शुक्रवार, 30 जनवरी 2015

सद्गुरु की पहचान

परमात्मा कबीर साहेब जी हमें स्वयं सतगुरु रुप में बताते हैं :-
कबीर,
गुरु-गुरु में भेद है, गुरु-गुरु में भाव |
सोई गुरु नित सराहिऐ,जो शब्द बतावै दाव ||
जैसा कि पहले भी बताया जा चुका है
कि सामान्यत: गुरु सात प्रकार के होते हैं जिनमें से वह
गुरु सर्वश्रेष्ठ होता है जो हमें शब्द लखाकर
शास्त्रानुकुल सत-साधना (गीता अ.१७, श्लोक-२३)
कराके इस काल-जाल(जन्म-मरण/चौरासी)
रुपी चक्रव्यूह से निकालकर उस शास्वत स्थान
(सतलोक) की प्राप्ति कराता है जिसके बारे में
गीता अ.१८, शलोक-६२ व ६६ में बताया गया है |
तभी तो इस साक्षात परमात्मा स्वरुप सतगुरु
(गीता अ.४, श्लोक-३४) के बारे में कहा गया है कि :-
कबीर,
गुरु-गुरु सब ही बड़े, अपनी-अपनी ठौर |
शब्द विवेकी-पारखी, ते माथे की मौर ||
पुन्यात्माओं ऐसे महान तत्वदर्शीसंत की पहचान
भी श्रीमदभगवत गीता के अ.१५, श्लोक १ से ४ तक में
बताई गयी है जिसकी कसौटी पर खरा उतरने
वाला इस धरा(२१ब्रम्हांड) के अंदर केवल और केवल एक
ही महान संत/सतगुरु है, वो है "परमपूज्य जगतगुरु
तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज"
इस संत को पहचानो दुनिया के लोगों कही बाद में
सिर धुन-धुन के पछताना न पड़े इसीलिए कहा गया है :-
कबीर,
करता था तो क्यों रहा, अब करि क्यों पछिताय |
बोंया पेंड़ बबूल का, तो अमूवा कहॉ से पाय ||
नोट :- यहॉ गीता को आधार इसलिए रखा गया है
कि क्यों कि गीता जी को पवित्र
चारों वेदों का निष्कर्ष माना जाता है |
||∆ सत साहेब ∆||

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