सोमवार, 15 जून 2015

parampita parmeshwar कबीर ji ki vaani -

कबीर दर्शन साधु का
करत न कीजै कानि।
ज्यो उद्धम से लक्ष्मी
आलस मन से हानि।।
कबीर सोई दिन भला
जा दिन साधु मिलाय।
अंक भरे भरि भेटिये
पाप शरीरा जाय।।
मात पिता सुत इस्तरी
आलस बन्धु कानि।
साधु दरश को जब चलै
ये अटकावै आनि।।
साधु भूखा भाव का
धन का भूखा नाहि।
धन का भूखा जो फिरै
सो तो साधु नाहि।।
तीरथ मिले एक फल
साधु मिले फल चार।
सतगुरु मिले अनेक फल
कहै कबीर विचार।।
वेद थके ब्रह्मा थके
थाके शेष महेश।
गीता हूं कि गम नही
संत किया परवेश।।
साधु कहावन कठिन है
ज्यो खाड़े की धार।
डगमगाय तो गिर पड़े
निहचल उतरे पार।।
जौन चाल संसार की
तौन साधु की नाहि।
डिंभ चाल करनी करे
साधु कहो मत ताहि।।
सन्त न छोड़ै सन्तता
कोटिक मिलौ असन्त।
मलय भुवंगम वेधिया
शीतलता न तजन्त।।
सन्त मिले सुख ऊपजै
दुष्ट मिले दुख होय।
सेवा कीजै सन्त की
जन्म कृतारथ होय।।
साधु दरश को जाइये
जेता धरिये पांव।
डग डग पै असमेध जग
कहै कबीर समुझाय।।
साधु दरशन महा फल
कोटि यज्ञ फल लेय।
इक मन्दिर को का पड़ी
नगर शुद्ध करि लेय।।
साधु ऐसा चाहिये
जहां रहै तहां गैव।
बानी के विस्तार मे
ताकू कोटिक ऐब।।
साधू ऐसा चाहिये
जाका पूरा मंग।
विपति पड़ै छाड़ै नही
चड़ै चौगुना रंग।।
सेवक सेवा मे रहै
सेवक कहिये सोय।
कहै कबीर सेवा बिना
सेवक कभी न होय।।
कबीर गुरु सबको चहै
गुरु को चहै न कोय।
जब लग आस शरीर की
तब लग दास न होय।।
लगा रहै सतज्ञान सो
सबही बंधन तोड़।
कहै कबीर वा दास सो
काल रहै हथजोड़।।
सांचे को सांचा मिलै
अधिका बड़ै सनेह।
झूठे को सांचा मिलै
तड़ दे टूटे नेह।।
चाह गयी चिन्ता गयी
मनुवा बेपरवाह।
जिनको कछू न चाहिये
सो साहनपति साह।।
आसा तौ गुरुदेव की
दूजी आस निरास।
पानी मे घर मीन का
सो क्यो मरै पियास।।
आसा तौ गुरुदेव की
और गले की फांस
चंदन ढिंग चंदन भये
देखो आक पलास।।
अष्ट सिद्धि नौ निधि लौ
सबहि मोह की खान।
त्याग मोह की वासना
कहै कबीर सुजान।।
जो कोई निन्दै साधु को
संकट आवै सोय।
नरक जाय जन्मे मरै
मुक्ति कबहू न होय।।
ब्राह्मण है गुरु जगत का
सन्तन के गुरु नाहि।
अरूझि परझि के मर गये
चारो वेदो माहि।।
जब गुन को गाहक मिलै
तब गुन लाख बिकाय।
जब गुन को गाहक नहीं
कौड़ी बदले जाय।।
हीरा तहां न खोलिये
जहँ खोटी है हाट।
कसि करि बांधी गाठरी
उठि करि चालो बाट।।
चन्दन गया विदेशरे।
सब कोई कहै पलास
ज्यों ज्यो चूल्हे झोकियां
त्यो त्यो अधिक सुवास।।
ग्राहक मिलै तौ कछू कहूँ
ना तरू झगड़ा होय।
अन्धो आगे रोइये
अपना दीदा खोय।।
मन मुरीद संसार है
गुरु मुरीद कोइ साध
जो माने गुरु वचन को
ताका मता अगाध।।
सती डिगै तौ नीच घर
सूर डिगै तौ क्रूर।
साधु डिगै तौ शिखर तै
गिर भये चकनाचूर।।
जाकी जैसी बुद्धि है
तैसी कहै बनाय।
दोष न बाको दीजिये
लेन कहाँ से जाय।

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