आज तक अनकही सच्चाई को धार्मिक ग्रंथों के आधार पर प्रमाण सहित प्रकट करता है। वह सतगुरु कहलाता है।

 सतगुरु की पहचान उसके ज्ञान से होती है। यदि उनका ज्ञान शास्त्रों द्वारा प्रमाणित है, तभी वह सतगुरु है। वह पूजा का सच्चा मार्ग प्रदान करता है। और सभी को सभी तरह की बुराइयों को त्यागने की शिक्षा देता है। और उन्हें मोक्ष प्राप्त करने के लिए भक्ति के सच्चे मंत्र देकर सही मार्ग पर ले जाता है।

प्रश्न:- पूर्ण सतगुरु का क्या महत्व है?
उत्तर:-कबीर, गुरु बिन माला फेरते, गुरु बिन देते दान।
गुरु बिन दोनों निष्फल हैं, चाहे पूछो वेद पुराण।।

एक पूर्ण संत सतभक्ति प्रदान करता है। जिसे करने से मनुष्य परम शांति प्राप्त कर सकता है। सतगुरु द्वारा बताई गई साधना, करने से जीवन के सारे दुख दूर हो जाते हैं। एक पूर्ण संत द्वारा दी गई आध्यात्मिक शिक्षाओं का पालन करने के बाद मनुष्य का जन्म-मृत्यु और पुनर्जन्म का रोग हमेशा के लिए समाप्त हो जाता है।  सतगुरु हमें सभी पवित्र शास्त्रों से पूर्ण ज्ञान प्रमाण के साथ बताते हैं। मानव जीवन का उद्देश्य केवल सतभक्ति कर मोक्ष प्राप्त करना है। 

प्रश्न:-मनुष्य को पूर्ण गुरु की आवश्यकता क्यों है?
उत्तर:-मानव जीवन का प्राथमिक और परम उद्देश्य ईश्वर को प्राप्त करना है। और केवल एक सतगुरु अर्थात पूर्ण संत के पास ही यह गुण होता है। जिससे वह अपने भक्तों का उद्धार कर सकते हैं। इसलिए पूर्ण गुरु की आवश्यकता सभी को होती है। लोगों के जीवन में समय असमय बहुत सारे कष्ट आते रहते हैं। और वे हमेशा उनसे बाहर आने की कोशिश में लगे रहते हैं।  सभी दुखों से मुक्ति पाने का एक ही उपाय है कि, किसी तत्वज्ञानी संत की शरण ग्रहण कर सतभक्ति की जाए।

प्रश्न:-सतभक्ति का क्या उद्देश्य है?

उत्तर:-आज मानव जीवन में जो कुछ भी प्राप्त हो रहा है। वह पूर्व जन्मों में किए कर्मों का संग्रह है। यदि वर्तमान समय में सच्ची पूजा और शुभ कर्म नहीं किया गया तो, आने वाला जीवन नरक बन जाएगा। 
सत भक्ति करने के  लाभ इस प्रकार भी है:-

जो सतभक्ति करता है वह भगवान को प्राप्त करता है।

(1)सतभक्ति करने से भक्त की आत्मा निर्मल हो जाती है और पाप कर्म भी सतभक्ति करने से कटते हैं।

(2)सतभक्ति साधक के जीवन में आर्थिक, मानसिक और भौतिक सुख प्रदान करती है।

(3)सतभक्ति करने से घातक रोग भी ठीक होते  हैं।

(4)सतभक्ति में भाग्य को बदलने की शक्ति होती है।

संत रामपालजी महाराज एकमात्र ऐसे संत है। जिन्होंने दहेज़ मुक्त, नशा मुक्त, भ्रष्टाचार मुक्त, व्याभिचार मुक्त समाज का निर्माण करते हुए सत्ज्ञान की सुगंध को पूरे विश्व में फ़ैलाने का बीड़ा उठाया है। पूरे विश्व में केवल संत रामपाल जी महाराज जी जगत के तारणहार एवं पूर्ण सतगुरु हैं।

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प्रश्न:- पूर्ण सतगुरु के क्या लक्षण होते हैं ?

प्रश्न:- पूर्ण सतगुरु के क्या लक्षण होते हैं ?

उतर:-पूर्ण संत की पहचान होती है कि, वर्तमान के धर्म गुरु उसके विरोध में खड़े होकर राजा व प्रजा को गुमराह करके उसके ऊपर अत्याचार करवाते हैं।

”सतगुरु के लक्षण कहूं, मधूरे बैन विनोद।
चार वेद षट शास्त्र, कहै अठारा बोध।।“

 पूर्ण गुरु के  लक्षण है। कि वह चारों वेदों, छः शास्त्रों, अठारह पुराणो,आदि सभी ग्रंथों का पूर्ण जानकार होगा अर्थात् उनका सार निकाल कर  मानव समाज को बताएगा।

प्रश्न:-संत रामपाल जी महाराज के क्या उद्देश्य हैं?

उत्तर:- परम संत रामपाल जी महाराज जी का उद्देश्य आध्यात्मिक मार्ग पर फैले पाखंडवाद को समाप्त करना, सभी प्रमाणित धर्म ग्रंथों की तुलनात्मक समीक्षा करके शास्त्र अनुकूल भक्ति जनसाधारण तक पहुंचाना, समाज में व्याप्त कुरीतियों का समूल नाश करना मृत्यु भोज, भ्रूण हत्या, छुआछूत, रिश्वतखोरी भ्रष्टाचार आदि से मुक्त समाज का निर्माण करना।

संत सतगुरु रामपाल जी के आध्यात्मिक ज्ञान से विश्व में भाईचारा, अमन-शांति तथा पतन हो चुकी मानवता का फिर से उत्थान हो रहा है। संत रामपाल जी महाराज जी को आज विश्वगुरु, विश्व विजेता, जगतगुरु तथा धरती पर अवतार, महापुरुष आदि नाम से पुकारा जाने लगा है क्योंकि आज उनके द्वारा बताए गए शास्त्रानुसार आध्यात्मिक ज्ञान से स्वच्छ समाज का निर्माण, मानव जीवन का कल्याण और विश्व मे शांति का माहौल बन रहा है।


प्रश्न:-वर्तमान समय में सत भक्ति कौन दे रहे हैं?

उत्तर:-वर्तमान समय में सतभक्ति केवल संत रामपाल जी महाराज जी ही बता रहे हैं। संत रामपाल जी महाराज ने उस पूर्ण ब्रह्म परमात्मा का वास्तविक ज्ञान करवाया कि वह परमात्मा कौन है कहां रहता है कैसे मिलता है किसने देखा है उसकी वास्तविक भक्ति विधि क्या है?

संत रामपाल जी महाराज ने सर्व पवित्र धर्म के पवित्र शास्त्रों का सार बता कर अध्यात्मिक ज्ञान का एक ऐसा निष्कर्ष निकाल कर मानव समाज को दिया है जिससे आज मनुष्य अपने धर्म शास्त्रों में छुपे हुए गूढ़ रहस्य से अवगत हो कर उस पूर्ण परमात्मा को प्राप्त कर सकता है जिसकी गवाही सभी धर्मों के पवित्र शास्त्र धर्म ग्रंथ दे रहे हैं। 

संत रामपाल जी महाराज ने सभी पवित्र धर्मों के शास्त्रों से प्रमाणित किया है कि, पूर्ण परमात्मा साकार है या नराकार है सतलोक में रहता है और उसका नाम कबीर है?

संत रामपाल जी महाराज जी का उद्देश्य -:
आज मानव समाज में फैली समस्त बुराइयों को जड़ से खत्म करके स्वच्छ  समाज का निर्माण करना है। संत रामपाल जी महाराज पूरे विश्व में ऐसे महान संत हैं जिनके यथार्थ ज्ञान से धरती बन सकती है स्वर्ग समान और सुखी हो सकता है इंसान।।

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कौन हैं संत रामपाल जी महाराज तथा इनके जनकल्याण के क्या उद्देश्य हैं?

✴️ प्रश्न-: कौन हैं संत रामपाल जी महाराज तथा इनके जनकल्याण के क्या उद्देश्य हैं? ✴️

उत्तर-: सर्वप्रथम हम आपको बताना चाहेंगे कि, संत रामपाल जी महाराज कौन है? 
दोस्तों वैसे तो दुनिया में करोड़ों संतों की भरमार है।  किंतु इन संतो में सच्चा संत अर्थात तत्वदर्शी संत कौन है?
 इसकी पहचान कर पाना बहुत ही आसान है। पवित्र श्रीमद्भागवत गीता के अध्याय 15 के श्लोक 1–4 में वर्णित है जो संसार रूपी उल्टे लटके हुए वृक्ष को सवेदवित जड़ से लेकर तने तक प्रमाण सहित बता देता है। वह तत्वदर्शी संत है। वर्तमान में केवल संत रामपाल जी महाराज जी ही शास्त्रों को खोलकर प्रमाण दिखा रहे हैं। अर्थात इससे स्पष्ट है। कि संत रामपाल जी महाराज ही वह सच्चे संत अर्थात तत्वदर्शी संत है।

दोस्तों संत रामपाल जी महाराज जी एक ऐसे संत है जो समाज को सतभक्ति प्रदान कर रहे हैं। तथा उन सच्चे मंत्रों का जाप बता रहे हैं। जो आज से पहले जिन महापुरुषों को स्वयं परमात्मा मिले हैं । जैसे नानक देव जी,आदरणीय गरीबदास जी महाराज जी, आदरणीय रामानंद जी, मलूक दास जी, घीसा दास जी इत्यादि, इन मंत्रों का स्वयं जाप करते थे।  संत रामपाल जी महाराज का उद्देश्य है। जनता को सुखी करना तथा अपने परमधाम सतलोक पहुंचाना। इसके साथ-साथ समाज में फैली पाखंडवाद, कुरीतियां, नशा, चोरी जारी, मांस भक्षण, रिश्वतखोरी इत्यादि को जड़ से समाप्त करना चाहते हैं और इसी के लिए संत रामपाल जी महाराज दिन-रात संघर्ष कर रहे हैं। 

प्रश्न-: संत रामपाल जी महाराज  ने समाज के लिए कौन-कौन से कार्य किए तथा संत रामपाल जी महाराज  को ही गुरु बनाना क्यों आवश्यक है?

उत्तर-:संत रामपाल जी महाराज जी ने अपना सब कुछ जनता के लिए न्योछावर कर दिया उन्होंने घर, बाल परिवार, नौकरी इत्यादि को छोड़ा। जनता को सुखी करने के लिए तथा सत भक्ति का मार्ग प्रशस्त करने के लिए संत रामपाल जी महाराज  ने जन जन तक काफी वर्षों तक पैदल यात्रा से ज्ञान का प्रचार करते रहे। आज वर्तमान में संत रामपाल जी महाराज जी के करोड़ों अनुयाई हो चुके हैं। कारण यही है। कि संत रामपाल जी महाराज जी शास्त्रों के अनुसार सत भक्ति प्रदान कर रहे हैं। और उनके द्वारा सद्भक्ति से लोगों को अनगिनत लाभ हो रहे हैं। कैंसर से कैंसर लाइलाज जैसी बीमारी भी ठीक हो रही है। आज लोग नशे, चोरी जारी, रिश्वतखोरी, मांस भक्षण इत्यादि से मुक्त होकर एक सच्चे परमात्मा की भक्ति कर रहे हैं।
संत रामपाल जी महाराज जी के सानिध्य में आज रक्तदान का शिविर भी जगह जगह लगाया जाता है। लोग संत रामपाल जी महाराज जी के ज्ञान से प्रेरित होकर रक्तदान भी करते हैं । यहां तक की देहदान भी करते हैं। लाखों-करोड़ों बेटियां आज दहेज के कारण मारी जा रही हैं। उन्हें गर्भ में ही मार दिया जाता है। संसार को देख नहीं पाती ऐसी स्थिति में संत रामपाल जी महाराज जी ने बेटियों के लिए दहेज मुक्त विवाह का प्रावधान किया है। जिसमें आज उनके अनुयाई किसी भी प्रकार का दहेज नहीं लेते हैं। आज बेटियां स्वच्छ जीवन जी रही हैं।

दोस्तों वैसे तो दुनिया में बहुत से अधिक संत हैं । 
किंतु बात यहां यह है कि संत रामपाल जी महाराज जी को ही गुरु क्यों बनाए? 
जैसा कि उपर्युक्त में विवरण दिया है कि जो सच्चे संत होते हैं अर्थात तत्वदर्शी संत होते हैं वह सवेदवित प्रमाण सहित शास्त्रों के अनुसार ज्ञान देते है।

आदरणीय गरीबदास जी महाराज जी ने कहा है–
”सतगुरु के लक्षण कहूं, मधूरे बैन विनोद।
चार वेद षट शास्त्र, कहै अठारा बोध।।“
अर्थात् सतगुरु गरीबदास जी महाराज अपनी वाणी में पूर्ण संत की पहचान बता रहे हैं कि, वह चारों वेदों, छः शास्त्रों, अठारह पुराणों आदि सभी ग्रंथों का पूर्ण जानकार होगा। अर्थात् उनका सार निकाल कर बताएगा।
 
आदरणीय कबीर साहिब जी ने सतगुरु के लक्षण बताएं हैं–
"जो मम संत सत उपदेश दृढ़ावै(बतावै), वाके संग सभि राड़ बढ़ावै।
या सब संत महंतन की करणी, धर्मदास मैं तो से वर्णी।।"
अर्थात् कबीर साहेब जी अपने प्रिय शिष्य धर्मदास जी को इस वाणी में समझा रहे हैं कि, जो मेरा संत सत भक्ति मार्ग को बताएगा उसके साथ सभी संत व महंत झगड़ा करेंगे। ये उसकी पहचान होगी।

इस प्रकार दोस्तों संत रामपाल जी महाराज जी ही वह संत है। जिन पर उपर्युक्त वाणी खरी खरी उतरती है। अब आसानी से सच्चे सतगुरु की पहचान कर पाना संभव है। तो कह सकते हैं कि, संत रामपाल जी महाराज जी को ही गुरु अवश्य बनाना चाहिए। जिससे हम सच्चे मंत्रों का जाप कर सकें, और अपने निज स्थान सतलोक जा सके। संतमत में जिस दिन गुरु से दीक्षा प्राप्त होती है । वही हमारा असली जन्म अर्थात अध्यात्मिक जन्म माना जाता है। संत रामपाल जी महाराज जी को 37 वर्ष की आयु में फाल्गुन महीने की अमावस्या की रात्रि में 17 फरवरी 1988 को नाम दीक्षा प्राप्त हुई । जिसके फलस्वरूप 17 फरवरी को बोध दिवस के रूप में मनाते हैं। इस बोध दिवस के उपलक्ष में आपको सच्चे और तत्वदर्शी संत साथ ही सतगुरु की पहचान बता दी गई हैं। जिससे आप पहचान कर संत रामपाल जी महाराज जी से नाम दीक्षा अवश्य ले, और अपने मनुष्य जीवन को सफल बनाएं।

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कौन हैं संत रामपाल जी महाराज और क्या हैं उनके उद्देश्य ?🎈

कौन हैं संत रामपाल जी महाराज और क्या हैं उनके उद्देश्य ?🎈

उत्तर-:जगत् गुरू तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज समाज के एकमात्र पथ प्रदर्शक हैं। जो सतभक्ति देकर सर्व बुराइयां दूर कर कलयुग में सतयुग ला रहे हैं। श्रीमद्भगवदगीता, वेदों, क़ुरान, बाईबल, श्रीगुरुग्रंथ साहिब आदि सदग्रंथों के ज्ञान सार “एक भगवान और एक भक्ति” के अनुरूप सतभक्ति द्वारा पूर्ण मोक्ष प्रदान कर सतगुरु मानव कल्याण कर रहे हैं। कुरीतियों, बुराइयों और भ्रष्टाचार से मुक्त समाज बनाने के लिए कृतसंकल्प हैं। आपसी वैमनस्य मिटाकर विश्व शांति स्थापित कर धरती को स्वर्ग बनाने की ओर अग्रसर हैं।

संत रामपाल जी ही एकमात्र जगतगुरु हैं, जो सारे संसार को भक्ति का सच्चा मार्ग प्रशस्त कर रहे हैं। वे वही तत्वदर्शी संत (बाखबर/ इल्मवाला) हैं जिनके विषय में पवित्र गीता और पवित्र कुरान में बताया गया है और इन्होंने शास्त्रों के अनुसार “एक भगवान और एक भक्ति” के सिद्धांत को स्थापित किया। वे विश्वविजेता संत हैं जिन्होंने विश्व के सभी संतों, गुरुओं, शंकराचार्यों एवं धर्मगुरुओं को ज्ञान चर्चा में निरुत्तर किया है। 

वे धरती पर पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब के अवतार हैं। वे जगत को सभी दु:खों से ही नहीं अपितु जन्म-मृत्यु के दीर्घ रोग से मुक्त कराने वाले तारणहार भी हैं। जिन्होंने सत भक्ति देकर मोक्ष प्रदान कराकर मानव कल्याण का कार्य पुरजोर प्रारंभ किया है।

परम सन्त रामपाल जी महाराज के क्या उद्देश्य हैं?

उत्तर-:संत रामपाल जी महाराज ने जाति, धर्म व ऊंच नीच से मुक्त मार्ग बताया है। संत रामपाल जी के यहाँ कोई भी जाति, धर्म, उच्च पद या सामान्य वर्ग का कोई भाई बन्धु जाए वे सभी से प्यार और समभाव से पेश आते हैं। वहां न किसी को अपनी जाति का अभिमान होता है, न ही धर्म का और न किसी पद प्रतिष्ठा का। संत रामपाल जी के सभी के लिए संदेश है:-

जीव हमारी जाति है, मानव धर्म हमारा।
हिन्दू मुस्लिम सिक्ख ईसाई, धर्म नहीं कोई न्यारा।।

समाज में व्याप्त कुरीतियों का समूल नाश करना।

दहेज प्रथा, मुत्युभोज, भ्रूण हत्या, छुआछूत, रिश्वतखोरी, भ्रष्टाचार आदि से मुक्त समाज का निर्माण करना है।

नशा मुक्त भारत बनाना। समाज में मानव धर्म का प्रचार, भ्रूण हत्या पूर्ण रूप से बंद करना ।

छुआ-छूत रहित समाज का निर्माण ।

समाज से पाखंडवाद को खत्म करना।

भ्रष्टाचार मुक्त समाज का निर्माण करना।

समाज से जाति-पाति के भेद को मिटाना।

समाज से हर प्रकार के नशे को दूर करना।

समाज में शांति व भाईचारा स्थापित करना।

विश्व को सतभक्ति देकर मोक्ष प्रदान करना।

युवाओं में नैतिक और आध्यात्मिक जागृति लाना

समाज से दहेज रूपी कुरीति को जड़ से खत्म करना

सामाजिक बुराईयों को समाप्त करके स्वच्छ समाज तैयार करना

समस्त धार्मिक ग्रंथों के प्रमाण के आधार पर शास्त्र अनुकूल साधना समाज को देना ।

अज्ञानियों के दृष्टिकोण से भारतवर्ष में संत रामपाल जी महाराज विवादित माने जाते हैं। लेकिन वे एक ऐसे महापुरुष हैं । जिनके विषय में अधिकांश को सही जानकारी नहीं है। आपसी वैमनस्य मिटाकर विश्व शांति स्थापित कर धरती को स्वर्ग बनाने की ओर अग्रसर संत रामपाल जी महाराज इस समय केंद्रीय जेल हिसार (हरियाणा) में लीला कर रहे हैं। जिन्होंने सभी धर्मों के पवित्र ग्रंथों से प्रमाणित किया है । कि कबीर जी भगवान हैं। उन्होंने सत्संगों में प्रोजेक्टर के माध्यम से प्रमाण भी दिखाए हैं। संत रामपाल जी के अनुयायी उन्हें भगवान के तुल्य मानते हैं।

पृथ्वी पर विवेकशील प्राणियों की भी कमी नहीं है। ऐसे सत्य पथ के खोजी लोग उस परम तत्व के ज्ञाता संत को ढूंढकर, उनकी आज्ञाओं को स्वीकार कर, उनके निर्देशानुसार मर्यादा में रहकर अपने मनुष्य जन्म को कृतार्थ करते हैं। वर्तमान में मानव समाज शिक्षित और बुद्धिजीवी है। अतः वास्तविक संत का खोजी है।

यही समय है जब सत्य शब्द लेने वाले जीव होंगे मुक्त।

कबीर साहेब ने सूक्ष्म वेद में बताया कि, कलयुग के 5505 वर्ष बीत जाने के बाद मेरा (कबीर परमेश्वर) सत्य शब्द लेने वाले सब जीव मुक्त हो जाएंगे। और कलयुग में सतयुग जैसा वातावरण निर्मित होगा।

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शनिवार, 28 जनवरी 2023

Q -: मगहर क्षेत्र में मंदिर और मस्जिद की स्थापना कैसे हुई?

🎆 *कबीर परमेश्वर निर्वाण दिवस* 🎆

Q -: मगहर क्षेत्र में मंदिर और मस्जिद की स्थापना कैसे हुई?
Ans-: मगहर क्षेत्र, वर्तमान जिला संतकबीर नगर उत्तर प्रदेश में कबीर साहिब जी ने अपने लीला के अंतिम दिन में सशरीर हजारों लोगों के सामने जिसमें हिंदू-मुसलमान आदि सभी सम्मिलित थे। अपने दिव्य शरीर के साथ सशरीर अपने निजधाम सतलोक चले गए। उनके शरीर के स्थान पर सुगंधित फूल मिले। मगहर के नवाब बिजली खान पठान और काशी नरेश बीरदेव सिंह बघेल परमात्मा कबीर जी के शिष्य थे। कबीर परमात्मा जी ने हमेशा सबको यही बताया कि आप एक परमात्मा की संतान हो आपका पिता एक है। इसलिए आपस में धर्म ओर क्षेत्र के नाम पर लड़ो मत। एक होकर रहो। 

"हिंदू मुस्लिम दो नहीं भाई, दो कहै सो दोजख (नरक) जाही।"

जब परमात्मा जी सशरीर अपने सतलोक चले गए। तब मगहर नवाब बिजली खां पठान ने 500 बीघा जमीन हिंदुओं को और 500 बीघा जमीन मुस्लिमों को दी। कबीर साहेब के दोनों धर्मों के अनुयायियों ने अपने-अपने मजहब के अनुसार मगहर में उन पवित्र सुगंधित फूलों से जो परमात्मा कबीर जी के शरीर के स्थान पर मिले थे उनको लेकर 100 फुट की दूरी में दोनों ने यादगार के रूप में समाधियाँ बनाई। जो आज भी मगहर वर्तमान संत कबीर नगर में विद्यमान है। 


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#कबीरपरमेश्वर_निर्वाणदिवस 1 फरवरी 2023
#मगहर_लीला
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Q-: क्या कबीर जी की मृत्यु हुई थी ?

🎍 *कबीर परमेश्वर निर्वाण दिवस* 🎍

Q-: क्या कबीर जी की मृत्यु हुई थी?
Ans-: नहीं! कबीर साहेब जी सन 1518 में मगहर से सशरीर अपने निजधाम सतलोक (अमरलोक) गए थे। कबीर साहेब जी ने आम जनमानस की तरह लीला की। परंतु उनकी मृत्यु आम आदमी की तरह नहीं हुई वह सशरीर गये थे। 

ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 93 मंत्र 2, ऋग्वेदमण्डल 10 सूक्त 4 मंत्र 4 और ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मंत्र 9 में वर्णित लीला के अनुसार परमात्मा कबीर जी सन् 1398 में काशी के लहरतारा नामक तालाब पर सुबह ब्रह्म मुहूर्त में कमल के फूल पर शिशु रूप में प्रकट हुये। नीरू और नीमा नामक निसंतान जुलाहा दम्पति को मिले। परमात्मा कबीर जी के बचपन की परवरिश की लीला कुंवारी गाय के दूध से हुई। वह काशी में 120 वर्ष जुलाहे की भूमिका करते रहे और अपने सच्चे ज्ञान से लोगों को परिचित करवाते रहें। लोगों को उस समय यह भ्रम था कि जो काशी में शरीर छोड़ता है, वह सीधा स्वर्ग जाता है और जो मगहर में शरीर छोड़ता है, वह नरक जाता है। इस वजह से बहुत सारे लोग काशी में करोंत लेकर गर्दन कटवाते थे। 

गरीब, बिना भगति क्या होत है, भावैं कासी करौंत लेह। 
मिटे नहीं मन बासना, बहुबिधि भर्म संदेह।।

इस भ्रम को दूर करने के लिए परमात्मा कबीर जी अपने अंतिम समय में मगहर गए और हजारों हिंदू-मुस्लिमों के सामने सशरीर अपने निजधाम सतलोक चले गए। चादर के बीच में जिस पर कबीर परमात्मा जी लेटे हुए थे और ओढ़े हुए थे, उनके बीच मे केवल सुगंधित पुष्प मिले। जिन्हें दोनों धर्मों के अनुयायियों ने आपस में बांट लिया और कबीर साहेब के निर्वाण की लीला को गवाह के रूप में बनाये रखने के लिए वहां पर उनकी दो समाधियाँ बनाई जो आज भी विद्यमान हैं।


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जिला संत कबीर नगर में स्थित मगहर स्थान क्यों प्रसिद्ध है?

🎈 *कबीर परमेश्वर निर्वाण दिवस* 🎈

Q -: जिला संत कबीर नगर में स्थित मगहर स्थान क्यों प्रसिद्ध है?
Ans-: जिला संत कबीर नगर, उत्तर प्रदेश में मगहर नामक स्थान पर परमात्मा कबीर जी की यादगार समाधियाँ स्थित है। जोकि सन् 1518 में माघ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को कबीर साहेब जी सशरीर अपने निजधाम सतलोक चले जाने के उपलक्ष्य में बनाई गई थीं। उस समय वहां पर सभी धर्मों के हजारों लोग उपस्थित थे। सन् 1398 में कबीर परमात्मा जी काशी के लहरतारा नामक तालाब पर बालक के रूप में कमल के फूल पर प्रकट हुए थे। नीरू-नीमा नामक निसंतान जुलाहे दंपति को मिले। कबीर परमात्मा ने 120 वर्ष काशी में जुलाहे की भूमिका की और अपने दिव्य तत्वज्ञान से लाखों लोगों को ज्ञान दीक्षा दी। उस समय पूरे विश्व की जनसंख्या 1 अरब भी नहीं रही होगी तब 64 लाख लोगों ने परमात्मा कबीर जी से नाम दीक्षा ली और उनके शिष्य बने और पाखंड पूजा आदि समाज को मुक्त किया।


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शुक्रवार, 23 सितंबर 2022

आईये जाने वेदों का आदेश हमारे लिए

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सोमवार, 9 मई 2022

पवित्र सर्व धार्मिक ग्रंथ परमेश्वर को किस नाम से पुकारकर महिमा गा रहे है ?

पवित्र सर्व धार्मिक ग्रंथ परमेश्वर को किस नाम से पुकारकर महिमा गा रहे है ?

 उत्तर

सच्चे ग्रंथ सच कह रहे है , परमेश्वर को कविर कहकर महिमा गा रहे है,।

लेकिन ब्रह्म की त्रिगुण माया शक्ति के अज्ञान से भ्रमित मूर्ख जन समुदाय केवल बकवाद किया ही करता है , असँख्य प्रमाण देखने के बाद भी ये नरक के कीड़े समझ नही पाते और मानव जीवन बर्बाद कर नरक जाकर ही संतुष्टि पाते है, यह पवित्र शास्रो का वचन है।**************100%**************

देखिये सबूत परमेश्वर का नाम कविर होने के, वो परमेश्वर अपनी इच्छा से जब चाहे इस मृत्यलोक मे आकर अपनी सच्चाई बताता है...क्योकि मनुष्य त्रिगुण माया शक्ति के अज्ञान से सब भूल बैठा है और नीच कर्मो में लिप्त है उसी का समाधान करने परमेश्वर इस लोक आते है.....

ऋग्वेद मण्डल नं 9 सूक्त 96 मंत्र 17

ऋग्वेद मण्डल नं 9 सूक्त 96 मंत्र 18

ऋग्वेद मण्डल नं 9 सूक्त 96 मंत्र 19

ऋग्वेद मण्डल नं 9 सूक्त 96 मंत्र 20

ऋग्वेद मण्डल नं 10 सूक्त 90 मंत्र 3

ऋग्वेद मण्डल नं 10 सूक्त 90 मंत्र 4

ऋग्वेद मण्डल नं 10 सूक्त 90 मंत्र 5

ऋग्वेद मण्डल नं 10 सूक्त 90 मंत्र 15

ऋग्वेद मण्डल नं 10 सूक्त 90 मंत्र 16

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यजुर्वेद अध्याय 19 मंत्र 26

यजुर्वेद अध्याय 19 मंत्र 30

यजुर्वेद अध्याय 29 मंत्र 25

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सामवेद संख्या नं 359 अध्याय 4 खण्ड 25 श्लोक 8

सामवेद संख्या नं1400 उतार्चिक अध्याय 12 खण्ड 3 श्लोक 5

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अथर्ववेद काण्ड नं 4 अनुवाक नं 1 मंत्र 1

अथर्ववेद काण्ड नं 4 अनुवाक नं 1 मंत्र 2

अथर्ववेद काण्ड नं 4 अनुवाक नं 1 मंत्र 3

अथर्ववेद काण्ड नं 4 अनुवाक नं 1 मंत्र 4

अथर्ववेद काण्ड नं 4 अनुवाक नं 1 मंत्र 5,6,7

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""""""""श्रीमद्भागवतगीता में प्रमाण""""""""

अध्याय 8 श्लोक 9

अध्याय 15 श्लोक 17

अध्याय 18 श्लोक 62,66

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""""""""क़ुरान शरीफ में प्रमाण""""""""

सूरत फुर्कानि 25 आयत 52 से 59

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""""गुरु ग्रंथ साहिब में प्रमाण""""

गुरुग्रंथ साहिब पृष्ठ नं 721 महला 1

गुरुग्रंथ साहिब के राग "सिरी"महला 1 पृष्ठ नं 24

गुरुग्रंथ साहिब राग आसावरी,महला 1 पृष्ठ नं 350,352,353,414,439,463,465

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"""""संतो की वाणी में प्रमाण"""""

"कबीर परमेश्वर जी"

ए स्वामी सृष्टा मैं, सृष्टि हमारे तीर।

दास गरीब अधर बसूं, अविगत सत्य कबीर।।

सोलह संत पर हमारा तकिया,गगन मण्डल के जिन्दा।

हुक्म हिसाबी हम चल आये,कटान यम के फंदा।।

हम है सत्यलोक के वासी,दास कहाये प्रगट भये काशी।

नहीं बाप ना माता जाये, अब गतिही से हम चल आये।।

******************************************

""""""गुरु नानक जी"""""'

यक् अर्ज गुफ्तम् पेस तो दर गोस कून करतार्।

हक्का(सत्त)कबीर करीम तू बेएब परवरदीगार।।

************************************ """""""संत दादू दास जी"""""""

कबीर कर्ता आप हैं,दूजा नाहिं कोए।

दादू पूरण जगत को,भक्ति दृढावत सोए।।

अबही तेरी सब मिटे, जन्म मरण की पीर।

स्वांस उस्वांस सुमिरले, दादू नाम कबीर।।

********************************

""""""""संत गरीबदास जी""""""'"

अनंत कोटि ब्रह्मण्ड का,एक रति नहीं भार।

सतगुरु पुरुष कबीर हैं,कुल के सृजनहार।।

अनंत कोटि ब्रह्माण्ड में बंदी छोड़ कहाये।

सो तो एक कबीर हैं जननी जने न माये।।

********************************

*बंदी छोड़ सतगुरु रामपाल जी महाराज जी की जय*

**सत् साहेब जी**



देखिये जानिए सम्पूर्ण ब्रह्म ज्ञान तत्वदर्शन

परम् सनातन तत्बदर्शी सन्त द्वारा

 जनतंत्र टीवी सुबह 5:00 बजे से 6:00 बजे तक

 नेपाल 1 सुबह 6:00 बजे से 7:00 बजे तक

 श्रद्धा MH1 दोपहर 2:00 से 3:00 तक

 साधना टीवी शाम 7:30 से 8:30 तक

 सुभारती टीवी 8:00 से 9:00 तक

 शरणम टीवी रात्रि 8:00 से 9:00 तक




गीता जी का पवित्र ज्ञान किसने दिया ? देखिये सबूत कृष्णजी जीवनी से

जब श्री कृष्ण जी को पैरो में तीर लगा था उस अंतिम समय मे पांडवो से अंतिम वार्ता में अर्जुन के प्रश्न के जवाब में श्री कृष्णजी कहते है कि अर्जुन तेरे को गीता ज्ञान मैंने नही दिया, मेरे से ऊपर की कोई शक्ति है जो मेरे योग युक्त होने पर आती है ,उसने ही तुझे ज्ञान दिया और उसने तुझसे क्या कहा मुझे नही मालूम, मेरे जन्म से लेकर अब तक कि सारी लीलाएं उसी शक्ति ने की है, अब मै तुम्हे जो कह रहा हूँ वो करो... तुम्हे युद्ध से पाप बहुत ज्यादा हो गए है अब तुम राज्य त्यागकर हिमालय जाकर तप करते करते उम्र गुजार दो , शरीर गला दो, अतः सिद्ध है गीता जी मे ज्ञान श्री कृष्ण ने नही दिया उनसे ऊपर की शक्ति ब्रह्म ने दिया है और उसने गीता ञञ देते समय खुद को ब्रह्म व काल कहा है, और 1000 भुजा वाला स्वरूप दिखाया है जबकि कृष्ण अर्थात विष्णु जी चार भुजा वाले प्रभु है और बैकुंठ लॉकि में रहते है, गीता ञञ दाता ब्रह्म कृष्ण में आकर कहता है मैं ब्रह्म हूँ ,काल हूँ ब्रह्म लॉकि में रहता हूँ ,ब्रह्म लोक तक सभी लोक नाशवान है , प्रकृति मेरी पत्नी और उससे मैं तीन पुत्र रजगुण ,सतोगुण और तमोगुन पैदा किये है त् ईन तीनो गुणों रूपी माया ने संसार को अज्ञान में ढक रखा है, सच्चाई से दूर किया हुआ है, और संसार की दुर्गातु की हुई है, इत्यादि रहस्य देखने सुनने हेतु आप पुण्यात्मा रोज शाम साधना टीवी पर 7:3०बजे देखे खास प्रोग्राम और पॉपकॉर्न टीवी पर भी 7:30pm रोज शाम श्रद्धा टीवी पर दोपहर 2 बजे से रोज विजिट करे वेबसाइट पर supremegod.org पर

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गुरुवार, 30 सितंबर 2021

वर्तमान में किसी को कथा करने का अधिकार नही सब पाखंडी देखे प्रूफ यहां शास्त्रों में🌺👇🌺




पूछो इन पाखंडियो से :-   जब द्वापर युग में वेदव्यास सहित सभी ऋषि मुनियो ने राजा परीक्षित को ये कहकर भगवत की कथा सुनाने से इनकार कर दिया था की हम ये कथा सुनाने के अधिकारी नहीं है तो फिर इस कलयुग में तुम्हे किसने भागवत और रामायण का पाठ करने का लाइसेंस दे दिया।


पूछो इन पाखंडियो से :- जब तुम्हारे तीनो भगवान् ब्रह्मा विष्णु महेश स्वयं कह रहे है की हमारी जन्म और मृत्यु होती है हम पूर्ण भगवान् नहीं है, तो फिर पूर्ण परमात्मा कौन है कैसा है कहा रहता है और कैसे मिलता है
(श्री मद देवी भागवत देवी पुराण 6 वा अध्याय, तीसरा स्कन्द, पेज नंबर 123,)
पूछो इन पाखंडियो से :- जब गीता जी मना कर रही है की व्रत करने वाले, श्राद्ध निकालने वाले और देवी देवताओ की पूजा करने वालो को ना कोई सुख होता है ना ही मारने पर उनकी गति (मोक्ष) होती है। ( 6 वा अध्याय 16 वा श्लोक)
पूछो इन पाखंडियो से :- जिन 33 करोड़ देवी देवताओ को श्री लंका के राजा रावण ने अपनी कैद में डाल रखा था फिर क्यों सदियो से हमसे बेबस देवी देवता पूजवाते आ रहे हो।
पूछो इन पाखंडियो से :- जिस स्वर्ग के राजा इंद्र ने, रावण के स्वर्ग पर हमला करके उसे हराने पर अपनी पुत्री की शादी रावण के बेटे मेघनाथ से करके अपने प्राणों की रक्षा की। फिर किसलिए हमें मारने के बाद स्वर्ग भेजने की बात करते है।
पूछो इन पाखंडियो से,:-  जब दशरथ पुत्र रामचंद्र का जन्म त्रेता युग में हुआ तो फिर सतयुग में राम कौन था।
पूछो इन पाखंडियो से :- श्री कृष्ण का जन्म आज से 5500 वर्ष पहले द्वापर युग में हूवा था । जबकि त्रेता व् सतयुग के इंसान तो जानते भी नहीं थे की कृष्ण कौन है फिर ये कैसे पूर्ण भगवान् हुए।
पूछो इन पाखंडियो से :- ये कहते है की वेदों में भगवान् की महिमा है। फिर वेदों में कबीर (कविर्देव) के अलावा 33 करोड़ देवी देवताओ, राम, कृष्ण, व् ब्रह्मा विष्णु महेश दुर्गा किसी का भी नाम तक क्यों नहीं है।
पूछो इन पाखंडियो से:- गीता जी अध्याय नंबर 11 के श्लोक 32 मे श्री कृष्ण जी कहते है की अर्जुन मै काल हु और सबको खाने आया हु। श्री कृष्ण अपने को काल कह रहा है फिर ये पाखंडी उसे जबरदस्ती भगवान् क्यों बना रहे है।
और भी ना जाने कितने सवाल जिनके जवाब इनके पास नहीं है।
अब तक तो आपजी भी समझ चुके होने की संत रामपाल जी के सामने आकर ज्ञान चर्चा करने की क्यों इनकी हिम्मत नहीं होती है।
आपजी इन पाखंडियो से पूछेंगे या नहीं, ये तो आपका अपना फैसला होगा।
लेकिन हिन्दुस्तान का नागरिक होने के नाते मै आपसे पूछता हु। यदि आपजी ने अब भी विचार नहीं किया तो आप पढ़कर भी अनपढ़ रहे। इस शिक्षा से कमाया हुआ धन आपके साथ कभी नहीं जायेगा लेकिन पूर्ण संत की शरण लेकर कमाया भक्ति धन कई गुना होकर आपजी के साथ जायेगा।
जब पृथ्वी पर पूर्ण संत आ चूका है तो मत फंसो इन पाखंडियो के जाल में यदि फसे हुए हो तुरंत निकल जावो वहा से वरना ये स्वयं तो नर्क में जायेंगे ही जायेंगे तुम्हे भी साथ लेकर जायेंगे। और तुम्हारे बच्चों को भी तैयार कर जायेंगे।
यदि संत रामपाल जी को जेल में  देखकर अभी भी शंका हो तो याद करलो त्रेता में रामचंद्र को भी 14 वर्ष तक जेल काटनी पड़ी थी।
सीता जी को भी 12 वर्ष तक भूखी प्यासी रावण की जेल काटनी पड़ी थी।
द्वापर में श्री कृष्ण का तो जन्म ही जेल में हुआ था।
यदि आप इसे उनकी लीला कहते हो तो कोई बड़ी बात नहीं आने वाले समय में संत रामपाल जी का भी इतिहास बन जायेगा। लेकिन उनके चले जाने के बाद उनके आश्रमो में वे नहीं मिलेंगे केवल पश्चाताप मिलेगा।
लेकिन अभी समय है। जाग जाओ औरो को भी जगाओ भगवान् आएगा तो कोई सींग लगाकर नहीं आएगा जो अलग ही दिखाई दे। उसे ज्ञान आधार से पहचानने के लिए ही तो आज आपजी को उसने शिक्षित किया है।
पुनःप्रार्थना है चिंतन अवश्य कीजिये व् औरो को भी इस मैसेज के माध्यम से इन पाखंडियो के पाखंड से सचेत कीजिये।
#सत_साहेब 🙏🙏

साधना टीवी 7:30pm रोज शाम सम्पूर्ण ब्रहम रहस्य 

असली तत्वज्ञान से अज्ञान को काटकर मनुष्य को परम गति सनातन लोक का अधिकारी बनाना , 

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शनिवार, 25 सितंबर 2021

सच्चिदानंद घन ब्रह्म की वाणियां


✳️ सतगुरु कबीर - साखी ग्रंथ ✳️

✳️ सच्चिदानंद घन ब्रह्म की वाणियां ✳️



✳️अक्षय पुरुष एक पेड है , निरंजन वाको हार । 

✳️तिरदेवा साखा भये , पात भया संसार ॥१॥ 


✳️नाद बिंदु ते अगम भगोचर , पांच तत्व ते न्यार । 

✳️तीन गुनन ते भिन्न है , पुरुप अलेख अपार ॥२॥ 


✳️तीन गुनन की भक्ति में , भूलि पड़ा संसार । 

✳️कहै कबिर निजनाम बिन , केसे उतरै पार ॥३॥ 


✳️हरा होय सुखै मही , यौं तिरगुन विस्तार ।

✳️प्रथमहि ताको सुमिरिये , जाका सकल पसार ॥४॥ 


✳️सब्द सुरति के अंतरै , अलख पुरुप निरवान । 

✳️लखने हारै लखि लिया , जाको है गुरु ज्ञान ॥५॥


✳️राम क्रिस्न अवतार हैं , इनकी नाहीं मांड ।

✳️जिन साहब सृष्टि किया , किनहु न जाया रांड ॥६॥ 


✳️राम क्रिस्न को जिन किया , सो तो करता न्यार ।

✳️अंधा ग्यान न बुझयी , कहै कबीर विचार ॥७॥ 


✳️समुंद्र माहि समाईया , यो साहिब नहि होय । 

✳️सकल मांड में रमि रहा , मेरा साहिब सोय ॥८॥ 


✳️साहेब मेरा एक है , दूजा कहा न जाय ।

✳️दूजा साहिब जो कहूं , साहेब खरा रिसाय ॥९॥ 


✳️जाके मुँह माथा नहीं , नाहिं रूप अरूप । 

✳️पुहुप बास ते पातरा , ऐसा तत्व अनूप ॥१०॥


✳️बूझो करता आपना , मानो वचन हमार । 

✳️पांच तत्व के भीतरै , जाका यह आना सांसार  ॥११॥

 

✳️निबल सबल को जानकर , नाम धरा जगदीश ।

✳️कहै कबीर जन्मे मरे , ताहि धंरू नही सीस ॥१२॥ 


✳️जनम मरन से रहित है , मेरा साहिय सोय । 

✳️बलिहारी वही पीव की , जिन सिरजा सब कोय ॥१३॥ 


✳️समुंद पाटी लंका गयो , सीता को भरतार । 

✳️ताहि अगसत अचै गयो , इन में को करतार ॥१४॥


✳️गिरिवर धार्यो कृश्नन जी , द्रोना गिरि हनुमंत ।

✳️सेसनाग धरती धरी , इन में को भगवंत ॥१५॥


✳️अविगति पीसै पीसना , गौसा बिनै खुदाय । 

✳️निरंजन तो रोटी करै , गैवी बैठा खाय ॥१६॥ 


✳️तीन देव को सव कोइ ध्यावे , चौथे देव का मरहम न पावै । 

✳️चौथा छोड पंचम चित लावै , कहें कबिर हमरै ढिग आवै ॥१७॥ 


✳️जो ओंकार निश्चय किया , यह करता पति जान । 

✳️सांचा सबद कबीर का , परदे में पहिचान ॥१८॥ 


✳️अलख अलख सव कोउ कहै , अलख लखै नहि कोय । 

✳️अलख लखा जिन सब लखा , लखा अलख नहि होय ॥१९॥


✳️कथत कथत जुग थाकिया , थाकी सबै खलक । 

✳️देखत नजरि न आइया , हरि को कहा अलख ॥२०॥ 


✳️तीन लोक सब गम जपत , जानि मुक्ति को धाम । 

✳️रामचंद्र के वसिष्ट गुरु , काह सुनायो नाम ॥२१॥  


✳️जग में चारों राम हैं , तीन राम व्यौहार ।

✳️चौथा राम निज सार है , ताका करो विचार ॥२२॥ 


✳️एक राम दसरथ घर डोले , एक राम घट घट में बोले । 

✳️एक राम का सकल पसारा , एक राम तिरगुन ते न्यारा ॥२३॥ 


✳️कौन राम दसरथ घर डोलै , कौन राम घट घट में बोलै । 

✳️कौन राम का सकल पसारा , कौन राम तिरगुन ने न्यारा ॥२४॥


✳️आकार राम दसरथ घर डोलै , निराकार घट घट में बोलै । 

✳️बिंदु राम का सकल पसारा , निरालंब सबही ते न्यारा ॥२५॥ 


✳️जाकी थापी मांड है , ताकी करहु सेव ।

✳️जो थापा है मांड का , सो नहिं हमरा देव ॥२६॥

 

✳️रहै निराला मांड ते , सकल मांड तिहि मांहि । 

✳️कबीर सेवै तासु को , दूजा सेवै नॉहि ॥२७॥ 


✳️चार भुजा के भजन में , भूलि पड़े सब संत । 

✳️कबीर सुमिरै तासु को , जाके भुजा अनंत ॥२८॥ 


✳️काटे बंधन विपति में , कठिन किया संग्राम । 

✳️चीन्हो रे नर प्रानियां , गरुड बड़े की राम ॥२९॥ 


✳️कहै कबिर चित चैनहु , सबद करो निरुवार । 

✳️राम हि करता कहत हैं , भूलि पर्यो संसार ॥३०॥ 


✳️जाहि रोग उत्पन्न भया , औषधि देय जु ताहि । 

✳️वैद्य ब्रह्म बाहिर रहा , भीतर घसा जु नाहि ॥३१॥


✳️असुर रोग उतपति भया , औतार औषधि दीन्ह । 

✳️कहै कबीर या साखि को , अरथ जु लीजो चीन्ह ॥३२॥ 


✳️कबीर कारज भक्ति के , भुक्ति हि दीन्ह पठाय । 

✳️कहै कबीर विचारि के , ब्रह्म न आवै जाय ॥३३॥ 


✳️हम कर्ता सब सृष्टि के , हम पर दूसर नाँहि । 

✳️कहैं कबिर हमही चीन्हे , नहि चौरासी माँहि ॥३४॥


✳️साहिब सब का पाप है , बेटा किसी का नाहि । 

✳️बेटा होकर ऊतरा , सो तो साहिब नाहि ॥३५॥ 


✳️पिंड प्राण नहि तासु के , दम देही नहि सीन । 

✳️नाद बिंद आवै नहीं , पांच पचीस न तीन ॥३६॥ 


✳️राम राम तुम कहत हो , नहि सो अकथ सरूप ।

✳️वह तो आये जगत में , भये दसरथ घर भूप ॥३७॥ 


✳️रेख रूप बिनु वेद में , औ कुरान बेचून ।

✳️आपस में दोऊ लड़े , जाना नहि दोहून ॥३८॥ 


✳️सहज सुन्न में साईया , ताका वार न पार । 

✳️धरा सकल जग धरि रहा , आप रहा निरधार ॥४०॥

 

✳️देखन सरिखी बात है , कहने सरखी नाँहि । 

✳️अदभुत खेला पेखि के , समुझि रहो मन मॉहि ॥४१॥


साधना टीवी पर 7:30pm से 8:30pm 

#SaintRampalJiQuotes









The Secrets of Bhagavad Gita अद्भुद रहस्य गीता के जिसे गोपनीय _ज्ञान कहा जाता है जानिए यहां

 ये 32 प्रमाण जो सिद्ध करते हैं कि भगवद गीता का ज्ञान श्रीकृष्ण ने नही दिया | The Secrets of Bhagavad Gita


1. मैं सबको जानता हूँ, मुझे कोई नहीं जानता (अध्याय 7 मंत्र 26)
2 . मै निराकार रहता हूँ(अध्याय 9 मंत्र 4 )
3. मैं अदृश्य/निराकार  रहता हूँ (अध्याय 6 मंत्र 30) निराकार क्यो रहता है इसकी वजह नहीं बताया सिर्फ अनुत्तम/घटिया भाव कहा है ।
4. मैं कभी मनुष्य की तरह आकार में नहीं आता यह मेरा घटिया नियम है (अध्याय 7 मंत्र 24-25)
5.पहले मैं भी था और तू भी सब आगे भी होंगे (अध्याय 2 मंत्र 12) इसमें जन्म मृत्यु माना है ।
6. अर्जुन तेरे और मेरे जन्म होते रहते हैं (अध्याय 4 मंत्र 5)
7. मैं तो लोकवेद में ही श्रेष्ठ हूँ (अध्याय 15 मंत्र 18) लोकवेद =सुनी सुनाई बात/झूठा ज्ञान
8. उत्तम परमात्मा तो कोई और है जो सबका भरण-पोषण करता है (अध्याय 15 मंत्र 17)
9.उस परमात्मा को प्राप्त हो जाने के बाद कभी नष्ट/मृत्यु नहीं होती है (अध्याय 8 मंत्र 8,9,10)
10. मैं भी उस परमात्मा की शरण में हूँ जो अविनाशी है (अध्याय 15 मंत्र 5)
11. वह परमात्मा मेरा भी ईष्ट देव है (अध्याय 18 मंत्र 64)
12. जहां वह परमात्मा रहता है वह मेरा परम धाम है वह जगह जन्म – मृत्यु रहित है (अध्याय 8 मंत्र 21,22) उस जगह को वेदों में ऋतधाम, संतो की वाणी में सतलोक/सचखंड कहते हैं । गीताजी में शाश्वत स्थान कहा है ।
13. मैं एक अक्षर ॐ हूं (अध्याय 10 मंत्र 25 अध्याय 9 मंत्र 17 अध्याय 7 के मंत्र 8 और अध्याय 8 के मंत्र 12,13 में )
14. “ॐ” नाम ब्रम्ह का है (अध्याय 8 मंत्र 13)
15. मैं काल हूं (अध्याय 11 मंत्र 32)
16.वह परमात्मा ज्योति का भी ज्योति है (अध्याय 13 मंत्र 16)
17. अर्जुन तू भी उस परमात्मा की शरण में जा, जिसकी कृपा से तु परम शांति, सुख और परम गति/मोक्ष को प्राप्त होगा (अध्याय 18 मंत्र 62)
18. ब्रम्ह का जन्म भी पूर्ण ब्रम्ह से हुआ है (अध्याय 3 मंत्र 14,15)
19. तत्वदर्शी संत मुझे पुरा जान लेता है (अध्याय 18 मंत्र 55)
20. मुझे तत्व से जानो (अध्याय 4 मंत्र 14)
21. तत्वज्ञान से तु पहले अपने पुराने /84 लाख में जन्म पाने का कारण जानेगा, बाद में मुझे देखेगा /की मैं ही इन गंदी योनियों में पटकता हू, (अध्याय 4 मंत्र 35)
22. मनुष्यों का ज्ञान ढका हुआ है (अध्याय 5 मंत्र 16)
:- मतलब किसी को भी परमात्मा का ज्ञान नहीं है
23. ब्रम्ह लोक से लेकर नीचे के ब्रम्हा/विष्णु/शिव लोक, पृथ्वी ये सब पुर्नावृर्ति(नाशवान) है ।
24. तत्वदर्शी संत को दण्डवत प्रणाम करना चाहिए (तन, मन, धन, वचन से और अहं त्याग कर आसक्त हो जाना)  (अध्याय 4 मंत्र 34)
25. हजारों में कोई एक संत ही मुझे तत्व से जानता है (अध्याय 7 मंत्र 3)
26. मैं काल हु और अभी आया हूं (अध्याय 10 मंत्र 33)
तात्पर्य :-श्रीकृष्ण जी तो पहले से ही वहां थे,
27. शास्त्र विधि से साधना करो, शास्त्र विरुद्ध साधना करना खतरनाक है (अध्याय 16 मंत्र 23,24)
28. ज्ञान से और श्वासों से पाप भस्म हो जाते हैं (अध्याय 4 मंत्र 29,30, 38,49)
29. तत्वदर्शी संत कौन है पहचान कैसे करें :- जो उल्टा वृक्ष के बारे में समझा दे वह तत्वदर्शी संत होता है (अध्याय 15 मंत्र 1-4)
30. और जो ब्रम्हा के दिन रात/उम्र बता दें वह तत्वदर्शी संत होता है (अध्याय 8 मंत्र 17)
31. 3 भगवान बताये गये हैं गीताजी में
•क्षर , अक्षर, परमअक्षर
(•ब्रम्ह, परब्रह्म, पूर्ण/पार ब्रम्ह
•ॐ, तत्, सत्
•ईश, ईश्वर, परमेश्वर)
32. गीता जी में तत्वदर्शी संत का इशारा > 18.तत्वदर्शी संत वह है जो उल्टा वृक्ष को समझा देगा. (अध्याय 15 मंत्र 1-4)

साधना टीवी 7:30 से 8:30 रोज शाम देखिए पवित्र शास्रो में छिपे परम् कल्याणकारी रहस्य 











परमपिता परमेश्वर उत्तम पुरुष तो त्रिदेवों व इनके पिता ब्रह्म व प्रकृति से ऊपर अन्य है देखिए प्रमाण :- ब्रह्मज्ञान

परमपिता परमेश्वर उत्तम पुरुष तो त्रिदेवों व इनके पिता ब्रह्म व प्रकृति से ऊपर अन्य है देखिए प्रमाण :- ब्रह्मज्ञान

उत्तम ( पुजने योग्य) पुरुष गीता ज्ञान दाता से अन्य हैं।
कथाओं का सारांश :-
1. ब्रह्म साधना अनुत्तम (घटिया) है।
2. तीन ताप को श्री कृष्ण जी भी समाप्त नहीं कर सके। श्राप देना तीन ताप (दैविक ताप) में आता है। दुर्वासा के श्राप के शिकार स्वयं श्री कृष्ण सहित
सर्व यादव भी हो गए।
3. श्री कृष्ण जी ने श्रापमुक्त होने के लिए यमुना में स्नान करने के लिए कहा, यह समाधान बताया था। उससे श्राप नाश तो हुआ नहीं, यादवों का नाश
अवश्य हो गया। 
विचार करें :- जो अन्य सन्त या ब्राह्मण जो ऐसे स्नान या तीर्थ करने से संकट मुक्त करने की राय देते हैं, वे कितनी कारगर हैं? अर्थात् व्यर्थ हैं क्योंकि जब भगवान त्रिलोकी नाथ द्वारा बताए समाधान यमुना स्नान से कुछ लाभ नहीं हुआ तो अन्य टट्पुँजियों, ब्राह्मणों व गुरूओं द्वारा बताए स्नान आदि समाधान से कुछ होने वाला नहीं है।
4. पहले श्री कृष्ण जी ने दुर्वासा के श्राप से बचाव का तरीका बताया था। उस कढ़ाई को घिसाकर चूर्ण बनाकर प्रभास क्षेत्र में यमुना नदी में डाल दो। न रहेगा बाँस, न बजेगी बाँसुरी, बाँस भी रह गया, 56 करोड़ यादवों की बाँसुरी भी बज गई।
सज्जनो! वर्तमान में बुद्धिमान मानव है, शिक्षित है, मेरे द्वारा (सन्त रामपाल दास द्वारा) बताए ज्ञान को शास्त्रों से मिलाओ, फिर भक्ति करके देखो, क्या कमाल होता है।
प्रसंग आगे चलाते हैं :-
1. तीनों गुणों (रजगुण ब्रह्मा जी, सतगुण विष्णु जी तथा तमगुण शिव जी) की भक्ति करना व्यर्थ सिद्ध हुआ।
2. गीता ज्ञान दाता ब्रह्म की भक्ति स्वयं गीता ज्ञान दाता ने गीता अध्याय 7 श्लोक 18 में अनुत्तम बताई है। उसने गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में उस परमेश्वर अर्थात् परम अक्षर ब्रह्म की शरण में जाने को कहा है। यह भी कहा है कि उस परमेश्वर की कृपा से ही तू परम शान्ति तथा सनातन परम धाम को प्राप्त होगा।
3. गीता अध्याय 15 श्लोक 1 से 4 में संसार रूपी वृक्ष का वर्णन है तथा तत्वदर्शी सन्त की पहचान भी बताई है। संसार रूपी वृक्ष के सब हिस्से, जड़ें (मूल) कौन परमेश्वर है? तना कौन प्रभु है, डार कौन प्रभु है, शाखाऐं कौन-कौन देवता हैं? पात रूप संसार बताया है।
इसी अध्याय 15 श्लोक 16 में स्पष्ट किया है कि :-
1. क्षर पुरूष (यह 21 ब्रह्माण्ड का प्रभु है) :- इसे ब्रह्म, काल ब्रह्म, ज्योति निरंजन भी कहा जाता है। यह नाशवान है। हम इसके लोक में रह रहे हैं। हमें इसके लोक से मुक्त होना है तथा अपने परमात्मा कबीर जी के पास सत्यलोक में जाना है।
2. अक्षर पुरूष :- यह 7 संख ब्रह्माण्डों का प्रभु है, यह भी नाशवान है। हमने इसके 7 संख ब्रह्माण्डों के क्षेत्र से होकर सत्यलोक जाना है। इसलिए इसका टोल टैक्स देना है। बस इससे हमारा इतना ही काम है।
गीता अध्याय 15 श्लोक 17 में कहा है कि :-
उत्तमः पुरूषः तू अन्यः परमात्मा इति उदाहृतः।
यः लोक त्रायम् आविश्य विभर्ति अव्ययः ईश्वरः।।
सरलार्थ :- गीता अध्याय 15 श्लोक 16 में कहे दो पुरूष, एक क्षर पुरूष दूसरा अक्षर पुरूष हैं। इन दोनों से अन्य है उत्तम पुरूष अर्थात् पुरूषोत्तम, उसी को परमात्मा कहते हैं जो तीनों लोकों में प्रवेश करके सबका धारण-पोषण करता है। वह वास्तव में अविनाशी परमेश्वर है। (गीता अध्याय 15 श्लोक 17)
गीता अध्याय 3 श्लोक 14,15 में भी स्पष्ट किया है कि सर्वगतम् ब्रह्म अर्थात् सर्वव्यापी परमात्मा, जो सचिदानन्द घन ब्रह्म है, उसे वासुदेव भी कहते हैं जिसके विषय में गीता अध्याय 7 श्लोक 19 में कहा है। वही सदा यज्ञों अर्थात् धार्मिक अनुष्ठानों में प्रतिष्ठित है अर्थात् ईष्ट रूप में पूज्य है।
पूर्ण गुरू से दीक्षा लेकर मर्यादा में रहकर भक्ति करो। इस प्रकार जीने की राह पर चलकर संसार में सुखी जीवन जीऐं तथा मोक्ष रूपी मंजिल को प्राप्त करें।
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। साधना चैनल पर प्रतिदिन शाम 7:30 से 8.30 बजे। pm






यजुर्वेद अध्याय 19 मंत्र 25, 26 का वास्तविक अर्थ यहां पढ़िए 👇

 यजुर्वेद अध्याय 19 मंत्र 25, 26 में लिखा है कि जो वेदों के अधूरे वाक्यों अर्थात सांकेतिक शब्दों व एक चौथाई श्लोकों को पूरा करके विस्तार से बताएगा व तीन समय की पूजा करवाएगा। वह जगत का उपकारक संत सच्चा सतगुरु होगा।
वर्तमान में ऐसा सन्त एक मात्र #सन्तरामपालजीमहाराजजी हैं

साधना टीवी रोज शाम 7:30 से 8:30   pm

श्रद्धा टीवी रोज दोपहर 2:00 से 3:00pm

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यजुर्वेद अध्याय 19 मंत्र 25, 26 का वास्तविक अर्थ

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अध्याय 7 श्लोक 24-25, अध्याय 11 श्लोक 47ए 48 तथा 32 के वास्तविक अर्थ रहस्य

 अध्याय 7 श्लोक 24-25, अध्याय 11 श्लोक 47ए 48 तथा 32)
पवित्रा गीता जी बोलने वाला ब्रह्म (काल) श्री कृष्ण जी के शरीर में प्रेतवत प्रवेश करके कह
रहा है कि अर्जुन मैं बढ़ा हुआ काल हूँ और सर्व को खाने के लिए आया हूँ। यह मेरा वास्तविक
रूप है, इसको तेरे अतिरिक्त न तो कोई पहले देख सका तथा न कोई आगे देख सकता अर्थात्
वेदों में वर्णित यज्ञ-जप-तप तथा ओ3म् नाम आदि की विधि से मेरे इस वास्तविक स्वरूप के
दर्शन नहीं हो सकते। (अध्याय 11 श्लोक 32 से 48) मैं कृष्ण नहीं हूँ, ये मूर्ख लोग कृष्ण रूप
में मुझ अव्यक्त को व्यक्त (मनुष्य रूप) मान रहे हैं। क्योंकि ये मेरे घटिया नियम से अपरिचित
हैं कि मैं कभी वास्तविक इस काल रूप में सबके सामने नहीं आता। क्योंकि मैं अपनी योग माया
अर्थात् सिद्धी शक्ति से छिपा रहता हूँ (गीता अध्याय 7 का श्लोक 24.25) विचार करें :- अपने
छूपे रहने वाले विधान को स्वयं अश्रेष्ठ (अनुत्तम) क्यों कह रहे हैं?
क्योंकि जो पिता अपनी सन्तान को भी दर्शन नहीं देता तो उसमें कोई त्राटि है जिस कारण
से छुपा है तथा सुविधाएं भी प्रदान कर रहा है। काल (ब्रह्म) को शापवश एक लाख मानव शरीर
धारी प्राणियों का आहार करना पड़ता है तथा 25 हजार प्रतिदिन जो अधिक उत्पन्न होते हैं
उन्हें ठिकाने लगाने के लिए तथा कर्म भोग का दण्ड देने के लिए चौरासी लाख योनियों की
व्यवस्था की हुई है। यदि सबके सामने बैठ कर किसी की पुत्रा, किसी की पत्नी, किसी के पुत्रा,
माता-पिता को खाए तो सर्व को काल ब्रह्म से घृणा हो जाए तथा जब भी कभी पूर्ण परमात्मा
कविरग्नि (कबीर परमेश्वर) स्वयं आऐं या अपना कोई संदेशवाहक (दूत) भेंजे तो सर्व प्राणी
सत्यभक्ति करके काल के जाल से निकल जाएं। इसलिए धोखा देकर रखता है तथा पवित्रा गीता
अध्याय 7 श्लोक 18,24,25 में अपनी साधना से होने वाली मुक्ति (गति) को भी (अनुत्तमाम्)
अति अश्रेष्ठ कहा है तथा अपने विधान (नियम)को भी (अनुत्तम) अश्रेष्ठ कहा है। (कृप्या देखें
एक ब्रह्मण्ड का लघु चित्रा पृष्ठ 89 पर।)
प्रत्येक ब्रह्मण्ड में बने ब्रह्मलोक में एक महास्वर्ग बनाया है। महास्वर्ग में एक स्थान पर
नकली सतलोक - नकली अलख लोक - नकली अगम लोक तथा नकली अनामी लोक की रचना
प्राणियों को धोखा देने के लिए प्रकृति (दुर्गा/आदि माया) द्वारा करा रखी है। एक ब्रह्मण्ड में
अन्य लोकों की भी रचना है, जैसे श्री ब्रह्मा जी का लोक, श्री विष्णु जी का लोक, श्री शिव जी
का लोक। जहाँ पर बैठकर तीनों प्रभु नीचे के तीन लोकों (स्वर्गलोक अर्थात् इन्द्र का लोक -
पृथ्वी लोक तथा पाताल लोक) पर एक - एक विभाग के मालिक बन कर प्रभुता करते हैं तथा
अपने पिता काल के खाने के लिए प्राणियों की उत्पत्ति, स्थिति तथा संहार का कार्यभार संभाले
हैं। तीनों प्रभुओं की भी जन्म व मृत्यु होती है। तब काल इन्हें भी खाता है। इसी ब्रह्मण्ड {इसे
अण्ड भी कहते हैं क्योंकि ब्रह्मण्ड की बनावट अण्डाकार है, इसे पिण्ड भी कहते हैं क्योंकि शरीर (पिण्ड) में
एक ब्रह्मण्ड की रचना कमलों में टी.वी. की तरह देखी जाती है।} में एक मानसरोवर तथा धर्मराय
(न्यायधीश) का भी लोक है तथा एक गुप्त स्थान पर पूर्ण परमात्मा अन्य रूप धारण करके रहता
है। जैसे प्रत्येक देश का राजदूत भवन होता है। वहाँ पर कोई नहीं जा सकता। वहाँ पर वे
आत्माऐं रहती हैं जिनकी सत्यलोक की भक्ति अधूरी रहती है। जब भक्ति युग आता है तो उस आत्मा को मनुुष्य शरीर दीया जाता है,  
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साधना टीवी 7:30pm रोज एक घण्टे, भगति रहस्य देखिए 





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शनिवार, 14 नवंबर 2020

हे मनुष्यो ! आपने यह रहस्य जान लिए तब ही आप परमात्मा के सच्चे मार्ग पर चल सकोगे आईये जानिये 💮

 *हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई*

किसी को भी अपने धर्म ग्रन्थों में क्या लिखा है इसकी सम्पूर्ण जानकारी नहीं है ।।


सिर्फ़ कथाएं पता है लेकिन :-


मोक्ष कैसे होगा क्या मंत्र है ?

कौन भगवान मोक्ष देता है ?

मुक्त होकर कहाँ जाएंगे ?

जन्म मृत्यु क्यों होती है ?

84 लाख योनियां क्यों बनी ?


जिहाद के नाम पर कत्लेआम क्यों होता है ??


गुरु नानक देव जी के गुरु और इष्ट देव का नाम क्या है ??


परमात्मा साकार है कि निराकार ??


बलात्कार क्यों होते है ? 

सभी दुःखी क्यों है ?

सृष्टि की रचना किसने और कैसे की ?

"सबका मालिक एक" कौन है ??

मनुष्य जन्म क्यों मिलता है ?


ऐसे अनेक अनसुलझे सवालों के जवाब जानने के लिए रोज शाम 7:30 pm साधना टीवी जरूर देखें ।।


नहीं तो बहुत पछताओगे, बेवजह आपस में धर्म और जातियों के नाम पर लड़ते लड़ते 84 में चले जाओगे ।


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साधना टीवी पर रोज शाम 7:30 से 8:30pm

श्रद्धा टीवी रोज दोपहर 2:00pm 


*जीव हमारी जाति है, मानव धर्म हमारा ।।*

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शनिवार, 16 मई 2020

अदभुद असली दिव्य रहस्य दर्शन गुरुनानक जी का परमेश्वर मिलाप


( मेरे कुछ सिक्ख भाई /दोस्त ज़रूर पढ़े )
वाहेगुरु जी दा खालसा वाहेगुरु जी दी फतह
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
    ‘‘नानक जी का संक्षिप्त परिचय’’

     श्री नानक देव का जन्म विक्रमी संवत् 1526 (सन् 1469) कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा को हिन्दु परिवार में श्री कालु राम मेहत्ता (खत्री) के घर माता श्रीमति तृप्ता देवी की पवित्र कोख (गर्भ) से पश्चिमी पाकिस्त्तान के जिला लाहौर के तलवंडी नामक गाँव में हुआ। इन्होंने फारसी, पंजाबी, संस्कृत भाषा पढ़ी हुई थी। श्रीमद् भगवत गीता जी को श्री बृजलाल पांडे से पढ़ा करते थे। श्री नानक देव जी के श्री चन्द तथा लखमी चन्द दो लड़के थे।

    श्री नानक जी अपनी बहन नानकी की सुसराल शहर सुल्तान पुर में अपने बहनोई श्री जयराम जी की कृपा से सुल्तान पुर के नवाब के यहाँ मोदीखाने की नौकरी किया करते थे। प्रभु में असीम प्रेम था क्योंकि यह पुण्यात्मा युगों-युगों से पवित्र भक्ति ब्रह्म भगवान(काल) की करते हुए आ रहे थे। सत्ययुग में यही नानक जी राजा अम्ब्रीष थे तथा ब्रह्म भक्ति विष्णु जी को इष्ट मानकर किया करते थे। दुर्वासा जैसे महान तपस्वी ऋषि भी इनके दरबार में हार मान कर क्षमा याचना करके गए थे।

    त्रेता युग में श्री नानक जी की आत्मा राजा जनक विदेही बने। जो सीता जी के पिता कहलाए। उस समय सुखदेव ऋषि जो महर्षि वेदव्यास के पुत्र थे जो अपनी सिद्धि से आकाश में उड़ जाते थे। परन्तु गुरु से उपदेश नहीं ले रखा था। जब सुखदेव विष्णुलोक के स्वर्ग में गए तो गुरु न होने के कारण वापिस आना पड़ा। विष्णु जी के आदेश से राजा जनक को गुरु बनाया तब स्वर्ग में स्थान प्राप्त हुआ। फिर कलियुग में यही राजा जनक की आत्मा एक हिन्दु परिवार में श्री कालुराम महत्ता (खत्री) के घर उत्पन्न हुए तथा श्री नानक नाम रखा गया।

 🛐नानक जी तथा परमेश्वर कबीर जी की ज्ञान चर्चा
 
बाबा नानक देव जी प्रातःकाल प्रतिदिन सुल्तानपुर के पास बह रही बेई दरिया में स्नान करने जाया करते थे तथा घण्टों प्रभु चिन्तन में बैठे रहते थे।

    एक दिन एक जिन्दा फकीर बेई दरिया पर मिले तथा नानक जी से कहा कि आप बहुत अच्छे प्रभु भक्त नजर आते हो। कृप्या मुझे भी भक्ति मार्ग बताने की कृपा करें। मैं बहुत भटक लिया हूँ। मेरा संशय समाप्त नहीं हो पाया है।

    श्री नानक जी ने पूछा कि आप कहाँ से आए हो? आपका क्या नाम है? क्या आपने कोई गुरु धारण किया है?

    तब जिन्दा फकीर का रूप धारण किए कबीर जी ने कहा मेरा नाम कबीर है, बनारस (काशी) से आया हूँ। जुलाहे का काम करता हूँं। मैंने पंडित रामानन्द स्वामी जी से नाम उपदेश ले रखा है।

    श्री नानक जी ने बन्दी छोड़ कबीर जी को एक जिज्ञासु जानकर भक्ति मार्ग बताना प्रारम्भ किया:-

    श्री नानक जी ने कहा हे जिन्दा! गीता में लिखा है कि एक ‘ओ3म’ मंत्र का जाप करो। सतगुण श्री विष्णु जी (जो श्री कृष्ण रूप में अवतरित हुए थे) ही पूर्ण परमात्मा है। स्वर्ग प्राप्ति का एक मात्र साधारण-मार्ग है। गुरु के बिना मोक्ष नहीं, निराकार ब्रह्म की एक ‘ओम् ’मंत्र की साधना से स्वर्ग प्राप्ति होती है।

    जिन्दा रूप में कबीर परमेश्वर ने कहा गुरु किसे बनाऊँ? कोई पूरा गुरु मिल ही नहीं रहा जो संशय समाप्त करके मन को भक्ति में लगा सके।

    स्वामी रामानन्द जी मेरे गुरु हैं परन्तु उन से मेरा संशय निवारण नहीं हो पाया है(यहाँ पर कबीर परमेश्वर अपने आप को छुपा कर लीला करते हुए कह रहे हैं तथा साथ में यह उद्देश्य है कि इस प्रकार श्री नानक जी को समझाया जा सकता है।)।

    श्री नानक जी ने कहा मुझे गुरु बनाओ, आप का कल्याण निश्चित है। जिन्दा महात्मा के रूप में कबीर परमेश्वर ने कहा कि मैं आप को गुरु धारण करता हूँ, परन्तु मेरे कुछ प्रश्न हैं, उनका आप से समाधान चाहूँगा। श्री नानक जी बोले - पूछो। जिन्दा महात्मा के रूप में कबीर परमेश्वर ने कहा हे गुरु नानक जी! आपने बताया कि तीन लोक के प्रभु (रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु तथा तमगुण शिव) है। त्रिगुण माया सृष्टि, स्थिति तथा संहार करती है। श्री कृष्ण जी ही श्री विष्णु रूप में स्वयं आए थे, जो सर्वेश्वर, अविनाशी, सर्व लोकों के धारण व पोषण कर्ता हैं। यह सर्व के पूज्य हैं तथा सृष्टि रचनहार भी यही हैं। इनसे ऊपर कोई प्रभु नहीं है। इनके माता-पिता नहीं है, ये तो अजन्मा हैं। श्री कृष्ण ने ही गीता ज्ञान दिया है(यह ज्ञान श्री नानक जी ने श्री बृजलाल पाण्डे से सुना था, जो उन्हें गीता जी पढ़ाया करते थे)। परन्तु गीता अध्याय 2 श्लोक 12, अध्याय 4 श्लोक 5 में गीता ज्ञान दाता ने कहा है कि अर्जुन! मैं तथा तू पहले भी थे तथा यह सर्व सैनिक भी थे, हम सब आगे भी उत्पन्न होंगे। तेरे तथा मेरे बहुत जन्म हो चुके हैं, तू नहीं जानता मैं जानता हूँ। इससे तो सिद्ध है कि गीता ज्ञान दाता भी नाशवान है, अविनाशी नहीं है। गीता अध्याय 7 श्लोक 15 में गीता ज्ञान दाता प्रभु कह रहा है कि जो त्रिगुण माया (रजगुण ब्रह्मा जी, सतगुण विष्णु जी, तमगुण शिवजी) के द्वारा मिलने वाले क्षणिक लाभ के कारण इन्हीं की पूजा करके अपना कल्याण मानते हैं, इनसे ऊपर किसी शक्ति को नहीं मानते अर्थात् जिनकी बुद्धि इन्हीं तीन प्रभुओं(त्रिगुणमयी माया) तक सीमित है वे राक्षस स्वभाव को धारण किए हुए, मनुष्यों में नीच, दुष्कर्म करने वाले, मूर्ख मुझे भी नहीं पूजते। इससे तो सिद्ध हुआ कि श्री विष्णु (सतगुण) आदि पूजा के योग्य नहीं है तथा अपनी साधना के विषय में गीता ज्ञान दाता प्रभु ने गीता अध्याय 7 श्लोक 18 में कहा है कि मेरी (गति) पूजा भी (अनुत्तमाम्) अति घटिया है। इसलिए गीता अध्याय 15 श्लोक 4, अध्याय 18 श्लोक 62 में कहा है कि उस परमेश्वर की शरण में जा जिसकी कृपा से ही तू परम शान्ति तथा सनातन परम धाम सतलोक चला जाएगा। जहाँ जाने के पश्चात् साधक का जन्म-मृत्यु का चक्र सदा के लिए छूट जाएगा। वह साधक फिर लौट कर संसार में नहीं आता अर्थात् पूर्ण मोक्ष प्राप्त करता है। उस परमात्मा के विषय में गीता ज्ञान दाता प्रभु ने कहा है कि मैं नहीं जानता। उस के विषय में पूर्ण (तत्व) ज्ञान तत्वदर्शी संतों से पूछो। जैसे वे कहें वैसे साधना करो। प्रमाण गीता अध्याय 4 श्लोक 34 में। श्री नानक जी से परमेश्वर कबीर साहेब जी ने कहा कि क्या वह तत्वदर्शी संत आपको मिला है जो पूर्ण परमात्मा की भक्ति विधि बताएगा ? श्री नानक जी ने कहा नहीं मिला। परमेश्वर कबीर जी ने कहा जो भक्ति आप कर रहे हो यह तो पूर्ण मोक्ष दायक नहीं है। उस पूर्ण परमात्मा के विषय में पूर्ण ज्ञान रखने वाला मैं ही वह तत्वदर्शी संत हूँ। बनारस (काशी) में धाणक (जुलाहे) का कार्य करता हूँ। गीता ज्ञान दाता प्रभु स्वयं को नाशवान कह रहा है, जब स्वर्ग तथा महास्वर्ग (ब्रह्मलोक) भी नहीं रहेगा तो साधक का क्या होगा ? जैसे आप ने बताया कि श्रीमद् भगवत गीता में लिखा है कि ओ3म मंत्र के जाप से स्वर्ग प्राप्ति हो जाती है। वहाँ स्वर्ग में साधक जन कितने दिन रह सकते हैं? श्री नानक जी ने उत्तर दिया जितना भजन तथा दान के आधार पर उनका स्वर्ग का समय निर्धारित होगा उतने दिन स्वर्ग में आनन्द से रह सकते हैं।

    जिन्दा फकीर ने प्रश्न किया कि तत् पश्चात् कहाँ जाएँगे?
    उत्तर (नानक जी का) - फिर इस मृत लोक में आना होता है तथा कर्माधार पर अन्य योनियाँ भी भोगनी पड़ती हैं।

    प्रश्न (जिन्दा रूप में कबीर साहेब का)- क्या जन्म मरण मिट सकता है? उत्तर (श्री नानक जी का) - नहीं, गीता में कहा है अर्जुन तेरे मेरे अनेक जन्म हो चुके हैं और आगे भी होंगे अर्थात् जन्म-मरण बना रहेगा(गीता अध्याय 2 श्लोक 12 तथा अध्याय 4 श्लोक 5)। शुभ कर्म ज्यादा करने से स्वर्ग का समय अधिक हो जाता है।

    प्रश्न {जिन्दा फकीर (कबीर जी) का} - गीता अध्याय न. 8 के श्लोक न. 16 में लिखा है कि ब्रह्मलोक से लेकर सर्वलोक नाशवान हैं। उस समय कहाँ रहोगे? जब न पृथ्वी रहेगी, न श्री विष्णु रहेगा, न विष्णुलोक, न स्वर्ग लोक तथा पूरे ब्रह्मण्ड का विनाश होगा। इसलिए गीता ज्ञान दाता प्रभु कह रहा है कि किसी तत्वदर्शी संत की खोज कर, फिर जैसे उस पूर्ण परमात्मा की प्राप्ति की विधि वह संत बताए उसके अनुसार साधना कर। उसके पश्चात् उस परम पद परमेश्वर की खोज करनी चाहिए, जहाँ पर जाने के पश्चात् साधक का फिर जन्म-मृत्यु कभी नहीं होता अर्थात् फिर लौट कर संसार में नहीं आते। जिस परमेश्वर से सर्व ब्रह्मण्डों की उत्पत्ति हुई है। मैं (गीता ज्ञान दाता) भी उसी पूर्ण परमात्मा की शरण में हूँ (गीता अध्याय 4 श्लोक 34, अध्याय 15 श्लोक 4) इसलिए कहा है कि अर्जुन सर्व भाव से उस परमेश्वर की शरण में जा जिसकी कृपा से ही तू परम शान्ति तथा सतलोक स्थान अर्थात् सच्चखण्ड में चला जाएगा(गीता अध्याय 18 श्लोक 62)। उस पूर्ण परमात्मा की प्राप्ति का ओम-तत्-सत् केवल यही मंत्र है(गीता अध्याय 17 श्लोक 23)।

    उत्तर नानक जी का - इसके बारे में मुझे ज्ञान नहीं।
    जिन्दा फकीर (कबीर साहेब) ने श्री नानक जी को बताया कि यह सर्व काल की कला है। गीता अध्याय न. 11 के श्लोक न. 32 में स्वयं गीता ज्ञान दाता ब्रह्म ने कहा है कि मैं काल हूँ और सभी को खाने के लिए आया हूँ। वही निरंकार कहलाता है। उसी काल का ओंकार (ओम्) मंत्र है।

    गीता अध्याय न. 11 के श्लोक न. 21 में अर्जुन ने कहा है कि आप तो ऋषियों को भी खा रहे हो, देवताओं को भी खा रहे हो जो आपही का स्मरण स्तुति वेद विधि अनुसार कर रहे हैं। इस प्रकार काल वश सर्व साधक साधना करके उसी के मुख में प्रवेश करते रहते हैं। आपने इसी काल (ब्रह्म) की साधना करते करते असंख्यों युग हो गए। साठ हजार जन्म तो आपके महर्षि तथा महान भक्त रूप में हो चुके हैं। फिर भी काल के लोक में जन्म-मृत्यु के चक्र में ही रहे हो।

    सर्व सृष्टि रचना सुनाई तथा श्री ब्रह्मा (रजगुण), श्री विष्णु (सतगुण) तथा श्री शिव (तमगुण) की स्थिति बताई। श्री देवी महापुराण तीसरा स्कंद (पृष्ठ 123, गीता प्रैस गोरखपुर से प्रकाशित, मोटा टाईप) में स्वयं विष्णु जी ने कहा है कि मैं (विष्णु) तथा ब्रह्मा व शिव तो नाशवान हैं, अविनाशी नहीं हैं। हमारा तो आविर्भाव (जन्म) तथा तिरोभाव (मृत्यु) होता है। आप (दुर्गा/अष्टांगी) हमारी माता हो। दुर्गा ने बताया कि ब्रह्म (ज्योति निरंजन) आपका पिता है। श्री शंकर जी ने स्वीकार किया कि मैं तमोगुणी लीला करने वाला शंकर भी आपका पुत्र हूँ तथा ब्रह्मा भी आपका बेटा है। परमेश्वर कबीर जी ने कहा कि हे नानक जी! आप इन्हें अविनाशी, अजन्मा, इनके कोई माता-पिता नहीं हैं आदि उपमा दे रहे हो। यह दोष आप का नहीं है। यह दोष दोनों धर्मों(हिन्दू तथा मुसलमान) के ज्ञानहीन गुरुओं का है जो अपने-अपने धर्म के सद्ग्रन्थों को ठीक से न समझ कर अपनी-अपनी अटकल से दंत कथा (लोकवेद) सुना कर वास्तविक भक्ति मार्ग के विपरीत शास्त्रा विधि रहित मनमाना आचरण (पूजा) का ज्ञान दे रहे हैं। दोनों ही पवित्र धर्मों के पवित्र शास्त्रा एक पूर्ण प्रभु का(मेरा) ही ज्ञान करा रहे हैं। र्कुआन शरीफ में सूरत फुर्कानि 25 आयत 52 से 59 में भी मुझ कबीर का वर्णन है।

    श्री नानक जी ने कहा कि यह तो आज तक किसी ने नहीं बताया। इसलिए मन स्वीकार नहीं कर रहा है। तब जिन्दा फकीर जी (कबीर साहेब जी) श्री नानक जी की अरूचि देखकर चले गए। उपस्थित व्यक्तियों ने श्री नानक जी से पूछा यह भक्त कौन था जो आप को गुरुदेव कह रहा था? नानक जी ने कहा यह काशी में रहता है, नीच जाति का जुलाहा(धाणक) कबीर था। बेतुकी बातें कर रहा था। कह रहा था कि कृष्ण जी तो काल के चक्र में है तथा मुझे भी कह रहा था कि आपकी साधना ठीक नहीं है। तब मैंने बताना शुरू किया तब हार मान कर चला गया। {इस वार्ता से सिक्खों ने श्री नानक जी को परमेश्वर कबीर साहेब जी का गुरु मान लिया।}

    श्री नानक जी प्रथम वार्ता पूज्य कबीर परमेश्वर के साथ करने के पश्चात् यह तो जान गए थे कि मेरा ज्ञान पूर्ण नहीं है तथा गीता जी का ज्ञान भी उससे कुछ भिन्न ही है जो आज तक हमें बताया गया था। इसलिए हृदय से प्रतिदिन प्रार्थना करते थे कि वही संत एक बार फिर आए। मैं उससे कोई वाद-विवाद नहीं करूंगा, कुछ प्रश्नों का उत्तर अवश्य चाहूँगा। परमेश्वर कबीर जी तो अन्तर्यामी हैं तथा आत्मा के आधार व आत्मा के वास्तविक पिता हैं, अपनी प्यारी आत्माओं को ढूंढते रहते हैं। कुछ समय के ऊपरान्त जिन्दा फकीर रूप में कबीर जी ने उसी बेई नदी के किनारे पहुँच कर श्री नानक जी को राम-राम कहा। उस समय श्री नानक जी कपड़े उतार कर स्नान के लिए तैयार थे। जिन्दा महात्मा केवल श्री नानक जी को दिखाई दे रहे थे अन्य को नहीं। श्री नानक जी से वार्ता करने लगे। कबीर जी ने कहा कि आप मेरी बात पर विश्वास करो। एक पूर्ण परमात्मा है तथा उसका सतलोक स्थान है जहाँ की भक्ति करने से जीव सदा के लिए जन्म-मरण से छूट सकता है। उस स्थान तथा उस परमात्मा की प्राप्ति की साधना का केवल मुझे ही पता है अन्य को नहीं तथा गीता अध्याय न. 18 के श्लोक न. 62, अध्याय 15 श्लोक 4 में भी उस परमात्मा तथा स्थान के विषय में वर्णन है।

    पूर्ण परमात्मा गुप्त है उसकी शरण में जाने से उसी की कृपा से तू (शाश्वतम्) अविनाशी अर्थात् सत्य (स्थानम्) लोक को प्राप्त होगा। गीता ज्ञान दाता प्रभु भी कह रहा है कि मैं भी उसी आदि पुरुष परमेश्वर नारायण की शरण में हूँ। श्री नानक जी ने कहा कि मैं आपकी एक परीक्षा लेना चाहता हूँ। मैं इस दरिया में छुपूँगा और आप मुझे ढूंढ़ना। यदि आप मुझे ढूंढ दोगे तो मैं आपकी बात पर विश्वास कर लूँगा। यह कह कर श्री नानक जी ने बेई नदी में डुबकी लगाई तथा मछली का रूप धारण कर लिया। जिन्दा फकीर (कबीर पूर्ण परमेश्वर) ने उस मछली को पकड़ कर जिधर से पानी आ रहा था उस ओर लगभग तीन किलो मीटर दूर ले गए तथा श्री नानक जी बना दिया।
    (प्रमाण श्री गुरु ग्रन्थ साहेब सीरी रागु महला पहला, घर 4 पृष्ठ 25) -

    तू दरीया दाना बीना, मैं मछली कैसे अन्त लहा।
    जह-जह देखा तह-तह तू है, तुझसे निकस फूट मरा।
    न जाना मेऊ न जाना जाली। जा दुःख लागै ता तुझै समाली।1।रहाऊ।।

    नानक जी ने कहा कि मैं मछली बन गया था, आपने कैसे ढूंढ लिया? हे परमेश्वर! आप तो दरीया के अंदर सूक्ष्म से भी सूक्ष्म वस्तु को जानने वाले हो। मुझे तो जाल डालने वाले(जाली) ने भी नहीं जाना तथा गोताखोर(मेऊ) ने भी नहीं जाना अर्थात् नहीं जान सका। जब से आप के सतलोक से निकल कर अर्थात् आप से बिछुड़ कर आए हैं तब से कष्ट पर कष्ट उठा रहा हूँ। जब दुःख आता है तो आपको ही याद करता हूँ, मेरे कष्टों का निवारण आप ही करते हो? (उपरोक्त वार्ता बाद में काशी में प्रभु के दर्शन करके हुई थी)।

    तब नानक जी ने कहा कि अब मैं आपकी सर्व वार्ता सुनने को तैयार हूँ। कबीर परमेश्वर ने वही सृष्टि रचना पुनर् सुनाई तथा कहा कि मैं पूर्ण परमात्मा हूँ मेरा स्थान सच्चखण्ड (सत्यलोक) है। आप मेरी आत्मा हो। काल (ब्रह्म) आप सर्व आत्माओं को भ्रमित ज्ञान से विचलित करता है तथा नाना प्रकार से प्राणियों के शरीर में बहुत परेशान कर रहा है। मैं आपको सच्चानाम (सत्यनाम/वास्तविक मंत्र जाप) दूँगा जो किसी शास्त्रा में नहीं है। जिसे काल (ब्रह्म) ने गुप्त कर रखा है।

    श्री नानक जी ने कहा कि मैं अपनी आँखों अकाल पुरूष तथा सच्चखण्ड को देखूं तब आपकी बात को सत्य मानूं। तब कबीर साहेब जी श्री नानक जी की पुण्यात्मा को सत्यलोक ले गए। सच्च खण्ड में श्री नानक जी ने देखा कि एक असीम तेजोमय मानव सदृश शरीर युक्त प्रभु तख्त पर बैठे थे। अपने ही दूसरे स्वरूप पर कबीर साहेब जिन्दा महात्मा के रूप में चंवर करने लगे। तब श्री नानक जी ने सोचा कि अकाल मूर्त तो यह रब है जो गद्दी पर बैठा है। कबीर तो यहाँ का सेवक होगा। उसी समय जिन्दा रूप में परमेश्वर कबीर साहेब उस गद्दी पर विराजमान हो गए तथा जो तेजोमय शरीर युक्त प्रभु का दूसरा रूप था वह खड़ा होकर तख्त पर बैठे जिन्दा वाले रूप पर चंवर करने लगा। फिर वह तेजोमय रूप नीचे से गये जिन्दा (कबीर) रूप में समा गया तथा गद्दी पर अकेले कबीर परमेश्वर जिन्दा रूप में बैठे थे और चंवर अपने आप ढुरने लगा।

    तब नानक जी ने कहा कि वाहे गुरु, सत्यनाम से प्राप्ति तेरी। इस प्रक्रिया में तीन दिन लग गए। नानक जी की आत्मा को साहेब कबीर जी ने वापस शरीर में प्रवेश कर दिया। तीसरे दिन श्री नानक जी होश में आऐ।

    उधर श्री जयराम जी ने (जो श्री नानक जी का बहनोई था) श्री नानक जी को दरिया में डूबा जान कर दूर तक गोताखोरों से तथा जाल डलवा कर खोज करवाई। परन्तु कोशिश निष्फल रही और मान लिया कि श्री नानक जी दरिया के अथाह वेग में बह कर मिट्टी के नीचे दब गए। तीसरे दिन जब नानक जी उसी नदी के किनारे सुबह-सुबह दिखाई दिए तो बहुत व्यक्ति एकत्रित हो गए, बहन नानकी तथा बहनोई श्री जयराम भी दौड़े गए, खुशी का ठिकाना नहीं रहा तथा घर ले आए।

    श्री नानक जी अपनी नौकरी पर चले गए। मोदी खाने का दरवाजा खोल दिया तथा कहा जिसको जितना चाहिए, ले जाओ। पूरा खजाना लुटा कर शमशान घाट पर बैठ गए। जब नवाब को पता चला कि श्री नानक खजाना समाप्त करके शमशान घाट पर बैठा है। तब नवाब ने श्री जयराम की उपस्थिति में खजाने का हिसाब करवाया तो सात सौ साठ रूपये अधिक मिले। नवाब ने क्षमा याचना की तथा कहा कि नानक जी आप सात सौ साठ रूपये जो आपके सरकार की ओर अधिक हैं ले लो तथा फिर नौकरी पर आ जाओ। तब श्री नानक जी ने कहा कि अब सच्ची सरकार की नौकरी करूँगा। उस पूर्ण परमात्मा के आदेशानुसार अपना जीवन सफल करूँगा। वह पूर्ण परमात्मा है जो मुझे बेई नदी पर मिला था।

    नवाब ने पूछा वह पूर्ण परमात्मा कहाँ रहता है तथा यह आदेश आपको कब हुआ? श्री नानक जी ने कहा वह सच्चखण्ड में रहता हेै। बेई नदी के किनारे से मुझे स्वयं आकर वही पूर्ण परमात्मा सच्चखण्ड (सत्यलोक) लेकर गया था। वह इस पृथ्वी पर भी आकार में आया हुआ है। उसकी खोज करके अपना आत्म कल्याण करवाऊँगा। उस दिन के बाद श्री नानक जी घर त्याग कर पूर्ण परमात्मा की खोज पृथ्वी पर करने के लिए चल पड़े। श्री नानक जी सतनाम तथा वाहिगुरु की रटना लगाते हुए बनारस पहुँचे। इसीलिए अब पवित्र सिक्ख समाज के श्रद्धालु केवल सत्यनाम श्री वाहिगुरु कहते रहते हैं। सत्यनाम क्या है तथा वाहिगुरु कौन है यह मालूम नहीं है। जबकि सत्यनाम(सच्चानाम) गुरु ग्रन्थ साहेब में लिखा है, जो अन्य मंत्र है।

    जैसा की कबीर साहेब ने बताया था कि मैं बनारस (काशी) में रहता हूँ। धाणक (जुलाहे) का कार्य करता हूँ। मेरे गुरु जी काशी में सर्व प्रसिद्ध पंडित रामानन्द जी हैं। इस बात को आधार रखकर श्री नानक जी ने संसार से उदास होकर पहली उदासी यात्रा बनारस (काशी) के लिए प्रारम्भ की (प्रमाण के लिए देखें ‘‘जीवन दस गुरु साहिब‘‘ (लेखक:- सोढ़ी तेजा सिंह जी, प्रकाशक=चतर सिंघ, जीवन सिंघ) पृष्ठ न. 50 पर।)।

    परमेश्वर कबीर साहेब जी स्वामी रामानन्द जी के आश्रम में प्रतिदिन जाया करते थे। जिस दिन श्री नानक जी ने काशी पहुँचना था उससे पहले दिन कबीर साहेब ने अपने पूज्य गुरुदेव रामानन्द जी से कहा कि स्वामी जी कल मैं आश्रम में नहीं आ पाऊँगा। क्योंकि कपड़ा बुनने का कार्य अधिक है। कल सारा दिन लगा कर कार्य निपटा कर फिर आपके दर्शन करने आऊँगा।

    काशी(बनारस) में जाकर श्री नानक जी ने पूछा कोई रामानन्द जी महाराज है। सब ने कहा वे आज के दिन सर्व ज्ञान सम्पन्न ऋषि हैं। उनका आश्रम पंचगंगा घाट के पास है। श्री नानक जी ने श्री रामानन्द जी से वार्ता की तथा सच्चखण्ड का वर्णन शुरू किया। तब श्री रामानन्द स्वामी ने कहा यह पहले मुझे किसी शास्त्रा में नहीं मिला परन्तु अब मैं आँखों देख चुका हूँ, क्योंकि वही परमेश्वर स्वयं कबीर नाम से आया हुआ है तथा मर्यादा बनाए रखने के लिए मुझे गुरु कहता है परन्तु मेरे लिए प्राण प्रिय प्रभु है। पूर्ण विवरण चाहिए तो मेरे व्यवहारिक शिष्य परन्तु वास्तविक गुरु कबीर से पूछो, वही आपकी शंका का निवारण कर सकता है।

    श्री नानक जी ने पूछा कि कहाँ हैं (परमेश्वर स्वरूप) कबीर साहेब जी ? मुझे शीघ्र मिलवा दो। तब श्री रामानन्द जी ने एक सेवक को श्री नानक जी के साथ कबीर साहेब जी की झोपड़ी पर भेजा। उस सेवक से भी सच्चखण्ड के विषय में वार्ता करते हुए श्री नानक जी चले तो उस कबीर साहेब के सेवक ने भी सच्चखण्ड व सृष्टि रचना जो परमेश्वर कबीर साहेब जी से सुन रखी थी सुनाई। तब श्री नानक जी ने आश्चर्य हुआ कि मेरे से तो कबीर साहेब के चाकर (सेवक) भी अधिक ज्ञान रखते हैं। इसीलिए गुरुग्रन्थ साहेब पृष्ठ 721 पर अपनी अमृतवाणी महला 1 में श्री नानक जी ने कहा है कि -

    “हक्का कबीर करीम तू, बेएब परवरदीगार।
    नानक बुगोयद जनु तुरा, तेरे चाकरां पाखाक”

    जिसका भावार्थ है कि हे कबीर परमेश्वर जी मैं नानक कह रहा हूँ कि मेरा उद्धार हो गया, मैं तो आपके सेवकों के चरणों की धूर तुल्य हूँ।

    जब नानक जी ने देखा यह धाणक (जुलाहा) वही परमेश्वर है जिसके दर्शन सत्यलोक (सच्चखण्ड) में किए तथा बेई नदी पर हुए थे। वहाँ यह जिन्दा महात्मा के वेश में थे यहाँ धाणक (जुलाहे) के वेश में हैं। यह स्थान अनुसार अपना वेश बदल लेते हैं परन्तु स्वरूप (चेहरा) तो वही है। वही मोहिनी सूरत जो सच्चखण्ड में भी विराजमान था। वही करतार आज धाणक रूप में बैठा है। श्री नानक जी की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। आँखों में आँसू भर गए।

    तब श्री नानक जी अपने सच्चे स्वामी अकाल मूर्ति को पाकर चरणों में गिरकर सत्यनाम (सच्चानाम) प्राप्त किया। तब शान्ति पाई तथा अपने प्रभु की महिमा देश विदेश में गाई।

    पहले श्री नानकदेव जी एक ओंकार(ओम) मन्त्रा का जाप करते थे तथा उसी को सत मान कर कहा करते थे एक ओंकार। उन्हें बेई नदी पर कबीर साहेब ने दर्शन दे कर सतलोक(सच्चखण्ड) दिखाया तथा अपने सतपुरुष रूप को दिखाया। जब सतनाम का जाप दिया तब नानक जी की काल लोक से मुक्ति हुई। नानक जी ने कहा कि:
    इसी का प्रमाण गुरु ग्रन्थ साहिब के राग ‘‘सिरी‘‘ महला 1 पृष्ठ नं. 24 पर शब्द नं. 29

    शब्द - एक सुआन दुई सुआनी नाल, भलके भौंकही सदा बिआल
    कुड़ छुरा मुठा मुरदार, धाणक रूप रहा करतार।।1।।
    मै पति की पंदि न करनी की कार। उह बिगड़ै रूप रहा बिकराल।।
    तेरा एक नाम तारे संसार, मैं ऐहो आस एहो आधार।
    मुख निंदा आखा दिन रात, पर घर जोही नीच मनाति।।
    काम क्रोध तन वसह चंडाल, धाणक रूप रहा करतार।।2।।
    फाही सुरत मलूकी वेस, उह ठगवाड़ा ठगी देस।।
    खरा सिआणां बहुता भार, धाणक रूप रहा करतार।।3।।
    मैं कीता न जाता हरामखोर, उह किआ मुह देसा दुष्ट चोर।
    नानक नीच कह बिचार, धाणक रूप रहा करतार।।4।।

    इसमें स्पष्ट लिखा है कि एक(मन रूपी) कुत्ता तथा इसके साथ दो (आशा-तृष्णा रूपी) कुतिया अनावश्यक भौंकती(उमंग उठती) रहती हैं तथा सदा नई-नई आशाएँ उत्पन्न(ब्याती हैं) होती हैं। इनको मारने का तरीका(जो सत्यनाम तथा तत्व ज्ञान बिना) झुठा(कुड़) साधन(मुठ मुरदार) था। मुझे धाणक के रूप में हक्का कबीर (सत कबीर) परमात्मा मिला। उन्होनें मुझे वास्तविक उपासना बताई।

    नानक जी ने कहा कि उस परमेश्वर(कबीर साहेब) की साधना बिना न तो पति(साख) रहनी थी और न ही कोई अच्छी करनी(भक्ति की कमाई) बन रही थी। जिससे काल का भयंकर रूप जो अब महसूस हुआ है उससे केवल कबीर साहेब तेरा एक(सत्यनाम) नाम पूर्ण संसार को पार(काल लोक से निकाल सकता है) कर सकता है। मुझे(नानक जी कहते हैं) भी एही एक तेरे नाम की आश है व यही नाम मेरा आधार है। पहले अनजाने में बहुत निंदा भी की होगी क्योंकि काम क्रोध इस तन में चंडाल रहते हैं।

    मुझे धाणक(जुलाहे का कार्य करने वाले कबीर साहेब) रूपी भगवान ने आकर सतमार्ग बताया तथा काल से छुटवाया। जिसकी सुरति(स्वरूप) बहुत प्यारी है मन को फंसाने वाली अर्थात् मन मोहिनी है तथा सुन्दर वेश-भूषा में(जिन्दा रूप में) मुझे मिले उसको कोई नहीं पहचान सकता। जिसने काल को भी ठग लिया अर्थात् दिखाई देता है धाणक(जुलाहा) फिर बन गया जिन्दा। काल भगवान भी भ्रम में पड़ गया भगवान(पूर्णब्रह्म) नहीं हो सकता। इसी प्रकार परमेश्वर कबीर साहेब अपना वास्तविक अस्तित्व छुपा कर एक सेवक बन कर आते हैं। काल या आम व्यक्ति पहचान नहीं सकता। इसलिए नानक जी ने उसे प्यार में ठगवाड़ा कहा है और साथ में कहा है कि वह धाणक(जुलाहा कबीर) बहुत समझदार है। दिखाई देता है कुछ परन्तु है बहुत महिमा(बहुता भार) वाला जो धाणक जुलाहा रूप मंे स्वयं परमात्मा पूर्ण ब्रह्म(सतपुरुष) आया है। प्रत्येक जीव को आधीनी समझाने के लिए अपनी भूल को स्वीकार करते हुए कि मैंने(नानक जी ने) पूर्णब्रह्म के साथ बहस(वाद-विवाद) की तथा उन्होनें (कबीर साहेब ने) अपने आपको भी (एक लीला करके) सेवक रूप में दर्शन दे कर तथा(नानक जी को) मुझको स्वामी नाम से सम्बोधित किया। इसलिए उनकी महानता तथा अपनी नादानी का पश्चाताप करते हुए श्री नानक जी ने कहा कि मैं(नानक जी) कुछ करने कराने योग्य नहीं था। फिर भी अपनी साधना को उत्तम मान कर भगवान से सम्मुख हुआ(ज्ञान संवाद किया)। मेरे जैसा नीच दुष्ट, हरामखोर कौन हो सकता है जो अपने मालिक पूर्ण परमात्मा धाणक रूप(जुलाहा रूप में आए करतार कबीर साहेब) को नहीं पहचान पाया? श्री नानक जी कहते हैं कि यह सब मैं पूर्ण सोच समझ से कह रहा हूँ कि परमात्मा यही धाणक (जुलाहा कबीर) रूप में है।

    भावार्थ:- श्री नानक साहेब जी कह रहे हैं कि यह फासने वाली अर्थात् मनमोहिनी शक्ल सूरत में तथा जिस देश में जाता है वैसा ही वेश बना लेता है, जैसे जिंदा महात्मा रूप में बेई नदी पर मिले, सतलोक में पूर्ण परमात्मा वाले वेश में तथा यहाँ उतर प्रदेश में धाणक(जुलाहे) रूप में स्वयं करतार (पूर्ण प्रभु) विराजमान है। आपसी वार्ता के दौरान हुई नोक-झोंक को याद करके क्षमा याचना करते हुए अधिक भाव से कह रहे हैं कि मैं अपने सत्भाव से कह रहा हूँ कि यही धाणक(जुलाहे) रूप में सत्पुरुष अर्थात् अकाल मूर्त ही है।
    दूसरा प्रमाण:- नीचे प्रमाण है जिसमें कबीर परमेश्वर का नाम स्पष्ट लिखा है। श्री गु.ग्रपृष् ठ नं. 721 राग तिलंग महला पहला में है।
    और अधिक प्रमाण के लिए प्रस्तुत है ‘‘राग तिलंग महला 1‘‘ पंजाबी गुरु ग्रन्थ साहेब पृष्ठ नं. 721

    यक अर्ज गुफतम पेश तो दर गोश कुन करतार।
    हक्का कबीर करीम तू बेएब परवरदिगार।।
    दूनियाँ मुकामे फानी तहकीक दिलदानी।
    मम सर मुई अजराईल गिरफ्त दिल हेच न दानी।।
    जन पिसर पदर बिरादराँ कस नेस्त दस्तं गीर।
    आखिर बयफ्तम कस नदारद चूँ शब्द तकबीर।।
    शबरोज गशतम दरहवा करदेम बदी ख्याल।
    गाहे न नेकी कार करदम मम ई चिनी अहवाल।।
    बदबख्त हम चु बखील गाफिल बेनजर बेबाक।
    नानक बुगोयद जनु तुरा तेरे चाकरा पाखाक।।

    सरलार्थ:-- (कुन करतार) हे शब्द स्वरूपी कर्ता अर्थात् शब्द से सर्व सृष्टि के रचनहार (गोश) निर्गुणी संत रूप में आए (करीम) दयालु (हक्का कबीर) सत कबीर (तू) आप (बेएब परवरदिगार) निर्विकार परमेश्वर हंै। (पेश तोदर) आपके समक्ष अर्थात् आप के द्वार पर (तहकीक) पूरी तरह जान कर (यक अर्ज गुफतम) एक हृदय से विशेष प्रार्थना है कि (दिलदानी) हे महबूब (दुनियां मुकामे) यह संसार रूपी ठिकाना (फानी) नाशवान है (मम सर मूई) जीव के शरीर त्यागने के पश्चात् (अजराईल) अजराईल नामक फरिश्ता यमदूत (गिरफ्त दिल हेच न दानी) बेरहमी के साथ पकड़ कर ले जाता है। उस समय (कस) कोई (दस्तं गीर) साथी (जन) व्यक्ति जैसे (पिसर) बेटा (पदर) पिता (बिरादरां) भाई चारा (नेस्तं) साथ नहीं देता। (आखिर बेफ्तम) अन्त में सर्व उपाय (तकबीर) फर्ज अर्थात् (कस) कोई क्रिया काम नहीं आती (नदारद चूं शब्द) तथा आवाज भी बंद हो जाती है (शबरोज) प्रतिदिन (गशतम) गसत की तरह न रूकने वाली (दर हवा) चलती हुई वायु की तरह (बदी ख्याल) बुरे विचार (करदेम) करते रहते हैं (नेकी कार करदम) शुभ कर्म करने का (मम ई चिनी) मुझे कोई (अहवाल) जरीया अर्थात् साधन (गाहे न) नहीं मिला (बदबख्त) ऐसे बुरे समय में (हम चु) हमारे जैसे (बखील) नादान (गाफील) ला परवाह (बेनजर बेबाक) भक्ति और भगवान का वास्तविक ज्ञान न होने के कारण ज्ञान नेत्र हीन था तथा ऊवा-बाई का ज्ञान कहता था। (नानक बुगोयद) नानक जी कह रहे हैं कि हे कबीर परमेश्वर आप की कृपा से (तेरे चाकरां पाखाक) आपके सेवकों के चरणों की धूर डूबता हुआ (जनु तूरा) बंदा पार हो गया।

    केवल हिन्दी अनुवाद:-- हे शब्द स्वरूपी राम अर्थात् शब्द से सर्व सृष्टि रचनहार दयालु ‘‘सतकबीर‘‘ आप निर्विकार परमात्मा हैं। आप के समक्ष एक हृदय से विनती है कि यह पूरी तरह जान लिया है हे महबूब यह संसार रूपी ठिकाना नाशवान है। हे दाता! इस जीव के मरने पर अजराईल नामक यम दूत बेरहमी से पकड़ कर ले जाता है कोई साथी जन जैसे बेटा पिता भाईचारा साथ नहीं देता। अन्त में सभी उपाय और फर्ज कोई क्रिया काम नहीं आता। प्रतिदिन गश्त की तरह न रूकने वाली चलती हुई वायु की तरह बुरे विचार करते रहते हैं। शुभ कर्म करने का मुझे कोई जरीया या साधन नहीं मिला। ऐसे बुरे समय कलियुग में हमारे जैसे नादान लापरवाह, सत मार्ग का ज्ञान न होने से ज्ञान नेत्र हीन था तथा लोकवेद के आधार से अनाप-सनाप ज्ञान कहता रहता था। नानक जी कहते हैं कि मैं आपके सेवकों के चरणों की धूर डूबता हुआ बन्दा नानक पार हो गया।

    भावार्थ - श्री गुरु नानक साहेब जी कह रहे हैं कि हे हक्का कबीर (सत् कबीर)! आप निर्विकार दयालु परमेश्वर हो। आप से मेरी एक अर्ज है कि मैं तो सत्यज्ञान वाली नजर रहित तथा आपके सत्यज्ञान के सामने तो निर्उत्तर अर्थात् जुबान रहित हो गया हूँ। हे कुल मालिक! मैं तो आपके दासों के चरणों की धूल हूँ, मुझे शरण में रखना।

    इसके पश्चात् जब श्री नानक जी को पूर्ण विश्वास हो गया कि पूर्ण परमात्मा तो गीता ज्ञान दाता प्रभु से अन्य ही है। वही पूजा के योग्य है। पूर्ण परमात्मा की भक्ति तथा ज्ञान के विषय में गीता ज्ञान दाता प्रभु भी अनभिज्ञ है। परमेश्वर स्वयं ही तत्वदर्शी संत रूप से प्रकट होकर तत्वज्ञान को जन-जन को सुनाता है। जिस ज्ञान को वेद भी नहीं जानते वह तत्वज्ञान केवल पूर्ण परमेश्वर (सतपुरुष) ही स्वयं आकर ज्ञान कराता है।

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रविवार, 3 मई 2020

रहस्य जानिए, त्रिगुण, ब्रह्म, अक्षर ब्रह्म, परम अक्षर ब्रह्म, जड़ प्रकृति, चेतन प्रकृति, आदि के वास्तविक रहस्य जानकारी जानिए इस पोस्ट में

शास्त्रो में दर्ज कुछ बातो का रहस्य जानते है
#जड़_प्रकृति :- निर्जीव वस्तु :- यह वास्तब में ब्रहाण्ड में इंस्टाल विशेष प्रोग्राम सॉफ्टवेर है जिससे ब्रह्म अपने 21 ब्रह्मांडो का संचालन करता है नियंत्रित रखता है,,
#चेतन_प्रकृति :-  सजीव जिंदा मानव रूपी शक्ति :-  चेंतन का अर्थ  किसी जिंदा प्राण वाले की तरफ संकेत है, जिसका प्रयोग गीता ज्ञान प्रदाता  प्रकृति दुर्गा जी के लिए किया है , और इनको अपनी पत्नी कहा है


सम्पूर्ण मृत्युलोक में  2 शक्ति का जिक्र
#ब्रह्म :-  गीता ज्ञान दाता खुद को ब्रह्म कहता है, और खुद को जन्म व मृत्यु में होना बताता है और आगे कहता है वो खुद व उसके ब्रह्म लोक तक सभी लोक व ब्रह्माण्ड नाशवान है,  इससे मुक्त होकर अमर लोक जाने के लिए मनुष्य के लिए एक संकेत भी देताहै, इसका मृत्युलोक 21 ब्रह्माण्ड का एरिया है, इसका मन्त्र #प्रणव है

#अक्षर_ब्रह्म :-  ब्रह्म के मृत्युलोक के साथ बार्डर पर 16 शंख ब्रह्माण्ड का एरिया है, यह इससे ज्यादा शक्तिशाली है,  उम्र में इससे के गुना ज्यादा है, इसके यहां मनुष्य की आयु भी करोड़ो वर्षो की व यहां से ज्यादा सुखमय है, यह जीवो को कष्ट नही देता, लेकिन इसने भी घूमने आयी सभी जीवात्माओं को सब कुछ भुला दिया , इसका मन्त्र  #तत  है  जो गीता जि में स्पष्ट है,

#परम_अक्षर_ब्रह्म  :-  यह वास्तविक अजर अमर पूर्ण परमेश्वर , सर्व लोको व ब्रह्मांडो के रचनहार, व सबको  धारण पोषण करने वाले मूल शक्ति है,  जैसे बृक्ष की जड़ होती है जो पूरे बृक्ष को धारण पोषण करती है,  इन्होंने ही  ब्रह्म हो मृत्युलोक बनाकर दिया और उसका एडमिन भी देकर स्वामी  भगवान बना दिया,
इन्होंने ही अक्षर ब्रह्म को 16 शंख ब्रह्मांडो को बनाकर दिया व एडमिन देकर उसका स्वामी भगवान बना दिया,   अक्षर ब्रह्म को विशेष गलती के दंड में इसके सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड नाशवान बनाकर दिये जिस कारण यह मृत्युलोक कहा गया
ब्रह्म को अमर ब्रह्माण्ड जिनका कभी नाश नही होता बना कर दिये थे, लेकिन इसने भी एक विशेष गलती की थी, जिस कारण दंड स्वरूप परमेश्वर ने इसके ब्रह्मांडो की कोडिंग कमांड चेंज करते हुए सभी को नाशवान बना दिया ,  और  अजर अमर सनातन लोक के एक कोने में चारो तरफ से बन्द कर सम्पूर्ण काला अंधकारमय दुनिया को लोक कर दिया,  यहां कुछ जीवात्मायें परमेश्वर कविर के मना करने पर भी जबर्दस्ती घूमे ब इनसे मिलने आ गयी,  परम अक्षर ब्रह्म परमेश्वर कविर का मन्त्र #सत है,

 इनदोनो से सभी को सब कुछ भुलाकर बंधक बना लिया, किसी को देव किसी को दानव किसी को मानव किसी को पशु पक्षी जीवाणु आदि बनाकर अपनी इस दुनिया को सजाया,
परमेश्वर ने सनातन अजर अमर लोक से शक्ति सन्देश जैसे ब्लूटूथ ऐसे छोड़ा जो ब्रह्म के मुख से वेद रूप में निकला जिसमे सम्पूर्ण सच्चाई विस्तार से लिखी थी, और यहां के ब्रह्माण्ड, पृथ्वी आदि की भी सम्पूर्ण जानकारी थी,  सम्पूर्ण यहां का विज्ञान था जिसके प्रयोग से यहां आयी जीवात्मा मनुष्य रूप से सुख से रह सके, लेकिन इसने उसमे से बहुत इंपोर्टेंट पेज निकाल दिये, और समुद्र में छिपा दिये,  इसकी पूर्ति हेतु अब परमेश्वर ने अपनी  एक शक्ति मानव रूप #संतरामपालजीमहाराज जी को भेज दिया है,

गायत्री मन्त्र :- भूर्भुवः स्व: तत्सवितुर वरेन्यम भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात  इस वेद मन्त्र में मनुष्य की तरफ से परमेशर से प्रार्थना की गयी है की
हम जीवात्मा यहां इस अंधकारमय लोक नाशवान लोक में फंसे हुए है , हे परमेश्वर आप हम सभी पर दया करके हम सभी को अजर अमर स्व प्रकाशित लोक सनातन लोक को हमेशा के लिए ले चलिये,    परमात्मा ने यह पुकार सुनी और सन्त रामपाल जी स्वरूप में आ गये है, मूल।ज्ञान प्रदान कर मनुष्य जीव को माया से ऊपर उठा कर  #ब्रह्म_गायत्री से सुसज्जित कर  #प्रणव_तत_सत नामक  सतनाम मुक्तामणि से शक्ति सम्पन्न कर  हमेशा के लिए अजर अमर सनातन प्रकाश लोक ले जाएंगे,

#तीन_गुण_माया :-  माया का अर्थ वास्तविकता से दूर कर झूठ व अज्ञान में आधारित कर देना,  तीन अलग अलग  फ्रीक्वेंसी है जैसे रेडियो, टीवी, मोबाइल की होती है ऐसे ही,
ब्रह्म ने हर ब्रह्माण्ड में  ब्रहमा विष्णु शिव को प्रकट कर वाहा तीन लोक स्वर्ग पाताल पृथ्वी बनाकर उनका अधिपति बनाया व इनके शरीरो को नेटवर्क टावर बनाया जिनके शरीरो से यह फ्रीक्वेंसी तीनो लोको में ब्याप्त हो रही है जिसका वर्णन गीता जि में बहुत अच्छे से किया गया है

1#रजगुण  :-  देवी भागवत पुराण अनुसार ब्राह्मा जी इस गुण माया के प्रधान नेटवर्क ताबर है,

2 #रजोगुण :- देवी भागवत पुराण अनुसार विष्णु जी इस गुण माया के वाहक है

3:-  तमोगुण :-  देवी भागवत पुराण अनुसार शिव जी इस गुण माया के वाहक है,

काल/ महाकाल  : कुछ लोग शिव को कुछ लोग यमराज को काल कहते है,  लेकिन शास्त्र अनुसार शिव जी काल/ महाकाल नही है,    यह नाम प्रकृति दुर्गा के पति ब्रह्म के लिए यूज होता है क्योकि यह हर रोज 1 लाख मनुष्यो का भोगलगाता है,  और इसकी व्यवस्था दुर्गा सहित सर्व देवो।से करवाता है, इसके ही बिधान को विधि का बिधान कहते है जिसको यहां कोई भी नही टाल सकता, शास्त्र कहते है एस्सेको केवल परम अक्षर ब्रह्म कविर टाल सकते है उसकी शरण आया मनुष्य आदि जीव रक्षा पाता है मुक्त होता है

#प्रणव_तत_सत :- यह सतनाम मुक्ता मणि राम रसायन है  यह तीनो शब्द कोड वर्ड है इनके असली मतलब अलग है जिनको सद्गुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी से प्राप्त कर सनातन लोक के अधिकारी बने
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यह मृत्युलोक का स्वामी अपनी माया जादू शक्ति से सभी जीवात्माओं को अज्ञान भूल में मोहित कर रखता है,
हर कल्प में एक जैसी स्टोरी चलता है , इस ब्रह्माण्ड में इसका सॉफ्टवेर इंस्टाल है जिसको शास्त्रो में #जड़_प्रकृति कहा है
  यह इसके प्रयोग से सबको नियंत्रित करता है, पुण्य आधार पर किसी जीवात्मा को ब्रह्मा, शिव , विष्णु, इंद्र आदि देवता की पदवी देता है, और खुद पर्दे के पीछे रहता है, अपनी पत्नी चेतन प्रकृति दुर्गा को आगे कर सर्व देवताओ को निर्देशित व नियंत्रित रखता है,  यह जब भी किसी को दर्शन देता है तो ये अपने असली रूप में न आकर किसी न किसी देवता के रूप में आकर काम कर जाता है और महिमा सम्बंधित देवता की बन जाती है,  इसने शास्त्रो में कहा है की मैं किसी भी जप तप ब्रत पूजा पाठ यज्ञ आदि धार्मिक क्रियाओ से नही मिलता ये सब व्यर्थ है,  क्योकि इसने कसम खाई है की किसी भी धार्मिक क्रियाओ के फल स्वरूप किसी को दर्शन नही देगा, 
यह नही चाहता की किसी भी जीवात्मा को इससे ऊपर वास्तविक अजर अमर परमेश्वर की जानकारी हो जाये
इसलिए जीवो को तरह तरह के अज्ञान,पाखंड, झूठ, आदि माया जाल में फंसा कर रखता है,
हर कल्प में किसी न किसी जीवात्मा को यह राक्षस बनाता है अन्य जीवात्माओं को ऋषि मनुष्य राजा, देवता आदि
 यह इनको आपस में लड़वाता रहता है ,  कहानिया पुराणों में आपने पड़ी होंगी यह भी जाना होगा हर कल्प में बार बार ऐसा ही होता है, यह बात प्रमसन है यह मरोत्युलोक का स्वामी बड़ा निर्दयी है बार बार जीवात्माओं की दुर्गति जान बूझकर करता है,  अजर अमर सनातन लोक को छोड़कर  भोली भाली जीवात्मायें इसके लोक में केवल घूमने आयी थी उन्होंने सोचा था की यहां भी सनातन लोक जैसा असीम आनंद आयेगा  लेकिन हो उल्टा गया अब किसी को कुछ याद नही,  सनातन लोक से सनातन परमेश्वर ने हमको सबकुछ याद कराने अपना एक रूप मानव रूप में भेज दिया है जिसकी पहचान है #संतरामपालजीमहाराज , इन्होंने अपना कार्य कर दिया है पूरे विश्व को सम्पूर्ण ज्ञान दे दिया है, यह 2020 वाला प्रोग्राम इन्होंने दुनिया को सनातन परमेश्वर की शरण में लांने को किया है,  इस मृत्युलोक का स्वामी इनके पोल खोल कार्यक्रम से घबरा गया,  इसने लोगों की बुद्धि को और ज्यादा हर लिया  षड्यंत्र करा कर बिना सबूत जेल में बैठा कर सोचने लगा की विराम लग जायेगा, लेकिन यह परमेश्वर की लीला को रोक नही पायेगा , अब कुछ समय शेष है वो समय निकट है जब  दुनिया को#संतरामपालजीमहाराज जी के वास्तविक विराट रूप के दर्शन होंगे और दुनिया अपनी गलती को रो रो कर माफी मांगेगी,    आईये साधना टीवी पर जान लीजिये वो सब कुछ जो एक मनुष्य के लिए जानना जरूरी है जो अमृत पवित्र शास्त्रो में दवा रह गया साधना टीवी पर 7:30pm
ईश्वर टीवी 8:30pm   श्रद्धा टीवी 2:00pm




शुक्रवार, 24 अप्रैल 2020

24 सिद्धियां व परम गति इस भगति साधना से प्राप्त करे

#सप्त_चक्र_जाग्रत
सर्व #देवशक्तियाँ प्रसन्न व इनसे ऋण मुक्ति
24 #सिद्धियां परम हंस की स्थिति
मृत्युलोक के पूर्ण मुक्ति
व अजर अमर #सनातन_सतलोक में स्थाई निवास प्राप्ति यानी #पूर्णपरमगति
#जन्ममरण से #पूर्णमुक्ति
आदि लाभ #सनातन #सद्गुरु #संतरामपालजीमहाराज की शरण में आकर #दीक्षा प्राप्त करे ब मर्यादा में रहकर भगति करे
मिलिए रोज #साधना_टीवी पर 7:30pm
#ईश्वर_टीवी पर 8:30pm रोज
#श्रद्धा_टीवी दोपहर रोज 2:00pm