गुरुवार, 29 जनवरी 2015

अवतार की परिभाषा


<<<<<<अवतार की परिभाषा
>>>>>>
‘अवतार’ का अर्थ है ऊँचे स्थान से नीचे स्थान पर
उतरना।
विशेषकर यह शुभ शब्द उन उत्तम आत्माओं के लिए
प्रयोग किया जाता है, जो धरती पर कुछ अद्धभुत
कार्य करते हैं। जिनको परमात्मा की ओर से
भेजा हुआ मानते हैं या स्वयं
परमात्मा ही का पथ्वी पर आगमन मानते हैं।
श्रीमद्भगवत गीता अध्याय 15 श्लोक 1से 4
तथा 16,17 में तीन पुरूषों (प्रभुओं) का ज्ञान है।
1)-> क्षर पुरूष जिसे ब्रह्म भी कहते हैं। जिसका " ॐ "
नाम साधना का है। जिसका प्रमाण गीता अध्याय
8श्लोक 13में है।
2)->अक्षर पुरूष जिसको परब्रह्म भी कहते हैं।
जिसकी साधना का मंत्र तत् जो सांकेतिक है।
प्रमाण गीता अध्याय 17श्लोक 23में है।
उत्तम पुरूष तूः अन्यः = श्रेष्ठ पुरूष
परमात्मा तो उपरोक्त दोनों पुरूषों (क्षर पुरूष
तथा अक्षर पुरूष) से अन्य है। वह परम अक्षर पुरूष है जिसे
गीता अध्याय 8 श्लोक 1के उत्तर में अध्याय 8 के
श्लोक 3 में कहा है कि वह परम अक्षर ब्रह्म है।
इसका जाप सत् है जो सांकेतिक है। इसी परमेश्वर
की प्राप्ति से साधक को परम शांति तथा सनातन
परमधाम प्राप्त होगा। प्रमाण गीता अध्याय
18श्लोक 62 में यह परमेश्वर (परम अक्षर ब्रह्म)
गीता ज्ञान दाता से भिन्न है।
अवतार दो प्रकार के होते हैं।----------------
जैसे ऊपर कहा गया है। अब आप
जी को पता चला कि मुख्य रूप से तीन पुरूष (प्रभु) है।
जिनका उल्लेख ऊपर कर दिया गया है। हमारे लिए
मुख्य रूप से दो प्रभुओं की भूमिका रहती है।
1) -> क्षर पुरूष (ब्रह्म):- जो गीता अध्याय 11श्लोक
32में अपने आप को काल
कहता है।
2)-> परम अक्षर पुरूष (परम अक्षर ब्रह्म):- जिसके विषय
में गीता अध्याय 8 श्लोक 3 तथा 8,9,10में
तथा गीता अध्याय 18श्लोक 62अध्याय 15श्लोक 1
से 4तथा 17में कहा है।
<<<<ब्रह्म (काल) के अवतारों की जानकारी >>>>>
गीता अध्याय 4का श्लोक 7==
यदा, यदा, हि, धर्मस्य, ग्लानिः, भवति, भारत,
अभ्युत्थानम्, अधर्मस्य, तदा, आत्मानम्, सजामि,
अहम्।।7।।
अनुवाद: (भारत) हे भारत! (यदा,यदा) जब-जब
(धर्मस्य) धर्मकी (ग्लानिः)
हानि और (अधर्मस्य) अधर्मकी (अभ्युत्थानम्)
वद्धि (भवति) होती है (तदा) तब-तब (हि) ही (अहम्)
मैं (आत्मानम्) अपना अंश अवतार (सजामि) रचता हूँ
अर्थात् उत्पन्न
करता हूँ। (7)
जैसे श्री मद्भगवत् गीता अध्याय 4श्लोक 7में
गीता ज्ञान दाता ने कहा है कि जब-जब धर्म में
घृणा उत्पन्न होती है। धर्म की हानि होती है
तथा अधर्म की वद्धि होती है तो मैं (काल = ब्रह्म =
क्षर पुरूष) अपने अंश अवतार सजन करता हूँ अर्थात्
उत्पन्न करता हूँ।
जैसे श्री रामचन्द्र जी तथा श्री कष्ण चन्द्र
जी को काल ब्रह्म ने ही पथ्वी पर उत्पन्न
किया था। जो स्वयं श्री विष्णु जी ही माने जाते
हैं। इनके अतिरिक्त 8 अवतार और कहे गये हैं।
जो श्री विष्णु जी स्वयं नहीं आते अपितु अपने लोक
से अपने कृपा पात्र पवित्र आत्मा को भेजते हैं। वे
भी अवतार कहलाते हैं। कहीं -कहीं पर
25अवतारों का भी उल्लेख पुराणों में आता है।
कृपया ध्यान दीजिये ==>>
काल ब्रह्म (क्षर पुरूष) के भेजे हुए अवतार पथ्वी पर बढ़े
अधर्म का नाश कत्लेआम अर्थात् संहार करके करते हैं।
उदाहरण के रूप में:- श्री रामचंद्र
जी तथा श्री कष्णचंद्र जी, श्री परशुराम
जी तथा श्री निःकलंक (कल्कि)
जी (जो अभी आना शेष है, जो कलयुग के अन्त में
आएगा) ,, ये सर्व अवतार घोर संहार करके ही अधर्म
का नाश करते हैं। अधर्मियों को मारकर
शांति स्थापित करने की चेष्टा करते हैं। परन्तु
शांन्ति की अपेक्षा अशांति ही बढ़ती है। जैसे
श्री रामचंद्र जी ने रावण को मारने के लिए युद्ध
किया।
युद्ध में करोड़ों पुरूष मारे गए। जिन में
धर्मी तथा अधर्मी दोनों ही मारे गए। फिर
उनकी पत्नियाँ तथा छोटे-बड़े बच्चे शेष रहे
उनका जीवन नरक बन गया। विधवाओं को अन्य
व्यक्तियों ने अपनी हवस का शिकार बनाया।
निर्वाह की समस्या उत्पन्न हुई आदि-2
अनेकों अशांति के कारण खड़े हो गए।
यही विधि श्री कष्ण जी ने अपनाई थी,
यही विधि श्री परशुराम जी ने अपनाई थी।
इसी विधि से दशवां
अवतार काल ब्रह्म (क्षर पुरूष) द्वारा उत्पन्न
किया जाएगा। उसका नाम ‘‘निःकलंक’’(कल्कि)
होगा। वह कलयुग के अन्तिम समय में उत्पन्न होगा।
संभल नगर में श्री विष्णु दत्त शर्मा के घर में जन्म लेगा।
उस समय सर्व मानव अत्याचारी -
अन्यायी हो जाऐंगे। उन सर्व को मारेगा। उस समय
जिन-2
मनुष्यों में परमात्मा का डर होगा। कुछ
सदाचारी होंगे उनको छोड़ जाएगा अन्य सर्व
को मार डालेगा। यह विधि है ब्रह्म (काल-क्षर पुरूष)
के अवतारों की अधर्म का नाश करने
तथा शांति स्थापना करने की।
<<<<‘परम अक्षर ब्रह्म अर्थात् सत्य पुरूष के
अवतारों की जानकारी>>>>
*1)--परम अक्षर ब्रह्म स्वयं पथ्वी पर प्रकट होता है।
वह सशरीर आता है। सशरीर लौट जाता है:- यह
लीला वह परमेश्वर दो प्रकार से करता है।
*क => प्रत्येक युग में शिशु रूप में किसी सरोवर में कमल
के फूल पर वन में प्रकट होता है। वहां से निःसन्तान
दम्पति उसे उठा ले जाते हैं। फिर लीला करता हुआ
बड़ा होता है तथा आध्यात्मिक ज्ञान प्रचार करके
अधर्म का नाश करता है।
====>>>>> सरोवर के जल में कमल के फूल पर अवतरित
होने के कारण परमेश्वर नारायण कहलाता है
(नार=जल, आयण=आने वाला अर्थात् जल पर निवास
करने वाला नारायण कहलाता है।)
*ख => जब चाहे साधु सन्त जिन्दा के रूप में अपने
सत्यलोक से पथ्वी पर आ जाते हैं
तथा अच्छी आत्माओं को ज्ञान देते हैं। फिर वे
पुण्यात्माऐं भी ज्ञान प्रचार करके अधर्म का नाश
करते हैं। वे भी परमेश्वर के भेजे हुए अवतार होते हैं।
कलयुग में ज्येष्ठ शुदि पूर्णमासी संवत् 1455(सन् 1398)
को कबीर परमेश्वर सत्यलोक से चलकर आए
तथा काशी शहर के लहर तारा नामक सरोवर में कमल
के फूल पर शिशु रूप में विराजमान हुए। वहां से नीरू
तथा नीमा जो जुलाहा (धाणक) दम्पति थे, उन्हें
उठा लाए। शिशु रूपधारी परमेश्वर कर्विदेव (कबीर
परमेश्वर) ने 25दिन तक कुछ भी आहार नहीं किया।
विशेष :::>>>
नीरू तथा नीमा उसी जन्म में ब्राह्मण थे। श्री शिव
जी के पुजारी थे। मुसलमानों द्वारा बलपूर्वक
मुसलमान बनाए जाने के कारण जुलाहे का कार्य करके
निर्वाह करते थे। बच्चे की नाजुक हालत देखकर
नीमा ने अपने ईष्ट शिव जी को याद किया। शिव
जी साधु वेश में वहां आए तथा बालक रूप में
विराजमान कबीर परमेश्वर को देखा। बालक रूप में
कबीर साहेब जी ने कहा हे शिव जी इन्हें कहो एक
कुँवारी गाय लाऐं वह आप के आर्शीवाद से दूध देगी।
ऐसा ही किया गया। कबीर परमेश्वर के आदेशानुसार
भगवान शिव जी ने कुंवारी गाय की कमर पर
थपकी लगाई। उसी समय बछिया के थनों से दूध
की धार बहने लगी। एक
कोरा मिट्टी का छोटा घड़ा नीचे रखा। पात्र भर
जाने पर दूध बन्द हो गया। फिर प्रतिदिन
पात्रा थनों के नीचे करते ही बछिया के थनों से दूध
निकलता। उसको परमेश्वर कबीर जी पीया करते थे।
जुलाहे के घर परवरिश होने के कारण बड़े होकर परमेश्वर
कबीर जी भी जुलाहे
का कार्य करने लगे तथा अपनी अच्छी आत्माओं
को मिले, उनको तत्वज्ञान समझाया तथा स्वयं
भी तत्वज्ञान प्रचार करके अधर्म का नाश
किया तथा जिन-2 को परमेश्वर जिन्दा महात्मा के
रूप में मिले, उनको सच्चखण्ड (सत्यलोक) में ले गए
तथा फिर वापिस छोड़ा, उनको आध्यात्मिक ज्ञान
दिया तथा अपने से परिचित कराया।
वे(कबीर दस जी) उस परमेश्वर (सत्य पुरूष) के अवतार थे।
उन्होंने भी परमेश्वर से प्राप्त ज्ञान के आधार से
अधर्म का नाश किया। वे अवतार कौन-2 हुऐ हैं ::--
(1) आदरणीय धर्मदास जी
(2) आदरणीय मलुकदास जी
(3) आदरणीय नानक देव साहेब जी (सिख धर्म के
प्रवर्तक)
(4) आदरणीय दादू साहेब जी
(5) आदरणीय गरीबदास साहेब जी गांव छुड़ानी जि.
झज्जर (हरियाणा) वाले तथा
(6) आदरणीय घीसा दास साहेब जी गांव
खेखड़ा जि. मेरठ (उत्तर प्रदेश) वाले
ये उपरोक्त सर्व अवतार परम अक्षर ब्रह्म (सत्य पुरूष) के
थे। अपना कार्य करके चले गए। अधर्म का नाश किया,
जिस कारण से जनता में बहुत समय तक बुराई
नही समाई ! वर्तमान में सन्तों की कमी नहीं परन्तु
शांति का नाम नहीं, कारण यह है कि इन
संतों की साधना शास्त्रों के विरूद्ध है। जिस कारण
से समाज में अधर्म बढ़ता जा रहा है। इन पंथों और
सन्तों को सैकड़ों वर्ष हो गए ज्ञान प्रचार करते हुए
परन्तु अधर्म बढ़ता ही जा रहा है।
!! सत साहेब !!
कबीर दास जी के गुरु रामानंद जी भी उल्टा कबीर
को ही अपना गुरु मानते थे ... ज्यादा जानकारी के
लिए लिंक पर क्लिक करके लेख को पढ़े ----
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** सत साहेब **

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