मंगलवार, 2 जून 2015

परमेश्वर कबीर साहिब जी प्रकट दिवस

परमेश्वर कबीर साहिब जी प्रकट दिवस



जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी के अमृत सत्संगों से एक महत्वपूर्ण प्रसंग...
सत् साहिब जी भक्त आत्माओं..
600 साल पहले जब परमेश्वर कबीर साहिब जी काशी में आये थे तो अपना अनमोल तत्व ज्ञान जन-जन में प्रचारित करते थे और हमें समझाया करते थे और कहते थे कि आपको जो ये ज्ञान मार्गदर्शक(नकली धर्मगुरु) मिले हुए है ये सब अधूरे ज्ञान पर आधारित है। ये सब आपको गुमराह कर रहे है। लेकिन इन नकली धर्मगुरुओं ने काल प्रेरणा से अपने स्वार्थवश हमें अपने परमात्मा का ही दुश्मन बना दिया। परमात्मा का घोर विरोध करवा दिया। क्योंकि उस समय जनता अशिक्षित थी। इसी बात का लाभ यह नकली धर्मगुरु उठाते रहे और हमें अपने परमात्मा से दूर रखे रखा। जब परमात्मा अपने ज्ञान का प्रचार कहते थे तब हिन्दू और मुसलमान दोनों को समझाया करते थे कि जो साधना तुम कह रहे हो वह साधना तुम्हारी ठीक नहीं है। आप सब शास्त्रविधि को त्यागकर मनमानी पूजाएँ कर रहे हो इन साधनाओं से न तो आपको कोई सुख होगा और न ही कोई गति होगी। ये आपकी गीताजी बता रही है। लेकिन वह नकली स्वार्थी लोग इस बात को ऊपर नहीं आने देते थे। वह जनता को अपने शिक्षित होने का एवं परमेश्वर कबीर साहिब जी के अशिक्षित होने का हवाला देकर भ्रमित करते रहते थे।
परमात्मा उस समय उन भोली जनता को समझाया करते थे कि ये जो मार्गदर्शक आपके है ये ठीक नहीं है और उन श्रषियों ब्राह्मणों काजी मुल्लाओं को भी अपने बच्चे समझकर कहते थे...
"मेण्डी जिन्दडिये उस रब दा पंथ विखट है बाट,
मेण्डी जिन्दडिये उस रब दा पंथ विखम है बाट।
वह परमात्मा जिसका वर्णन आपके पवित्र सद्ग्रन्थों में है वह बहुत ही विकट है। क्योंकि उस परमपिता की जानकारी एवं उसकी भक्ति विधि का ज्ञान किसी को भी नहीं है। इसी प्रकार गीताजी वेद कुराण बोलने वाला भगवान भी कह रहा है कि मैं भी नहीं जानता उस परमपिता के विषय में, उसकी जानकारी तो किसी तत्वदर्शी सन्त से पूछों। उसके बिना मुक्ति नहीं है।
परमेश्वर कबीर साहिब जी काजी मुल्लाओं पंडितों को समझाते हुए रहे है कि...
गरीब, गगन मण्डल में महल साहिब का, अन्दर बण्या झरोखा,
एक मुल्ला मस्जिद में कूके, एक पुकारे बोका(बकरे की दर्दभरी आवाज)
गरीब, एक मुल्ला मस्जिद में कूके, एक पुकारे बोका,
इनमें कौन सरे(स्वर्ग) कूं जायेगा, हमकूं लग्या है धोखा।
गरीब, मोहम्मद ने कद मस्जिद पूजी, बाजीद ईद कद खादी,
सुल्तानी कद पानी पूजैं, छाड़ तख्त गए गादी॥
गरीब, कलमा रोजा बंक निवाजा, कद नबी मोहम्मद कीन्हया,
कद मोहम्मद ने मुर्गी मारी, कर्द गले कद दीन्हया॥
यहाँ परमात्मा कह रहे कि कब मोहम्मद साहिब जी ने मस्जिद पूजी, कब बाजीद जी ने ईद मनाई, कब मोहम्मद जी ने कलमा रोजा बंग पढ़ा और कब मोहम्मद जी ने मुर्गी मारी.?
नबी हजरत मोहम्मद जी ने कभी भी ऐसा जुल्म करने की सलाह नहीं दी फिर क्यों तुम परमात्मा के निरीह जीवों को मारते हो। एक तरफ तो आप इन सब महापुरुषों की दुहाई देते हो और दूसरी तरफ आप सारी क्रियायें इनके विपरीत करते हो.?
खण्ड़ पिण्ड़ ब्रह्मण्ड़ न होते, ना थे गाय कसाई,
आदम हव्वा न हूजरा होते, कलमा बंग ना भाई॥
एक बार काशी में काजी मुल्लाओं के कहने पर दिल्ली के बादशाह सिकन्दर लोधी ने कबीर साहिब जी की परीक्षा लेने के लिए एक ग्याभन गाय को काट दिया और कहा कि यदि तुम अल्लाह हो तो इस गाय को जीवित करके दिखाओ।
परमेश्वर कबीर साहिब जी खड़े हुए और दिल्ली के बादशाह एवं हजारों लोगों के सामने उस मरी हुई ग्याभन गाय को बच्चे सहित जीवित कर अपनी सर्मथता दिखाई और कहा कि...
"हम ही अलख अल्लाह है, कुतुब गोस और पीर,
गरीबदास खालिक धनी, हमरा नाम कबीर"।
"मैं कबीर सरबंग हुं, सकल हमारी जात,
गरीबदास पिण्ड़ प्राण में, जुगन-जुगन का साथ"।
फिर परमात्मा ने वहाँ हिन्दू और मुसलमानों को ढेढ़ घण्टे तक प्रवचन दिए और कहाँ कि आप सब एक पिता की संतान हो, तुम सब मेरे ही बच्चे हो। काल ने आपको भ्रमित कर उस परमपिता से दूर कर रखा है...
सन्त गरीबदास जी महाराज ने अपनी अमृतवाणी में परमेश्वर की वार्ता को बहुत सुन्दर रुप से वर्णन किया है....
गरीब, काशी जौरा दीन का, काजी खिलस करन्त,
गरीबदास उस सरे में, झगड़े आन पड़न्त।
गरीब, सुन काजी राजी नहीं, आपै अलह खुदा,
गरीबदास किस हुकुम से, तूने पकड़ पछाड़ी गाय।
परमात्मा ने कहा कि किसके आदेश से यह गाय तुमने मार दी। यह भगवान का प्राणी है तुम्हें मारने का कोई अधिकार नहीं है।
फिर परमात्मा ने कहा कि...
गऊँ आपनी अम्मा है, इस पर छुरी मत बाह,
गरीबदास घी दूध को, सबही आतम खाय।
यह गाय सबकी मां है। जो दूध पिलाती है वह मां कहलाती है।
जिस ममडी का दूध पीवत हो, धृत(घी) दूध बहु खाई,
उसका फिर तुम कतल करत हो, लेकर करद कसाई।
परमात्मा ने कहा कि जिस माँ का तुम दूध पीते हो, घी खाते हो और फिर उसी को तुम काट रहे हो कहाँ गई आपकी बुद्धि...
गऊँ तुम्हारी माता है, पीवत जिसका दूध,
गरीबदास काजी कुटिल, तेने कतल किया औझूद।
परमात्मा ने काजी मुल्लाओं को समझाते हुए कहा कि...
"ऐसा खाना खाईये, माता के ना हो पीर,
गरीबदास दरगह सरे, तेरे गल में पड़े जंजीर"।
परमात्मा ने कहा कि ऐसा खाना खाओ जिससे माता के पीड़ा ना हो।
गरीब, मुर्गे से मुल्ला भये, मुल्ले से फिर मुर्ग,
गरीबदास दोजख धसै, तुमने पावैं नहीं स्वर्ग।
आज तुम मुर्गे को मार रहे हो कल फिर मुर्गा तुम्हें मारेगा। यह अदला बदला ऐसे ही चलता रहेगा जब तक कि तुम्हें यह तत्व ज्ञान बताने वाला सदगुरु नहीं मिलेगा।
परमात्मा कहते है कि...
"बदला कहीं न जात है, तीन लोक के माय,
और सदगुरु मिले कबीर से तो सतलोक ले जाय"।
काजी कलमा पढ़त है, बाँचे फेर कुरान,
गरीबदास इस जुलम से, तेरे डूबे दोनो जिंहान।
पहले काजी बकरे पर कलमा पढ़कर उसे हलाल करता है फिर पीछे कुरान का पाठ पढ़ता है, परमात्मा ने कहा कि ऐसे जुल्म से तो तुम नरक के भागी बनोगे।
गरीब, दोनों दीन दया करो, मानो वचन हमार,
गरीबदास सूर गऊँ में, एकहि बोलनहार।
सूर गऊँ में जीव एक है, गाय भखो ना सूर,
गरीबदास सूर गऊँ में, दोहूं का एकहि नूर।
परमात्मा ने कहा कि सूर और गऊँ दोनों में एक जैसा ही जीव है। एक जैसा ही दर्द होता है इसलिए किसी भी जीव को मत मारो। जीव हिंसा मत करो।
हिन्दू झटके मार ही, काजी करै हलाल,
गरीबदास दोनों दीन का, तुम्हरा होगा हाल बेहाल।
सुन मुल्ला मरदूद तू, कुफर करै दिन रात,
गरीबदास हक बोलता, और मारै जीव अनाथ।
"हक हलाल पिछान पति कर दूर रे, या मुर्गी रब रुह गऊ क्या सूर रे"
रमजानी रमजान क्या सोच जां दिया, या पकड़ पछाड़ी रूह कहों यो क्या किया..??
परमात्मा ने कहा कि दिन में तो तुम भूखे मरें रोजा रखा और शाम को मुर्गा मार कर खा लिया...ये क्या भक्ति हुई भई..??
खूनी खून उजार खाल क्यों काढ़ता,
वो देखे रब रहमान गले क्यों बाढ़ता।
परमात्मा के जीवों को क्यों काट रहे हो, वह परमात्मा सब देख रहा है।
मुसलमान कूं गाय भखी, हिन्दू खाया सूर,
गरीबदास तुम दोनवो से, राम रहीमा दूर।
ब्राह्मण हिन्दू देव है, और मुल्ला मुसल का पीर,
गरीबदास उस स्वर्ग में, तुम दोनों को हो तकसीर।
काजी पढ़ै कुरान कूं, मुझे अंदेशा ओर,
गरीबदास उस स्वर्ग/दरबार में, नहीं खूनी को ठौर।
सुन मुल्ला तू मिलेगा, उस नरक के माहीं,
गरीबदास लख अर्ज करियो, मुल्ला छूटैं नाहीं।
लाख अर्ज मुल्ला करियो, चाहे काजी करियो करोड़,
गरीबदास वहाँ कोई नहीं संगी, मत झोटे बकरे तोड़।
गरीब, मुर्गे सिर कलंगी होती, चिसमें लाल चलूल,
गरीबदास उस कलंगी का, कहाँ गया वो फूल।
परमात्मा ने कितना सुन्दर मुर्गा बना रखा है, कितनी सुन्दर उसके सिर पर कलंगी ला रही थी और तुमने उसे काट-पीट कर कण्डम कर दिया, उसे बिगाड़ दिया।
सुन मुल्ला माली अलह, ये फूल रुप संसार,
गरीबदास गति एक सब, पान फूल फल डार।
परमात्मा काजी मुल्लाओं को समझाते हुए कह रहे है कि जैसे माली एक बगीचा लगाता है वैसे ही यह पूरा संसार एक माली(परमात्मा) का बाग है और उसने बड़े प्यार से इसे सींचा हुआ है। जब माली का कोई एक फल, एक टहनी या एक पौधा भी कोई तोड़ लेता है तो उस माली को बहुत दुख होता है वह उस व्यक्ति से प्यार नहीं करता। उसी प्रकार तुमने एक मुर्गा भी उस मालिक का मार दिया तो तुम्हारी खैर नहीं है।
फिर परमात्मा ने बताया कि ये खाना खाया करो...
"बासमती चावल पकै, घृत खांड टूक डार,
गरीबदास करो बन्दगी, ये कूढ़े काम निवार"।
"फुलके धोवा डाल कर, हलवा मिठी खा,
गरीबदास काजी सुन ये, माँस मिट्टी मत खा"।
गरीब, मुल्ला से पंडित भये, पंडित से भये मुल्ल,
गरीबदास तज् बैर भाव, तुम करलो सुल्लम सुल्ल।
परमात्मा ने कहा कि द्वापर से पहले कोई पंथ मजहब नहीं था इसलिए आपके संस्कार आपस में मिले-जुले है। आज कोई मुल्ला है वह अगले जन्म में पंडित भी हो सकता है और जो आज पंडित है वह अगले जन्म में मुल्ला भी बन सकता है इसलिए अभी से तुम अपना प्यार बना लो, बैर भाव त्याग दो, बुराइयाँ छोड़ दो और एक परमात्मा की भक्ति कर लो।
गरीब काजी खिलस उठाय ले, तज् रोजे की रीत,
गरीबदास अल्लाह भजो, यों समय जावेगा बीत।
परमात्मा ने कहा कि ये गलत साधनाएं त्याग दो और उस एक अल्लाह/परमात्मा की भक्ति करो अन्यथा यह मनुष्य जीवन का अनमोल समय हाथ से निकल जायेगा।
"हिन्दू मुसलमान के बीच में, मेरा नाम कबीर,
आत्म उद्धार कारणै, अविगत धरा शरीर"॥
सत् साहिब जी।
परमेश्वर बन्दीछोड़ सदगुरु रामपाल जी महाराज की सदैव जय हो॥

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