गुरुवार, 2 जनवरी 2025

अजर अमर सनातन लोक vs स्वर्ग लोक इंपोर्टेंट जानकारी

अजर अमर स्व प्रकाशित सत्य सनातन लोक में ही पहले सब रहते थे। वहां ब्रह्म ने तप करके परमेश्वर से मृत्युलोक प्राप्त किया और बाद में हम असंख्य आत्माएं इस ब्रह्म के बहकावे में आकर सतलोक छोड़कर इस मृत्युलोक में आए थे। जिस गलती का दंड सर्व आत्माएं यहां कष्ट दुख इत्यादि के रूप में भोग रही हैं। ब्रह्म ने अपनी माया से सर्व आत्माओं का याददाश्त रूपी सच्चा जान हर लिया और झूठा अज्ञान भर दिया । जिस कारण आत्माओं को अब अपना इतिहास जान याद नहीं और घर वापस जाने की भी कोई चिंता न रही। यहां आत्माओं के कष्ट से द्रवित होकर परमेश्वर इस मृत्युलोक के धरती पृथ्वी कर हर युग में आकर साधारण मनुष्य की तरह लीला करके सर्व सत्य बताता है। और विशेष शक्ति युक्त मंत्र देकर भगति को शक्ति से युक्त करके वापस अजर अमर निज धाम सतलोक  ले जाता है। जिसे परम गति ,परम मोक्ष इत्यादि कहां गया। जहां जाने के बाद जीव जन्म मरण से मुक्त हो जाता है। और उसी सत्यलोक की दुनिया में अपने परिजन आत्माओं के साथ परम आनंद के साथ रहता है।  स्वर्ग लोक एक छोटा सा रेस्टोरेंट टाइप एक होटल जैसा स्थान है। जो पुण्य कर्मी आत्माओं को रहने के लिए दिया जाता है। जब पुण्य को शक्ति खत्म हो जाती है तो वापस धरती पर भेज दिया जाता है। आईए जानते है शास्त्रों से  दोनों का अंतर..


🔹 स्वर्ग लोक और सतलोक में अंतर


श्रीमद्देवी भागवत पुराण के तीसरे स्कन्ध के पृष्ठ 123 के अनुसार, ब्रह्मा, विष्णु और शिव जी नाशवान हैं यानी देवताओं का स्वर्गलोक भी नाशवान है।


जबकि संत गरीबदास जी महाराज ने मोक्ष स्थान सतलोक के विषय में कहा है:


ना कोई भिक्षुक दान दे, ना कोई हार व्यवहार। 

ना कोई जन्मे मरे, ऐसा देश हमार।।


🔹 सतलोक Vs स्वर्ग


हम सभी जानते हैं यह लोक नश्वर है यानी जिसने जन्म लिया है उसकी मृत्यु अवश्य होगी और यह चक्र स्वर्गलोक से लेकर ब्रह्मलोक तक चलता है।


जबकि सतलोक, वह मोक्ष स्थान है जहाँ जन्म मृत्यु का दुःख नहीं है। बल्कि वहाँ सुख ही सुख है। इसलिए संतों ने मोक्ष स्थान सतलोक को सुख सागर कहा है। संत गरीबदास जी ने इस बारे में कहा है:


जहां संखों लहर मेहर की उपजैं, कहर जहां नहीं कोई।

दासगरीब अचल अविनाशी, सुख का सागर सोई।।


🔹सतलोक Vs स्वर्ग


मोक्ष वह स्थान है जहाँ जन्म, मृत्यु और वृद्धावस्था का दुःख नहीं होता।


गीता अध्याय 8 श्लोक 16 के अनुसार, स्वर्गलोक और ब्रह्मलोक में गए प्राणियों का भी पुनर्जन्म होता है।


वहीं, गीता अध्याय 18 श्लोक 62 के अनुसार, मोक्ष का स्थान सतलोक है जहाँ कोई कष्ट नहीं है बल्कि वहाँ परम शांति है।


🔹सतलोक Vs स्वर्ग


स्वर्गलोक और ब्रह्मलोक सहित काल ब्रह्म के 21 ब्रह्मांडों में शांति व सुख का नामोनिशान नहीं है। त्रिगुणी माया से उत्पन्न काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, राग-द्वेष, हर्ष-शोक, लाभ-हानि, मान-बड़ाई रूपी अवगुण हर जीव को इन लोकों में परेशान किए हुए हैं। जबकि सतलोक में केवल एक रस परम शांति व सुख है। जब तक हम सतलोक में नहीं जाएंगे तब तक हम परमशांति, सुख व मोक्ष को प्राप्त नहीं कर सकते। जिससे स्पष्ट है कि सतलोक ही मोक्ष स्थान है।


🔹मोक्ष स्थान सतलोक


मोक्ष स्थान वह स्थान है जहाँ अजर-अमर स्थिति होती है और जहाँ जाने के बाद प्राणी का जन्म-मृत्यु का चक्र समाप्त हो जाता है।


धर्म शास्त्रों के अनुसार, स्वर्गलोक और ब्रह्मलोक नाशवान हैं जबकि सतलोक (सनातन परम धाम) अविनाशी लोक है। क्योंकि सतलोक में जाने के बाद साधक को लौटकर संसार में वापस नहीं आना पड़ता। इसलिए मोक्ष स्थान सतलोक है।


🔹 सतलोक Vs स्वर्ग


सतलोक वह मोक्ष स्थान है जहां जन्म-मृत्यु, वृद्धावस्था या अन्य दुख व पीड़ा नहीं होती, जो इसे स्वर्गलोक और ब्रह्मलोक से श्रेष्ठ बनाता है।


स्वर्गलोक और ब्रह्मलोक के देवता और 21 ब्रह्मांड का स्वामी काल ब्रह्म भी नाशवान हैं।


🔹सतलोक में आत्मा को पूर्ण मोक्ष प्राप्त होता है, जो स्वर्गलोक और ब्रह्मलोक में असंभव है। स्वर्गलोक और ब्रह्मलोक की आत्माएं जन्म और मृत्यु के चक्र में बंधी रहती हैं, जबकि सतलोक में आत्मा को मोक्ष प्राप्त होता है।


🔹सतलोक Vs स्वर्ग

सतलोक जाने के बाद आत्मा का पूर्ण मोक्ष हो जाता है जिससे आत्मा को 84 लाख योनियों का कष्ट नहीं उठाना पड़ता। जबकि स्वर्गलोक और ब्रह्मलोक में जाने के बाद आत्मा को कर्मों के आधार पर स्वर्ग, नरक, 84 लाख योनियों का कष्ट भोगने के बाद पुनः पृथ्वी पर जन्म-मृत्यु के चक्र में आना पड़ता है।


🔹सतलोक Vs स्वर्ग


मोक्ष वह स्थान है जहाँ जन्म, मृत्यु और वृद्धावस्था का दुःख नहीं होता।


गीता अध्याय 8 श्लोक 16 के अनुसार, स्वर्गलोक और ब्रह्मलोक में गए प्राणियों का भी पुनर्जन्म होता है।


वहीं, गीता अध्याय 18 श्लोक 62 के अनुसार, मोक्ष का स्थान सतलोक है जहाँ कोई कष्ट नहीं है बल्कि वहाँ परम शांति है।


🔹सतलोक Vs स्वर्ग


गीता ज्ञान दाता ने गीता अध्याय 8 श्लोक 16 में कहा है कि ब्रह्मलोक तक सभी लोक और उनमें गए हुए प्राणी पुनरावृत्ति यानी जन्म-मृत्यु के चक्र में हैं। अर्थात ब्रह्मलोक और स्वर्गलोक तक गए प्राणियों का मोक्ष नहीं होता।


जबकि गीता अध्याय 18 श्लोक 62 और अध्याय 15 श्लोक 4 में सनातन परम धाम यानी सतलोक का वर्णन किया गया है, जहाँ जाने के बाद लौटकर संसार में नहीं आना पड़ता, यानी पूर्ण मोक्ष प्राप्त हो जाता है। इसलिए मोक्ष स्थान सतलोक है।







सोमवार, 21 अक्टूबर 2024

हम श्राद्ध क्यों मनाते हैं? आइए जानते है सीक्रेट...

मार्कण्डेय पुराण में ‘‘रौच्य ऋषि के जन्म’’ की कथा आती है। एक रुची ऋषि था। वह ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए वेदों अनुसार साधना करता था। विवाह नहीं कराया था। रुची ऋषि के पिता, दादा, परदादा तथा तीसरे दादा सब पित्तर (भूत) योनि में भूखे-प्यासे भटक रहे थे। जिस समय रूची ऋषि की आयु चालीस वर्ष थी, तब उन चारों ने रुची ऋषि को दर्शन दिए तथा कहा कि बेटा! आप ने विवाह क्यों नहीं किया? विवाह करके हमारे श्राद्ध करना। रुची ऋषि ने कहा कि हे पितामहो! वेद में इस श्राद्ध-पिण्डोदक आदि कर्मों को अविद्या कहा है यानि मूर्खों का कार्य कहा है। फिर आप मुझे इस कर्म को करने को क्यों कह रहे हो? को क्यों कह रहे हो?

पितरों ने भी माना और कहा कि यह बात सत्य है कि श्राद्ध आदि कर्म को वेदों में अविद्या अर्थात् मूर्खों का कार्य ही कहा है। फिर उन पित्तरों ने वेद विरूद्ध ज्ञान बताकर रूची ऋषि को भ्रमित कर दिया क्योंकि मोह भी अज्ञान की जड़ है। रूची ने विवाह करवाया। फिर श्राद्ध-पिण्डोदक क्रियाऐं करके अपना जन्म भी नष्ट किया।

मार्कण्डेय पुराण के प्रकरण से सिद्ध हुआ कि वेदों में तथा वेदों के ही संक्षिप्त रुप गीता में श्राद्ध-पिण्डोदक आदि भूत पूजा के कर्मकाण्ड को निषेध बताया है, नहीं करना चाहिए। उन मूर्ख ऋषियों ने अपने पुत्र को भी श्राद्ध करने के लिए विवश किया। उसने विवाह कराया, उससे रौच्य ऋषि का जन्म हुआ, बेटा भी पाप का भागी बना लिया।

रूची ऋषि भी ब्राह्मण थे। उन्होंने वेदों को कुछ ठीक से समझा था। अपनी आत्मा के कल्याणार्थ शास्त्र विरूद्ध सर्व मनमाना आचरण त्यागकर शास्त्रोक्त केवल एक ब्रह्म की भक्ति कर रहा था। जो उसके पिता तथा उनके पहले तीन दादा जी शास्त्रविधि त्यागकर यही कर्मकाण्ड करते-कराते थे जिसका परिणाम गीता अध्याय 9 श्लोक 25 वाला होना ही था कि पितर पूजने वाले पितरों को प्राप्त होंगे, वही हुआ। अब वर्तमान की शिक्षित जनता को अंध श्रद्धा भक्ति त्यागकर विवेक से काम लेकर गीता अध्याय 16 श्लोक 24 में कहे आदेश का पालन करना चाहिए। जिसमें कहा है कि इससे तेरे लिए अर्जुन शास्त्र ही प्रमाण हैं यानि जो शास्त्रों में करने को कहा है, वही करें। जो शास्त्रों में प्रमाणित नहीं है, उसे त्याग दें। गीता में परमात्मा का बताया विद्यान है।

🚩श्राद्ध की तैयारी कैसे करें❓

🚩 कर्म योग क्या होता है❓

ऐसे ही आत्मज्ञान और आध्यात्मिक ज्ञान से जुड़े हुए तथ्यों को जानने के लिए अवश्य पढ़िए पवित्र पुस्तक "ज्ञान गंगा" जो हमारे सभी पवित्र धर्मों के पवित्र सद् ग्रंथों के आधार पर तैयार की गयी है यदि आप यह पुस्तक निशुल्क प्राप्त करना चाहते हैं तो हमें अपना नाम पूरा पता व मोबाइल नंबर निम्न व्हाट्सएप नंबर पर भेज दें।

8376871040

धन्यवाद…😊

पितृ पक्ष , श्राद्ध कर्म के बारे में गीता ज्ञान क्या कहता है ... आइए जानते हैं...

यह कहना शायद ही सही हो…।

आप स्वयं ही विचार करें ! मानव का शरीर 5 तत्वों का है और पितरों का भिन्न संख्या के तत्वों का है। क्या केवल 1 दिन भोजन देने पर पितर तृप्त हो सकते हैं? कभी नहीं। जब वे जीवित थे तो कम से कम दो बार अवश्य भोजन करते थे तो क्या वर्ष में एक दिन भोजन करने से वे तृप्त हो सकते हैं? कदापि नहीं। यह एक नकली कर्मकांड है जिसे नकली धर्मगुरुओं और ब्राह्मणों ने प्रारम्भ करवाया था। व्यक्ति जीवित रहते जैसे कर्म करता है उस आधार पर वह स्वर्ग नरक चौरासी लाख योनियों अथवा भूत, प्रेत या पितर बनने के पश्चात अपना कर्म फल भोगता हैं। हमारे श्राद्ध निकालने से हमारे कर्म खराब होते हैं क्योंकि ये वेद विरुद्ध साधनाएँ हैं जिन्हें वेदों एवं गीता में स्पष्ट रूप से वर्जित किया है और शास्त्र विरुद्ध कर्म करने वाले पाप के भागी होते हैं।

श्राद्ध के बारे में गीता क्या कहती है?

पवित्र गीता जी के अध्याय 9 श्लोक 25 में लिखा है कि भूत पूजने वाले भूत बनेंगे, पितरों को पूजने वाले पितरों को प्राप्त होंगे। इससे सिद्ध है कि भूत पूजा, पितर पूजा, श्राद्ध, पिंडदान यह सभी शास्त्रविरुद्ध मनमाना आचरण है। जिससे गीता अध्याय 16 श्लोक 23 के अनुसार, न सुख होगा, न कार्य सिद्धि होगी, न गति मिलेगी और न ही पूर्वजों को गति होगी।

अवश्य विचार करें :- जब हिन्दू समाज में किसी की मौत होती है तो पंडितजन बताते हैं कि मृतक की अस्थियों को गंगा में डालने से मोक्ष होगा, फिर कहते हैं कि छमाही, बरसोदि से मोक्ष होगा। इतना करने के बाद जब श्राद्ध आते हैं तो पंडित बताते हैं कि तुम्हारा मरा हुआ बाप तो कौआ बन गया अब उसे श्राद्ध में खाना खिलाओ। ऐसा करने से वह तृप्त हो जाएगा। यदि हमारे माता पिता को कौआ ही बनना था तो हमसे मृत्योपरांत विभिन्न कर्मकांड क्यों करवाए गए? आज काफी परिवार श्रद्धा निकालने के बाद भी पितृ दोष से परेशान हैं तो श्राद्ध निकालना के बाद भी पितृ दोष होने का कारण क्या है? क्या है शास्त्र अनुकूल साधना और कैसे हम अपने पूर्वजों का भी उद्धार करवा सकते हैं?

इन सब के उत्तर विस्तारपूर्वक जानने के लिए मैं आपसे अनुरोध करूंगी कि आप भी गीता जी के अनुसार अध्याय 17 श्लोक 23 में बताए गए मंत्रो का जाप करें जो केवल तत्वदर्शी संत दे सकते हैं जिनकी शरण में जाने के उपरांत हमारे सर्व पाप नाश हो जाएंगे और हमें भूत प्रेतों व पितृ दोष आदि से मुक्ति मिलती है। ये सब जाने एक ही पुस्तक ज्ञान गंगा में। निःशुल्क मंगवाने के लिए + 918630385761 पर व्हाट्सएप करें।

धन्यवाद🙏🏻

नवरात्रि या अन्य कोई भी पूजा पाठ करने से पहले यह शास्त्र ज्ञान जानना जरूरी है अन्यथा उसके लाभ नही मिलते हैं, देखिए रहस्य...

 नवरात्रि शुरू होने से पहले हम जरूरी है कि आप अपने अंदर की बुराइयों कानवरात्रि शुरू होने से पहले हम जरूरी है कि आप अपने अंदर की बुराइयों का त्याग करें और साथ ही ये जान ले की हमारे धर्म शास्त्रों में दुर्गा जी के बारे में क्या तथ्य और जानकारी हैं और माता दुर्गा जी किस साधना करने की और संकेत कर रही हैं? त्याग करें और साथ ही ये जान ले की हमारे धर्म शास्त्रों में दुर्गा जी के बारे में क्या तथ्य और जानकारी हैं और माता दुर्गा जी किस साधना करने की और संकेत कर रही हैं?

देखिए गीता जी अध्याय 6 का श्लोक 16

इससे सिद्ध है कि व्रत रखना (बहुत कम खाना) हमारे शास्त्रों में मना किया गया है अर्थात् यह सब व्यर्थ की साधना है ।

अब देखें गीता जी अध्याय 16 श्लोक 23

इस श्लोक से सिद्ध है कि अगर हम गीता जी के विपरीत साधना करेंगे तो हम मोक्ष ( मानव जीवन का मूल उद्देश्य) की प्राप्ति नहीं कर सकते।

श्रीमद् देवी भागवत पुराण के स्कंद 7, पृष्ठ 562 में देवी द्वारा हिमालय राज को ज्ञान उपदेश में दुर्गा जी स्वयं किसी और भगवान की पूजा करने की बात करती हैं। जहां देवी दुर्गा कहती हैं कि मेरी पूजा को भी त्याग दो और सब बातों को छोड़ दो, केवल ब्रह्म की साधना करो।

इससे सिद्ध है कि हमें सिर्फ पूर्ण परमात्मा की भक्ति साधना करनी चाहिए जो सिर्फ तत्वदर्शी संत ही बता सकते है जिसके विषय में गीता जी के अध्याय 4 श्लोक 34 में कहा गया है।

वर्तमान समय में वह तत्वदर्शी संत इस धरती पर मौजूद है जो हमारे शास्त्रों के अनुसार भक्ति साधना बता रहे हैं आपसे अनुरोध करूंगी की आप सही भक्ति साधना जानने के लिए अवश्य पढ़ें पुस्तक ज्ञान गंगा निशुल्क मंगवाने के लिए +918630385761 पर व्हाट्सएप करें। पूर्ण परमात्मा कौन है? कैसे उनका पाया जा सकता है? देवी देवता को प्रसन्न करने की कौन से मंत्र हैं? देवी दुर्गा जी से भी ऊपर कौन सी शक्ति है इसके विषय में है श्रीमान देवी भागवत में कह रही है? कैसे हमारे सर्व दुख दूर हो सकते हैं और हम कैसे सुखमय जीवन जी सकते हैं? जानने के लिए अवश्य पढ़िए पुस्तक ज्ञान गंगा।

पूरा पढ़ने के लिए धन्यवाद 🙏🏻

सनातन धर्म क्या है... आइए जानते हैं

 सनातन का मतलब है शाश्वत या 'सदा बना रहने वाला'।

सर्वप्रथम एक आदि सनातन पंथ (धर्म) था। मानव समाज शास्त्रोक्त साधना करता था।

वर्तमान में सनातन धर्म का नाम वैदिक धर्म व हिंदू धर्म भी प्रसिद्ध है।। परंतु अब जो पहले सनातन धर्म में साधना हुआ करती थी अब धीरे-धीरे लोग उसको भूलकर शास्त्र विरुद्ध भक्ति साधना कर रहे हैं।

इसके विषय में संत गरीबदास जी ने सूक्ष्मवेद में कहा है:-

आदि सनातन पंथ हमारा। जानत नहीं इसे संसारा ।। पदर्शन सब खट-पट होई हमरा पंथ ना पावे कोई।। इन पथों से वह पंथ अलहदा पंथों बीच सब ज्ञान है यहदा ।।

हमारा आदि सनातन पंथ है जिसको संसार के व्यक्ति नहीं जानते वह आदि सनातन पंथ अर्थात् सब पंथों से भिन्न है। गीता अध्याय 17 श्लोक 23 में कहा है कि (पुरा) सृष्टि की आदि में जिस (ब्रह्मणः) सच्चिदानंद घन ब्रह्म की साधना तीन नामों ॐ तत् सत् वाली की जाती थी जो तीन विधि से स्मरण किया जाता है सब ब्राह्मण यानि साधक उसी वेद (जिसमें यह तीन नाम का मंत्र लिखा है) के आधार से यज्ञ साधना करते थे।

आज फिर भारत में सनातन धर्म का पुनरुत्थान हो रहा है। जिस भक्ति साधना को करने से फिर लोगों को वैसे ही सुख का अनुभव हो रहा हैं जो पहले सतयुग के समय हुआ करता था। आप भी अपना मनुष्य जन्म न गवाएं और फिर सनातन धर्म वाली भक्ति साधना करें। जानने के लिए कृप्या पढ़ें पुस्तक हिंदू साहेबान! नहीं समझे गीता वेद पुराण। इस पुस्तक में सनातन धर्म का इतिहास, सही भक्ति साधना, तीर्थ स्थल केदारनाथ, वैष्णो देवी, नैना देवी आदि का निर्माण के बारे में विस्तार से बताया गया है। इस पुस्तक की pdf आप इस नम्बर पर message करके मंगवा सकते हैं +918630385761 । इस पुस्तक को पढ़ना न भूलें क्योंकि इसके माध्यम से आप वास्तविक सच्चाई जान सकते हैं जिससे हम हजारों वर्षों से अवगत नहीं थे।

धन्यवाद🙏🏻 

अल्लाह के आदेश के विरुद्ध मुसलमानों को गुमराह किया शैतान में देखिए कैसे ....पड़िए phd ज्ञान यहां...

 بِسْمِ ٱللَّٰهِ ٱلرَّحْمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ

बकरीद  अल्लाह के आदेश के विरुद्ध मनमाना आचरण ...पड़िए पूरा लेख.....

चलिए इस answer में मैं आपको कुछ प्रमाण पवित्र मुसलमान धर्म के सद्ग्रंथो से ही देती हूं अगर आप वास्तव में सच्चे मुसलमान हैं तो आपको अपने पवित्र इस्लामिक धर्म के सद्ग्रंथो को तो मानना पड़ेगा...

इस्लामिक मान्यता के अनुसार हज़रत इब्राहिम अपने पुत्र हज़रत इस्माइल को इस दिन खुदा के हुक्म पर खुदा की राह में कुर्बान करने जा रहे थे (बलि देने जा रहे थे) तो अल्लाह ने उनके पुत्र को जीवनदान दे दिया जिसकी याद में यह पर्व मनाया जाता है और फिर शुरू हुई परम्परा बकरीद मनाने की।

🤔 पर वास्तव में तो ये सोचने वाली बात है कि अल्लाह ने हज़रत इस्माइल जी को तो जिंदगी दी थी और मुसलमान धर्म के श्रद्धालु बकरा ईद के दिन बकरे को मार कर खाते हैं। अल्लाह ने तो जिंदगी दी और मुस्लिम उस दिन की याद में बकरे की जिंदगी ले लेते है। क्या अल्लाह ऐसे लोगो को बख्शेंगे?

अब कुछ प्रमाणों को पढ़िए:-

• हजरत मुहम्मद जी का जीवन चरित्र” पुस्तक के पृष्ठ 307 से 315 में लिखा है कि हजरत मुहम्मद जी ने कभी खून खराबा करने का आदेश नहीं दिया।

• पवित्र तौरात पुस्तक के अंदर ‘पैदाइश’ में पृष्ठ नंबर 2 और 3 पर लिखा है कि अल्लाह ताला ने मनुष्यों को अपने स्वरूप के अनुसार उत्पन्न किया। जो बीज वाले फल हैं, उन्हें मनुष्यों को खाने का आदेश दिया और जीव जंतुओं को घास फूस खाने का आदेश दिया। इस प्रकार परमेश्वर ने छः दिन में सृष्टि रची औऱ सातवें दिन तख्त पर जा विराजा।

और तो और संत गरीबदास जी ने इसके विषय में बताया है की:-

नबी मोहम्मद नमस्कार है, राम रसूल कहाया ।

एक लाख अस्सी को सौगंध, जिन नहीं करद चलाया ||

अरस कुरस पर अल्लह तख्त है, खालिक बिन नहीं खाली |

वे पैगम्बर पाक पुरुष थे, साहेब के अब्दाली।।

पवित्र मुसलमान धर्म के पैगम्बर हजरत मोहम्मद जी जिस रास्ते पर थे उन प्यारे नबी को आदर्श मानकर समस्त मुस्लिम समुदाय उसी राह पर चल रहा है किंतु मुस्लिमो को वास्तव में उनके धार्मिक गुरुओं द्वारा बहकाया और भरमाया गया है। वर्तमान में सारे मुसलमान मांस खा रहे है परंतु नबी मोहम्मद ने कभी माँस नही खाया तथा न ही उनके सीधे (एक लाख अस्सी हजार) अनुयायियों ने कभी माँस खाया। हजरत मोहम्मद केवल रोजा व नमाज किया करते थे। गाय आदि को बिस्मिल (हत्या) नहीं करते थे। हज़रत मुहम्मद इतने दयालु थे कि वे चींटी को भी तंग करना हराम समझते थे।

ये भी विचार करना "बहुत महत्वपूर्ण"

मुसलमान भाई ये भी मानते हैं कि जिस बकरे की बकरीद के दिन कुर्बानी करते हैं, वह बकरा जन्नत में जाता है और उस बकरे का माँस हमारे लिए माँस नहीं बल्कि प्रसाद बन जाता है। यदि बकरे की कुर्बानी करने पर बकरे की रूह को सीधी जन्नत मिलती है तो विचार कीजिये कि जन्नत में तो आपको भी जाना है, तो क्यों न उस बकरे की जगह आप अपनी कुर्बानी दे दो और आप पहले ही जन्नत पहुंच जाओ जबकि वास्तविकता यह है कि इस तरह बकरे की या किसी भी अन्य पशु की कुर्बानी देने से जन्नत नहीं बल्कि सीधा दोजख मिलता है।

मुसलमान का अर्थ है जो इस्लाम में विश्वास करता है और उसके नियमों के अनुसार रहता है।

अगर आप आज सच्चे मुसलमान हो तो आपको ये अवश्य ही मानना पड़ेगा।

क्या कभी सोचा है:-

सूरत 42 आयत 1 में अल्लाह ताला को प्राप्त करने के तीन शब्द बताए हैं: "एन सीन काफ" । क्या आप जानते हैं ये एन सीन काफ आखिर क्या है??

पवित्र कुरान शरीफ सूरत फुरकान 25 आयत 59 में कहा है कि जिस कबीर नामक अल्लाह ताला ने इस सारी सृष्टि की रचना छः दिन में कर दी, वो अल्लाह कबीर बड़ा दयालु है। उस अल्लाह कबीर को प्राप्त करने की विधि किसी बाख़बर अर्थात तत्वदर्शी संत से पूछ देखो। आखिर वो बाखबर वर्तमान हैं कौन??

ऐसे ही इस्लाम धर्म से संबंधित अनेकों प्रश्नों के लिए पढ़ें पाक पुस्तक " मुसलमान नहीं समझे ज्ञान कुरान " । निःशुल्क मंगवाएं इस नंबर से: +918630385761 ।।

धन्यवाद।

श्री कृष्ण के लिए बांसुरी का क्या महत्व है... आइए पढ़ते है सीक्रेट..

 "मुरली मनमोहिनी, बांसुरी बजाए, गोपियां मरक जाए"

श्री कृष्ण जी की बांसुरी उनके जीवन और लीलाओं में एक अहम भूमिका निभाती है। यह माना जाता है कि बांसुरी का स्वर उनके मन को शांति प्रदान करता था और उन्हें गोपियों के साथ रात्रि रास में आकर्षित करने का माध्यम बांसुरी बनती थी। खैर श्री कृष्ण जी की बचपन जीवन लीलाओं से तो आप बखूबी परिचित होंगे जो आपने टीवी,सीरीज, बुक्स में पढ़ी होगी। वो बांसुरी बजाकर गोपियों और क्षेत्र के सभी लोगों को अपनी तरफ आकर्षित करके बुलाते और उन्हें भजन गायन सुनाया करते थे।

पर रुको रुको...बांसुरी से मुझे एक बार पढ़ी हुई एक अद्भुत सच्ची कथा याद आई जो शायद ही आपने पहले कभी सुनी हो। ये कथा है संत मलूक दास जी की जो पहले श्री कृष्ण जी के परमभक्त थे पर उसके पश्चात उन्हें सच्चे सतगुरु मिले जिनकी महिमा का वर्णन उन्होंने बहुत सुंदर तरीके से किया है।

"एक समय गुरू बंसी बजाई, कालंद्री के तीर।
सुर नर मुनिजन थकत भये, रूक गया जमना नीर।
अमृत भोजन म्हारे सतगुरू जीमें, शब्द दूध की खीर।
दास मलूक सलूक कहत है, खोजो खसम कबीर ।।"

अर्थात् संत मलूक दास जी ने स्पष्ट किया है कि परमात्मा कबीर जी का नाम जपा करो। उस (खसम) सर्व के मालिक कबीर जी की खोज करो, उसे पहचानो। सत्य साधना करके सतलोक में कबीर खुदा के पास जाओ। जैसे श्री कृष्ण के विषय में बताया जाता है कि वे बांसुरी मधुर बजाते थे। उसको सुनकर सिर्फ नगरवासी, गोपियाँ व गायें खींची चली आती थी। यानी उनके द्वारा बजाई बांसुरी की आवाज श्री कृष्ण जी की बांसुरी की आवाज से भी मनमोहक थी।
मलूक दास ने बताया है कि एक समय मेरे सतगुरु कबीर जी ने (कालंद्री) जमना दरिया के किनारे बांसुरी बजाई थी जिसको सुनकर स्वर्ग लोक के देवता, ऋषिजन तथा आस-पास के गाँव के व्यक्ति खींचे चले आए थे। और क्या बताऊँ! जमना दरिया का जल भी रूक गया था। मेरे सतगुरू शब्द की खीर खाते हैं यानि अमृत भोजन के साथ-साथ अमर आनंद भी भोगते हैं। संत मलूक दास जी ने आँखों देखा बताया कि कबीर पूर्ण ब्रह्म (कादर अल्लाह) है, श्री कृष्ण से भी सर्वश्रेष्ठ है।
ये अनोखा अद्भुत हैरान कर देने वाला विवरण मैंने तो पहले कभी नहीं पढ़ा था, पर ये पढ़ने को तब मिला जब मुझे प्राप्त हुई पवित्र पुस्तक "हिंदू साहेबान नहीं समझे गीता, वेद, पुराण"। इसका शीर्षक ही झकझोड़ देने वाला है। साथ ही इसमें लिखे श्रीमद्भागवत गीता जी के रहस्य तो आज भी हर पल मेरे मन को छू लेते हैं। भक्ति और भगवान से परिपूर्ण इस पुस्तक ने मेरे ज्ञान चक्षु खोल मुझे सत्य से अविगत कराया है। अगर आप भी श्री कृष्ण जी और गीता जी के अद्भुत रहस्य जानना चाहते हैं तो आप इस नंबर 
+918630385761 पर व्हाट्सएप करके इसकी pdf निःशुल्क मंगवा सकते हो। "जागो परमेश्वर के चाहने वालो, ढूंढों उस भगवान को जो है श्री कृष्ण से भी सर्वोत्तम"
बांसुरी से संबंधित ये रोचक जानकारी पसंद आई हो तो शेयर करना ना भूलें।

आभार :)

🙏🏻

श्राद्ध कर्म के बारे में पवित्र शास्त्र क्या कहते हैं देखिए phd ज्ञान....

 श्राद्ध एक पवित्र अनुष्ठान है जिस अवसर पर पितरों का आह्वान करते हुए उनकी संतुष्टि हेतु विppधिपूर्वकs पूजा की जाती है। तर्पण और पिंडदान जैसे अनुष्ठानों के माध्यम से पूर्वजों को चावल, तिल, जौ और जल अर्पित किया जाता है।

हिंदू धर्म के लोगों की मान्यता है कि इस अनुष्ठान से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है व मोक्ष की प्राप्ति होती है और वे प्रसन्न होकर अपने वंशजों को आशीर्वाद देते हैं। पर यहां पर अगर आप अपने धर्म के प्रति अडिग हैं और आज शिक्षित होने के नाते आपको ये जानना जरूरी है कि धर्म में फैली मान्यताओं और धर्म शास्त्रों में लिखी बातें आपस में मेल खाती हैं भी या नहीं?

चलिए अब जान लेते हैं श्राद्ध और पितृ पूजा के विषय में क्या कहना है हमारे पवित्र धर्म शास्त्रों का?

गीता अध्याय 9 श्लोक 25:

"यान्ति देवव्रता देवान् पितृन्यान्ति पितृव्रताः।" इस श्लोक में भगवान कृष्ण स्पष्ट रूप से कहते हैं कि जो देवताओं की पूजा करते हैं, वे देवताओं के लोकों में जाते हैं, और जो पितरों की पूजा करते हैं, वे पितरों के लोकों में जाते हैं। यह श्लोक स्पष्ट करता है कि पितरों की पूजा से केवल पितृलोक की प्राप्ति होती है, मोक्ष नहीं मिलता।

महाभारत, अनुशासनपर्व, अध्याय 143

| इदं चैवापरं देवि ब्रह्मणा समुदाहृतम् ।| अध्यात्मं नैष्ठिकं सद्भिर्धर्मकामैर्निषेव्यते ।१६।| उग्रान्नं गर्हितं देवि गणान्नं श्राद्धसूतकम् ।| दुष्टान्नं नैव भोक्तव्यं शूद्रान्नं नैव कर्हिचित् । १७।

महेश्वर जी बोले - देवि ! ब्रह्मा जी ने यह एक बात और बतायी है, धर्म की इच्छा रखने वाले सत्पुरुषों को आजीवन अध्यात्म का सेवन करना चाहिये। हे देवि ! उग्र स्वभाव के मनुष्य का अन्न निन्दित माना गया है। किसी समुदाय का, श्राद्ध का, जननाशौच का, दुष्ट पुरुष का और शूद्र का अन्न भी निषिद्ध है उसे कभी नहीं खाना चाहिये ।।

ब्रह्म पुराण, अध्याय 223

| उग्रान्नं गर्हितं देवि गणान्नं श्राद्धसूतकम् ।| घुष्टान्नं नैव भोक्तव्यं शुद्रान्नं नैव वा क्वचित् ।२३।| शुद्रान्नं गर्हितं देवि सदा देवैर्महात्मभिः ।| पितामहामुखोत्सृष्टं प्रमाणमिति मे मतिः ।२४।

महादेव जी बोले - इसी प्रकार उग्र मनुष्य का अन्न, एक समुदाय का अन्न, श्राद्ध और सूतक का अन्न तथा शूद्र का अन्न कभी नहीं खाना चाहिये। देवि! देवताओं और महात्मा पुरुषों ने शूद्र के अन्न की सदा ही निन्दा की है। यह श्री ब्रह्माजी के श्री मुख का कथन होने के कारण अत्यन्त प्रामाणिक है ।।

पद्म पुराण, स्वर्गखण्ड, अध्याय 56

| चक्रोपजीविरजकतस्करध्वजिनां तथा ।| गान्धर्वलोहकारान्नेमृतकान्नं विवर्जयेत् ।५।| ब्रह्मद्विशः पापरुसेः श्रद्धान्नं मृतकस्य च ।| वृथापकस्य चैवन्नं शवान्नं चातुर्म्य च ।११।| गुरोरापि न भोक्तव्यमन्नं संस्कारवर्जितम् ।| दुष्कृतं हि मनुष्यस्य सर्वमन्ने व्यवस्थितम् ।१५।

व्यास जी बोले - कुम्हार, धोबी, चोर, शराब बेचने वाले, नाचने गाने वाले, लुहार तथा मरणाशौच से युक्त अन्न वर्जित है। ब्राह्मण से द्वेष रखने वाले, पाप में रुचि वाले का अन्न तथा मृतक के श्राद्ध का अन्न, व्यर्थ रूप से बनाया अन्न, मृत शरीर से प्राप्त अन्न, रोगी का अन्न, संस्कार वर्जित गुरुजी का भी अन्न नहीं खानेयोग्य है, मनुष्य का सब पाप अन्न मैं स्थित होता है ।।

स्कंद पुराण, प्रभासखण्ड, प्रभासक्षेत्र माहात्म्य, अध्याय 207

| तथा संचयनश्रद्धे जातिजन्मकृतं नृणाम् । | मृत शय्याप्रतिग्रही वेदस्यैव च विक्रयि । | ब्रह्मस्वाहरि च नरस्तस्य शुद्धिर्न विद्यते ।१४।

महादेव जी बोले - संचयन श्राद्ध में भोजन करने से सम्पूर्ण जीवन का अर्जित पुण्य नष्ट हो जाता है। मृतक की शय्या, वेद बेचने वाले तथा ब्राह्मण की सम्पत्ति हड़पने वाले मनुष्य के लिए कोई शुद्धिकरण नहीं है ।।

गरूड़ पुराण, सारोद्धार, अध्याय 5

| मृतस्यैकादशाहं तु भुञ्जानः श्वा विजायते । | लभेद्देवलको विप्रो योनिं कुक्कुटसंज्ञकाम् । ३२।

विष्णु जी बोले - किसी के मरणाशौच में एकादशाह तक भोजन करने वाला कुत्ता होता है। देव द्रव्य भोक्ता देवलक ब्राह्मण मुर्गे की योनि प्राप्त करता है ।।

उपरोक्त प्रमाणों पर अगर आपको विश्वास न हो तो आप स्वयं भी इन्हें अपने घर पर रखे पवित्र ग्रंथों से मिलान कर के देख सकते हैं। अगर कोई समझदार व्यक्ति मेरे इस उत्तर को पढ़ रहा होगा तो वो खुद ही निर्णय कर सकता है की अब हमें श्राद्ध क्रिया कर्म करनी चाहिए या नहीं? मान्यताओं को मानें या फिर धर्म शास्त्रों को...? वैसे तो अगर आप देखें तो ये लेकिन यहां कई लोगों के मन में प्रश्न उठता है कि अगर हम ये सब कर्म काण्ड नहीं करेंगे तो हमे दोष लगेगा या अनहोनी घटनाएं हमारे साथ बीतेगी, तो इसका समाधान भी हमारे धर्म शास्त्रों में वर्णित सतभक्ति करने से संभव है। और भी किसी प्रकार की शंका के लिए और सही भक्ति साधना के लिए अवश्य पढ़ें पुस्तक ज्ञान गंगा। निःशुल्क मंगवाने हेतु आप अपना एड्रेस इस +918630385761 पर whatsapp कर सकते हैं।

समझदार को संकेत ही काफी है, प्रमाण आप सभी के सामने हैं।

धन्यवाद 🙏🏻

बुधवार, 15 फ़रवरी 2023

प्रश्न :- वर्तमान में पूर्ण सच्चा सतगुरु कौन है?

प्रश्न :-  वर्तमान में पूर्ण सच्चा सतगुरु कौन है? 
प्रश्न :-  वर्तमान में वास्तविक तत्त्वदर्शी सन्त कौन है? 

उत्तर:- पूर्ण सतगुरु मिलना आसान नहीं है। और हर कोई सतगुरु, धर्मगुरु, पूर्ण संत नहीं हो सकता। सतगुरु का शाब्दिक अर्थ है। एक सच्चा (सतगुरु) संत ( अर्थात जो भगवान का अवतार है और जो आज तक अनकही सच्चाई को धार्मिक ग्रंथों के आधार पर प्रमाण सहित प्रकट करता है। वह सतगुरु कहलाता है।

 सतगुरु की पहचान उसके ज्ञान से होती है। यदि उनका ज्ञान शास्त्रों द्वारा प्रमाणित है, तभी वह सतगुरु है। वह पूजा का सच्चा मार्ग प्रदान करता है। और सभी को सभी तरह की बुराइयों को त्यागने की शिक्षा देता है। और उन्हें मोक्ष प्राप्त करने के लिए भक्ति के सच्चे मंत्र देकर सही मार्ग पर ले जाता है।

प्रश्न:- पूर्ण सतगुरु का क्या महत्व है?
उत्तर:-कबीर, गुरु बिन माला फेरते, गुरु बिन देते दान।
गुरु बिन दोनों निष्फल हैं, चाहे पूछो वेद पुराण।।

एक पूर्ण संत सतभक्ति प्रदान करता है। जिसे करने से मनुष्य परम शांति प्राप्त कर सकता है। सतगुरु द्वारा बताई गई साधना, करने से जीवन के सारे दुख दूर हो जाते हैं। एक पूर्ण संत द्वारा दी गई आध्यात्मिक शिक्षाओं का पालन करने के बाद मनुष्य का जन्म-मृत्यु और पुनर्जन्म का रोग हमेशा के लिए समाप्त हो जाता है।  सतगुरु हमें सभी पवित्र शास्त्रों से पूर्ण ज्ञान प्रमाण के साथ बताते हैं। मानव जीवन का उद्देश्य केवल सतभक्ति कर मोक्ष प्राप्त करना है। 

प्रश्न:-मनुष्य को पूर्ण गुरु की आवश्यकता क्यों है?
उत्तर:-मानव जीवन का प्राथमिक और परम उद्देश्य ईश्वर को प्राप्त करना है। और केवल एक सतगुरु अर्थात पूर्ण संत के पास ही यह गुण होता है। जिससे वह अपने भक्तों का उद्धार कर सकते हैं। इसलिए पूर्ण गुरु की आवश्यकता सभी को होती है। लोगों के जीवन में समय असमय बहुत सारे कष्ट आते रहते हैं। और वे हमेशा उनसे बाहर आने की कोशिश में लगे रहते हैं।  सभी दुखों से मुक्ति पाने का एक ही उपाय है कि, किसी तत्वज्ञानी संत की शरण ग्रहण कर सतभक्ति की जाए।

प्रश्न:-सतभक्ति का क्या उद्देश्य है?

उत्तर:-आज मानव जीवन में जो कुछ भी प्राप्त हो रहा है। वह पूर्व जन्मों में किए कर्मों का संग्रह है। यदि वर्तमान समय में सच्ची पूजा और शुभ कर्म नहीं किया गया तो, आने वाला जीवन नरक बन जाएगा। 
सत भक्ति करने के  लाभ इस प्रकार भी है:-

जो सतभक्ति करता है वह भगवान को प्राप्त करता है।

(1)सतभक्ति करने से भक्त की आत्मा निर्मल हो जाती है और पाप कर्म भी सतभक्ति करने से कटते हैं।

(2)सतभक्ति साधक के जीवन में आर्थिक, मानसिक और भौतिक सुख प्रदान करती है।

(3)सतभक्ति करने से घातक रोग भी ठीक होते  हैं।

(4)सतभक्ति में भाग्य को बदलने की शक्ति होती है।

संत रामपालजी महाराज एकमात्र ऐसे संत है। जिन्होंने दहेज़ मुक्त, नशा मुक्त, भ्रष्टाचार मुक्त, व्याभिचार मुक्त समाज का निर्माण करते हुए सत्ज्ञान की सुगंध को पूरे विश्व में फ़ैलाने का बीड़ा उठाया है। पूरे विश्व में केवल संत रामपाल जी महाराज जी जगत के तारणहार एवं पूर्ण सतगुरु हैं।

#17Feb_SantRampalJi_BodhDiwas
#बोधदिवस_पर_विश्व_को_न्यौता
#SantRampalJiMaharaj 


अधिक जानकारी के लिए Sant Rampal Ji Maharaj > App Play Store से डाउनलोड करें और Sant Rampal Ji Maharaj YouTube Channel पर Videos देखें और Subscribe करें।

संत रामपाल जी महाराज जी से निःशुल्क नाम उपदेश लेने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जायें।
⬇️⬇️ 



प्रश्न:- पूर्ण सतगुरु के क्या लक्षण होते हैं ?

प्रश्न:- पूर्ण सतगुरु के क्या लक्षण होते हैं ?

उतर:-पूर्ण संत की पहचान होती है कि, वर्तमान के धर्म गुरु उसके विरोध में खड़े होकर राजा व प्रजा को गुमराह करके उसके ऊपर अत्याचार करवाते हैं।

”सतगुरु के लक्षण कहूं, मधूरे बैन विनोद।
चार वेद षट शास्त्र, कहै अठारा बोध।।“

 पूर्ण गुरु के  लक्षण है। कि वह चारों वेदों, छः शास्त्रों, अठारह पुराणो,आदि सभी ग्रंथों का पूर्ण जानकार होगा अर्थात् उनका सार निकाल कर  मानव समाज को बताएगा।

प्रश्न:-संत रामपाल जी महाराज के क्या उद्देश्य हैं?

उत्तर:- परम संत रामपाल जी महाराज जी का उद्देश्य आध्यात्मिक मार्ग पर फैले पाखंडवाद को समाप्त करना, सभी प्रमाणित धर्म ग्रंथों की तुलनात्मक समीक्षा करके शास्त्र अनुकूल भक्ति जनसाधारण तक पहुंचाना, समाज में व्याप्त कुरीतियों का समूल नाश करना मृत्यु भोज, भ्रूण हत्या, छुआछूत, रिश्वतखोरी भ्रष्टाचार आदि से मुक्त समाज का निर्माण करना।

संत सतगुरु रामपाल जी के आध्यात्मिक ज्ञान से विश्व में भाईचारा, अमन-शांति तथा पतन हो चुकी मानवता का फिर से उत्थान हो रहा है। संत रामपाल जी महाराज जी को आज विश्वगुरु, विश्व विजेता, जगतगुरु तथा धरती पर अवतार, महापुरुष आदि नाम से पुकारा जाने लगा है क्योंकि आज उनके द्वारा बताए गए शास्त्रानुसार आध्यात्मिक ज्ञान से स्वच्छ समाज का निर्माण, मानव जीवन का कल्याण और विश्व मे शांति का माहौल बन रहा है।


प्रश्न:-वर्तमान समय में सत भक्ति कौन दे रहे हैं?

उत्तर:-वर्तमान समय में सतभक्ति केवल संत रामपाल जी महाराज जी ही बता रहे हैं। संत रामपाल जी महाराज ने उस पूर्ण ब्रह्म परमात्मा का वास्तविक ज्ञान करवाया कि वह परमात्मा कौन है कहां रहता है कैसे मिलता है किसने देखा है उसकी वास्तविक भक्ति विधि क्या है?

संत रामपाल जी महाराज ने सर्व पवित्र धर्म के पवित्र शास्त्रों का सार बता कर अध्यात्मिक ज्ञान का एक ऐसा निष्कर्ष निकाल कर मानव समाज को दिया है जिससे आज मनुष्य अपने धर्म शास्त्रों में छुपे हुए गूढ़ रहस्य से अवगत हो कर उस पूर्ण परमात्मा को प्राप्त कर सकता है जिसकी गवाही सभी धर्मों के पवित्र शास्त्र धर्म ग्रंथ दे रहे हैं। 

संत रामपाल जी महाराज ने सभी पवित्र धर्मों के शास्त्रों से प्रमाणित किया है कि, पूर्ण परमात्मा साकार है या नराकार है सतलोक में रहता है और उसका नाम कबीर है?

संत रामपाल जी महाराज जी का उद्देश्य -:
आज मानव समाज में फैली समस्त बुराइयों को जड़ से खत्म करके स्वच्छ  समाज का निर्माण करना है। संत रामपाल जी महाराज पूरे विश्व में ऐसे महान संत हैं जिनके यथार्थ ज्ञान से धरती बन सकती है स्वर्ग समान और सुखी हो सकता है इंसान।।

#17Feb_SantRampalJi_BodhDiwas
#बोधदिवस_पर_विश्व_को_न्यौता
#SantRampalJiMaharaj 


अधिक जानकारी के लिए Sant Rampal Ji Maharaj > App Play Store से डाउनलोड करें और Sant Rampal Ji Maharaj YouTube Channel पर Videos देखें और Subscribe करें।

संत रामपाल जी महाराज जी से निःशुल्क नाम उपदेश लेने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जायें।
⬇️⬇️ 


कौन हैं संत रामपाल जी महाराज तथा इनके जनकल्याण के क्या उद्देश्य हैं?

✴️ प्रश्न-: कौन हैं संत रामपाल जी महाराज तथा इनके जनकल्याण के क्या उद्देश्य हैं? ✴️

उत्तर-: सर्वप्रथम हम आपको बताना चाहेंगे कि, संत रामपाल जी महाराज कौन है? 
दोस्तों वैसे तो दुनिया में करोड़ों संतों की भरमार है।  किंतु इन संतो में सच्चा संत अर्थात तत्वदर्शी संत कौन है?
 इसकी पहचान कर पाना बहुत ही आसान है। पवित्र श्रीमद्भागवत गीता के अध्याय 15 के श्लोक 1–4 में वर्णित है जो संसार रूपी उल्टे लटके हुए वृक्ष को सवेदवित जड़ से लेकर तने तक प्रमाण सहित बता देता है। वह तत्वदर्शी संत है। वर्तमान में केवल संत रामपाल जी महाराज जी ही शास्त्रों को खोलकर प्रमाण दिखा रहे हैं। अर्थात इससे स्पष्ट है। कि संत रामपाल जी महाराज ही वह सच्चे संत अर्थात तत्वदर्शी संत है।

दोस्तों संत रामपाल जी महाराज जी एक ऐसे संत है जो समाज को सतभक्ति प्रदान कर रहे हैं। तथा उन सच्चे मंत्रों का जाप बता रहे हैं। जो आज से पहले जिन महापुरुषों को स्वयं परमात्मा मिले हैं । जैसे नानक देव जी,आदरणीय गरीबदास जी महाराज जी, आदरणीय रामानंद जी, मलूक दास जी, घीसा दास जी इत्यादि, इन मंत्रों का स्वयं जाप करते थे।  संत रामपाल जी महाराज का उद्देश्य है। जनता को सुखी करना तथा अपने परमधाम सतलोक पहुंचाना। इसके साथ-साथ समाज में फैली पाखंडवाद, कुरीतियां, नशा, चोरी जारी, मांस भक्षण, रिश्वतखोरी इत्यादि को जड़ से समाप्त करना चाहते हैं और इसी के लिए संत रामपाल जी महाराज दिन-रात संघर्ष कर रहे हैं। 

प्रश्न-: संत रामपाल जी महाराज  ने समाज के लिए कौन-कौन से कार्य किए तथा संत रामपाल जी महाराज  को ही गुरु बनाना क्यों आवश्यक है?

उत्तर-:संत रामपाल जी महाराज जी ने अपना सब कुछ जनता के लिए न्योछावर कर दिया उन्होंने घर, बाल परिवार, नौकरी इत्यादि को छोड़ा। जनता को सुखी करने के लिए तथा सत भक्ति का मार्ग प्रशस्त करने के लिए संत रामपाल जी महाराज  ने जन जन तक काफी वर्षों तक पैदल यात्रा से ज्ञान का प्रचार करते रहे। आज वर्तमान में संत रामपाल जी महाराज जी के करोड़ों अनुयाई हो चुके हैं। कारण यही है। कि संत रामपाल जी महाराज जी शास्त्रों के अनुसार सत भक्ति प्रदान कर रहे हैं। और उनके द्वारा सद्भक्ति से लोगों को अनगिनत लाभ हो रहे हैं। कैंसर से कैंसर लाइलाज जैसी बीमारी भी ठीक हो रही है। आज लोग नशे, चोरी जारी, रिश्वतखोरी, मांस भक्षण इत्यादि से मुक्त होकर एक सच्चे परमात्मा की भक्ति कर रहे हैं।
संत रामपाल जी महाराज जी के सानिध्य में आज रक्तदान का शिविर भी जगह जगह लगाया जाता है। लोग संत रामपाल जी महाराज जी के ज्ञान से प्रेरित होकर रक्तदान भी करते हैं । यहां तक की देहदान भी करते हैं। लाखों-करोड़ों बेटियां आज दहेज के कारण मारी जा रही हैं। उन्हें गर्भ में ही मार दिया जाता है। संसार को देख नहीं पाती ऐसी स्थिति में संत रामपाल जी महाराज जी ने बेटियों के लिए दहेज मुक्त विवाह का प्रावधान किया है। जिसमें आज उनके अनुयाई किसी भी प्रकार का दहेज नहीं लेते हैं। आज बेटियां स्वच्छ जीवन जी रही हैं।

दोस्तों वैसे तो दुनिया में बहुत से अधिक संत हैं । 
किंतु बात यहां यह है कि संत रामपाल जी महाराज जी को ही गुरु क्यों बनाए? 
जैसा कि उपर्युक्त में विवरण दिया है कि जो सच्चे संत होते हैं अर्थात तत्वदर्शी संत होते हैं वह सवेदवित प्रमाण सहित शास्त्रों के अनुसार ज्ञान देते है।

आदरणीय गरीबदास जी महाराज जी ने कहा है–
”सतगुरु के लक्षण कहूं, मधूरे बैन विनोद।
चार वेद षट शास्त्र, कहै अठारा बोध।।“
अर्थात् सतगुरु गरीबदास जी महाराज अपनी वाणी में पूर्ण संत की पहचान बता रहे हैं कि, वह चारों वेदों, छः शास्त्रों, अठारह पुराणों आदि सभी ग्रंथों का पूर्ण जानकार होगा। अर्थात् उनका सार निकाल कर बताएगा।
 
आदरणीय कबीर साहिब जी ने सतगुरु के लक्षण बताएं हैं–
"जो मम संत सत उपदेश दृढ़ावै(बतावै), वाके संग सभि राड़ बढ़ावै।
या सब संत महंतन की करणी, धर्मदास मैं तो से वर्णी।।"
अर्थात् कबीर साहेब जी अपने प्रिय शिष्य धर्मदास जी को इस वाणी में समझा रहे हैं कि, जो मेरा संत सत भक्ति मार्ग को बताएगा उसके साथ सभी संत व महंत झगड़ा करेंगे। ये उसकी पहचान होगी।

इस प्रकार दोस्तों संत रामपाल जी महाराज जी ही वह संत है। जिन पर उपर्युक्त वाणी खरी खरी उतरती है। अब आसानी से सच्चे सतगुरु की पहचान कर पाना संभव है। तो कह सकते हैं कि, संत रामपाल जी महाराज जी को ही गुरु अवश्य बनाना चाहिए। जिससे हम सच्चे मंत्रों का जाप कर सकें, और अपने निज स्थान सतलोक जा सके। संतमत में जिस दिन गुरु से दीक्षा प्राप्त होती है । वही हमारा असली जन्म अर्थात अध्यात्मिक जन्म माना जाता है। संत रामपाल जी महाराज जी को 37 वर्ष की आयु में फाल्गुन महीने की अमावस्या की रात्रि में 17 फरवरी 1988 को नाम दीक्षा प्राप्त हुई । जिसके फलस्वरूप 17 फरवरी को बोध दिवस के रूप में मनाते हैं। इस बोध दिवस के उपलक्ष में आपको सच्चे और तत्वदर्शी संत साथ ही सतगुरु की पहचान बता दी गई हैं। जिससे आप पहचान कर संत रामपाल जी महाराज जी से नाम दीक्षा अवश्य ले, और अपने मनुष्य जीवन को सफल बनाएं।

#17Feb_SantRampalJi_BodhDiwas
#बोधदिवस_पर_विश्व_को_न्यौता
#SantRampalJiMaharaj 


अधिक जानकारी के लिए Sant Rampal Ji Maharaj > App Play Store से डाउनलोड करें और Sant Rampal Ji Maharaj YouTube Channel पर Videos देखें और Subscribe करें।

संत रामपाल जी महाराज जी से निःशुल्क नाम उपदेश लेने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जायें।
⬇️⬇️